भूल बैठे मुस्कुराना
है यही अनुरोध तुमसे
बस ख़ुशी के गीत गाना।
फर्ज की चादर तले, कुछ
मर गए अहसास कोमल
पवन के ही संग झरते
शाख के सूखे हुए दल
रच गया बरबस दिलों में
औपचारिकता निभाना
है यही अनुरोध तुमसे
बस ख़ुशी के गीत गाना
नित सुबह से शाम ढलती
दंभ,दरवाजे खड़ा है
रस विहिन इस जिंदगी में
शून्य सा बिखरा पड़ा है।
क्षुब्ध मन की पीर हरता
प्रीति का कोमल खजाना
है यही अनुरोध तुमसे
बस ख़ुशी के गीत गाना।
साँस का यह सिलसिला ही
वक़्त पीछे छोड़ता है
हर समर्पण भाव लेकिन
तार मन के जोड़ता है.
मैं कभी रूठूँ जरा सा,
तुम तनिक मुझको मनाना।
है यही अनुरोध तुमसे
बस ख़ुशी के गीत गाना।
---- शशि पुरवार
सुन्दर ।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (12-02-2017) को
ReplyDelete"हँसते हुए पलों को रक्खो सँभाल कर" (चर्चा अंक-2592)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
ati sundar
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
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