Monday, April 1, 2013
Wednesday, March 27, 2013
रंगों की सौगात ले आई है होली .....!
गीत ---
रंगों की सौगात ले,
आई है होली
हर डाली पर खिल उठे
शोख टेसू लाल
प्रेम पुरवा से हुए
सुर्ख-सुर्ख गाल
मैना से तोता करे
प्रेम की बोली.
झूमते हर बाग में
इंद्र्धनुषी फूल
रँग बसंती की उडी
आसमाँ तक धूल
घूमती मस्तानों की
हर गली टोली
बिखरी निर्जन वन में भी
रंगो की घटा
हरिक दिल में बस गई
फागुनी छटा
दूर है रँग भेद से
रंगों की बोली .
आई है होली.........!
13.03.13
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हाइकू ---
1
सपने पाखी
इन्द्रधनुषी रंग
होरी के संग
2
रंग अबीर
फिजा में लहराते
प्रेम के रंग
3
सपने हँसे
उड़ चले गगन
बासंती रंग
4
दहके टेसू
बौराई अमराई
फागुन डोले
5
अनुरक्त मन
गीत फागुनी गाये
रंगों की धुन .
23.03.13 -
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1हवा उडाती
अमराई की जुल्फे
टेसू हुए आवारा
हिय का पंछी
उड़ने को बेताब
रंगों का समां प्यारा .
2
डोले मनवा
ये पागल जियरा
गीत गाये बसंती
हर डाली पे
खिल गए पलाश
भीगी ऋतू सुगंधी .
3
झूमे बगिया
दहके है पलाश
भौरों को ललचाये
कोयल कूके
कुंज गलियन में
पाहुन क्यूँ न आये .
4
झूम रहे है
हर गुलशन में
नए नवेले फूल
हँस रही है
डोलती पुरवाई
रंगों की उड़े धूल .
5
लचकी डाल
यह कैसा कमाल
मधुऋतू है आई
सुर्ख पलाश
मदमाए फागुन
कैरी खूब मुस्काई .
6
जोश औ जश्न
मन में है उमंग
गीत होरी के गाओ
भूलो मलाल
उमंगो का त्यौहार
झूमो जश्न मनाओ .
24.03.13
शशि पुरवार
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आया होली का त्यौहार
सब मिलकर करे धमाल .
मिल जुल कर जश्न मनाये
स्नेह के भजिये ,
तल कर खाए
रंगों से आँगन नहलाये
हुए मुखड़े पीले लाल .
आया होली का त्यौहार .
स्नेही सभी संगी साथी
दूर देश की है पाती
सभी को जोड़ते
दिल के तार ,
सभी पर करो रंगों की बौझार
आया होली का त्यौहार .
बुरा न मानो होली है ,
भंग में पगी ठिठोली है
नहीं तो ,भैया
पड़ जाएगी मार ,
सब मिलकर करे धमाल .
अरे ..... आया होली का त्यौहार
-----शशि पुरवार
22.03.13
ब्लॊगर के पुरे परिवार को और सभी मित्रो ,सखीओं को होली ही हार्दिक शुभकामनाए , यह पल सभी के जीवन में खुशियों के पल लाये . शशि पुरवार
अनुभूति के होली विशेषांक में प्रकाशित होली दोहे इस लिंक पर पढ़िए ,
------------- शशि पुरवार
Sunday, March 24, 2013
अनछुए से रंग
रंगों का त्यौहार
लागे
सबको प्यारा
कहीं रंग कहीं बेरंग
यह कैसा इशारा .
अनछुए से चले गए
रंग जीवन से
जब
मांग में सोई गमी।
हरी मेंहदी
करतल पर दहने लगी ,
फिर
खनकती हंसी
काल कोठरी में पली
और
विरह की आग से खेलते
शृंगारो की खूब होली जली ।
हिय के दलदल में
दफ़न हो गए
हरे पीले लाल रंग ,
श्वेत रंग वन में जगे,
रंगों का कोई दोष नहीं
दिलकश होते है रंग
क्या लिखा है नियति ने ?
किसे दोष दे ....... ?
हर बार की तरह
मौसम
तो बदलेंगे
वृक्ष तो छाया ही देंगे
पर
सूखें वनों को चाहिए
सिर्फ
प्रेम की फुहार।.
फागुन तो
आता है हर साल
भर
स्नेह की पिचकारी
लगाओ गुलाल।
15.03.13
-- शशि पुरवार
Monday, March 18, 2013
क्षणिकाएँ
1कर्म का पथ
प्रथम है प्रयास
नींद के बाद .
जख्मी है वृक्ष
रीत गए झरने
अम्बर रोए .
बासंती गीत
प्रकृति ने पहनी
धानी चुनर .
छोटी कविता
--- शशि पुरवार
प्रथम है प्रयास
नींद के बाद .
जख्मी है वृक्ष
रीत गए झरने
अम्बर रोए .
बासंती गीत
प्रकृति ने पहनी
धानी चुनर .
श्वेत धवल
बसंती सा नाजुक
हरसिंगार .
शिउली सौन्दर्य
लतिका पे है खिला
गुच्छो मे लदा.
हरसिंगार
ईश्वरीय सृजन
श्वेत कमल .
श्वेत चांदनी
धरा की चुनरिया
झरे प्राजक्त .
-------------
छोटी कविता
१ सजा बंधनवार
ढोलक की थाप
झनक उठी पैजनिया
गूंज उठी शहनाई
स्नेहिल अंगना ,
सजी है डोली
कन्यादान का अवसर
झर झर झरे आशीष
और नैनो से झरे
हरसिंगार .
२ बहाओ पसीना
उठा लो मशाल
राहों मे बिछे कांटे
जाना है पार
भोर का न करो,
इन्तजार
खिलेंगे फूल तो
यह जीवन हरसिंगार .
३ न छोड़ो हिम्मत
जज्बा हो बुलंद
गहरे गर्त मे भी
झरने सा छन्द
कर्म विलक्षण ,तो
महके सुवास
जैसे हरसिंगार .
--- शशि पुरवार Thursday, February 14, 2013
स्नेह बंधन
1 स्नेहिल रिश्ता
ममता का बिछोना
माँ का शिशु से .
2
स्नेह बंधन
फूलो से महकते
हरसिंगार
3
झलकता है
नजरो से पैमाना
वात्सल्य भरा
4
दिल की बातें
दिल ही तो जाने है
शब्दों से परे .
5
प्रेम कलश
समर्पण से भरा
अमर भाव .
6
खामोश शब्द
नयन करे बातें
नाजुक डोर .
7
अनुभूति है
प्रेममई संसार
अभिव्यक्ति की .
8
बंद पन्नो में
ह्रदय के जज्बात
सूखते फूल .
9
दिल की पीर
बहती नयनो से
हुई विदाई .
10
जन्मो जन्मो का
सात फेरो के संग
अटूट नाता .
11
आग का स्त्रोत
विरह का सागर
प्रेम अगन .
12
खामोश साथ
अवनि - अम्बर का
प्रेम मिलन .
----------शशि पुरवार
Monday, February 11, 2013
सीली सी यादें .....!
सुलग रहे थे ख्वाब
वक़्त की
दहलीज पर
और
लम्हा लम्हा
बीत रहा था पल
काले धुएं के
बादल में।
सीली सी यादें
नदी बन बह गयी ,
छोड़ गयी
दरख्तों को
राह में
निपट अकेला।
फिर
कभी तो चलेगी
पुरवाई
बजेगा
निर्झर संगीत
इसी चाहत में
बीत जाती है सदियाँ
और
रह जाते है निशान
अतीत के पन्नो में।
क्यूँ
सिमटे हुए पल
मचलते है
जीवंत होने की
चाह में।
न कोई ठोर
न ठिकाना
न तारतम्य
आने वाले कल से।
फिर भी
दबी है चिंगारी
बुझी हुई राख में।
अंततः
बदल जाते है
आवरण,
पर
नहीं बदलते
कर्मठ ख्वाब,
कभी तो होगा
जीर्ण युग का अंत
और एक
नया आगाज।
------ शशि पुरवार
Tuesday, January 15, 2013
खूनी पंजे की लगी छाप
आतंकी तारीखे बनी
अमावस की काली रात
कैद हुए मंजर आँखों में
और गोलियों की बरसात
चीत्कार उठा था ब्रम्हांड
तारे अब भी सुलग रहे.
अमावस की काली रात
कैद हुए मंजर आँखों में
और गोलियों की बरसात
चीत्कार उठा था ब्रम्हांड
तारे अब भी सुलग रहे.
ताबूत बने थे वे दिन ,
जब सोई मानवता की लाश
उफन रही थी बर्बरता
उजड़ रही थी साँस
देखो घर के भेदी ,अपने
ही घर को निगल रहे.
जब सोई मानवता की लाश
उफन रही थी बर्बरता
उजड़ रही थी साँस
देखो घर के भेदी ,अपने
ही घर को निगल रहे.
उत्तरकाल के गुलशन की
नवपल्लव ने जगाई आशा
दिन ,महीने हो गुलजार
ह्रदय की यही अभिलाषा
युवा क्रांति के दृढ़ कदम, अब
दर्पण जग का बदल रहे .
नवपल्लव ने जगाई आशा
दिन ,महीने हो गुलजार
ह्रदय की यही अभिलाषा
युवा क्रांति के दृढ़ कदम, अब
दर्पण जग का बदल रहे .
नूतन वर्ष पर दीवारों के
पंचांग अब बदल रहे .
शशि पुरवार पंचांग अब बदल रहे .
Friday, December 21, 2012
ताल का जल
बढ़ रहा शैवाल बन
व्यापार काला
ताल का जल
आँखें मूंदे सो रहा
रक्त रंजित हो गए
सम्बन्ध सारे
फिर लहू जमने लगा है
आत्मा पर
सत्य का सूरज
कहीं गुम गया है
झोपडी में बैठ
जीवन रो रहा
हो गए ध्वंसित यहाँ के
तंतु सारे
जिस्म पर ढाँचा कोई
खिरने लगा है
चाँद लज्जा का
कहीं गुम हो गया
मान भी सम्मान
अपना खो रहा .
-- शशि पुरवार
Monday, December 10, 2012
एक सवाल - विकृत दर्पण समाज का .......... ? बाल शोषण
1 -- लघुकथा --- ख्वाब
रोज छोटू को सामने वाली दूकान पर काम करते हुए देखती थी , रोज ऑफिस में चाय देने आता था , हँसता , बोलता पर आँखों में कुछ ख्वाब से तैरते थे .एक दिन मैंने उससे कहा
" छोटू पढने नहीं जाते "
"नहीं दीदी समय नहीं मिलता "
"क्यूँ घर में कौन कौन है "
"माँ ,बापू बड़ी बहन ,छोटी बहन "
"तो सब क्या करते है "
"सभी काम करते है "
"तुम्हे पढना नहीं अच्छा लगता ?"
वह चुप हो गया ,और नीहिर भाव आँखों में था ,धीरे से बोला ---
" हाँ बहुत मन करता है पढूं , अच्छे अच्छे कपडे पहनू , स्कूल जाऊ और मै भी एक दिन ऐसे ही नौकरी कर बड़ा इंसान बनू , पर इतने पैसे नहीं है ,जो मिलता है सब मिलकर उससे खाना ले कर आते है ,".........काश में भी बड़े घर में जन्म लेता .......
शब्द खामोश हो गए और नयन सजल ,यह सजा भगवान् ने नहीं दी , इंसानों ने ही तो अमीर गरीब बनाये है ,स्वप्न तो सभी की आँखों में एक जैसे ही आते है .
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2 लघुकथा --- दोहरा व्यक्तित्व
स्कूल की अध्यापिका ने बाल शोषण के खिलाफ बहुत कुछ भाषण में कहा , कि बाल श्रम अपराध है , बाल शोषण नहीं करना चाहिए , सबको इसके खिलाफ मिलकर आवाज उठानी चाहिए .वगैरह ,....!
उनकी बातो से सभी बहुत प्रभावित हुए , सभी बच्चो के माता पिता ने भी बहुत प्रसन्नता व्यक्त करी कि हमारे बच्चे कितने अच्छे स्कूल में पढ़ते है .मै उन अध्यापिका से परिचित थी ,बहुत सौम्य स्वाभाव की थी ,हर कोई प्रभावित हो जाता था उनसे , एक दिन किसी कार्यवश एक परिचित के साथ उनके घर जाने का मौका मिला , वह अविवाहित थी और अकेले रहती थी , जब हम पहुचे कोई 10 वर्ष की लड़की ने दरवाजा खोला , ठीक ठाक कपड़ो में थी वह लड़की , तो वह कोई सदस्य तो नहीं लग रही थी परिवार की ,हम बैठे तो तो उन महोदया ने आवाज दी ---
"रानी पानी लेकर आओ और काम हो गया हो तो घर चली जाओ "
" जी मैडम , हो गया "
हम आश्चर्य से देखते रह गए उन्हें , मुझसे रहा नहीं गया मैंने पूछ ही लिया
"क्या यह आपके यहाँ काम करती है ?"
"अरे नहीं , वह तो मै इसे पढ़ा देती हूँ , स्कूल की फ़ीस भी भरती हूँ इसकी , कपडे खाना सभी करती हूँ वक़्त आने पर , अब इतना कुछ करती हूँ , तो थोडा घर का काम करा लेने से क्या फर्क पड़ेगा ,आखिर पैसे देती हूँ . इसके माँ -बाप गरीब है , बर्तन का ही काम करते है , वह तो अच्छा है कि यह मेरे पास है तो इसका भला हो गया ,अब यही रहती है मेरे पास , ख़ुशी से ही करती है यह सब ,वैसे भी तो काम क्या होता है हम दोनों का ....!
मै चकित थी इस दोहरे व्यक्तिव से , एक तरफ बाल श्रम के लिए उनके विचार एवं दूसरी तरफ ऐसा कार्य , क्या समझे इसे ....दोहरा व्यक्तिव जो आम है आजकल ?
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3 लघु कथा --- शोषण
आज आरती के घर में बहुत चहल पहल थी ,9 साल की आरती और 11 प्रकाश साल का कजिन दोनों अपने नाना के घर पर थे , आज मेहमान भी घर पर आये थे , माँ , नानी ,व परिवार के अन्य सदस्य रिश्तेदारों में व्यस्त थे , बच्चे उधम मचा रहे थे , एक दूर का रिश्तेदार उम्र 24 होगी वह भी था और बीच बीच में बच्चो के साथ भी खेल लेता था . इतनी चहलपहल थी कि ठहाको की आवाजे ही बाहर आती थी . एक दिन सभी आराम कर रहे थे ,बच्चे छत पर खेल रहे थे , आरती वैसे ही खेल रही थी और प्रकाश पतंग उड़ा रहा था ,अपने दोस्त के साथ . थोड़ी देर में वह लड़का जिसे मामा कह रहे थे बच्चे ,छत पर आया और बच्चो के साथ खेलने लगा , फिर खेलते खेलते आरती से बोला ---
"चलो हम थोड़ी देर बैठते है और चाकलेट खाते है इनको पतग उड़ाने दो , "
" नहीं मामा यही पर खेलना है , मुझे नहीं बैठना "
" अब यह तो नहीं खेल रहे है फिर ....." बात काट कर आरती बोली --
" नहीं मुझे कहीं नहीं जाना , मै यही खेलूंगी "
"ओह हो....... तो खेलना है तुम्हे ,चलो हम कुछ और खेलेंगे "
" सच्ची में ......"
"हाँ , चलो वहां छत के कोने में ,अब प्रकाश तुम्हे पतंग नहीं दे रहा है तो , हम भी उसे नहीं खिलाएंगे "
" ठीक है मामा ,हम क्या खेलेंगे ?
" आओ मै बताता हूँ , पर किसी से कुछ नहीं कहना , नहीं तो सब मारेंगे तुम्हे और मै फिर नहीं खेलूंगा ,
" जैसा मै कहता हूँ वैसा ही करो ....."
और छत पर उस तथाकथित मामा ने जो खेल खेला वह आरती समझ ही नहीं सकी ,और दर्द ,डर से पीड़ित हो गयी , और मामा ने कहा --
" अरे डरो मत सब ठीक हो जायेगा , पर किसी से कुछ कहना नहीं ." धीरे से धमकी .
आज रिश्तो का खून हो चूका था , कैसे अपनों पर भी विश्वास किया जाये ,आज रिश्ते नाते भी कठघरे में है ,जो अपनी गन्दी विकृत मानसिकता के चलते मासूम बचपन के मन व जीवन और रिश्तो पर काले घाव के निशाँ अंकित कर देते है .
----- शशि पुरवार
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4 कथा ------ स्वाहा
रामू चाय की दुकान पर काम करता था पढने का बहुत शोक था दिन में काम करता और रात के समय पढता था , पिता ने उसे काम करने के लिए कहा था ,वह कहते थे की पढने से पैसे नहीं मिलते ,पर झुग्गी छोपडी में एक स्कूल था जो मुफ्त शिक्षा देता था ,तो रामू की लगन से वहां उसे दाखिला मिल गया था ,सिर्फ परीक्षा के समय पैसे भरने होते थे फॉर्म के ,तो रामू के पिता ने उसे कह दिया
" ठीक है देखेंगे.......... "
हर महीने की पगार वह आजकर रामू के सेठ से ले जाते थे .आज कप धोते धोते रामू को याद आया कि कल स्कूल में कहा गया है कि अगर आज रूपये नहीं भरे तो परीक्षा नहीं दे सकते . उसने सेठ से कहा
काका जल्दी से आता हूँ घर से .........वह घर की तरफ भागा ,और अपने पिता से बोला --
" बाबा फ़ीस भरनी है आज ,"
" पैसे नहीं है मेरे पास ............. पता नहीं सा पहाड़ मिल जायेगा पढ़ कर .."कड़कती आवाज में जबाब आया ,फिर वह सड़क पर निकल गए .
रामू को कुछ समझ नहीं आया ,आँखों में आंसू आ गए , सोचा रात को अम्मा से कहूँगा ,नहीं तो स्कूल वाले भगा देंगे स्कूल से ,
रात को जब अम्मा घर आई वह कुछ कह पाता उससे पहले पिता शराब की बोतल पीते हुए लडखडाते ,गन्दी गलियां देते हुए घर में घुसे , आज सन्नाटा सा छा गया झोपड़ी में .........आज खाने में लात घुसे ही मिले , निरीह आँखे तक रही थी अँधेरे को , एक खामोश चीत्कार थी रामू के मन में .आशाएं , इक्छाएं धू धू कर जल रही थी . शराब में सब कुछ स्वाहा हो गया .
------- शशि पुरवार
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बाल शोषण ----- एक नजर
बाल शोषण यह एक ऐसी समस्या है जिसका निदान ही नहीं निकल रहा, अक्सर इसके बारे में हम समाचार पत्रों में पढ़ते रहते है, यह शोषण समाज में बुरी तरफ मकडजाल की तरह फैला हुआ है. बाल शोषण सिर्फ काम करवाने से ही नहीं होता अपितु शारीरिक , मानसिक शोषण भी जघन्य अपराध है एवं शोषण की श्रेणी में ही आता है। इसे आप दबे रूप में कहीं न कहीं देख ही सकते है। गरीब माँ बाप तो इस महंगाई की मार से परेशान होकर अपने बच्चो को काम पर लगा देते है. निम्न वर्ग को सरकार जो रूपये देती है वह भी उन बच्चो पर खर्च न होकर उनकी जेबों में ही जाता है. निम्न वर्ग अपने बच्चो को भीख मांगने के लिए गलियों ,चौराहे या मंदिर के बार खड़ा कर देते है.नहीं तो सर्कस या करतब दिखाकर पैसे का कमाने का कार्य सौंप देते है . एक बार जब मुझे कार्य वश होलसेल बाजार में जाने का काम पड़ा, चौराहे पर चाट का एक ठेला खड़ा था और थोड़ी दूर पर 5, 6 -8 -10 साल के 6-7 बच्चे बैठे थे. करीब 22 साल का एक लड़का कुछ दूरी पर बैठ कर सब पर नजर रखे हुए था . 2 -2 बच्चे आगे एक गन्दी सी छोटी चादर पर बारी बारी आकर बैठते। एक बाजा बजाता तो दूसरा करतब दिखाता। जब 5-6 साल के बच्चो ने आँखों से सुई उठाई, बांस पर चले , शरीर को तोड़ मोड़ कर प्रस्तुत किया तो वहां ठेले पर खड़े कुछ लोगो ने 1 -1 रूपए डाल दिए ,परन्तु किसी ने भी उन्हें यह कार्य करने से नहीं रोका , और धीरे धीरे वह पैसा बड़े लड़के की जेब में जाता रहा. इस अपराध के हिस्सेदार वह लोग भी है जो ऐसे खेल को देख आनंदित होते है और बढ़ावा देते है . जो इन बातों का विरोध करते है उन्हें स्वयं समाज का विरोध झेलना पड़ता है .
बच्चो का शोषण सिर्फ श्रम से ही नहीं होता अपितु स्कूल में शिक्षक द्वारा, एवं घर में परिचित या रिश्तेदार भी उनका शोषण कर लेते है। सामान्यतः यह बात खुलकर बाहर नहीं आ पाती . बच्चो को चाकलेट या मिठाई के बहाने बुलाकर , फुसलाकर उनका शारीरिक शोषण किया जाता है . उन्हें जान से मरने की धमकी देकर डराया जाता है और इसी बहाने बच्चे लगातार शोषित किये जातें है। चाहे लड़का हो या लड़की सभी इसके शिकार होते है। कई बार सुनने में आया कि फलां टीचर ने विद्यार्थी के साथ अनुचित व्यवहार किया है. कई शिक्षक ऐसे होते है जो बालउम्र को ध्यान में न रखकर सजा के रूप में उनकी इतनी पीटाई करते है कि कई बार बच्चो की हालत ख़राब हो जाती है और उन्हें अस्पताल तक ले जाना पडा . भय उनके मन में घर कर जाता है।
कई बार ऐसी परिस्थिति भी सामने आई है जैसा कि आरती के साथ हुआ था। उसके घर में उसके दूर के मामा ने उसका शारीरिक शोषण किया और डरा कर चुप करा दिया। वह डर के कारण कुछ नहीं कह सकी . बाल्यावस्था में बच्चों के साथ हुई घटनाएं उनके बालमन पर सदा के लिए अंकित हो जाती है। आरती के साथ जो कुछ भी हुआ उसके दुःख और परेशानी की काली छाया उसके जीवन पर सदा के लिए अंकित हो गयी .इसके ठीक विपरीत साहसी नीलम की दाद देनी पड़ेगी। वह कोचीन क्लास में पढने जाती थी। विद्यार्थीयों को अपनी डिफिकल्टी के लिए कक्षा के बाद ही रुक कर पूछना पड़ता था। एक दिन नीलम अपने प्रश्न के लिए वहां रुकी। उसके टीचर ने उसके साथ अकेले में अशोभनीय व्यवहार किया , पहले तो वह कुछ नहीं बोली, पर यह सिलसिला अक्सर होने लगा तो उसने विरोध किया। जबाब में उस शिक्षक ने उसे धमकी दी यदि ज्यादा आवाज करोगी तो तुम्हे बदनाम कर दूंगा। पर नीलम की समझदारी उसे कोई बड़ा कांड होने से बचा लिया। उसने माता -पिता को यह बात बताई और पुलिस की मदद से बालबाल बच गयी . हर बच्चे को बचपन से ही यह शिक्षा देनी चाहिए कि डरो मत अपितु अपनों का सहारा लो. अनजान पर विश्वास मत करो .
अपराध तो ख़त्म नहीं होते। आज समाज में जगह - जगह राक्षस फैले हुए हैं। अक्सर समाचार पत्र दुष्कृत की काली ख़बरों से रंगे हुए होते हैं। कुछ दुष्कर्मी युवको ने शराब के नशे में न जाने कितनी मासूम कन्याओ को अपना शिकार बनाया, सबसे ज्यादा खेद जनक स्थिति है कि अपने मानसिक विकृत कृत्य में उन्होंने 3-- 6 महीने की नवजात शिशु को भी नहीं बख्शा। आज लोगों का मानवता से भरोसा उठ गया है। शिशु आज अपने घर में भी सुरक्षित नहीं है। विकृत मनोदशा वाले लोग सामान्य स्थिति में हमारे आसपास ही मौजूद होते हैं। सोशल मीडिया पर मौजूद पोर्न विडिओ ने किशोरों को भी अपनी गिरफ्त में लेकर मानसिक रोगी बनाया है। कई लोग पुलिस की गिरफ्त में भी आये और सजा भी हुई। पर अपराध का मकड़जाल इस तरह फैला हुआ है कि इसकी सफाई करना मुश्किल है। सभ्य कपड़ों में काले कुकर्मी घूमते हैं।
लोग समाज के डर से यह बात ही छुपा लेते है . खासकर जब कन्या हो,कहीं उसकी शादी में अड़चन न हो जाये। ऐसा विचार अपराधी को बढ़ावा देते हैं इंसानियत मरने लगी है। न्यायालयों में पोक सो के केसों की बढ़ती संख्या चिंतनीय है। मानसिक विकृति का खामियाजा नवजात बच्चों और बच्चियों का भुगतना पड़ता है। शिक्षिकों द्वारा किये गए कृत्य कितने गलत हैं, जब गुरु ही गलत होगा तो बच्चों को क्या शिक्षा मिलेगी! शोषण सिर्फ शारीरिक ही नहीं मानसिक भी होता है, एक बार स्कूल में एक शिक्षिका ने 1-2 बच्चो को बहुत मारा , नंबर भी काट लेने की बात कही, क्रोध में बहुत ज्यादा होमेवोर्क दिया, सजा दी . एक बार एक लड़की इस पीड़ा को न सह सकी और डर के कारण घर पर भी किसी को कुछ नहीं बताया व अंत में आत्महत्या कर ली. एक नोट छोड़ दिया और जिंदगी हमेशा के लिए मिट गयी। . इस तरह के हालात समाज को अंदर से खोखला कर रहें हैं। नन्हे कदम जो हाथ थाम कर चलना सीख रहें हैं उन्हें दुनिया को अच्छी नज़रों से दिखाना चाहिए न कि काली करतूतों से भरी दुनियां को। बालपन में हुए हादसे उनके जीवन पर विपरीत प्रभाव भी डालते हैं। उनके साथ हुई घटनाओं का जिम्मेदार वह दुनिया को मानते है एवं बदला लेने के लिए भविष्य में वही कार्य दोहराते हैं। ऐसी कई घटनाए हमारे समाज में हो रही है. बाल मजदूरी भी हमारे समाज का हिस्सा बन गयी है। समाज में फैली अपराधों के चलते कई लोग घर में काम के लिए छोटे बच्चो को रख लेते हैं। क्यूंकि वह परेशान नहीं करते और सारा काम चन्द पैसे और खाने के लालच में कर देते है .
बचपन एक फूल के समान है जिसे प्यार भरे संरक्षण की आवश्यकता है , जब नींव अच्छी रखी जाएगी तो वह पौधा बन कर अच्छे फल- फूल देगा . आज बाल शोषण जैसी समस्या को जड़ से मिटाने के लिए सभी को साथ में मिलकर समाप्त करना होगा . चंद पंक्तियाँ कहना चाहूंगी--
बेटी हो या बेटा ,
बचपन एक समान
न मसलो नन्हें पौधों को
दो अधरों पर मुस्कान
--शशि पुरवार
Wednesday, December 5, 2012
एक भूल और .............................!
1
रंगीन मिजाज
अनिरुद्ध एक सॉफ्टवेयर इंजीनयर था। वह अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ हंसी ख़ुशी जीवन कर रहा था। वह अक्सर काम के सिलसिले में शहर से बाहर जाता था . इस बार जब वह वापिस आया तो देखा उसकी नेहा की तबियत ठीक नहीं है। बुखार बार बार आ रहा था व वह थोड़ी कमजोर दिख रही थी . अनिरुद्ध चिंतित हो गया और उसने नेहा से पूछा --
"नेहा क्या हुआ, डाक्टर को दिखाया ...?"
" कुछ नहीं, ठीक हूँ , बुखार के कारण कमजोरी आ गयी है , आजकल वायरल भी बहुत फैला है "
" हाँ यह तो है , परन्तु अपना ध्यान रखो ....... "
इधर आजकल कुछ दिनों से बेटे की तबियत भी बिगड़ने लगी। चेहरे और शरीर पर दाने निकलने लगे और बुखार भी बार बार आ रहा था। उधर निशा का स्वास्थ भी धीरे -धीरे बिगड़ता जा रहा था। एक दिन तो वह काम करते करते गिर गयी, अनिरुद्ध दोनों को अस्पताल लेकर गया तो वहां नेहा एवं बेटे को एडमिट कर लिया गया, दवाईयां असर नहीं कर रही थी। फिर उनकी सभी प्रकार की जांच शुरू हो गयी. शाम को डाक्टर ने अनिरुद्ध से कहा कि --
" आप धीरज रखें , आपको अपनी पत्नी को भी हिम्मत देना है। और एक बार आप अपना व अपनी बेटी का ब्लड टेस्ट करवा लें। "
" क्यों डाक्टर ! मेरी नेहा को क्या हुआ है और हम सभी की जाँच क्या कोई चिंता की बात है ?" अनिरुद्ध की आवाज में चिंता झलक रही थी।
" मै एतिहात के तौर पर सभी की एच . आई वी टेस्ट करवा रहा हूँ, आपकी पत्नी और बेटे की रिपोर्ट पॉजिटिव आई है और hiv संक्रमण आखिरी स्टेज पर पहुँच चुका है "
" यह सुनते ही अनिरुद्ध जड़ हो गया, उसके मन मस्तिष्क ने जैसे काम करना ही बंद कर दिया हो !"
परिवार के सभी सदस्य की जांच हुई तो पता चला कि सभी इस बीमारी से ग्रसित है, वह ग्लानी से भर गया कि उसके रंगीन मिजाज स्वाभाव व असंयम के कारण आज पूरा परिवार काल के द्वार पर खड़ा था। नेहा की निगाहे उससे खामोश सवाल कर रही थी, जिससे वह नजर उठाने में असमर्थ था। शादी से पहले से ही उसने इन रंगीन गलियों की आदत जो डाल रखी थी।
-----शशि पुरवार .
२ असावधानी
सुलोचना स्वयं को होशियार समझती थी. वह हमेशा पैसे बचाने के चक्कर में रहती थी. एक बार उसकी तबीयत नासाज थी. वह पास में ही डाक्टर को दिखाने गई. डाक्टर ने उसे दवा दी और इंजेक्शन लेने के लिए कहा। साधारण दवाखाना था किन्तु बहुत चलता था। वह कम्पाउंडर के पास इंजेक्शन के लिए गयी तो देखा वहां बहुत से लोग लाइन में बैठे है। कम्पाउंडर सभी को एक एक करके इंजेक्शन लगा रहा था. वहां एक बर्तन में गर्म पानी रखा था, हर बार सुई लगाने के बाद उसमे डाल देता और दूसरी को निकालकर लोगों को इंजेक्शन लगाता .सुलोचना ने सोचा गर्म पानी में सभी कीटाणु मर जाते है तो नयी डिस्पोजेबल सुई में के लिए फालतू में पैसे खर्च क्यों करूँ।
जब सुलोचना की बारी आई तो कम्पाउंडर ने कहा --
" आपका परचा ?"
" हाँ यह लीजिये। यह इंजेक्शन लगाना है "
" ठीक है "
फिर वह गर्वित भाव से यह सोचते सोचते घर आ गयी कि - "डिस्पोजल के पैसे तो बचे।कुछ नहीं होता है, आजकल मेडिकल वालों ने भी लोगों को ठगने का धंधा बना लिया है. पहले भी तो लोग ऐसा करते थे। "
बीमारी तो ठीक हो गयी, परन्तु जो हुआ उसकी कल्पना से परे था। 2-3 महीने बाद जब सुलोचना थकी थकी सी रहने लगी तो घर वालो को चिंता हुई,
बाद में सभी जांच हुई तो पता चला कि खून संक्रमित हो गया है. एच . आई .वी . के कीटाणु खून में पाए गए। यह जानकर सभी सदमे में आ गए.
सुलोचना ने विचलित होकर डाक्टर ने कहा --यह कैसे संभव हो सकता है।
" आप चिंता मत करो शुरुआत है, आपका इलाज हो सकता है "
" पर डाक्टर यह कैसे हो गया। हम कितनी सावधानी बरतते है "
" यह संक्रमण का रोग है, किसी भी असावधानी से यह रोग हो सकता है , इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति का संक्रमित खून दिये जाने पर या संक्रमित व्यक्ति को लगाईं हुई सुई का उपयोग करने पर भी यह बीमारी हो जाती है। अनेक ऐसी सावधानियां हमें बरतनी चाहिए। कभी भी डिस्पोजेबल सुई का उपयोग करें , हर बात की बारीकी से बाजार रखें। आप ध्यान कीजिये ऐसा कुछ आपके साथ घटित हुआ है क्या ? "
डाक्टर की बातें सुनकर सुलोचना को अपनी गलती का अहसास हो गया, थोड़ी सी बचत करने के चक्कर में उसने अपनी ही जान जोखिम में डाल दी। बुरा वक़्त कभी भी कह कर नहीं आता , स्वयं सावधानी लेना आवश्यक है .
-----शशि पुरवार
Thursday, November 29, 2012
अब कर दो विदा
अब कर दो विदा
जकड़ी हैं मान्यताएं
थोथले विचार
परंपरा के नाम पर
आदमी लाचार
बेगारी का फंदा बन
रहा है जी का जंजाल,
ऐसे फरमानों को
अब कर दो विदा .
इर्ष्या के कीड़ों से
कलुषित हुआ मन
बदले की आग में
सुलग रहा है तन
साखर में पगा हुआ है
धूर्त का संसार
ऐसे मेहमानों को
अब कर दो विदा
जब सोया है जमीर ,तो
कैसे उच्च विचार
चील,कौए सा युद्ध है
छिछोरा आचार
शैवाल सा बढ़ रहा है
काला व्यापार
ऐसे धनवानों को
अब कर दो विदा
---------शशि पुरवार
अब कर दो विदा
जकड़ी हैं मान्यताएं
थोथले विचार
परंपरा के नाम पर
आदमी लाचार
बेगारी का फंदा बन
रहा है जी का जंजाल,
ऐसे फरमानों को
अब कर दो विदा .
इर्ष्या के कीड़ों से
कलुषित हुआ मन
बदले की आग में
सुलग रहा है तन
साखर में पगा हुआ है
धूर्त का संसार
ऐसे मेहमानों को
अब कर दो विदा
जब सोया है जमीर ,तो
कैसे उच्च विचार
चील,कौए सा युद्ध है
छिछोरा आचार
शैवाल सा बढ़ रहा है
काला व्यापार
ऐसे धनवानों को
अब कर दो विदा
---------शशि पुरवार
परंपरा के नाम पर
आदमी लाचार
बेगारी का फंदा बन
रहा है जी का जंजाल,
ऐसे फरमानों को
अब कर दो विदा .
इर्ष्या के कीड़ों से
कलुषित हुआ मन
बदले की आग में
सुलग रहा है तन
साखर में पगा हुआ है
धूर्त का संसार
ऐसे मेहमानों को
अब कर दो विदा
जब सोया है जमीर ,तो
कैसे उच्च विचार
चील,कौए सा युद्ध है
छिछोरा आचार
शैवाल सा बढ़ रहा है
काला व्यापार
ऐसे धनवानों को
अब कर दो विदा
---------शशि पुरवार
Sunday, November 25, 2012
**** नेह की पाती ******
नेह की पाती
मै बिटिया को लिखूं
दिल का हाल
ममता औ आशीष
पैगाम लिखूं
सर्वथा खुश रहे
प्यारी दुलारी
मेरी राजकुमारी
फूलो सी खिले
जीवन भी महके
राहों में मिले
मखमली डगर
नर्म बिछोना
बाबुल का अंगना
ख्वाबो की तुम
उड़ान भी भरना
दिली तमन्ना
सुखमय जीवन
सदैव ,पर
दुर्गम यह पथ
फूल औ शूल
यथार्थ का सफ़र
पल में धोखा
अपनों से भी रंज
तूफानों में भी
अडिग हो कदम
जटिल वक़्त
में फौलादी जिगर
नारी की जंग
खुद को संभालना
है कटु सत्य
बेदर्द ये जमाना
परवरिश
पाषण ह्रदय से
यही चाहत
महफूज सफ़र
नहीं भरोसा
कब तक जीवन
हमारे बाद
सुख भरा संसार
माता पिता की दुआ .
----------शशि पुरवार
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