शिशु सा मन ....!
आँखों का पानी
बनावट के फूल
कच्चे है धागे .
घना कोहरा
नजरो का है फेर
गहरी खाई .
रूई सा फाहा
नजरो में समाया
उतरी मिस्ट .
कोई न जाने
दर्द दिल में बंद
बेटी पराई .
अकेलापन
मन की उतरन
अँधेरी रात .
सफ़र संग
छटती हुई धुंध
कटु सत्य .
चटक लाल
प्राकृतिक खुमार
अमलतास .
तीखी चुभन
घुमड़ते बादल
तेज रफ़्तार .
खारा लवण
कसैला हुआ मन
समुद्री जल .
उड़ता पंछी
पिंजरे में जकड़ा
है परकटा .
तेज हवा में
सुलगता है दर्द
जमती बर्फ .
उफना दर्द
जख्म बने नासूर
स्वाभिमान के .
शिशु सा मन
ढूंढता है आँचल
प्यार से भरा .
:--शशि पुरवार
शशि पुरवार Shashipurwar@gmail.com समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह जिसमें प्रेम के विविध रं...
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bahut khoobsurat haaiku ek se badhkar ek.
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन हाइकू ,,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST .... काव्यान्जलि ...: अकेलापन,,,,,
सभी हाइकु...एक से बढ़ कर एक हैं
ReplyDeleteसुन्दर हाइकू
ReplyDeleteबेहतरीन .. लाजवाब
ReplyDeleteउड़ता पंछी
ReplyDeleteपिंजरे में जकड़ा
है परकटा .
ye wala mere pe fit baithta hai :P
waise aapne copy option disbale kyun kar rakha hai.
javascript ka kya hai disable kar do to koi kaam ki nahi...example aapke samne hai :P
Very nice post.....
ReplyDeleteAabhar!
Mere blog pr padhare.
बहुत सुंदर रचना। ऐसी रचनाएं कभी कभी पढने को मिलती हैं।
ReplyDeleteफुर्सत मिले तो आदत मुस्कुराने की पर ज़रूर आईये