shashi purwar writer

Wednesday, October 31, 2012

व्यंजना को लफ्जों से सजाऊं



तुम उदधि मै  सिंधुसुता सी
गहराई में समां जाऊं

तुम साहिल में तरंगिणी सी 
बहती धारा बन  जाऊं 

तुम अम्बर मै धरती बन
युगसंधि में खो जाऊं

तुम शशिधर  मै गंगा सी 
बस शिरोधार्य  हो  जाऊं

तुम आतप  मै छाँह  सी
प्रतिछाया ही  बन जाऊं

तुम दीपक  मै बाती  बन
नूर दे आपही जल जाऊं

तुम रूह हो मेरे जिस्म की
तुम्हारी अंगरक्षी बन जाऊं  

न होगा  तम जीवन में कभी 
चांदनी बनके खिल जाऊं

तुम धड़कन हो मेरे दिल की
स्मृति बन साँसों में बस जाऊं

मौत भी न  छू सकेगी मेरे माही
हर्षित मै  रूखसत  हो जाऊं

न कोई गीत ,न बहर, न  गजल
व्यंजना  को लफ्जों  से सजाऊं 

      -----शशि पुरवार

Monday, October 22, 2012

माँ का आशीष शुभ दुलार





सब बच्चों को माँ से प्यार
माँ का आशीष
शुभ दुलार

आदिशक्ति मातृभवानी
जगतजननी कृपनिधानी
शक्तिस्वरूपा सिंहवाहिनी
महिषासुर का किया संहार
देवों का बेड़ा पार
माँ का आशीष
शुभ दुलार

कोमलांगी कमलवासिनी
विश्वव्यापी विश्वमोहिनी
शुभमंगल वरदायिनी
तेरे गुण गाए संसार
भक्तों का बेड़ा पार
माँ का आशीष
शुभ दुलार

काली, दुर्गा औ सरस्वती
अनेक रूपों में भगवती
नवरात्रि का त्यौहार
माँ का सोलह शृंगार
मन मंदिर में
बजी झंकार

-शशि पुरवार

Thursday, October 18, 2012

लघुकथा --पतन , माँ का एक यह रूप भी .........

       लघुकथा --   पतन

      भोपाल जाने के लिए बस जल्दी पकड़ी और  आगे की सीट पर सामान रखा था कि  किसी के जोर जोर से  रोने की आवाज आई, मैंने देखा  एक भद्र महिला छाती पीट -पीट  कर जोर जोर से रो रही थी .

" मेरा बच्चा मर गया ...हाय क्या करू........ कफ़न के लिए भी पैसे नहीं है ..
मदद करो बाबूजी , कोई तो मेरी मदद करो , मेरा बच्चा ऐसे ही पड़ा है घर पर ......हाय मै  क्या करूं  ."
                   उसका करूण  रूदन सभी के  दिल को बैचेन कर रहा था , सभी यात्रियों  ने पैसे  जमा करके उसे दिए ,
 " बाई जो हो गया उसे नहीं बदल सकते ,धीरज रखो "
 "हाँ बाबू जी , भगवान आप सबका भला करे , आपने एक दुखियारी की मदद की ".....

ऐसा कहकर वह वहां से चली गयी , मुझसे रहा नहीं गया , मैंने सोचा  पूरे  पैसे देकर मदद कर  देती हूँ , ऐसे समय तो किसी के काम आना ही चाहिए .
  जल्दी से पर्स  लिया और  उस दिशा में भागी जहाँ वह महिला गयी थी . , पर जैसे ही बस के पीछे की दीवाल  के पास  पहुची  तो कदम वही रूक गए .
                     द्रश्य ऐसा था कि  एक मैली चादर पर एक 6-7 साल का बालक बैठा था और कुछ खा रहा था . उस  भद्र महिला ने पहले अपने आंसू पोछे ,  बच्चे को  प्यारी सी मुस्कान के साथ , बलैयां ली  , फिर सारे पैसे गिने और  अपनी पोटली को  कमर में खोसा  फिर  बच्चे से बोली -
  "अभी आती हूँ यहीं बैठना , कहीं नहीं जाना  "
और पुनः उसी  रूदन के साथ दूसरी बस में चढ़ गयी .
        मै अवाक सी देखती रह गयी व  थकित कदमो से पुनः अपनी सीट पर आकर  बैठ गयी . यह नजारा नजरो के सामने से गया ही नहीं  ,लोग  कैसे - कैसे हथकंडे अपनाते है भीख मांगने के लिए , कि  बच्चे की इतनी बड़ी  झूठी कसम भी खा लेते है , आजकल लोगो की मानसिकता में कितना पतन आ गया है .

          --------शशि पुरवार       
    

------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

मित्रो आप सभी को नवरात्री की हार्दिक शुभकामनाये ...............स्वास्थ परेशानी के चलते ज्यादा समय नहीं दे पा रही हूँ ....पर जितना भी हो सकेगा आपके ब्लॉग पर पढने आती रहूंगी , तब तक के लिए क्षमाप्राथी हूँ , यह सत्य घटना आपके समक्ष .............लघुकथा के रूप में ..... अपना अमूल्य स्नेह बनाये रखें .-शशि 

Friday, October 12, 2012

सिंदूरी आभा


1सिंदूरी आभा
सुनहरा  गहना
साँझ है सजी .

2 अम्बर संग
अवनि का मिलन
संध्या बेला में

3 सुनहरा है
प्रकृति का बंधन
स्वर्णिम पल

4 उषाकाल में
केसरिया चुनर
हिम पिघले . 

5 शूल जो मिले 
 हम तो नहीं हारे
  छु के गगन .


6 छु लिया जहाँ
मिला श्रम का मोल
सुहानी भोर 


7 सुनहरा है
आने वाला सबेरा
नया जीवन

8 पाया है जहाँ 
सुनहरा आसमां
कर्मो से सजा .


9 हरीतिमा की 
भीनी चदरिया 
 सावन भादो 

10 नयना प्यासे 
प्रभु दरसन के 
सुनो अरज 

11 पाखी है मन 
चंचल चितवन 
 नैना सलोने .

 
-शशि पुरवार 


Saturday, October 6, 2012

मेरे सपनो का ताजमहल


मेरे ख्वाबों  का
सुन्दर आशियाना
प्यार की रेशमी डोर
विश्वास का खजाना
सतरंगी सपनो से
आने वाले कल की
झालर बनाना
बचपन के पलों को
सहेज पिटारे में रख
पंछी बन उड़ जाना ,
आकांशाओ के वृक्ष पे
आशा का दीपक रखना
पूर्ण ,अपूर्ण अनुभूतियों की
एक ख्वाबगाह बनाना
दीवारों पे अपने नाम का
दुधियाँ रंग सार्थक कर
शशि की शीतलता
को जग में फैलाना। 
अमावस की काली रात में
कलम से उकेरे शब्दों की
शीतल किरणों सा प्रकाश
दीप प्रज्वलित करना
जीवन की राहो में
पी का साथ निभाना। 


कांटो को चुन ,उसकी
राहो में फूल बिछाना ,
नहीं कोई चाहत दिल में
बस मेरे जाने के बाद तुम
मेरे सपनो का ताजमहल
मत बनाना , खुश रहना
मुझे मेरी कलम में ही ढूंढ लेना
मै अविरल सी बहती हूँ मेरे
ख्वाबो के ताजमहल में
जब जी चाहे मेरे
सपनो की घाटियों में
एक फूल ले चले आना
सदा अमर रहूंगी
शब्दों के माध्यम से
जब जी चाहे चाहे
आकर मिल जाना .
--शशि पुरवार

Thursday, October 4, 2012

माँ का अंगना प्यारा रे


माँ का अंगना प्यारा रे........
प्यारा सलोना

दुनियां में रखा जब पहला कदम
माँ के आँचल में
खिला बचपन
सपनो को लगे
सुनहरे पंख ........!,
गुरु बनके ज्ञान दे दिया रे
हुआ सफल जीवन,

माँ का आशीष प्यारा रे

प्यारा सलोना

जीवन की राहो में बढ़ते कदम

मुश्किल घडी में
डरता यह मन
कैसे लड़ेंगे
तुफानो से हम .........,
तपते मन को सहला दिया रे
बनके शीतल पवन ,

माँ का साथ लागे प्यारा रे

प्यारा सलोना

स्नेह वात्सल्य से भरा बंधन

शादी कर माँ ने
निभाया धरम
आँखों में मोती
छुपा के किया भ्रम ......... ,
कालजे पे पत्थर रख लिया रे
बेटी बने सुहागन

माँ का प्यार बड़ा न्यारा रे

प्यारा सलोना

पल पल माँ को ढूंढें नयन

माँ की छाया
कैसे बने हम
दिल में महकती
माँ की छुअन......... ,
पीहर की तड़प बढ़ा गयी रे
चली यादों की पवन

माँ का अंगना प्यारा रे

प्यारा सलोना .
3.10.12
--------- शशि पुरवार

सामाजिक मीम पर

 अदद करारी खुशबू  शर्मा जी अपने काम में मस्त   सुबह सुबह मिठाई की दुकान को साफ़ स्वच्छ करके करीने से सजा रहे थे ।  दुकान में बनते गरमा गरम...

https://sapne-shashi.blogspot.com/

linkwith

🏆 Shashi Purwar — Honoured as 100 Women Achievers of India | Awarded by Maharashtra Sahitya Academy & MP Sahitya Academy