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Thursday, March 9, 2023

मैं नीर भरी दुख की बदली!

महादेवी वर्मा 

मैं नीर भरी दुख की बदली!


स्पन्दन में चिर निस्पन्द बसा

क्रन्दन में आहत विश्व हँसा

नयनों में दीपक से जलते,

पलकों में निर्झारिणी मचली!


मेरा पग-पग संगीत भरा

श्वासों से स्वप्न-पराग झरा

नभ के नव रंग बुनते दुकूल

छाया में मलय-बयार पली।


मैं क्षितिज-भृकुटि पर घिर धूमिल

चिन्ता का भार बनी अविरल

रज-कण पर जल-कण हो बरसी,

नव जीवन-अंकुर बन निकली!


पथ को न मलिन करता आना

पथ-चिह्न न दे जाता जाना;

सुधि मेरे आँगन की जग में

सुख की सिहरन हो अन्त खिली!


विस्तृत नभ का कोई कोना

मेरा न कभी अपना होना,

परिचय इतना, इतिहास यही-

उमड़ी कल थी, मिट आज चली!


Tuesday, March 8, 2022

बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु! निराला







आज आपके साथ साझा करते हैं निराला जी का बेहद सुंदर नवगीत जो प्रकृति के ऊपर लिखा गया है, लेकिन यह किसी नायिका का प्रतीत होता है. 

निराला

बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु!
पूछेगा सारा गाँव, बंधु!


यह घाट वही जिस पर हँसकर,
वह कभी नहाती थी धँसकर,
आँखें रह जाती थीं फँसकर,
कँपते थे दोनों पाँव बंधु!


वह हँसी बहुत कुछ कहती थी,
फिर भी अपने में रहती थी,
सबकी सुनती थी, सहती थी,
देती थी सबके दाँव, बंधु!

समीक्षा -- है न -

  शशि पुरवार  Shashipurwar@gmail.com समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा  है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह  जिसमें प्रेम के विविध रं...

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