shashi purwar writer

Monday, September 1, 2014

हवा शहर की



हवा शहर की बदल गयी
पंछी मन ही मन घबराये

यूँ जाल बिछाये बैठें है
सब आखेटक मंतर मारे
आसमान के काले बादल
जैसे ,जमा हुए  है सारे.

छाई ऐसी  घनघोर   घटा
संकट,  दबे पाँव आ  जाये

कुकुरमुत्ते सा ,उगा  हुआ है
गली गली ,चौराहे  खतरा
लुका छुपी का ,खेल खेलते
वध जीवी ने ,पर  है कतरा

बेजान  तन पर नाचते है
विजय घोष करते, यह  साये .

हरे भरे वन ,देवालय पर
सुंदर सुंदर रैन बसेरा
यहाँ गूंजता मीठा कलरव
ना घर तेरा ना घर मेरा

पंछी  उड़ता नीलगगन में
किरणें नयी सुबह ले आये.
  ४ जुलाई , २०१४

14 comments:

  1. This comment has been removed by the author.

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  2. आपकी लिखी रचना मंगलवार 02 सितम्बर 2014 को लिंक की जाएगी........
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  3. अति सुन्दर भावों का प्रवाह करती रचना

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  4. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति मंगलवार के - चर्चा मंच पर ।।

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  5. छाई ऐसी घनघोर घटा
    संकट, दबे पाँव आ जाये
    ,,,,सच कब क्या हो जाय कह नहीं सकते..
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  6. बेहतरीन रचना

    सादर

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  7. हरे भरे वन ,देवालय पर
    सुंदर सुंदर रैन बसेरा
    यहाँ गूंजता मीठा कलरव
    ना घर तेरा ना घर मेरा
    ...वाह..बहुत सुन्दर और भावमयी प्रस्तुति...

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  8. वन देवालय... बहुत सुन्दर...

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  9. कुकुरमुत्ते सा ,उगा हुआ है
    गली गली ,चौराहे खतरा
    लुका छुपी का ,खेल खेलते
    वध जीवी ने ,पर है कतरा...adbhut...

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