Monday, June 18, 2012

तपती जून में.........

चिलचिलाती धूप
चुभती गर्मी
तन मन की
प्यास बढाए.

जलती आँखें
चुभती साँसें
पपड़ाये होठ
बहता घाम
तेज वारा
पवन भी
भरमाए.

जलती धरा पे
पड़ी जो बूंद
भाप बन
उड़ जाए
पथिक को
मिले न चैन
उमस तो
घिर -घिर आए.

बरसो हे ,इन्द्र
रिमझिम -रिमझिम
तपती जून में
थोड़ी सी माटी
की खुशबु
हवा में घुल जाए

बदले जो रूख
हवा का जरा
मौसम खुशगवार
बन जाए
फिजा की
बदली करवट
तन मन की
प्यास बुझाये ...!

:-- शशि पुरवार

9 comments:

  1. अरे बरसेंगे .........
    ज़रूर बरसेंगे.........
    तन मन की प्यास भी बुझेगी..............

    सुन्दर रचना.

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  2. आज तो दिल्‌ली का मौसम खुशगवार हो गया है . आपके आह्‌वान का असर है शायद.

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  3. बारिश की पहली फुहार ने मौसम को खुशगवार बना दिया,,,,,,

    RECENT POST ,,,,,पर याद छोड़ जायेगें,,,,,

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  4. इंद्र को बुलाने का खूबसूरत अंदाज़ ...

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  5. तपती गर्मी में तुमसे
    दो बात हो जाए
    दिल को ठंडक
    मन को सुकून मिल जाए
    फ़िज़ा में बरखा का
    अहसास हो जाए
    मिट्टी की भीनी सुगंध
    साँसों में बस जाए
    मन झूम झूम प्रेम
    गीत गाये
    तपती गर्मी में तुमसे
    दो बात हो जाए

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  6. बहुत ही खूबसूरती से जून की तपन को अभिव्यक्त किया है...

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  7. बस मेघ छने वाले ही हैं ..... धरा की प्यास बुझाने वाले हैं .... सुंदर प्रस्तुति

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