अम्बर जितनी ख्वाहिशें,सागर तल सी प्यास
छोटी सी यह जिंदगी, न होती उपन्यास 1
पतझर में झरने लगे, ज्यों शाखों से पात
ममता जर्जर हो गयी , देह हुई संघात 2
ममता जर्जर हो गयी , देह हुई संघात 2
अच्छे दिन की आस में, बदल गए हालात
फुटपाथों पर सो रही, बदहवास की रात 3
मनोरंजन के नाम पर, टीवी के परपंच
भूले - बिसरे हो गए, अपनेपन के मंच 4
जिनके दिल में चोर है, ना समझे वो मीत
रूखे रूखे बोल के , लिखते रहते गीत 5
बंद ह्रदय की खिड़कियाँ, बंद हृदय के द्वार
उनको छप्पन भोग भी, लगतें है बेकार 6
बैचेनी दिल में हुई , मन भी हुआ उदास
काटे से दिन ना कटा, रात गयी वनवास 7
शशि पुरवार