Saturday, October 8, 2011
Wednesday, October 5, 2011
क्षणिकाएं .......
दशहरा
रावण के संग
बुराई- पाप का
अंत किया.
-----------------
दीपावली
जगमग रोशनी संग
अंधकार
दूर दिया .
---------------------
प्यार प्रतीक है
दिल का
विश्वास की
ज्योत से
प्रज्वलित किया .
------------------------
जीवन एक समंदर
आशाओं की
नैया संग
हर कठिनाई को
पार किया .
:- शशि पुरवार
आप को व आपके परिवार को दशहरे की हार्दिक शुभकामनाये .
आपके जीवन में खुशियों की बौछार हो यही हमारी कामना है .
:- शशि पुरवार
Monday, October 3, 2011
और हमारा तुमसे मिलना ............1
जीवन एक सुंदर सपना ,
और हमारा तुमसे मिलना ,
इस कदर अपनों सा चाहना ,
आँखों से यूँ प्यार बरसना ,
अब तो ठंडी आहें भरना,
यूँ हमारा तुमसे बिछड़ना ,
देखना , जी लेंगे हम ,
यादों में तुम्हारी ,
प्यारे मित्र और सखियाँ .
बचपन के दिन भी कितने सुंदर होते है - मित्र , सखियाँ ,सहेलियां ......और हंगामे . पर एक वक़्त ऐसा भी आता है जब सब बिछड़ जाते है हमेशा के लिए , क्यूंकि जिंदगी के आयाम बदल जाते है और ये सारे पल फिर से चाह कर भी नहीं आ पाते . ऐसा सिर्फ लड़कियों के साथ नहीं होता, लड़कों के भी साथ होता है , क्यूंकि जिंदगी एक की नहीं दोनो की बदलती है , और एक नयी दुनियां नजर आती है . वास्तव में बचपन के मासूम दिन बहुत ही खूबसूरत होते है .डायरी के पन्ने
:- शशि पुरवार
Sunday, October 2, 2011
"सच का आइना " .
महंगाई की ,
मार तो देखो
और इन नेताओ की ,
चाल तो देखो .
इन्हें जीवन के कडवे ,
"सच का आइना " .
चाल तो देखो .
कान तो बंद है ,
खुली है आँखे
फिर भी नजर नहीं आ रहा , खुली है आँखे
इन्हें जीवन के कडवे ,
"सच का आइना " .
इसी तरह के झंझावत में ,
गुजर रही है,
कई जिन्दगानिया.
गुजर रही है,
कई जिन्दगानिया.
वस्त्र नहीं है,
तन ढकने को ,
तन ढकने को ,
छत नहीं है ,
सिर छुपाने को, और
अन्न नहीं है खाने को.
फिर भी किसी तरह ,
सड़क किनारे
फिर भी किसी तरह ,
सड़क किनारे
जी रही है ,
ये मासूम जवानिया .
महंगाई का दानव ,
छल रहा ,
ये मासूम जवानिया .
महंगाई का दानव ,
छल रहा ,
काला धन भर रहा,
कोई तो , इनका
संहार करो .
भ्रष्टाचार रुपी इस
रावन का ,
मिल कर
दहन करो .
:- शशि पुरवार
यदि हर इन्सान प्रण ले कि भ्रष्टाचार का दहन करना है , तो ये दानव स्वतः ही दम तोड़ देगा ......!
Saturday, October 1, 2011
नजराना..........!
कागज के यह
चंद टुकड़े (पन्ने ) ,
नजराना समझ कर
रख लेना .
इन पत्थरों की तुलना ,
हीरे से न करना .
कल हम रहें या ना रहें
बेगाना समझ कर ही ,
याद कर लेना .
ये जिंदगी है ,
जब तक बाकी
याद रह जाये ,
तो मिल लेना .
तोहफे में दिए ,
इन पन्नो को ही
प्यार की
भेंट समझना .
:- शशि पुरवार
कई बार हम तोहफे में सिर्फ कार्ड या कुछ लाइन हमारे प्रिये जनों को देते है , जो सबके लिए अनमोल नहीं होती हैं। आज लोग रूपये से ही तोहफे का वजन तोलते है . कागज के टुकड़े , का मतलब यहाँ पन्नो से है. यहाँ कागज को पत्थरों के सामान बेजान मन गया है जिसका कोई मोल नहीं होता , पर हीरे का होता है ....... ज्यादातर लोग तोहफे का मोल देखते है ,देने वाले का दिल और मन नहीं , हर किसी के लिए कार्ड या लेखनी का मोल नहीं होता ,जिसे वह कुछ समय बाद फ़ेंक देते है . आज कितने लोग कार्ड और पत्रों का मोल समझते है,इसी बात को अलग -अलग शब्दों में दर्शाने की कोशिश ......! डायरी के पन्नों से
Friday, September 30, 2011
अनमोल - अनुपम भेटं " बेटियां "
खुदा की दी हुई
एक अनमोल - अनुपम ,
भेटं " बेटियां "
हीरे जैसी मजबूत होती है,
बेटियां
चिड़ियों सी चहकती ,
हिरनों सी मचलती ,अपने प्यारे हाथो से
दुलार कर और
मीठी बातो से , सारे
दुःख - दर्द हर लेती है ,
" बेटियां "
दिल के करीब , पर
उतनी ही
समझदार होती है
बेटियां .........!
घर आंगन में ,
किलकारी भरती
और अपने नवजीवन में ,
नए घर को भी
रौशन करती है,
ये बेटियां .
एक ही नहीं , दो परिवारों का
मान बढाती है ,
ये बेटियां .
नए संसार को, नयी उत्त्पति देकर
नया जीवन संवारती है ,
ये बेटियां .
बेटी - बहन - सखी - पत्नी और माता ,
ये सारे रिश्ते निभाती है
सि र्फ
" बेटियां "
बेटियों से ही तो ,
जीवन की उत्पत्ति होती है ... !
बहुत ही अनमोल है ,
ये बेटियां .
मत गर्भावस्था में ,
मारो इन्हें .जग की जननी है ,
ये बेटियां .. !.
रक्षा करो इनकी ,
सम्मान दो इन्हें .
नहीं तो हमेशा के लिए ,
सिर्फ " यादें "
बन जाएँगी ,
ये ,
" बेटियां "
:- शशि पुरवार
Tuesday, September 27, 2011
कलम जब हो साथ .....!
कविता लिख लेते है .
हम फौलाद तो नहीं ,पर
ज़माने का दर्द भी सह लेते है .
हम सिर्फ खुशियो को ही नहीं ,
गम को भी गले लगा लेते है
ये जिंदगी है क्या , यह
हम जिंदगी से ही पूछ लेते है .
तो ,
तो ,
ये अम्बर है जहाँ तक .
वहाँ तक है राहे,
जीवन की आखिरी साँस तक ,
है , जीने की है चाहते .
Monday, September 26, 2011
शिकवा नहीं किया .....!
खामोश रहे जहर पी कर
तमाशा नही किया .
तमाशा नही किया .
सबकी नजरो में रहे, खुले
ख़त की तरह .
ख़त की तरह .
हमने लोगो से भरम करके ,
दिखावा नही किया .
दिखावा नही किया .
जो भी मिलता है देता इक फरेब ,
एक हम है ,
किसी से भी धोखा नही किया .
जख्म जो दिल को मिला ,
फूल समझा उसको
इन बहारो से कोई ,
तकाजा नही किया.
कह गया कौन,
मेरे दुःख की कहानी .
मैंने तो इस बात का ,
चर्चा नही किया .
:- शशि पुरवार
किसी से भी धोखा नही किया .
जख्म जो दिल को मिला ,
फूल समझा उसको
इन बहारो से कोई ,
तकाजा नही किया.
कह गया कौन,
मेरे दुःख की कहानी .
मैंने तो इस बात का ,
चर्चा नही किया .
:- शशि पुरवार
Tuesday, September 20, 2011
Wednesday, September 14, 2011
हिंदुस्तान की पहचान .....! " हिंदी "
अनेक है बोली ,
अनेक है नाम ,
यही तो है ,
हिंदुस्तान की पहचान .
इस हिंदुस्तान का परचम ,
लहराने के लिए ,कई वीरो ने है अपना ,
सर कलम किया .
गर्व होता है ,
हिन्दुस्तानी होने पर , जहाँ
अनेक भाषा के साथ ,
प्यार ने भी है जन्म लिया .
भाषाओ की जब बात उठे तो,
" हिंदी " हिंदुस्तान की " राष्ट्रभाषा " है
सबसे प्यारी , सबसे न्यारी ,
दिल के एहसास को छूने वाली ,
हिंदी हमारी " मातृभाषा " है .
रस में घुल जाते है शब्द ,
जब हिंदी का है प्रयोग किया.
" जन-गन-मन " और " वन्दे-मातरम " ने ,
फक्र से दुनियां में ,
हमारा नाम रौशन किया .
पर व्यथा है इसकी एक ऐसी , कि
हिंदी राष्ट्र- भाषा होने के बाबत ,
राष्ट्र- कार्य में अंग्रेजी का प्रयोग हुआ .
रस मे घुली इस प्यारी
हिंदी भाषा पे ,
ये कैसा है जुल्म हुआ .
इधर - उधर जिसे भी देखो
अंग्रेजी के सुर लगाता है.......!
हिंदी को तो हाय हमारी , आज
बस , इस इंगरेजी ने ही मार डाला है..
रस की तरह पीकर
इन शब्दो को
हिंदी का प्रयोग करो ,
मातृभाषा है यह हमारी
अब तो इसका सम्मान करो .
" जय हिंद , जय भारत "
:- शशि पुरवार
Saturday, September 10, 2011
मंजिल..........!
रास्ते नए बनाने है .
आकाश के टिमटिमाते तारो में
एक पहचान हमारी बनानी है.
चन्द्रमा की उंचाइयो तक पहुच कर
उस पार हमें तो जाना है .
सूरज की तपन में तप कर
कुंदन हमें बन जाना है .
हर पथरीले रास्तो से गुजरकर ,
एक राह हमें बनानी है .
चन्द्रमा सी शीतलता लेकर ,
राहो को ,
इन शीतल किरणो से सजाना है ....!
अमावस न आये किसी के जीवन में ,
ऐसी ज्योत जलानी है.
दीपो की मालाये बनाकर ,
खुद ही राहो में बिछानी है .
मंजिल कितनी भी हो दूर ,
पास उसके जाना है ..
जिंदगी में इतने उतार-चढ़ाव आते है कि कई बार हिम्मत टूट जाती है . पर उठ कर निरंतर चलते रहने का नाम है जिंदगी . जिदगी के हर मोड़ पर नजर आती है मंजिल , तो वहां तक पहुचने के लिए हर कटीले रास्तो को मुस्कुरा कर पार करने का नाम है जिंदगी ...... !
चन्द्रमा सी शीतलता लेकर ,
राहो को ,
इन शीतल किरणो से सजाना है ....!
अमावस न आये किसी के जीवन में ,
ऐसी ज्योत जलानी है.
दीपो की मालाये बनाकर ,
खुद ही राहो में बिछानी है .
मंजिल कितनी भी हो दूर ,
पास उसके जाना है ..
मंजिल तो हमें पानी है,
मंजिल नयी सजानी है ..........!जिंदगी में इतने उतार-चढ़ाव आते है कि कई बार हिम्मत टूट जाती है . पर उठ कर निरंतर चलते रहने का नाम है जिंदगी . जिदगी के हर मोड़ पर नजर आती है मंजिल , तो वहां तक पहुचने के लिए हर कटीले रास्तो को मुस्कुरा कर पार करने का नाम है जिंदगी ...... !
चन्द्रमा की तरह शीतलता बिखरने और शीतल किरणो से सजाने का नाम है जिंदगी .
शशि का अर्थ है चाँद , तो चाँद की तरह शीतलता प्रदान करने का नाम है जिंदगी . डायरी के पन्नों से बचपन की कलम
:- शशि पुरवार
:- शशि पुरवार
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