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Saturday, November 2, 2013
Thursday, October 10, 2013
संत पहाड़
पहाड़ --
१
अडिग खड़ा १
शैल का अंक
नाचते है झरने
खिलखिलाते
७
पर्वत पुत्री
धरती पे जा बसी
बसा है गाँव।
८
झुकता नहीं
लाख आये तूफ़ान
मिटता नहीं ।
Monday, September 16, 2013
मन के भाव। ….
१
मन के भाव
शांत उपवन में
पाखी से उड़े .
२
उड़े है पंछी
नया जहाँ बसाने
नीड़ है खाली।
३
मन की पीर
शब्दों की अंगीठी से
जन्मे है गीत।
४
सुख औ दुःख
नदी के दो किनारे
खुली किताब।
५
मै कासे कहूँ
सुलगते है भाव
सूखती जड़े।
६
मोहे न जाने
मन का सांवरिया
खुली पलकें
७
मन चंचल
बदलता मौसम
सर्द रातों में।
८
मन उजला
रंगों की चित्रकारी
कलम लिखे।
-- शशि पुरवार
Wednesday, September 11, 2013
ये नया जहाँ। .
१
पुलकित है
खिलखिलाते शिशु
हवा के संग।
२
बेकरारी सी
भर लूँ निगाहों में
ये नया जहाँ।
३
मै भी तो चाहूँ
एक नया जीवन
खिलखिलाता
४
साथ साथ ये
बढ़ रहे कदम
छू लूं आसमां।
५
मुस्कुरा रही
ये नन्ही सी गुडिया
थाम लो मुझे
६
प्रफुल्लित है
नन्हे प्यारे से पौधे
छूना न मुझे
७
दुलार करूँ
भर लूँ आँचल में
मेरा ही अंश
८
हरे भरे से
रचे नया संसार
धरा का स्नेह
-- शशि पुरवार
Friday, August 30, 2013
श्री कृष्ण -- छेड़े गोप वधू
१
श्री कृष्ण
नाम है
आनंद की अनुभूति का,
प्रेम के प्रतिक का ,
ज्ञान के सागर का
और जीवन की
पूर्णता का।
२
श्री कृष्ण ने
गीता में दिया है
निति नियमो का ज्ञान
जीवन को जीने का सार ,
पर इस युग में तो
मानव ने
राहों में रोप दिए है
क्षुद्रता के
कंटीले तार।
३
मोहन ने
शंख बजाकर
उद्घोष किया था
करो दुष्टों का नाश.
आज कलयुग में
अधमता के
काले बादलों से
भरा हुआ है आकाश।
४
लक्ष्य
निर्धारित करता है
आने वाले कल की
दिशाएँ
और
नए संसार का
अभिकल्प।
५
श्री कृष्ण
जन्मोउत्सव
ह्रदय में
उन्माद की आंधी
श्याम बनने को होड़ में
बाल गोपाल
फोड़ रहे है
दही हांड़ी।
६
फूलों से सजा
हिंडोला
दूध - दही की
बहती गंगा
विविध पकवान
पंचामृत का भोग
भक्ति का बहता सागर
मन हो जाये चंगा।
24.8.13 १
-------------
1
श्याम ने दिया
प्रेम का गूढ़ अर्थ
भक्तों ने जिया।
२
सांसों में बसी
भक्ति - भाव की धारा
ज्ञान लौ जली
३
नियम सारे
ज्ञान का सागर है
मोहन प्यारे।
४
माहिया --
- शशि पुरवार
श्री कृष्ण
नाम है
आनंद की अनुभूति का,
प्रेम के प्रतिक का ,
ज्ञान के सागर का
और जीवन की
पूर्णता का।
२
श्री कृष्ण ने
गीता में दिया है
निति नियमो का ज्ञान
जीवन को जीने का सार ,
पर इस युग में तो
मानव ने
राहों में रोप दिए है
क्षुद्रता के
कंटीले तार।
३
मोहन ने
शंख बजाकर
उद्घोष किया था
करो दुष्टों का नाश.
आज कलयुग में
अधमता के
काले बादलों से
भरा हुआ है आकाश।
४
लक्ष्य
निर्धारित करता है
आने वाले कल की
दिशाएँ
और
नए संसार का
अभिकल्प।
५
श्री कृष्ण
जन्मोउत्सव
ह्रदय में
उन्माद की आंधी
श्याम बनने को होड़ में
बाल गोपाल
फोड़ रहे है
दही हांड़ी।
६
फूलों से सजा
हिंडोला
दूध - दही की
बहती गंगा
विविध पकवान
पंचामृत का भोग
भक्ति का बहता सागर
मन हो जाये चंगा।
24.8.13 १
-------------
1
श्याम ने दिया
प्रेम का गूढ़ अर्थ
भक्तों ने जिया।
२
सांसों में बसी
भक्ति - भाव की धारा
ज्ञान लौ जली
३
नियम सारे
ज्ञान का सागर है
मोहन प्यारे।
४
हर्षोल्लास
भक्ति भाव की गंगा
गोकुल खास
५
बाल गोपाल
दही हांडी की धूम
हर चौराहे।माहिया --
१
हाँ ,शीश मुकुट सोहे
हाँ ,शीश मुकुट सोहे
अधरों पे बंशी
मन को कान्हा मोहे।
२
राधा लागे है प्यारी
छेड़े गोप वधू
रास रचे है गिरधारी
25 .8 13 - शशि पुरवार
Saturday, July 27, 2013
सुख की धारा
१
सुख की धारा
रेत के पन्नो पर
पवन लिखे .
२
दुःख की धारा
अंकित पन्नो पर
डूबी जल में -
-
२
मन पाखी सा
चंचल ये मौसम
सावन आया
३
रात चांदनी
उतरी मधुबन
पिय के संग .
------शशि पुरवार
१९ जुलाई १३
सुख की धारा
रेत के पन्नो पर
पवन लिखे .
२
दुःख की धारा
अंकित पन्नो पर
डूबी जल में -
-
२
मन पाखी सा
चंचल ये मौसम
सावन आया
३
रात चांदनी
उतरी मधुबन
पिय के संग .
4
दिल का दिया
यादों से जगमग
ख्वाब चुनाई .
5
तन्हाईयों में
सर्द यह मौसम
शूल सा चुभा
यादों से जगमग
ख्वाब चुनाई .
5
तन्हाईयों में
सर्द यह मौसम
शूल सा चुभा
------शशि पुरवार
१९ जुलाई १३
Friday, July 26, 2013
Friday, July 19, 2013
प्रकृति और मानव
१
जल जीवन
प्रकृति औ मानव
अटूट रिश्ता
२
जगजननी
धरती की पुकार
वृक्षारोपण
३
मानुष काटे
धरा का हर अंग
मिटते गाँव .
४
पहाड़ो तक
पंहुचा प्रदूषण
प्रलयंकारी
५
केदारनाथ
बेबस जगन्नाथ
मानवी भूल
६
काले धुँए से
चाँद पर चरण
काला गरल .
७
जलजले से
विक्षिप्त है पहाड़
मौन रुदन
८
कम्पित धरा
विषैली पोलिथिन
मनुज फेकें
९
सिंधु गरजे
विध्वंश के निशान
अस्तित्व मिटा .
१०
अप्रतिम है
प्रकृति का सौन्दर्य
चिटके गुल .
-------- शशि पुरवार
जल जीवन
प्रकृति औ मानव
अटूट रिश्ता
२
जगजननी
धरती की पुकार
वृक्षारोपण
३
मानुष काटे
धरा का हर अंग
मिटते गाँव .
४
पहाड़ो तक
पंहुचा प्रदूषण
प्रलयंकारी
५
केदारनाथ
बेबस जगन्नाथ
मानवी भूल
६
काले धुँए से
चाँद पर चरण
काला गरल .
७
जलजले से
विक्षिप्त है पहाड़
मौन रुदन
८
कम्पित धरा
विषैली पोलिथिन
मनुज फेकें
९
सिंधु गरजे
विध्वंश के निशान
अस्तित्व मिटा .
१०
अप्रतिम है
प्रकृति का सौन्दर्य
चिटके गुल .
-------- शशि पुरवार
Wednesday, July 10, 2013
दिल के तार
१ मन प्रांगन
यादों के बादल से
झरते मोती .
२
धीमा गरल
पीर की है चुभन
खोखला तन
२
पीर जो जन्मी
बबूल सी चुभती
स्वयं की साँसे
३
दिल का दर्द
रेगिस्तान बन के
तन में बसा .
४
दिल के तार
जीवन का श्रृंगार
तुम्हारा प्यार .
५
भीनी खुशबू
सजी गुलदस्ते में
खिले हाइकू .
६
समेटे प्यार
फूलों सा उपहार
हिंदी हाइकू …
Wednesday, July 3, 2013
मुस्काती चंपा ....
खिली चांदनी
झूमें लताओं पर
मुस्काती चंपा .
तरु पे खेले
मनमोहिनी चंपा
धौल कँवल .
मन प्रांगन
यादों की चित्रकारी
महकी चंपा .
दुग्ध है पान
हलद का श्रृंगार
चंपा ने किया
चंपा मोहिनी
झलकता सौन्दर्य
शशि सा खिले .-
-- शशि पुरवार
Sunday, June 30, 2013
ठूंठ सा वन
ठूंठ ---
१
ठूंठ सा तन
पपड़ाया यौवन
पंछी भी उड़े .
२
सिसकती सी
ठहरी है जिंदगी
राहों में आज
३
शुलो सी चुभन
दर्द भरा जीवन
मौन रुदन .
४
मौन रुदन .
४
सिमटी जड़ें
हरा भरा था कभी
वो बचपन
५
को से मै कहूं
पीर पर्वत हुई
ठूंठ सी खड़ी
६
झरते पत्ते
बेजान होता तन
ठूंठ सा वन
७
राहो में खड़े
देख रहे बसंत
बीता यौवन
८
जीने की आस
महकने की प्यास
जिंदगी खास .
९
हिम पिघले
पहाड़ ठूंठ बन
राहो में खड़े.
१०
ठूंठ बन के
सन्नाटे भी कहते
पास न आओ .
११
चीखें बेजान
तड़पती है साँसे
ठूंठ सी लाशें .
1२
मृत विचार
लोलुपता की प्यास
ठूंठ सा मन .
----शशि पुरवार
हरा भरा था कभी
वो बचपन
५
को से मै कहूं
पीर पर्वत हुई
ठूंठ सी खड़ी
६
झरते पत्ते
बेजान होता तन
ठूंठ सा वन
७
राहो में खड़े
देख रहे बसंत
बीता यौवन
८
जीने की आस
महकने की प्यास
जिंदगी खास .
९
हिम पिघले
पहाड़ ठूंठ बन
राहो में खड़े.
१०
ठूंठ बन के
सन्नाटे भी कहते
पास न आओ .
११
चीखें बेजान
तड़पती है साँसे
ठूंठ सी लाशें .
1२
मृत विचार
लोलुपता की प्यास
ठूंठ सा मन .
----शशि पुरवार
Tuesday, May 28, 2013
Saturday, May 25, 2013
क्लांत नदिया............
क्लांत नदिया
वाट जोहे सावन
जलाए भानु .
आया सावन
खिलखिलाई धरा
नाचे झरने .
नाचे मयूर
झूम उठा सावन
चंचल बूंदे.
काली घटाए
सूरज को छुपाये
आँख मिचोली .
:--शशि पुरवार
Sunday, May 19, 2013
इशक गुलमोहर
1
बीहड़ वन
दहकता पलाश
बौराई हवा .
2
तप्त सौन्दर्य
धरती का शृंगार
सुर्ख पलाश
3
जेठ की धूप
हँसे अमलतास
प्रेम के फूल
4
यादों के फूल
खिले गुलमोहर
मन प्रांगन
5
सौम्य सजीले
दुल्हे का रूप धरे
आये पलाश
6
खिली चांदनी
भौरे गान सुनाये
झूमे पलाश
7
तेरे प्यार में
खिला मन पलाश
महका वन .
8
गर्मी है जवाँ
इशक गुलमोहर
फूल भी हँसे .
9
स्वर्ण पलाश
सोने से दमकते
भानु भी हैरां .
10
सजी धरती
हल्दी भी खूब लगी
झूमे पलाश .
-------शशि पुरवार
5.5.13
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