फूल राहों खिला उठा लाया
नाम अपना दिया जिला लाया
भीड़ जलने लगी बिना कारण
बात काँटों भरी विदा लाया
लुट रही थी शमा तमस में फिर
रौशनी का दिया बना लाया
शर्म आती नहीं लुटेरों को
पाठ हित का उसे पढ़ा लाया
बैर की आग जब जली दिल में
आज घर अपना वो जला लाया
गिर गया आज फिर मनुज कितना
नार को कोख में मिटा लाया
प्यार से सींचा फिर जिसे मैंने
उसका घर आज मै बसा लाया
खुश रहे वो सदा दुआ मेरी
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया .
-- शशि पुरवार
26.05.13
नमस्ते मित्रो --- मेरे जीवनसाथी की तबियत नासाज है इसीलिए लेखन और अंतरजाल से दूर हूँ , बहुत परेशान हूँ ..... सब ठीक होने के बाद पुनः आपसे आपके ब्लॉग पर मिलूंगी , अपना स्नेह बनाये रखें .