आजादी के बाद
कैसी आजादी पायी है
लाखों टन अनाज
गोदामों में सड़ जाता है
फिर जाने कितने
भूखों का पेट भर पाता है
मोटी चमड़ी के
हाथों में दूध मलाई है
रंक की थरिया में
फिर महंगाई आयी है
रोज नये वचन के
झूठे आश्वासन होते है
लुगड़ी चुपड़ी बात
भरे सियासी दिन होते है
चारे और घपले
करने की दौड़ लगायी है
गरीबी रेखा में
फिर आधी जनता आयी है
उन्नति की डगर पर
अब तो मिटने लगे है गाँव
कंक्रीट के शहर में
खो जाती है पेड़ की छाँव
अब आधुनिकरण ने
बाजार में साख जमायी है
संकुचित मूल्यों से
कितनी आजादी पायी है।
- शशि पुरवार
१६ /अगस्त /१३
कैसी आजादी पायी है
लाखों टन अनाज
गोदामों में सड़ जाता है
फिर जाने कितने
भूखों का पेट भर पाता है
मोटी चमड़ी के
हाथों में दूध मलाई है
रंक की थरिया में
फिर महंगाई आयी है
रोज नये वचन के
झूठे आश्वासन होते है
लुगड़ी चुपड़ी बात
भरे सियासी दिन होते है
चारे और घपले
करने की दौड़ लगायी है
गरीबी रेखा में
फिर आधी जनता आयी है
उन्नति की डगर पर
अब तो मिटने लगे है गाँव
कंक्रीट के शहर में
खो जाती है पेड़ की छाँव
अब आधुनिकरण ने
बाजार में साख जमायी है
संकुचित मूल्यों से
कितनी आजादी पायी है।
- शशि पुरवार
१६ /अगस्त /१३
सार्थक रचना शशि जी ! हर शब्द से कड़वी सचाई बयान होती है ! बहुत बढ़िया !
ReplyDeleteसुन्दर रचना !!
ReplyDeleteउम्दा !
ReplyDeleteसच्चाई को कहती सुंदर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteयथार्थ को जीती रचना बधाई
ReplyDeleteसुन्दर यथार्थ का चित्रण किया है
ReplyDeleteआज येही सब तो हो रहा है, बिलकुल सही कहा आपने, बहुत सुंदर चित्रण किया है
ReplyDeleteआजादी के बाद
कैसी आजादी पायी है
हम सबको यह सोचने की आवश्यकता है...
आदरणीया शशि पुरवार जी
अच्छी सामयिक रचना के लिए साधुवाद !
❣हार्दिक मंगलकामनाओं सहित...❣
-राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत बढ़िया सच्चाई को उजागर करती उत्कृष्ट प्रस्तुति । बहुत बधाई आपको ।
ReplyDeleteसार्थक सामयिक रचना, बधाई.
ReplyDeleteकुछ भी कहना , सूरज को दीप दिखाने के बराबर होगा!
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