Sunday, June 30, 2013

ठूंठ सा वन



ठूंठ ---

१ 


ठूंठ सा तन

पपड़ाया यौवन


पंछी भी उड़े .

२ 


सिसकती सी

ठहरी है जिंदगी

राहों में आज



शुलो सी चुभन 



दर्द भरा जीवन   
मौन रुदन .
सिमटी जड़ें
हरा भरा था कभी
वो बचपन

को से मै कहूं
पीर पर्वत हुई
ठूंठ सी खड़ी

झरते पत्ते
बेजान होता तन
ठूंठ सा वन

राहो में खड़े
देख रहे बसंत
बीता यौवन

जीने की आस
महकने की प्यास
जिंदगी खास .

हिम पिघले
पहाड़ ठूंठ बन
राहो में खड़े.
१०
ठूंठ बन के
सन्नाटे भी कहते
पास न आओ .
११
चीखें बेजान
तड़पती है साँसे
ठूंठ सी लाशें .
1२
मृत विचार
लोलुपता की प्यास
ठूंठ सा मन .


----शशि पुरवार

 

21 comments:

  1. मर्म स्पर्शी ....बहुत भावपूर्ण हाइकु ....!!

    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर हाइकु...!
    कल मयंक का कोना में चर्चा मंच पर इस पोस्ट का लिंक लगा दूँगा...!

    ReplyDelete
  3. त्रासदी को सजा कर रख दिया है मानव ने, सशक्त अभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
  4. आहा ! ठूँठ सा ये एहसास :-)

    ReplyDelete
  5. आपने लिखा....हमने पढ़ा
    और लोग भी पढ़ें;
    इसलिए कल 01/07/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
    धन्यवाद!

    ReplyDelete
  6. बहुत संवेदनशील हाइकु ...

    ReplyDelete
  7. बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती आभार ।

    ReplyDelete
  8. मर्मस्पर्शी,तीर से हाइकू ....शशी जी सार्थक प्रस्तुति.....

    ReplyDelete
  9. बहुत खूब

    ReplyDelete
  10. राहो में खड़े
    देख रहे बसंत
    बीता यौवन----सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति.
    latest post झुमझुम कर तू बरस जा बादल।।(बाल कविता )

    ReplyDelete
  11. वाह , बहुत खूब, यहाँ भी पधारे

    http://shoryamalik.blogspot.in/

    ReplyDelete
  12. शुभप्रभात

    बना(ठूंठ)आधार
    जीना सीखा दिया है
    बेजोड़ रची

    हार्दिक शुभकामनायें

    ReplyDelete
  13. बहुत सार्थक अभिव्यक्ति .......!!

    ReplyDelete
  14. ठूंठ बन के
    सन्नाटे भी कहते
    पास न आओ ...

    दिल को छूते हैं सभी हाइकू ...
    बहुत ही लाजवाब ...

    ReplyDelete
  15. अंतस को छूते बहुत सुन्दर और सार्थक हाइकु...

    ReplyDelete
  16. जी पहले पढ़ चुका हूं
    बढिया



    जल समाधि दे दो ऐसे मुख्यमंत्री को
    http://tvstationlive.blogspot.in/2013/07/blog-post_1.html?showComment=1372774138029#c7426725659784374865

    ReplyDelete
  17. मृत विचार
    लोलुपता की प्यास
    ठूंठ सा मन .
    बहुत सुंदर.सटीक.बधाई!

    ReplyDelete
  18. झरते पत्ते
    बेजान होता तन
    ठूंठ सा वन

    राहो में खड़े
    देख रहे बसंत
    बीता यौवन
    adbhud .........marmik ...vakt ki tashvir ko rekhankit karti rachana bahut achchhi lagi .

    ReplyDelete

आपकी प्रतिक्रिया हमारे लिए अनमोल है। हमें अपने विचारों से अवगत कराएं। सविनय निवेदन है --शशि पुरवार

आपके ब्लॉग तक आने के लिए कृपया अपने ब्लॉग का लिंक भी साथ में पोस्ट करें
.



समीक्षा -- है न -

  शशि पुरवार  Shashipurwar@gmail.com समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा  है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह  जिसमें प्रेम के विविध रं...

https://sapne-shashi.blogspot.com/

linkwith

http://sapne-shashi.blogspot.com