चलो नज़ारे यहाँ आजकल के देखते है
अजीब लोग है कितने ये चल के देखते है
गली गली में यहाँ पाप कितना है फैला
खुदा के नाम से ईमान छल के देखते है
ये लोग कितने गिरे आबरू से जो खेले
झुकी हुई ये निगाहों को मल के देखते है
ये जात पात के मंजर तो कब जहाँ से मिटे
बनावटी ये जहाँ से निकल के देखते है
कलम कहे कि जिधर प्यार का जहाँ हो ,चलो
अभी कुछ और करिश्मे गजल के देखते है .
---- शशि पुरवार