ठूंठ ---
१
ठूंठ सा तन
पपड़ाया यौवन
पंछी भी उड़े .
२
सिसकती सी
ठहरी है जिंदगी
राहों में आज
३
शुलो सी चुभन
दर्द भरा जीवन
मौन रुदन .
४
मौन रुदन .
४
सिमटी जड़ें
हरा भरा था कभी
वो बचपन
५
को से मै कहूं
पीर पर्वत हुई
ठूंठ सी खड़ी
६
झरते पत्ते
बेजान होता तन
ठूंठ सा वन
७
राहो में खड़े
देख रहे बसंत
बीता यौवन
८
जीने की आस
महकने की प्यास
जिंदगी खास .
९
हिम पिघले
पहाड़ ठूंठ बन
राहो में खड़े.
१०
ठूंठ बन के
सन्नाटे भी कहते
पास न आओ .
११
चीखें बेजान
तड़पती है साँसे
ठूंठ सी लाशें .
1२
मृत विचार
लोलुपता की प्यास
ठूंठ सा मन .
----शशि पुरवार
हरा भरा था कभी
वो बचपन
५
को से मै कहूं
पीर पर्वत हुई
ठूंठ सी खड़ी
६
झरते पत्ते
बेजान होता तन
ठूंठ सा वन
७
राहो में खड़े
देख रहे बसंत
बीता यौवन
८
जीने की आस
महकने की प्यास
जिंदगी खास .
९
हिम पिघले
पहाड़ ठूंठ बन
राहो में खड़े.
१०
ठूंठ बन के
सन्नाटे भी कहते
पास न आओ .
११
चीखें बेजान
तड़पती है साँसे
ठूंठ सी लाशें .
1२
मृत विचार
लोलुपता की प्यास
ठूंठ सा मन .
----शशि पुरवार
मर्म स्पर्शी ....बहुत भावपूर्ण हाइकु ....!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर हाइकु...!
ReplyDeleteकल मयंक का कोना में चर्चा मंच पर इस पोस्ट का लिंक लगा दूँगा...!
त्रासदी को सजा कर रख दिया है मानव ने, सशक्त अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteआहा ! ठूँठ सा ये एहसास :-)
ReplyDeleteआपने लिखा....हमने पढ़ा
ReplyDeleteऔर लोग भी पढ़ें;
इसलिए कल 01/07/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
धन्यवाद!
Kya gazab likha hai...wah!
ReplyDeleteबहुत संवेदनशील हाइकु ...
ReplyDeletesundar hayeekoo
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती आभार ।
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी,तीर से हाइकू ....शशी जी सार्थक प्रस्तुति.....
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteराहो में खड़े
ReplyDeleteदेख रहे बसंत
बीता यौवन----सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति.
latest post झुमझुम कर तू बरस जा बादल।।(बाल कविता )
वाह , बहुत खूब, यहाँ भी पधारे
ReplyDeletehttp://shoryamalik.blogspot.in/
शुभप्रभात
ReplyDeleteबना(ठूंठ)आधार
जीना सीखा दिया है
बेजोड़ रची
हार्दिक शुभकामनायें
बहुत सार्थक अभिव्यक्ति .......!!
ReplyDeleteठूंठ बन के
ReplyDeleteसन्नाटे भी कहते
पास न आओ ...
दिल को छूते हैं सभी हाइकू ...
बहुत ही लाजवाब ...
बहुत सुंदर, क्या बात
ReplyDeleteअंतस को छूते बहुत सुन्दर और सार्थक हाइकु...
ReplyDeleteजी पहले पढ़ चुका हूं
ReplyDeleteबढिया
जल समाधि दे दो ऐसे मुख्यमंत्री को
http://tvstationlive.blogspot.in/2013/07/blog-post_1.html?showComment=1372774138029#c7426725659784374865
मृत विचार
ReplyDeleteलोलुपता की प्यास
ठूंठ सा मन .
बहुत सुंदर.सटीक.बधाई!
झरते पत्ते
ReplyDeleteबेजान होता तन
ठूंठ सा वन
७
राहो में खड़े
देख रहे बसंत
बीता यौवन
adbhud .........marmik ...vakt ki tashvir ko rekhankit karti rachana bahut achchhi lagi .