लघुकथा -- पतन
भोपाल जाने के लिए बस जल्दी पकड़ी और आगे की सीट पर सामान रखा था कि किसी के जोर जोर से रोने की आवाज आई, मैंने देखा एक भद्र महिला छाती पीट -पीट कर जोर जोर से रो रही थी .
" मेरा बच्चा मर गया ...हाय क्या करू........ कफ़न के लिए भी पैसे नहीं है ..
मदद करो बाबूजी , कोई तो मेरी मदद करो , मेरा बच्चा ऐसे ही पड़ा है घर पर ......हाय मै क्या करूं ."
उसका करूण रूदन सभी के दिल को बैचेन कर रहा था , सभी यात्रियों ने पैसे जमा करके उसे दिए ,
" बाई जो हो गया उसे नहीं बदल सकते ,धीरज रखो "
"हाँ बाबू जी , भगवान आप सबका भला करे , आपने एक दुखियारी की मदद की ".....
ऐसा कहकर वह वहां से चली गयी , मुझसे रहा नहीं गया , मैंने सोचा पूरे पैसे देकर मदद कर देती हूँ , ऐसे समय तो किसी के काम आना ही चाहिए .
जल्दी से पर्स लिया और उस दिशा में भागी जहाँ वह महिला गयी थी . , पर जैसे ही बस के पीछे की दीवाल के पास पहुची तो कदम वही रूक गए .
द्रश्य ऐसा था कि एक मैली चादर पर एक 6-7 साल का बालक बैठा था और कुछ खा रहा था . उस भद्र महिला ने पहले अपने आंसू पोछे , बच्चे को प्यारी सी मुस्कान के साथ , बलैयां ली , फिर सारे पैसे गिने और अपनी पोटली को कमर में खोसा फिर बच्चे से बोली -
"अभी आती हूँ यहीं बैठना , कहीं नहीं जाना "
और पुनः उसी रूदन के साथ दूसरी बस में चढ़ गयी .
मै अवाक सी देखती रह गयी व थकित कदमो से पुनः अपनी सीट पर आकर बैठ गयी . यह नजारा नजरो के सामने से गया ही नहीं ,लोग कैसे - कैसे हथकंडे अपनाते है भीख मांगने के लिए , कि बच्चे की इतनी बड़ी झूठी कसम भी खा लेते है , आजकल लोगो की मानसिकता में कितना पतन आ गया है .
--------शशि पुरवार
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मित्रो आप सभी को नवरात्री की हार्दिक शुभकामनाये ...............स्वास्थ परेशानी के चलते ज्यादा समय नहीं दे पा रही हूँ ....पर जितना भी हो सकेगा आपके ब्लॉग पर पढने आती रहूंगी , तब तक के लिए क्षमाप्राथी हूँ , यह सत्य घटना आपके समक्ष .............लघुकथा के रूप में ..... अपना अमूल्य स्नेह बनाये रखें .-शशि
भोपाल जाने के लिए बस जल्दी पकड़ी और आगे की सीट पर सामान रखा था कि किसी के जोर जोर से रोने की आवाज आई, मैंने देखा एक भद्र महिला छाती पीट -पीट कर जोर जोर से रो रही थी .
" मेरा बच्चा मर गया ...हाय क्या करू........ कफ़न के लिए भी पैसे नहीं है ..
मदद करो बाबूजी , कोई तो मेरी मदद करो , मेरा बच्चा ऐसे ही पड़ा है घर पर ......हाय मै क्या करूं ."
उसका करूण रूदन सभी के दिल को बैचेन कर रहा था , सभी यात्रियों ने पैसे जमा करके उसे दिए ,
" बाई जो हो गया उसे नहीं बदल सकते ,धीरज रखो "
"हाँ बाबू जी , भगवान आप सबका भला करे , आपने एक दुखियारी की मदद की ".....
ऐसा कहकर वह वहां से चली गयी , मुझसे रहा नहीं गया , मैंने सोचा पूरे पैसे देकर मदद कर देती हूँ , ऐसे समय तो किसी के काम आना ही चाहिए .
जल्दी से पर्स लिया और उस दिशा में भागी जहाँ वह महिला गयी थी . , पर जैसे ही बस के पीछे की दीवाल के पास पहुची तो कदम वही रूक गए .
द्रश्य ऐसा था कि एक मैली चादर पर एक 6-7 साल का बालक बैठा था और कुछ खा रहा था . उस भद्र महिला ने पहले अपने आंसू पोछे , बच्चे को प्यारी सी मुस्कान के साथ , बलैयां ली , फिर सारे पैसे गिने और अपनी पोटली को कमर में खोसा फिर बच्चे से बोली -
"अभी आती हूँ यहीं बैठना , कहीं नहीं जाना "
और पुनः उसी रूदन के साथ दूसरी बस में चढ़ गयी .
मै अवाक सी देखती रह गयी व थकित कदमो से पुनः अपनी सीट पर आकर बैठ गयी . यह नजारा नजरो के सामने से गया ही नहीं ,लोग कैसे - कैसे हथकंडे अपनाते है भीख मांगने के लिए , कि बच्चे की इतनी बड़ी झूठी कसम भी खा लेते है , आजकल लोगो की मानसिकता में कितना पतन आ गया है .
--------शशि पुरवार
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मित्रो आप सभी को नवरात्री की हार्दिक शुभकामनाये ...............स्वास्थ परेशानी के चलते ज्यादा समय नहीं दे पा रही हूँ ....पर जितना भी हो सकेगा आपके ब्लॉग पर पढने आती रहूंगी , तब तक के लिए क्षमाप्राथी हूँ , यह सत्य घटना आपके समक्ष .............लघुकथा के रूप में ..... अपना अमूल्य स्नेह बनाये रखें .-शशि
ऐसे बहुत से झूठ देखने को मिल जाते हैं सड़कों पर अक्सर...! अब तो यही विश्वास नहीं होता... सच है या झूठ..., मदद करने को उठते हाथ खुद-ब-खुद ही ठिठक जाते हैं...
ReplyDelete~सादर !!!
[आपने लिंक माँगा है.... आप हमारे नाम पर Click करेंगी तो ब्लॉग पर अपने आप ही पहुँच जाएँगी...~धन्यवाद !!!:-)]
माँ की ममता है ये....बच्चे के लिए झूठ बोलना उसकी मजबूरी है...क्या करें..दुखद हैं...
ReplyDeleteशशि, कथा दो दो बार दिख रही है..एडिट कर दीजिए.
सस्नेह
अनु
ऐसा सब देखने से अविश्वास हो उठता है..
ReplyDeleteकरुण या दर्द ...समय और परिस्थिति कुछ भी करवा देती है....
ReplyDeleteहाँ ! यकीन करना नागवार गुज़रता है फिर भी....विस्मय करते हैं ऐसे रूप ,,,सच है !!!
बच्चे को जीवित रखने का आसान उपाय .... पर लोगों का विश्वास उठ जाता है ...
ReplyDeleteऐसी घटनाएं भीतर से झकझोर देती हैं
ReplyDeleteओह, क्या कहूं
ReplyDeleteआंख खोलती पोस्ट
बहुत सुन्दर
ReplyDelete---
Tech Prévue · तकनीक दृष्टा
अपने बच्चे को भी मरा बताना पड़ता है इस पेट के लिए.. उफ़ ..दुखद है यह सब .....ऐसे द्रश्य देख किसी को भी अच्छा नहीं लग सकता है पर कहीं काम नहीं मिलने की तो कहीं काम न करने का आलस ......बहुत अच्छी सोचने पर मजबूर करती प्रस्तुति
ReplyDeleteनाम को उद्वेलित कराती हैं ऐसी घटनाएँ ..... कटु पर सत्य ....
ReplyDeleteकई बार मुझे भी ऐसा कड़वा अनुभव हुआ है |इस तरह की धोखाधड़ी भीख मांगने के लिए की जाती है |बहुत सच लिखा है आपने शशी जी |
ReplyDeleteपापी पेट का सवाल है । लेकिन यहाँ तो पापी नियत का सवाल खड़ा हो गया :)
ReplyDeletenaitikta rahi kahan?adhiktar log bevkoof bnaate hain ...jisse musiwat ke maare ko bhi sahayata nahi mil paati kai bar...
ReplyDeleteऐसा भी होता है ?
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