१
चीखती भोर
दर्दनाक मंजर
भीगे हैं कोर
२
तांडव कृत्य
मरती संवेदना
बर्बर नृत्य
३
आतंकी मार
छिन गया जीवन
नरसंहार
४
मासूम साँसें
भयावह मंजर
बिछती लाशें
५
मसला गया
निरीह बालपन
व्याकुल मन
६
फूटी रुलाई
पथराई सी आँखें
दरकी धरा
१६ - १७ दिसम्बर कभी ना भूलने वाला दिन है , पहले निर्भया फिर बच्चों की चीखें --- क्या मानवीय संवेदनाएं मरती जा रहीं है। आतंक का यह कोहरा कब छटेगा।दरकी धरा
मौन श्रद्धांजलि