चम्पा चटकी
-शशि पुरवार
इधर डाल पर
महक उठी अँगनाई ।
उषाकाल नित
धूप तिहारे
महक उठी अँगनाई ।
उषाकाल नित
धूप तिहारे
चम्पा को सहलाए ,
पवन फागुनी
पवन फागुनी
लोरी गाकर
फिर ले रही बलाएँ।
निंदिया आई
निंदिया आई
अखियों में और
सपने भरें लुनाई
श्वेत चाँद -सी
पुष्पित चम्पा
सपने भरें लुनाई
श्वेत चाँद -सी
पुष्पित चम्पा
कल्पवृक्ष-सी लागे
शैशव चलता
शैशव चलता
ठुमक -ठुमक कर
दिन तितली- से भागे
नेह- अरक में
दिन तितली- से भागे
नेह- अरक में
डूबी पैंजन
बजे खूब शहनाई.-शशि पुरवार
शुभ प्रभात
ReplyDeleteअप्रतिम
सादर
यशोदा
अहा, प्रभात का सुन्दर स्वागत..
ReplyDeleteक्या बात, बहुत सुंदर
ReplyDeleteवाह बहुत खूब
ReplyDeleteवाह ... चंपा के कोमल भाव मन में खुशबू का एहसास ले आते हैं ... सुन्दर रचना ...
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ReplyDeleteकल 05/08/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद!
बहुत सुन्दर .
ReplyDelete:-)
वाह वाह....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर नवगीत ...
उषाकाल नित
धूप तिहारे
चम्पा को सहलाए ...
मनभावन......
सस्नेह
अनु
बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती,आभार।
ReplyDeleteउषाकाल नित
ReplyDeleteधूप तिहारे
चम्पा को सहलाए ,
पवन फागुनी
लोरी गाकर
फिर ले रही बलाएँ।
...बहुत सुन्दर बिम्ब .
lyrical!...sundar madhur panktiya..
ReplyDeleteवाह जी क्या बात है
ReplyDeletebahut hi sundar rachana shashi ji
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