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Thursday, November 27, 2025

जेन जी का फंडा सेक्स, ड्रिंक और ड्रग












   आज की युवा पीढ़ी कहती है - “ हम अपनी शर्तों पर जीना चाहते हैं समय बहुत बदल गया है   ….  हमारे माता पिता हमें हर वक़्त रोक टोक करते हैं, क्या हर समय हम उनके अनुसार अपना जीवन जियेंगे ? अब हम बालिग है यह हमारी जिंदगी है जिसे हम जैसे चाहे वैसे जिए. “


आज यह समस्या हर युवा वर्ग की है कि कैसे इन बंदिशों से छुटकारा पाएं ? जिसके कारण वे परिवार का विद्रोह भी करते हैं. 


कॉलेज के अंतिम वर्ष की छात्रा निशा कहती है - “ आज की जनरेशन पुरानी बातों में यकीन नहीं रखती है. हमारे माता पिता समझते ही नहीं है कि शादी ही जीवन का आखिरी विकल्पं नहीं है ,यदि हम अपने पार्टनर से खुश नहीं है तो तलाक ले सकतें हैं, समझौता क्यों करें. आजकल डेटिंग ऍप उपलब्ध है. डेट करना बहुत नार्मल सी बात है. हम किसी अनजान व्यक्ति के साथ अपनी पूरी जिंदगी नहीं गुजार सकतें है इसीलिए एक दूसरे को समझने के लिए  डेट  करते हैं.  यदि हमारे विचार आपस में मिले तो ठीक है नहीं तो अपनी राहे अलग कर लो.


पुनीत -  मै इस बात से सहमत हूँ. वक़्त के साथ बदलना जरुरी है. लेकिन क्या हमारे बढ़ते हुए कदम सार्थक सिद्ध होते है या फिर हमें गर्त में भी धकेल सकतें है?  जिसे हम  मौज  मौज- मस्ती व अपनी जिंदगी का नाम  दे रहें है क्या वह हमारे भविष्य के लिए सही दिशा निर्माण करेगी ?


   हमारे पेरेंट्स का  हमें बार बार टोकते है जो हमें नागवार गुजरता है कि यह मत करो, ऐसे मत रहो  !आखिर वे समझते  क्यों नहीं है कि वक़्त बदल गया है. यह हमारे जीने का तरीका है. क्यूंकि हम उनके  बंधनों को नहीं मानते हैं जिसमें उन्होंने अपना जीवन समझौता करके गुजारा है. शायद यही जनरेशन गैप है. उन्होंने दो अनजान लोग नाखुश होकर भी साथ रहते हैं.


समय के साथ हमें बदलना चाहिए लेकिन अपने बड़ो के अनुभव का लाभ लेने में कोई हर्ज नहीं है। आजकल सेक्स, ड्रग, ड्रिंक लेना बहुत आम बात हो गयी है. यदि हम अपने दोस्तों की उन पार्टी का हिस्सा नहीं बनते हैं तो वे हमें छोड़ देते हैं. सेक्स ड्रिंक और ड्रग  आज के समय में हमारी पढ़ाई  का  हिस्सा बन  गए हैं!  


 मेरे दो दोस्त  कुछ महीनों से आपस में डेट कर रहे थे फिर लिव इन में रहने लगे, उन्होंने आपसी समझ से अपनी सीमाएं पार कर ली..  उनका कहना है कि समय बदल गया है और हम उसे अपनी तरह से जीना चाहेंगे. लेकिन इसी मौज मस्ती ने उन्हें एक दूसरे से जुदा कर दिया। बाद में आपसी मतभेद के बाद वे अलग हो गए और आगे बढ़ने का प्रयास करने लगे. जो बेहद कष्टकारी था. रोहित व नेहा दोनों इमोशनल रूप से आहत हुए और  डिप्रेस्शन का शिकार बने. एक ने नशे को अपना साथी बनाया तो दूसरा उसी प्यार के पीछे पागल हो गया. 


स्कूल व  कॉलेजों  के बाहर क्लास बंग करके मौज मस्ती करना किसे अच्छा नहीं लगेगा लेकिन यह भी उतना ही सच है कि इससे कॅरियर व भविष्य के मार्ग से हम भटक भी रहे हैं. क्या सेक्स ही जीवन का अंतिम सत्य है? नशा उन्माद  पैदा करता है और स्टेटस सिम्ब्ले भी बन गया. कॉलेजों में बढ़ता हुआ  सेक्स ड्रिंक व ड्रग का उन्माद हमें सोचने पर मजबूर करता है  कि हम  अपने भविष्य  का किस प्रकार विकृत निर्माण  कर रहें  है?


आजकल लड़कियां भी इन  मादक द्रव्यों  का खुले आम  सेवन करती ." आजादी खुलापन व आधुनिकता के नाम पर ब्राइट लड़के - लड़कियां ड्रग पैडलर व यौन शोषण के शिकार बन रहे  है. ऐसी कई घटनाएँ देश के अलग - अलग शहरों से सामने आई हैं. छोटे शहरों व गांव से आई हुई लड़कियां जल्दी ही इस रंगीन चकाचौंध  की गुमनामियों में खो जाती है.


मुंबई के कुछ कॉलेज का सर्वे किया तो पाया कि स्टूडेंट क्लास को बंग  करके कालेज के आसपास  बाहर समूह व जोड़ें में चिपके बैठे रहतें हैं. मरीन ड्राइव किनारे  तपती धूप में  चिपक कर बैठेना,  हाथों में सिगरेट व  मुंह से धुआं उड़ाते हुए संस्कारों  की धज्जियां उड़ाना, तो वहीँ कुछ जोड़ों का मदहोश अवस्था में दिन दुनिया से बेखबर  खुले आम  किस करते हुए उन्माद  व अपनी रंगीनियो  में डूबे रहना पाश्चात्य संस्कृति को आत्मसाध कर लिया है.  आंखों की शर्म जैसे उन्होंने पानी में  फ़ेंक दी है . यह नजारा मुंबई में सरे आम हर कॉलेज के बाहर आपको नजर आएगा. आंखों की शर्म देखने वालों को आती है लेकिन आजकल  युवा वर्ग की आँखों में शर्म का नामोनिशान भी नहीं होता है. शायद इसका कारण है  अपनी रूढ़िवादी पारम्परिक जड़ो को उखाड़ फेंकना है.  यह बात चिंता का विषय है  कि आज  को जीने की चाहत में कहीं हम अपने भविष्य के साथ खिलवाड़ तो नहीं कर रहें है?



 नरीमन पॉइंट, गिरगाँव चौपाटी, जुहू चौपाटी, बस स्टैंड, रेस्टोरेंट में कमोवेश यह नजारा आपको हर जगह नजर आएगा. सिर्फ मुंबई ही नहीं आजकल इस विकृत मानसिकता ने देश में हर कोने में अपने पैर पसार लिए हैं.  आधुनिकता का नाम पर इसका लाइसेंस आज युवा वर्ग ने स्वयं  निर्माण कर लिया है. इसी तरह नागपुर का तेलंगखेड़ी, जापानी गार्डन जहाँ हर पेड़ के पीछे युवा जोड़े अपनी दुनिया में खोये रहते है. 


मैंने अपने कुछ  युवा मित्रों से उनके विचार जानने का प्रयास किया तो निष्कर्ष एक ही निकला. उनका कहना था कि आजकल यह सब प्रचलन में है. लेट नाइट पार्टी करना, नाईट आउट करना,   डेट करना, पब जाना, ड्रग  लेकर अपनी ही एकांत दुनिया में मस्त रहना. यही वक्त है अपने  सभी चीजों का शौक पूरे कर लें ,पूरी जिंदगी पड़ी है काम करने के लिए.  

उनका कहना है कि जिंदगी सिर्फ किताबों में नहीं, मौज मस्ती के लिए भी होती है.अगर हम इतनी मेहनत पढ़ाई में करते हैं तो जिंदगी को आसान क्यों ना बनाएं?  यह हमारा स्पेस है और हमें यह स्पेस चाहिए. 


  स्पेस के नाम पर कथित हाई क्लास लिविंग स्टैंडर्ड को जीवन में उतारना जिसका अंत  बेहद मानसिक कष्टदायक होता है.  ज्यादातर यह सोच  अमीर घरानों में ज्यादा पाई जाती है जिसका असर मध्यमवर्गीय से लेकर निम्न  वर्ग तक होने लगा है. आजकल शिक्षा के लिए सभी अपने घरों से दूर जाकर रहते हैं. जहाँ परिवार से दूरी और शहरों का अकेलापन शायद  हमें दिशा में मोड़ देता है.


 हाल ही में  मैंने नरीमन पॉइंट  घूमने के लिए मैंने टेक्सी हायर की और उससे वहां बैठे अपने हम उम्र युवाओं के बारे में जानने का प्रयास किया. बातचीत के दौरान  टैक्सी वाले ने बताया-


“  मैडम यह सब कॉलेज के बच्चे हैं जो ड्रग पीकर दिन  भर यहां बैठे रहते हैं और रात में नशे में धुत लड़खड़ाते हुए पब से बाहर निकलते हैं.  इतना ज्यादा पीते हैं कि खुद को संभाल नहीं सकते. ऐसी सवारी ले जाने में भी डर लगता है कि कहीं पुलिस हमें ना पकड़ ले. “


 भैया  तुम ऐसे कैसे कह सकते हो ?


वह बम्बई का रहने वाला नहीं था इसीलिए डर रहा था. जब उसे भरोसे में लिया तो कहने लगा - 

 

“  मैडम मैं झूठ नहीं बोल रहा हूं मैं यहीं के  हीरा व्यापारी  जोहरी मैडम (बदला हुआ नाम ) के यहां ड्राइवर हूं. जब मुझे छुट्टी मिलती है तब मैं अपनी खुद की टैक्सी चलाता हूं. मैडम अभी देश के बाहर गई है तो वह अपने लड़के को भी साथ ले गई है. उसका लड़का बहुत ज्यादा ड्रग  लेता  है. अब उसे रिहेब लेकर जाती है. यहां दिन भर कॉलेज के बच्चे बैठे रहते हैं. मैडम इन लोगों के पास इतना पैसा है कि वह अपने बच्चों को भी नहीं देखते हैं इसीलिए सारे बच्चे बिगड़े हुए हैं. अब हमारी  मैडम अपने बच्चे को अकेला नहीं छोड़ती  इसलिए विदेश भी  जाती है तो उसे साथ लेकर जाती है. 


पिछले 3 महीने से इसी इलाके में टैक्सी चला रहा हूं, रोज ही ऐसे लड़के लड़कियों को छोड़ता हूँ लेकिन रात में ऐसी  सवारी नहीं लेता हूँ ,पता नहीं कब पुलिस पकड़ ले. इनके  सिगरेट में ड्रग होती है कल देर रात एक लड़की जो इतनी ज्यादा नशे में थी कि खुद ठीक से खड़ी भी  नहीं सकती थी उसे दो लड़को ने संभाला हुआ था.  मुझसे बोले भैया घर छोड़ दो तो हम ने मना कर दिया, अकेली लड़की को लेकर जाना झंझट ही है और मैडम यहां पुलिस कभी भी पकड़ लेती है. मैं सभी बड़े लोगों को यहाँ  देख रहा हूँ. 

 मैडम इनके पान व सिगरेट सभी में ड्रग होती  है आप स्वयं ही देख लीजिएगा. कमोवेश हर  कॉलेज के बाहर यही नजारे हैं. 


प्रश्न यह है कि कॉलेज में हो रही गतिविधियों पर क्या कॉलेज प्रशासन का ध्यान नहीं जाता? वैलेंटाइन डे के खिलाफ आवाज उठाई जाती है  लेकिन यहाँ रोज वैलेंटाइन मनाते हुए जोड़े  नजर नहीं आते हैं?



छोटे शहर की  प्रज्ञा ने पुणे  के एक कॉलेज में एडमिशन लिया. प्रज्ञा के लिए यह दुनिया अलग ही थी. 1- 2 पीरिएड  अटेंड करने के बाद बच्चे बाहर भाग जाते थे. कुछ छात्र छात्राओं को छोड़कर    शेष क्लास का  मौज- मस्ती, घूमना- फिरना, खाना - पीना ही रूटीन में शामिल था. पहले उसे लगा कि कोई पढता ही नहीं है, वह उनसे निश्चित दूरी बनाकर रखती थी. लेकिन कब तक वह अकेले हॉस्टल के कमरे में पड़ी रहती, उनसे दोस्ती के लिए वह भी उनके साथ हर पार्टी में शामिल होने लगी. जो उसके जीवन का अभिन्न अंग बन गए. यहाँ कपल की तरह जोड़े बनते है जो क्षणिक साथ के लिए है. कुछ छात्र छात्रा शादी शुदा जोड़े की तरह फ्लैट में रहते है और पढाई  पूरी होने पर स्वेच्छा से तलाक लेते है. ऋतू बदला हुआ नाम - ने बताया हमें फ्लैट चाहिए था लिव इन में रह  सकते है। लेकिन मालक मालिक के कारण हमने शादी की और सेर्टिफिकेट दिखाया। इस तरह के मामले पुणे कोर्ट में दाखिल भी हुए है. दूसरे शहर रहने वाले बच्चो के माता पिता को पता ही नहीं बच्चे क्या करते है. वे इसी भ्रम में रहते है कि उनके बच्चे पढ़ रहे हैं लेकिन यहाँ दृश्य अलग होता है.


प्रज्ञा का कहना है  कि - क्या यार प्रोफ़ेसर तो बोर करते हैं, जब  हमें खुद ही पढ़ना है, फिर क्लास क्यों अटैंड करे.  कॉलेज की पढ़ाई ऐसी ही होती है.  कॉलेज में सभी कपल  हैं. मै कब तक अकेली घूमती, यह सब करना पड़ता है. जोड़ी बनाना, लिव इन रिलेशन में रहना, तनाव घटाने के लिए ड्रग, एल्कोहल का इस्तेमाल करना, सेक्स का अनुभव लेना पढ़ाई का हिस्सा बन गया है. इसमें कोई बुराई नहीं है. जब पानी में रहना है तो मगर के साथ बैर क्यों करें? चखने में कोई बुराई नहीं है.


कई  स्टूडेंट का कहना है कि हम लाइफ में पढ़ाई को लेकर  हार्ड वर्क करते हैं तो  जिंदगी को एंजॉय क्यों नहीं करें?  अलग-अलग लोगों के साथ में सेक्स  करने में आपत्ति क्यों है?  हम डेट करते हैं.  पार्टी करते हैं. पार्टी में ड्रिंक हमें टेंशन से मुक्त करता है. दोस्तों ने कहा है तो मानना ही पड़ेगा आखिर हमें साथ ही रहना है. डेट करना आम बात है.  पसंद आये तो ठीक वर्ना रास्ते बदल लो.


दोस्तों के जुमले अक्सर उन पर असर करते हैं जो उनकी पार्टी में नए जुड़ते हैं 

“ यार थोड़ा चख लो टेंशन कम हो जाएगा.  कुछ नहीं होगा, खाने के बाद पान खा लो. दोस्तों की बात माननी पड़ती है. शुरुआत में अच्छा नहीं लगा लेकिन अब इसकी आदत हो गयी है.


 मुंबई के एक कॉलेज के पास एक पान वाला बहुत प्रसिद्द है  “ सीताराम का पान “ (बदला हुआ नाम )बहुत प्रसिद्ध है स्पेशल पान खाने वाले और स्पेशल पान खिलाने वाला दोनों ही खास थे. इस स्पेशल पान खाने वाला ग्राहक युवा वर्ग ही ज्यादा था.  


 विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ कि उसके पान में वह  कुछ मिलाता है लेकिन पता कैसे किया जाय. उसका पान वह अपने हाथों से अपने ग्राहकों को प्रेम से खिलाता है. उसका  पान खाने का टेंप्टेशन बहुत ज्यादा होता है.  मूड फ्रेश होता है. धीरे-धीरे आपको उसकी लत लग जाती है. लेकिन कहने के लिए यह हेल्दी पान ही तो है. पान खिलाकर वह अपनी बिक्री  बढ़ा रहा है और नशे  के जाल को फैलाकर बखूबी अंजाम दे रहा है.


सतीश (बदला हुआ नाम ) ने बताया -  एक बार उसकी दुकान पर बहुत भीड़ थी मैं पीछे खड़ा हुआ अपने पान की राह देख रहा था कि  अचानक देखा एक बड़ी सी गाड़ी आकर दुकान के सामने रुकी.जिसमें एक २४ वर्ष की कोई मैडम थी.  मैडम ने इशारा किया  तो पान वाले ने बहुत तेजी से पान बनाया और डब्बे के पीछे तेजी से चुटकी भर कुछ निकालकर  पान मसाले में मिलाकर पान बना  दिया और तेजी से जाकर उस गाड़ी में बैठ गया.


यह व्यवहार कुछ अनुचित सा प्रतीत हुआ. नजर रखने पर पाया कि वह हर पान में ऐसा नहीं करता है  लेकिन कुछ अमीरजादों  और कॉलेज के युवा जिनकी संख्या ज्यादा है वे उस स्पेशल पान के ख़रीददार हैं. 


उसी के एक पुराने कामगार  कमलेश ( बदला हुआ नाम) ने बताया कि वह उसमें ड्रग डालता है जब लोगों को उसकी लत लग जाती है तो प्रमाण भी बढ़ जाता है.  मेरे कजिन को रिहैब सेंटर लेकर गए थे तब उसने बताया कि वह तो सिर्फ पान ही खाती थी. तब उस पान का रहस्य खुला.  जहर का यह व्यापार ना जाने कितने हम जैसे युवाओं को  अपना शिकार बना रहा है. मैंने तो उसके यहाँ काम छोड़ दिया है.  चुप रहने में ही भलाई है  क्योंकि उसकी बड़े - बड़े  माफिया लोगों से संबंध हैं. 


एक बार मै अपने दोस्तों के साथ जुहू घूमने गया. वहां  हम द टेरेस रेस्टोरेंट ( बदला हुआ नाम ) में  डिनर करने  के लिए गए.  बाहर से सामान्य दिखने वाले  होटल में टेरेस पर जाने के लिए अपने आधार कार्ड को दिखाकर ही जाना पड़ता है. यह बात समझ में नहीं आयी कि खाना खाने के लिए अपना पहचान पत्र क्यों  दिखाना है ?  जब हम सीढ़ियां चढ़कर अंदर गए तो वह सीढ़ियां हमें दूसरी  ही दुनिया में  ले गईं.  खाली ड्रम से बनी हुई टेबल और स्टूल रखें थे.  वहीं कुछ अलग प्रकार की  जमीनी  बैठक अलग - अलग कॉर्नर में थी. जहाँ  छोटे- छोटे कपड़ों में लड़के लड़कियां बैठे  हुक्का  पी रहे थे. आधे से ज्यादा खुला हुआ बदन मादकता दिखाने के लिए पर्याप्त था.  स्पेशल हुक्का और हाथों में बीयर का ग्लास, अंग्रेजी नामों का डिनर पूरा टेर्रेस भरा हुआ था.  पाश्चात्य संस्कृति का जीता जागता नमूना हमारे सामने था.  सामने ही एक टेबल पर बीयर बार बना हुआ था जहां से बीयर सप्लाई हो रही थी. अमीरजादों का ठिकाना और गौर करने पर पाया कि कुछ ऐसे चेहरे थे जिन्होंने हाल ही में जैसे इस  परिवेश में शामिल होने की भरकस प्रयास किया हो.


 हुक्का पीते- पीते एक जोड़े ने वेटर को इशारा किया कि हमें पर्दे वाला जमीन पर लम्बी बैठक वाला  टेंट चाहिए वहां की सेटिंग करो. बेटर जल्दी से उसके बाद उन्हें टेंट में ले गया. हुक्का  स्पेशल रखा गया.  सफेद पाउडर सा दिखने वाला पदार्थ डाला गया और बियर की बोतलें, उसके बाद  पर्दा गिरा दिया गया......  पर्दे के बाहर डू नॉट डिस्टर्ब का बोर्ड लगा दिया. मारिजुआना, कोकीन, पैन किलर, लेना आम बात हो गयी है. सिर भारी हो जाता है, कुछ समय के लिए हम अपनी परेशानी व अकेलेपन, असफलता से तो झूझ लेते हैं लेकिन लम्बे वक़्त के लिए स्वयं को गर्त में धकेल देते हैं. 


नीलेश का कॉलेज में बहुत नाम है, वह सभी लोगों को ड्रैग सप्लाई करता है. मेरी उससे दोस्ती हो गयी तो उसने एक बार नशे में अपना राज खोल दिया -  

“मुझे रैगिंग के नाम पर ड्रग दी गयी, मेरे  नहीं लेने पर सीनियर ने  बहुत मारा, सेक्स के लिए जबरजस्ती धकेला गया, नामर्द कहा….  कई बार हम मित्रों के पैसे ख़त्म हुए तो ड्रग लेने के लिए हमने चोरी की, लड़कियों से सेक्स करके उन्हें छोड़ दिया, आजकल सभी ऐसे हो गए हैं. ड्रग लेने के लिए हमें उन पेडलर की बात माननी पड़ती है , अपनी गर्लफ्रेंड बनाकर उन्हें भी इस सबमें शामिल करो. अब मै बाहर आना चाहता हूँ लेकिन नहीं आ सकता, ये नशा अब मुझे जीने नहीं देता है. काश मैंने रैगिंग के खिलाफ आवाज उठाई होती, मै अपने हम उम्र दोस्तों की नजर में गिरना नहीं चाहता था. ….  मदहोशी में बोलते हुए व सो गया. “ 



 अमेरिका जैसे देशों में यह आम बात है. लेकिन इस कल्चर ने धीरे - धीरे भारत के हर कोने में अपने पाँव पसार लिए हैं. 


 देश के अलग-अलग भाग में  सर्वे द्वारा ज्ञात हुआ कि युवा छात्र कंडोम का उपयोग करके सेक्स का आनंद ले रहे हैं. लेकिन कई बार यह इसे गर्भनिरोधक के रूप में ही नहीं नशे की तरह भी इस्तेमाल कर रहे हैं. यह तथ्य चौकाने वाले थे कि ऐसा कैसे हो सकता है ?. कंडोम में एक सुगन्धित तत्व डेन्ड्राइट होता है जिसे  से नशे के लिए इस्तेमाल किया जाता है. 


रसायन विज्ञान के एक शिक्षक के अनुसार कंडोम  में जो सुगन्धित यौगिक तत्व होता है जिससे सामान्य रूप में नशे के लिए उपयोग  किया जाता है, यह नशे का एक घटिया प्रकार है. गर्म पानी में कंडोम को ज्यादा देर तक रखने  पर रिलीज होकर निकलने वाला अल्कोहल कंपाउंड युवाओं को मदहोश कर रहा है. 


जब बात नशे की आती है  उनके पास तो विचित्र विकल्प होते हैं. कुछ विचित्र आदतों में लोग  खांसी की दवाई पीना, सूंघने वाला गोंद और औद्योगिक चिपकने वाले उत्पाद, इनहेलिंग पेंट, नेल पॉलिश और इनहेलिंग व्हाइटनर शामिल हैं.


यहां तक ​​कि कई लोग हैंड सैनिटाइजर और आफ्टर शेव के सेवन से नशा करते देखे जा रहे हैं. यह नशा उन्हें काल्पनिक दुनिया में संतुष्ट खुश होने का एहसास दिलाता है , फिर जब जमीनी हकीकत से सामना होता है तब तक देर हो जाती है।  कुछ जिंदगियां बनने से पहले गर्त में खो जाती है या कुछ दिशाहीन होकर एक अंधी दौड़ में भी शामिल हो जाती है. हमारी जरा सी कमजोरी का फायदा  शातिर क्रिमिनल उठा सकतें है जिसका आभास शायद हमें वक़्त कराएं।अकेलेपन व अपने मित्र वर्ग को पहचान कर ही आगे बढे. अपने पेरेंट्स के अनुभव का लाभ लेने में कोई हर्ज नहीं है,


दोस्तों  मै तो यही कहना चाहूंगी कि कहीं हम अपनी सेहत व इमोशन के साथ खिलवाड़ करते हुए अपने भविष्य को दांव पर तो नहीं लगा रहे हैं ? क्या यह स्पेस हमारे जीवन को सही दिशा प्रदान करेगी ? यह  एक  अंधी गुफा जिसका कोई मुहाना नहीं है, एक  अंधी दौड़ जिसका अंत नहीं है। 

शशि पुरवार 


contact- shashipurwar@gmail.com


सरिता पत्रिका में प्रकाशित इस लिंक पर

https://www.sarita.in/profile/1574






 

Monday, March 13, 2023

नारी! तुम केवल श्रद्धा हो



जय शंकर प्रसाद


"फूलों की कोमल पंखुडियाँ
बिखरें जिसके अभिनंदन में।
मकरंद मिलाती हों अपना
स्वागत के कुंकुम चंदन में।

कोमल किसलय मर्मर-रव-से
जिसका जयघोष सुनाते हों।
जिसमें दुख-सुख मिलकर
मन के उत्सव आनंद मनाते हों।

उज्ज्वल वरदान चेतना का
सौंदर्य जिसे सब कहते हैं।
जिसमें अनंत अभिलाषा के
सपने सब जगते रहते हैं।


मैं उसी चपल की धात्री हूँ
गौरव महिमा हूँ सिखलाती।
ठोकर जो लगने वाली है
उसको धीरे से समझाती।

मैं देव-सृष्टि की रति-रानी
निज पंचबाण से वंचित हो।
बन आवर्जना-मूर्त्ति दीना
अपनी अतृप्ति-सी संचित हो।

अवशिष्ट रह गई अनुभव में
अपनी अतीत असफलता-सी।
लीला विलास की खेद-भरी
अवसादमयी श्रम-दलिता-सी।

मैं रति की प्रतिकृति लज्जा हूँ
मैं शालीनता सिखाती हूँ।
मतवाली सुंदरता पग में
नूपुर सी लिपट मनाती हूँ।

लाली बन सरल कपोलों में
आँखों में अंजन सी लगती।
कुंचित अलकों सी घुंघराली
मन की मरोर बनकर जगती।

चंचल किशोर सुंदरता की
मैं करती रहती रखवाली।
मैं वह हलकी सी मसलन हूँ
जो बनती कानों की लाली।"

"हाँ, ठीक, परंतु बताओगी
मेरे जीवन का पथ क्या है?
इस निविड़ निशा में संसृति की
आलोकमयी रेखा क्या है?

यह आज समझ तो पाई हूँ
मैं दुर्बलता में नारी हूँ।
अवयव की सुंदर कोमलता
लेकर मैं सबसे हारी हूँ।

पर मन भी क्यों इतना ढीला
अपना ही होता जाता है,
घनश्याम-खंड-सी आँखों में
क्यों सहसा जल भर आता है?

सर्वस्व-समर्पण करने की
विश्वास-महा-तरू-छाया में।
चुपचाप पड़ी रहने की क्यों
ममता जगती है माया में?

छायापथ में तारक-द्युति सी
झिलमिल करने की मधु-लीला।
अभिनय करती क्यों इस मन में
कोमल निरीहता श्रम-शीला?

निस्संबल होकर तिरती हूँ
इस मानस की गहराई में।
चाहती नहीं जागरण कभी
सपने की इस सुधराई में।


नारी जीवन का चित्र यही, क्या?
विकल रंग भर देती हो,
अस्फुट रेखा की सीमा में
आकार कला को देती हो।

रूकती हूँ और ठहरती हूँ
पर सोच-विचार न कर सकती।
पगली सी कोई अंतर में
बैठी जैसे अनुदिन बकती।

मैं जब भी तोलने का करती
उपचार स्वयं तुल जाती हूँ।
भुजलता फँसा कर नर-तरु से
झूले सी झोंके खाती हूँ।


इस अर्पण में कुछ और नहीं
केवल उत्सर्ग छलकता है।
मैं दे दूँ और न फिर कुछ लूँ
इतना ही सरल झलकता है।"

"क्या कहती हो ठहरो नारी!
संकल्प अश्रु-जल-से-अपने।
तुम दान कर चुकी पहले ही
जीवन के सोने-से सपने।

नारी! तुम केवल श्रद्धा हो
विश्वास-रजत-नग पगतल में।
पीयूष-स्रोत-सी बहा करो
जीवन के सुंदर समतल में।

देवों की विजय, दानवों की
हारों का होता-युद्ध रहा।
संघर्ष सदा उर-अंतर में जीवित
रह नित्य-विरूद्ध रहा।

आँसू से भींगे अंचल पर
मन का सब कुछ रखना होगा-
तुमको अपनी स्मित रेखा से
यह संधिपत्र लिखना होगा।

Saturday, March 11, 2023

हाय, मानवी रही न नारी

 सुमित्रा नंदन पंत


हाय, मानवी रही न नारी लज्जा से अवगुंठित,

वह नर की लालस प्रतिमा, शोभा सज्जा से निर्मित!

युग युग की वंदिनी, देह की कारा में निज सीमित,

वह अदृश्य अस्पृश्य विश्व को, गृह पशु सी ही जीवित!


सदाचार की सीमा उसके तन से है निर्धारित,

पूत योनि वह: मूल्य चर्म पर केवल उसका अंकित;

अंग अंग उसका नर के वासना चिह्न से मुद्रित,

वह नर की छाया, इंगित संचालित, चिर पद लुंठित!


वह समाज की नहीं इकाई,--शून्य समान अनिश्चित,

उसका जीवन मान मान पर नर के है अवलंबित।

मुक्त हृदय वह स्नेह प्रणय कर सकती नहीं प्रदर्शित,

दृष्टि, स्पर्श संज्ञा से वह होजाती सहज कलंकित!


योनि नहीं है रे नारी, वह भी मानवी प्रतिष्ठित,

उसे पूर्ण स्वाधीन करो, वह रहे न नर पर अवसित।

द्वन्द्व क्षुधित मानव समाज पशु जग से भी है गर्हित,

नर नारी के सहज स्नेह से सूक्ष्म वृत्ति हों विकसित।


आज मनुज जग से मिट जाए कुत्सित, लिंग विभाजित

नारी नर की निखिल क्षुद्रता, आदिम मानों पर स्थित।

सामूहिक-जन-भाव-स्वास्थ्य से जीवन हो मर्यादित,

नर नारी की हृदय मुक्ति से मानवता हो संस्कृत।


Wednesday, March 8, 2023

कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

नमस्कार दोस्तों 

आज आपके लिए सोहन लाल द्विवेदी जी का गीत प्रस्तुत कर रही हूँ ,   समय कैसा भी हो लेकिन कोशिशें जारी रहनी चाहिए।  

अब हाजिर हूँ नित नए रंग के साथ। .. आपकी मित्र शशि पुरवार  


सोहन लाल द्विवेदी 


लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती

कोशिश करने वालों की हार नहीं होती


नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है

चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है

मन का विश्वास रगों में साहस भरता है

चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है

आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती

कोशिश करने वालों की हार नहीं होती


डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है

जा जाकर खाली हाथ लौटकर आता है

मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में

बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में

मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती

कोशिश करने वालों की हार नहीं होती


असफलता एक चुनौती है, स्वीकार करो

क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो

जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम

संघर्ष का मैदान छोड़ मत भागो तुम

कुछ किये बिना ही जय जयकार नहीं होती

कोशिश करने वालों की हार नहीं होती


 सोहन लाल द्विवेदी 





Sunday, February 27, 2022

चलना हमारा काम है- शिवमंगल सिंह सुमन

 नमस्कार मित्रों

आज से एक नया खंड प्रारंभ कर रही हूं जिसमें हम हमारे हस्ताक्षरों की खूबसूरत रचनाओं का आनंद लेंगे.

इसी क्रम में आज शुरुआत करते हैं . शिवमंगल सिंह सुमन की रचना "चलना हमारा काम है ", जीवन को जोश ,  गति व हौसला प्रदान करती हुई एक रचना 

  



गति प्रबल पैरों में भरी
फिर क्यों रहूं दर दर खडा
जब आज मेरे सामने
है रास्ता इतना पडा
जब तक न मंजिल पा सकूँ,
तब तक मुझे न विराम है,
चलना हमारा काम है।

कुछ कह लिया, कुछ सुन लिया
कुछ बोझ अपना बँट गया
अच्छा हुआ, तुम मिल गई
कुछ रास्ता ही कट गया
क्या राह में परिचय कहूँ,
राही हमारा नाम है,
चलना हमारा काम है।

जीवन अपूर्ण लिए हुए
पाता कभी खोता कभी
आशा निराशा से घिरा,
हँसता कभी रोता कभी
गति-मति न हो अवरूद्ध,
इसका ध्यान आठो याम है,
चलना हमारा काम है।

इस विशद विश्व-प्रहार में
किसको नहीं बहना पडा
सुख-दुख हमारी ही तरह,
किसको नहीं सहना पडा
फिर व्यर्थ क्यों कहता फिरूँ,
मुझ पर विधाता वाम है,
चलना हमारा काम है।

मैं पूर्णता की खोज में
दर-दर भटकता ही रहा
प्रत्येक पग पर कुछ न कुछ
रोडा अटकता ही रहा
निराशा क्यों मुझे?
जीवन इसी का नाम है,
चलना हमारा काम है।

साथ में चलते रहे
कुछ बीच ही से फिर गए
गति न जीवन की रूकी
जो गिर गए सो गिर गए
रहे हर दम,
उसी की सफलता अभिराम है,
चलना हमारा काम है।

फकत यह जानता
जो मिट गया वह जी गया
मूंदकर पलकें सहज
दो घूँट हँसकर पी गया
सुधा-मिक्ष्रित गरल,
वह साकिया का जाम है,
चलना हमारा काम है।


शिवमंगल सिंह सुमन


जेन जी का फंडा सेक्स, ड्रिंक और ड्रग

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