Sunday, June 28, 2020

जहान है तो जान है



भोर  हुई मन बावरा, सुन पंछी का गान
गंध पत्र बांटे पवन  धूप रचे प्रतिमान

प्रकृति का सौंदर्य आज अपने पूरे उन्माद पर है. प्रकृति की अनुपम छटा आज पुनः  अपनी मधुरता का एहसास करा रही है.  सुबह फिर सुहानी सी कलरव की मधुर आवाज से करवट बदलती  है तो शाम  की शीतल मधुर फुहार  व हवा में ताजगी का अनोखा अहसास, जीवन में रंग भर रहा है.  पावन गंगा निर्मल स्वच्छ होकर बह रही है, गंगा का पानी साफ हो गया है. धरती का अंग अंग प्रफुल्लित होकर खिल रहा है. गंगा में डॉल्फिन का दिखना, सड़कों पर जानवरों का विचरण करना, प्रकृति का सुखद संदेश है.  भय मुक्त प्राणी  मानव द्वारा तय की गई सीमा से बाहर स्वच्छंद विचरण कर रहे हैं. ओजोन की परत पूर्णतः भर गई है प्रकृति के कितने विहंगम दृश्य हैं,उसका सौंदर्य अकल्पनीय है.   

अभी तक हम प्रकृति में हो रहे विनाश के लिए चिंतित थे. लेकिन प्रकृति ने स्वयं के घावों को भर लिया है. पात- पात डाल- डाल खिल रहे हैं. कोरोना काल का सबसे ज्यादा सकारात्मक प्रभाव प्रकृति पर दिखा है, प्रकृति  पुनः  अपनी प्राकृतिक सौंदर्य की पराकाष्ठा को दिखा रही है.  मैं आज तक उस पावन गंगा नदी को नहीं भूली हूँ. पटना में गंगा नदी के किनारे बचपन की अनेक यादें आज भी ताजा है. घर के पास बचपन में गंगा घाट पर बैठकर उसके पावन जल में डुबकी लगाना व प्रकृति के अनुपम सौंदर्य को निहारकर नयनों में कैद करना तो  वहीं प्रकृति की मार से विस्मित होना. जहां निर्मल पावन गंगा मानव के पाप धोते-धोते कलुषित हो गई थी. इस मानवी भूल व कुप्रथाओं का परिणाम हम सब ने देखा है.

  देखा जाए तो कोरोना काल कुप्रथाओं को खत्म करने के लिए ही आया है. हम प्रकृति का दोहन करें,  किंतु उसके विनाश का कारण नहीं बने.  जहान है तो जान है.  आज हमें प्रकृति से जीने की प्रेरणा लेनी चाहिए

एक वायरस प्रकृतिक साधनो व जीव जंतु का कुछ भी अहित नहीं कर सका, लेकिन मानव के कलुषित मन से जन्मा वायरस आज मानव के लिए ही प्राण खाती बन गया है. कोरोना से डर कर नहीं उसके साथ जीने के तरीके सीखने  होंगे. जीने के अंदाज बदलने होंगे.  प्राचीन संस्कृति की अच्छी बातें पुनः याद कर के नया अध्याय लिखना होगा. जीवन जीने के मायने व तरीके बदलेंगे, कुप्रथाएं समाप्त होंगी और होनी भी चाहिए आखिर कब तक हम कुप्रथाओं के बोझ तले जीवन का पहिया खीचेंगे.  कुरीतियां कब तक अपने फन मारेगी. लाक डाउन ३ जान है, जहान है का मंत्र लेकर आया है

सरकार जीवन की गाड़ी धीरे-धीरे पटरी पर लाने का प्रयास सरकार कर रही है. रेड, ग्रीन, ऑरेंज जोन के साथ मानवीय चहल-पहल शुरू होगी. लेकिन यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि हम पूरी प्रकृति को ग्रीन जोन में परिवर्तित करें. कहतें है ना कि सावधानी हटी, दुर्घटना घटी. ऐसी स्थिति से बचने के लिए कदम कदम पर सावधानी जरूरी है. मैं तो यही कहूंगी कि जहान है जान है,  दोनों एक दूसरे के पर्यायवाची हैं . जान के साथ जहान का भी ख्याल रखें तो जान अपने आप बची रहेगी. जीवन फिर पटरी पर आकर नए अंदाज में अपना नया अध्याय लिखेगा। 

 हम वायरस को खत्म तो नहीं कर सकते लेकिन उसकी चैन को जरूर तोड़ सकते हैं .  उसकी चेन तोड़कर उसे अपने जीवन से समाप्त कर सकते हैं . हमें सावधानी के साथ जीवन का नए अध्याय  की शुरुआत करनी होगी.

 मुंह पर मास्क लगाकर, 2 गज की दूरी बनाकर, अनावश्यक होने वाले समारोह सोशल कार्यक्रम एवं दिखावे से दूर रहना होगा.  भीड़ को इतिहास बनाना होगा. जीवन को सुचारु रूप से चलाना होगा .

आज मजदूर अपने अपने गांव जा रहे हैं.  अगर दूसरे नजरिए से देखा जाए तो यह सुखद है. परिवार पूर्ण होंगे, गांव में भी रोजगार उत्पन्न होंगे.  शहर व गांव दोनों गुलजार होंगे. गांव की सौंधी महक जो सिर्फ  पन्नों में सिमट कर रह गई थी, अब पुनः अपना नया अध्याय लिखेगी 

जीवन आज नया अध्याय लिखने के लिए तैयार है .हमें डरकर नहीं कोरोना को हराकर जीना है . प्रण करें कि स्वयं के साथ प्रकृति की भी रक्षा करेंगे तो भविष्य में कोई भी आपदा अपना कुअध्याय नहीं लिखेंगी. यदि हम कांटे बोलेंगे तो फिर  फल कहां से पाएंगे इसीलिए तो कहती हूँ 

कांटे चुभते पांव में, बोया पेड़ बबूल
मिली ना सुख की छांव फिर केवल चुभते शूल 

 आज कोरोना के सकारात्मक  प्राकृतिक परिणाम को देखते हुए हमें स्वयं को सकारात्मक रखना होगा. अपने आने वाले जीवन के लिए खुद को तैयार करना होगा.  जीवन अपना नया अध्याय लिखने के लिए तैयार है, लॉक डाउन धीरे धीरे ख़त्म हो जायेगा , यह लॉक डाउन  हमें बहुत कुछ सीख देकर जा रहा है. सावधानी रखें, बुजुर्ग व बच्चों का विशेष ख्याल रखें.    कोरोना का लॉक डाउन बनाये . हम पुनः खड़े होंगे, भारत कमजोर नहीं है ना ही यहाँ के लोग कमजोर है.  हर परेशानी को काटना हमें आता है. इन पलों में स्वयं को मजबूत करें जिससे आने वाला समय सुखद पलों का साक्षी बने. अंत में यही कहना चाहूंगी-

आशा की रागिनी जीवन की शमशीर 
सुख की चादर तानकर फिर सोती है पीर 

शशि पुरवार 


Saturday, June 27, 2020

जीवन बचाने के लिए चिंतन जरूरी- कोरोना काल


  जीवन बचाने के लिए चिंतन जरूरी

मनुष्य व प्रकृति को बचाने के लिए चिंतन करना आज जीवन की महत्वपूर्ण वजह बन गई है. अपराधी सिर्फ वह लोग नहीं हैं जो खूंखार कृत्यों को अंजाम देते हैं अपितु प्रकृति के अपराधी आप और हम भी हैं, जो प्रकृति पर किए गए अन्याय में जाने -अनजाने सहभागी बने हैं.

मौसम के बदलते मिजाज प्रकृति के  जीवन चक्र में हस्तक्षेप करने का नतीजा है.   लाक डाउन के बाद भी  कोरोना  के बढ़ते कदम विनाश की तरफ जा सकते हैं, जिसे रोकना बेहद जरूरी है.

मानव ने  चाँद  पर कदम रखकर फतेह हासिल  की  व आज भी अन्य ग्रहों पर जाकर फतेह करने का जज्बा कायम है . लेकिन क्या प्रकृति पर काबू पाया जा सकता है ? प्रकृति जितनी सुंदर है वहीं उसे बंजर बनाने में मानव का बहुत बडा हाथ है. धरती को रासायनिक उर्वरों व संसाधनों द्वारा बंजर व शुष्क बनाकर मानव, आग में घी डालने का काम कर रहा है. क्योंकि प्रकृति जहरीली गैसों से भरा बवंडर भी है. हम मानव निर्मित संसाधनों द्वारा प्रकृति से खिलवाड़ करके अपनी ही सांसों को रोकने का प्रबंध कर रहे हैं. आज हम विश्व स्तर पर प्रकृति से युद्ध लड़ रहें  हैं. जिसमें उसका हथियार एक अदृश्य सूक्ष्म जीव है . जिसने आज  जगत  ,में  कहर मचा रखा है. प्रकृति ने समय-समय पर अपनी ताकत का एहसास मनुष्य जाति को कराया है. लेकिन मानव फिर भी नहीं सँभला . विकास को विनाश में परिवर्तित करने वाली स्मृतियां इतिहास में आज भी सुरक्षित हैं.

हम सबने प्रकृति का विध्वंस स्वरूप भी देखा है. कटते वन, पर्यावरण प्रदूषण, रासायनिक संसाधनों का दुरुपयोग, प्लासटिक, कचरा ...इत्यादि के कारण बदलते मानसून , भूकंप, बादल फटना, महामारी, सूख, प्रलय ... आदि प्रकृति के जूवन चक्र में   हस्तक्षेप करने का दुष्परिणाम है. पहले भी कई महामारी आई, धरा का संतुलन बिगडा, उसके बाद जीवन को पुन: पटरी पर लाने के लिए बहुत जद्दोजहद करनी पडी है. हम सबने  सुना  है कि जब जब धरती पर बोझ बढता है वह विस्फोट करती है. प्रकृति अपने अस्तित्व को बचाने के लिए मूक वार करके अपना विरोध जाहिर कर देती है . लेकिन दंभ में डूबा यह मानव मन कहाँ कुछ समझना चाहता है?

मानव की मृगतृष्णा,अंहकार की पिपासा के कारण ही संपूर्ण विश्व पर संकट मंडरा रहा है . कुछ देशों द्वारा स्वयं को शक्तिशाली घोषित करने के लिए किसी भी हद तक जाना शर्मनाक कृत्य है. इन विषम परिस्थिति में सीमा पर गोलीबारी होना , सीजफायर तोड़ना, किसी आतंकवादी होने से कम नहीं है .यह उनके कुंसगत मन का घोतक है. क्या एेसे तत्व मानवता के प्रतीक हैं ? चीन द्वारा जैविक हथियार बनाना उसी की दूषित करनी का फल है. यह कैसी लालसा है जिसमें उसने करोडो जीवन दांव पर लगा दिये. उसकी लोभ पिपासा महामारी बनकर जीवन को लील रही है. जिसका खामियाजा संपूर्ण विश्व भुगत रहा है. मानव जाति का अस्तित्व खतरेें में है .स्वयं को शक्तिशाली घोषित करने के लिए विश्व की शक्तियां किसी भी स्तर तक गिर सकती है , जहां से सिर्फ पतन ही होगा . लेकिन अभी इन बातों से इतर जीवन को बचाना महत्वपूर्ण है.

कोविड-19 के कहर से संपूर्ण विश्व ग्रस्त है . वैश्विक संकट गहराता जा रहा है . तेजी से बढ़ता संक्रमण चिंता का विषय है, लेकिन साथ में कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा अमानवीय व्यवहार करना, हमारी प्राचीन संस्कृति व सभ्यता पर प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं.

यह कैसी प्रगति है क्या हमारे कदम आगे बढ़े हैं? या हमें दो कदम पीछे जाकर चिंतन करने की आवश्यकता है? क्या मानवीय संवेदनाअों की मृत्यु हो गई है? या संवेदनाएं ठहरने लगी है. हिंसा का यह दौर किस पृष्ठभूमि से जन्मा है? किताबी ज्ञान, साहित्य, समाज व मनन चिंतन के अतिरिक्त हमें अपनी प्राचीन सभ्यता और संस्कृति के गलियारों में घूमने की आवश्यकता है. पीडा से ग्रस्त जीवन घरों में कैद है, कहीं वह विकृति को जन्म दे रहा है तो कहीं शारीरिक व मानसिक हिंसा द्वारा जीवन के मूल्यों का हृास हो रहा है.

संकट के इस दौर में असामाजिक तत्वों द्वारा हिंसा के समाचार मानवीय पतन का परिचायक है. सेवा कर्मचारी, डाक्टर, कुछ लोग, कई संस्थाएं अपनी जान जोखिम में डालकर निस्वार्थ भाव से सेवा कर रहीं हैं . इनके साथ दुर्व्यवहार करने की खबरें मन को आहत करती है. कोविड-19 को हिंसा द्वारा नहीं संयम द्वारा ही जीता जा सकता है आज इस संयम की संपूर्ण विश्व में आवश्यकता है.

जीवन महत्वपूर्ण है, जान है तो जहान है. मानव ही मानव को बचाने का माध्यम बना है . एक दूसरे की मदद करना, सोशल डिस्टसिंग एवं स्वयं के संक्रमित होने की सही जानकारी सरकार को प्रदान करना जिससे एक नहीं हजारों - लाखों जीवन को बचाया जा सकता है. जिसमें सामर्थ है वह मदद करें जिससे गरीबों की परेशानियों का हल भी निकल सकता है.कोरोना की चैन को तोड़ना आवश्यक है वरना यह नरसंहार विश्व में तबाही का बहुत बड़ा कारण बनेगा.

राज्य सरकारी धीरे-धीरे लॉक डाउन बढ़ा रही है . जीवन को गति देने के लिए नियमों का पालन करना बेहद जरूरी है किंतु अभी मैं बहुत से लोग नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं, ऐसा करके वह स्वयं की जिंदगी को भी खतरे में डाल रहे हैं. शांत रहें, नियमों का पालन करते हुए काम करें . असंयमित, अस्त व्यस्त हुए जीवन को आज संयम, चिंतन व अनुशासन द्वारा ही बचाया जा सकता हैं. जिससे हम सभी को कोरोना के भय से निजात मिले.

शशि पुरवार 




Wednesday, June 17, 2020

बाल कवितायेँ




1
जीवन में कुछ बनना है ,तो
लिखना पढना जरुरी है
रोज नियम से अभ्यास करो
मन लगाकर ही पढना
गर्मी की छुट्टी आये ,तब
खूब धमाल करना
न मेहनत से जी चुराओ
ज्ञान लेना भी जरुरी है .


झूठ कभी मत बोलना , तुम
सच्चाई का थामो हाथ
नेक राहों पर चलने से ,बड़ो
का मिलता है ,आशीर्वाद 
अच्छी अच्छी बाते सीखो
अच्छी संगति  जरुरी है .
वृक्षों को  तुम मत काटना
हरियाली भी बचानी है
पेड़ों से ही हमको मिलता
अन्न ,दाना -पानी है
प्रदूषण को मिलकर मिटाओ
पेड  लगाना  भी जरुरी है

देश के तुम हो भावी प्रणेता
राहों में आगे बढ़ना
मुश्किलें कितनी भी आयें
हिम्मत से डटे रहना
भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाना
चैनो -अमन भी जरुरी है
-------- शशि पुरवार
२८/ ९/ १३

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१ 
चंदा मामा --
चंदा  मामा
तुम जल्दी से आ जाना
हाँ  प्यारे प्यारे सपने
मेरी इन आँखों में लाना
मामा  तुम जब आते हो
मन को  बहुत लुभाते हो
दीदी - भैया मुझे कहे  
सब मुझे , यही कहते है
हमें  कितना सताते हो।

चंदा मामा 
तुम जल्दी से आ जाना। .......... !

मामा जब तुम आते हो 
तो ,माँ भी आ जाती है 
प्यारी प्यारी कहानियाँ 
वह रात में सुनाती  है  


चंदा मामा ,
तुम जल्दी से आ जाना  ………।  

मामा जब तुम आते हो 
माँ लोरी भी सुनाती है 
खूब खेलती औ  हँसती
फिर धीरे से कहती है  
"लल्ला , अब तुम सो जाना "

चंदा मामा , 
तुम  जल्दी  से यहाँ आना 
फिर वापिस मत जाना।  
 --- शशि पुरवार

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२  नाना - नानी

नाना - नानी कितने प्यारे
हमें खूब लाड लड़ाते है
जब भी हमसे मिलने आते
वह खेल खिलौने लाते है

हमें  रोज शाम बगीचे में 
टहलाने  भी ले  जाते है
रोज हमारे साथ खेलते
जमकर  बातें करते है
मम्मी -पापा की डाँट से
हमें चुपके से बचाते है


लड्डू पेड़े और  रसगुल्ले
गब्ब्बारे भी दिलावाते है
हमसे गलती हो जाने पर
बड़े प्यार से समझाते है


नयी नयी बातें सिखलाते
कथा -कहानियाँ सुनाते है
नाना - नानी सबसे प्यारे
हमें खूब लाड लड़ाते है।

--- शशि पुरवार
१३  / 12 / 13 



सुबह सुबह -
कुकड़ू कु  कुकड़ू  कू

सुबह सुबह मुर्गा बोला

ढलती रात
, निकलता दिन
 मेरामन  भी है  डोला
जब भोर को ठंडी हवा
पत्तों से टकराती है
चिड़िया भी दाना चुगने
झट से नीचे आती है

सूरज को निकलते देख
कौवा काँव काँव बोला

सुबह सुहानी धूप खिली
  तो पंछी भी इतराये
बागों में कलियाँ झूमे
फिर
,भँवरे भी  मँडराये  

शुरू हुई चहल-पहल , फिर
तोता राम राम बोला।

 -- शशि पुरवार
१३/१२/१३

------------

४ 

चींटी रानी
चींटी रानी बहुत सयानी
नहीं श्रम से घबराती है
अपने कद से ऊँचा भोजन
बहुत जतन  से ले जाती  है


वह मिलजुल के काम करे
अनुसाशन सिखलाती  है
चीटियों के संग उनकी
ताकत भी  दिखलाती है
नहीं रूकती नहीं हारती 
सिर्फ कर्म करती जाती है
फल की चिंता छोड़कर ,बस
मंजिल के पथ पर जाती है


 -- शशि पुरवार

Monday, June 15, 2020

सपनों में रंग भरे


सपनों में रंग भरे
सपनो में रंग भरे
नैना सजल हुये
जितने भी जतन करे।

पहन रहे हैं गहना
हार बिंदी कंगन
फूल खिले मन, अंगना

छेड़ रही है साली
जीजा घर आये
खुशियों की दीवाली

फिर सजनी ने माँगा
सोने का गहना
साजन बोले ताँगा

संध्या में दीप जलें
खुशियों के पाहून
घर - अँगना ज्योति खिले

यह चंदा मेरा है
मन को अति भाये
तन, रूप चितेरा है

सपनो में रंग भरो
नैना सजल हुये
जितने भी जतन करो।

पहन रहे हैं गहना
हार बिंदी कंगन
फूल खिले मन, अंगना


छेड़ रही है साली
जीजा घर आये
खुशियों की दीवाली
१० 
फिर सजनी ने माँगा
सोने का गहना
साजन बोले ताँगा
११
संध्या में दीप जलें
खुशियों के पाहून
घर - अँगना ज्योति खिले
१२
यह चंदा मेरा है
मन को अति भाये
तन, रूप चितेरा है
१३
बच्चों की शैतानी
माँ बचपन जीती
नयनों झरता पानी

१४
माँ ममता की धारा
पावन ज्योति जले
मिट जाए अँधियारा

१५
मन चंदन सा महके
ममता का आँचल
भोला बचपन चहके
 शशि पुरवार 


Tuesday, June 9, 2020

बेटियां अनमोल हैं

 
   
   ब्रम्हा जी की  स्रष्टि की सबसे अनुपम कृति है बेटियाँ .  ब्रम्हा जी ने संसार की उत्पत्ति के समय देवी रुपी कन्या की कृति बहुत मनोयोग से बनायीं और उसे सर्वगुण संपन्न   का वरदान देकर पृथ्वी पर  अवतरित किया।  नर और नारी दोनों ही संसार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है परन्तु कन्या  इस संसार को नवजीवन  प्रदान करती  है , जिस कार्य   को पुरुष अकेला नहीं कर सकता वह कार्य    नारी  द्वारा ही संभव है .. एक बेटी के रूप में जन्मी परी को उस  देवी के समान माना गया है जो सिर्फ खुशियाँ ही बाँटती  है , परन्तु आज उस देवी रुपी कन्या का अस्तित्व ही खतरे में है , आज मानव रुपी दानव उन्हें जड़ से उखाड़ फेकने  पर आमादा है . 

    इतिहास गवाह है कि  बेटियों ने भी बेटो की तरह  अपने  परिवार ,समाज और वतन में  अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।  घर और बाहर की दुनिया में वे पूरी निष्ठां के साथ अपने कार्य को अंजाम देती हुई ही नजर  आतीं हैं .अनगिनत नाम है जिन्होंने देश और समाज में  द्वारा सुनहरे अक्षरों में अपना नाम अंकित किया . रानी लक्ष्मी बाई . झलकारी बाई , अहिल्या बाई  होलकर ,सावित्री फुले , इंदिरा गाँधी , कल्पना चावला  ........वगैरह  अनेक नाम ऐसे है जो वतन का नाम रोशन कर गए . 

                       आज भी हर क्षेत्र में बेटियों  अएक विशिष्ट स्थान बनाया है ,चाहे वह खेल हो . राजीनीति , व्यापार बिजनिस ,चित्रपटल , पत्रकारिता ,या देश का सर्वोच्च शिखर  हर जगह बेटियों ने अपने कार्य से पताका फहरा रखा है .परन्तु  आज भी दोहरा मापदंड समाज में कायम है  और यह पाखंडी समाज अपनी ही जननी को जड़ से उखाड़  फेकने पर आमादा है ,  बेटी को पराई कहने वालो ने ह्रदय से बेटी को कभी नहीं स्वीकारा . बेटी का शोषण तो परिवार से ही शुरू हो जाता है , शादी के पहले भी बेटी पराई  अमानत ही मानी जाती  है और शादी के बाद भी पराई ही कहलाती है .
                   वक़्त  बदल गया है परन्तु  फिर भी स्थिति  बेहद चिंताजनक है क्यूंकि  आज बेटियों की  संख्या में कमी पाई गयी है  . बेटियों की  हत्या कोख  में ही कर दी जाती है . यह  गलत परंपरा सिर्फ अशिक्षित , निम्न ,और मध्यमवर्गी वर्ग ही नहीं अपितु शिक्षित व उच्चवर्गीय वर्ग भी उसी  गलत परंपरा की अर्थी को कन्धा दे रहा है .

          इस घ्रणित  कार्य का खुलासा तब हुआ जब  भारत की जनगणना में आंकड़े सामने आये देश के सम्रद्ध राज्यों  में यह प्रवृति  अधिक देखने को मिली . देश की जनगणना के अनुसार 2001 एक में 1000 बालको में बेटियों की संख्या पंजाब में 789 , हरियाणा में 819 और गुजरात में 883 पाई गयी थी . जो चौकाने वाले आंकड़े थे , 2012 तक कहीं कहीं स्थिति में थोडा सा सुधार  हुआ , परन्तु आज भी संकट कायम है बेटियों पर .हम अक्सर समाचार पत्रों में पढ़ते रहते है भ्रूण हत्या के मामले के बारे में  .     

             मानव यह क्यूँ भूल जाता है कि  उसे जन्म देने वाली भी एक स्त्री ही होती है जिस कोख से वे जन्म लेते है आज उसी के अस्तित्व को नकार रहे है .परन्तु यह खेद जनक है कि  जिस कोख से देव जन्मे आज  उसे ही कोख में मार दिया जाता है  .  सिर्फ बेटो को जन्म देने से कुछ नहीं होगा ,नहीं तो एक वक़्त ऐसा आएगा की बेटियों की कम जन्मदर  , भविष्य में एक नया ही चित्रपटल बनाएगी , आज शादी के लिए लोग लड़का ढूंढते है परन्तु  वह वक़्त दूर नहीं होगा  ,जब  चिराग लेकर बेटियाँ ढूंढेंगे .हर तरफ सिर्फ बेटे ही बेटे होंगे तो सोचिये कैसा स्वरुप होगा समाज का ...........!

         सिर्फ साउथ में ही हमें स्त्रिया  ज्यादा देखने को मिलती है और वहां संपत्ति की वारिस सिर्फ लडकियां ही होती है , इसीलिए वहां बेटियों का ज्यादा महत्व ज  है . पश्चिमी सभ्यता में नारी और पुरुष को समान  अधिकार प्राप्त है .नारी को पूरा मान सम्मान प्रदान किया जाता है .

  बेटियाँ बहुत अनमोल है उनकी रक्षा कीजिये, नहीं तो हमेशा के लिए सिर्फ यादों में रह जाएँगी बेटियाँ . जहाँ कहीं भी यह घ्रणित  कार्य होते हुए देखें तो कानून का सहारा जरूर लीजिये और जिंदगी की रक्षा कीजिये .
    कानूनी कानूनी अधिकार    क़ानून में नारी अधिकारों के लिए कुछ नियम बने है जिन्हें हर नारी को जानना जरूरी है .
  - अपने अधिकारों का उपयोग करना चाहिए , अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना जरूरी है यदि आप अन्याय सहते है तो आप भी उतने ही गुनाहगार होते है .
---  यदि कोई भी परिवार में नारी पर जुल्म करता है तो घरेलु हिंसा के तहत सजा का प्रावधान है  .
 घरेलु  हिंसा के तहत  माता -पिता और ससुराल वाले  दोनों को ही क़ानून में समान माना गया है .
---- खानदानी सम्पति में भी नारी का अधिकार सामान रूप से है .
--- अत्याचार करने  या घर से प्रताड़ित किये जाने पर भी सजा का प्रावधान है .
------ मानसिक एवं शारीरिक दोनों रूप से प्रताड़ित किये जाने पर भी संविधान में सजा का प्रावधान है .
-------- विधवा , अविवाहित , तलाकशुदा के लिए अभिरक्षा व भरणपोषण का अधिकार है .
--- छेड़छाड़ के विरुद्ध भी सजा है और जुर्माना भी .
----दहेजप्रथा के खिलाफ भी सजा का प्रावधान है
--- कानून में बहुत से नियम ऐसे है जो नारी की हर छोटी छोटी समस्याओं को दूर कर , उसका अधिकार उसे दिलाते है , तो नारी को अपने सभी मौलिक अधिकारों के मामले में सजग रहना चाहिए .
---हिंसा की  शिकार हुई  नारी अपने साथ हुए अन्याय के  लिए कानून की मदद ले सकती है .
----  आज क़ानून में  भ्रूण हत्या के लिए भी  सजा का प्रावधान है .
------ लिंग भेद करने पर डाक्टर का सर्टिफिकेट रद्द किया जा  सकता  है
-------  लिंग भेद कानूनन अपराध  है .
---- यदि कोई स्त्री गर्भ धारण के बाद अपने बच्चे को किसी भी प्रकार से हानि पहुचाती है तो वह भी गुनाहगार है और सजा की हकदार .
----- किसी भी प्रकार की बेटियों पर यदि जुल्म होता है तो सभी को सजा दी जाती है .
----- आनैतिक , और अस्मिता से खिलवाड़ करने वालो के लिए कानून में जुर्माना और सजा का प्रावधान है
     आजकल  फास्ट ट्रेक , फॅमिली , क्रिमिनल कोर्ट  सभी जगह इन मामलो को जल्दी से सुलझाया जाता है .लोक अदालत में भी कई मामले जल्दी से निपटाए जाते है  तो इसका सहारा जरूर लेना चाहिए , यह अधिकार है नारी का .

              नारी एवं पुरुष दोनों ही सृष्टि के अहम् किरदार है , दोनों  एक दूसरे के पूरक है . दोनों को आपसी तालमेल और समझदारी की आवश्यकता है , जो सारी समस्याओं को जड़ से दूर कर देगा   .
कोर्ट में इन मामलो  की अलग से सुनवाई होती है . बेटियों के प्रति नजरिये को बदलना बहुत आवश्यक है .
 ----------- शशि  पुरवार


Wednesday, May 20, 2020

जहाँ आदमी अपने को रोज बेचता है


रिक्शे पर बैठकर हम मोबाइल पर बतियातें रहतें हैं और बेचारा रिक्शे वाला हाँफता हुआ पसीना पोंछता हुआ सवारियों को खीचता रहता है।  हम अकड़ते हुये निर्लज्ज बैठे रहतें हैं।
 मई महीने हम मजदूर दिवस मनाते थे और इसी महीने हम सबने मजदूरों की दुर्दशा होते हुए देखी है लाक डाउन में मजदूरों की बेबसी सैलाब बनकर उमड़ी है। भूख लाचारी और तन की थकान दुर्घटना में जीवन लील रही हैपाँव में छाले पड़े हैं बेबसी तड़प रही है और आँखें सूख रही है। हाल ही में मजदूरों की दर्दनाक मौत के हादसे कई प्रश्न उठा रहें है 
  आह पर भले ही वाह भारी पड़ गया और मौत ने,  न केवल जिंदगी को दिन – दहाड़े,  हजारो – लाखों लोगों के बीच शिकस्त दे दी। क्यों हथेली पर सरसों उगाने भर की भी जमीन उसे मयस्सर नहीं होती। खेतिहरमजदूर की तरह खेतों में खटता रहता है।  यही नहीं गगनचुम्बी अट्टालिकाओं को बनाने में जिंदगी खपा देने के बाद भी उसे अपने छोटे से परिवार के लिए छत तक नसीब नहीं होती। 
घर से घाट तक और घाट से लेकर लादी धोने वाले सीधे –साधे पशु “ गर्दन “  के समान वह भी गोदाम से दुकान और दुकान से गोदाम तक माल ढोता – ढोता थक कर चूर हो जाता है।  फिर भी कदम – कदम पर उसका खाना – पीनादर किनार  कर  खिड़की ही नसीब होती   है .
यह महामारी और लॉक डाउन मजदूरों के लिए आफत लेकर आया हैहर तरफ अफरातफरी मची हुई है खाने के लिए भोजन नहीं और रहने के लिए  घर नहीं है सड़क पर बेहाल  मजदूर परिवार,  अपन छोट छोट बच्चों के साथ थके हुए कदमों से गांव लौट रहे हैं मीलो लंबा रास्तासुनसान सडकमंजिल दूर हैउस पर हो रही दुर्घटनाएं मौत का पैगाम लिख रही हैलाखों की संख्या में मजदूरों का पलायन  उनकी दुर्दशा हमारे समाज की  पोल खोल रहा है कहींकहीं  ऐसी हालत में  मकान मालिक  किराया भी मांग रहे हैं जिसके पास तन ढकने के लिए कपड़ा नहीं  पेट की आग बुझाने के लिए दो निवाला नहीं  हैवह वापस नहीं लौटेगा तो और क्या करेगा ?
   मजदूरों का अगर वर्गीकरण किया जाये तो कलम थक जाएगी। ईंट – भट्टा मजदूर फेफड़े गंवाकर रोजी कमाने में लगे हैँ।  लाखों चूड़ी मजदूरलोहा पीट – पीट कर उसे कलात्मक रूप देने वालेगाड़ियाँ – लोहार  से लेकर जिंदगी चलाने के लिए हम कदम – कदम पर मजदूरों का इस्तेमाल करतें हैं।  लेकिन उन्हें पेट भर खाना नसीब हो इसके लिए कभी नहीं सोचतें हैं और सरकारी योजनायें बनती भी है तो पंजीकरण के नाम परदफ्तर में ही कैद हो जातीं है।  
      नगर के हर बड़े चौराहे पर रोज मजदूरों का हुजूम लगता है। जहाँ आदमी रोज अपने को बेचता है। हमें तनिक भी लज्जा नहीं आतीजब आदमी– आदमी का वजन उठाता है।  रिक्शे पर बैठकर हम मोबाइल पर बतियातें रहतें हैं और बेचारा रिक्शे वाला हाँफता हुआ पसीना पोंछता हुआ सवारियों को खीचता रहता है।  हम अकड़ते हुये निर्लज्ज बैठे रहतें हैं। हम कब इस न्याय – अन्याय को परखने वाले तराजू के पसंगा बनकर अपनी लोक लुभावन भूमिका निभाते रहेंगे 
समाज और देश के निर्माण में मजदूरों का महत्वपूर्ण योगदान होता है  समाजदेश व संस्था उद्योग में काम करने वाले मजदूर श्रमिक की भूमिका महत्वपूर्ण होती है लेकिन अब समय बदल गया हैइस महामारी ने हमें आत्मनिर्भरता का पाठ पढाया है.
हमारी हर कोशिश हमारे साथ – साथ समाज को भी उन्नत करेगी लाक डाउन धीरे धीरे हटेगाहमें जीवन को फिर से पटरी पर लाना है लेकिन जीवन को सुरक्षित भी रखना होगा
कोरोना संकट के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज का ऐलान किया है.  महामारी के संकट में सूक्ष्मलघुमध्यम उद्योग,  श्रमिक मजदूरव किसान सभी आत्मनिर्भर बनेंगे और यह पैकेज उन सभी के लिए लाभदायक होगायह निश्चित तौर पर  महामारी से जूझ रहे इस आर्थिक संकट में  महत्वपूर्ण भूमिका  अदा करेगा .  सूक्ष्म लघु उद्योग मध्यम उद्योग श्रमिक मजदूर किसान को आत्मनिर्भर बनाने में लाभदायक सिद्ध होगा .  इस योगदान का सबसे बड़ा लाभदेश की अर्थव्यवस्था को भी संल मिलेगा.  लेकिन मन में संशय उपज रहा है  कि क्या इस योजना का पूर्ण लाभ  उन हाथों तक पहुंचेगा?
आत्मनिर्भर भारत का मंत्र हमें याद रखना होगा आत्मनिर्भर भारत का सीधा सीधा अर्थ है कि विदेशी तजो और देशी अपनाअोआज संकट की इस घड़ी में हम लोकल चीजें के भरोसे ही लाक डाउन काट रहे हैलोगों का रुझान लोकल के प्रति हुआ है और होना भी चाहिएआखिर कब तक हम ब्रांड के पीछे भागेंगेभारत में कारीगरों की कमी नहीं है जो उत्तम सामान कम लागत में तैयार करते हैंहमारे लोकल का सामान भी ब्रांडेड बन सकत हैं मैंने कई शहरों व गांवों में प्रवास किया है वहां क लोकल वस्तुओं को भी आजमाया है और उनकी क्वालिटी और गुणवत्ता में कोई कमी नहीं थी.
हमें आत्मनिर्भर बनना होगाइससे रोजगार के साधन भी उपलब्ध होंगेबेरोजगारी कम होगीसंसाधन उपलब्ध होनें तो रोजगार के लिए विदेश जाने की जरूरत महसूस नहीं होगी देश में रोजगार के साधन उत्पन्न होंगे और अर्थव्यवस्था को बहुत बड़ा संबल मिलेगाहमारी हर कोशिश हमारे साथ – साथ समाज को भी उन्नत करेगी लाक डाउन धीरे धीरे हटेगाहमें जीवन को फिर से पटरी पर लाना है लेकिन जीवन को सुरक्षित भी रखना होगासकारात्मक पहल द्वारा ही जीवन को पटरी पर लाने में हम सभी सफल होगें
शशि पुरवार 

Monday, April 27, 2020

मत हो हवा उदास


धीरे धीरे धुल गया ,
मन मंदिर का राग
इक चिंगारी प्रेम की ,
सुलगी ठंडी आग


खोलो मन की खिड़कियाँ,
उसमें भरो उजास
 धूप 
ठुमकती सी लिखे,
मत हो हवा उदास


नैनों की इस झील में,
खूब सहेजे ख्वाब
दूर हो गई मछलियाँ,
सूख रहा तालाब


जाति धर्म को भूल जा,
मत कर यहाँ विमर्श
मानवता का धर्म है ,
अपना भारत वर्ष


शहरों से जाने लगे,
बेबस बोझिल पॉंव
पगडण्डी चुभती रही ,
लौटे अपने गॉंव
--
शशि पुरवार

Monday, April 20, 2020

बदला वक़्त परिवेश - कोरोना काल के दोहे

कोरोना ऐसा बड़ा , संकट में है देश 
लोग घरों में बंद है , बदला वक़्त परिवेश

 प्रकृति बड़ी बलवान है, सूक्ष्म जैविकी हथियार
मानव के हर दंभ पर , करती तेज प्रहार 

 आज हवा में ताजगी,  एक नया अहसास 
पंछी को आकाश है, इंसा को गृह वास

जीने को क्या चाहिए, दो वक़्त का आहार 
सुख की रोटी दाल में, है जीवन का सार

 इक जैविक हथियार ने छीना सबका चैन 
आँखों से नींदें उडी , भय से कटती रैन 

 चोर नज़र से देखते , आज पड़ोसी मित्र 
दीवारों में कैद हैं , हँसी  ठहाके चित्र

 चलता फिरता तन लगे, कोरोना का धाम 
 गर सर्दी खाँसी हुई,  मुफ़्त हुए बदनाम

 कोरोना का भय  बढ़ा , छींके लगती  तोप 
बस इतना करना जरा , मलो हाथ पर सोप 

शशि पुरवार 

Thursday, April 16, 2020

'जोगिनी गंध' -



'जोगिनी गंध' - त्रिपदिक हाइकु प्रवहित निर्बंध  
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
 









  हिंदी की उदीयमान रचनाकार शशि पुरवार के  हाइकु संकलन ''जोगिनी गंध'' को पढ़ने से पूर्व यह जान लें कि शशि जी जापानी ''उच्चार'' को हिंदी में ''वर्ण'' में बदल लेनेवाली पद्धति से हाइकु रचती हैं। शशि जी सुशिक्षित, संभ्रांत, शालीन व्यक्तित्व की धनी होने के साथ-साथ शब्द संपदा और अभिव्यक्ति सामर्थ्य की धनी हैं। वे जीवन और सृष्टि को खुली आँखों से देखते हुए चैतन्य मस्तिष्क से दृश्य का विवेचन कर हिंदी के त्रिपदिक वर्णिक छंद हाइकु की रचना ५-७-५ वर्ण संख्या को आधार बनाकर करती हैं। स्वलिखित भूमिका में शशि जी ने हाइकु की उद्भव और रचना प्रक्रिया पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कुछ हाइकुकारों के हाइकुओं का उल्लेख किया है। संभवत: अनावश्यक विस्तार भय से उन्होंने लगभग ३ दशक पूर्व से हिंदी में मेरे द्वारा रचित हाइकु मुक्तकों, ग़ज़लों, गीतों, समीक्षाओं आदि का उल्लेख नहीं किया तथापि स्वलिखित हाइकु गीत,  हाइकु चोका गीत प्रस्तुत कर इस परंपरा को आगे बढ़ाया है। 

'जोगिनी गंध' में शशि जी के हाइकु जोगनी गंध (प्रेम, मन, पीर, यादें/दीवानापन), प्रकृति (शीत, ग्रीष्म व फूल पत्ती-लताएं, पलाश, हरसिंगार, चंपा, सावन, रात-झील में चंदा, पहाड़, धूप सोनल, ठूँठ, जल, गंगा, पंछी, हाइगा), जीवन के रंग (जीवन यात्रा, तीखी हवाएँ, बंसती रंग, दही हांडी, गाँव, नंन्हे कदम-अल्डहपन, लिख्खे तूफान, कलम संगिनी) तथा विविधा (हिंद की रोली, अनेकता में एकता,  ताज,  दीपावली, राखी, नूतन वर्ष, हाइकु गीत,  हाइकु चोका गीत, नेह की पाती, देव नहीं मैं, गौधुली बेला में, यह जीवन, रिश्तों में खास, तांका, सदोका, डाॅ. भगवती शरण अग्रवाल के मराठी में, मेरे द्वारा अनुवादित कुछ हाइकु) शीर्षकों-उपशीर्षकों में वर्गीकृत हैं। शशि जी ने प्रेम को अपने हाइकू में  अभिनव दृष्टि से अंकित किया है - सूखें हैं फूल / किताबों में मिलती / प्रेम की धूल।

प्रेम की सुकोमल प्रतीति की अनुभूति और अभिव्यक्ति करने में शशि जी के नारी मन ने अनेक मनोरम शब्द-चित्र उकेरे हैं। एक झलक देखें - 

छेड़ो न तार / रचती सरगम / हिय-झंकार।



तन्हा पलों में / चुपके से छेडती / यादें तुम्हारी।

शशि जी  हाइकु रचना में केवल प्रकृति दृश्यों को नहीं उकेरतीं। वे कल्पना, आशा-आकांक्षा, सुख-दुःख आदि मानवीय अनुभूतियों को हाइकु का विषय बना पाती हैं-

सुख की धारा / रेत के पन्नों पर / पवन लिखे।

दुःख की धारा / अंकित पन्नों पर / जल में डूबी।

बनूँ कभी मैं / बहती जल धारा / प्यास बुझाऊँ।

हाइकु के शैल्पिक पक्ष की चर्चा करें तो शशि जी ने हिंदी छंदों की पदान्तता को हाइकू से जोड़ा है। कही पहली-दूसरी पंक्ति में तुक साम्य  है, कहीं पहली तीसरी पंक्ति में, कहीं दूसरी-तीसरी पंक्ति में, कहीं तीनों पंक्तियों में  किन्तु कहीं -कहीं तुकांत मुक्त हाइकु भी हैं- 

प्यासा है मन / साहित्य की अगन / ज्ञान पिपासा।

दिल दीवाना / छलकाते नयन / प्रेम पैमाना।

अँधेरी रात / मन की उतरन / अकेलापन।

अनुगमन / कसैला हुआ मन / आत्मचिंतन।

तेरे आने की / हवा ने दी दस्तक / धडके दिल।

शशि जी के ये हाइकु  प्रकृति और पर्यावरण से अभिन्न हैं। स्वाभाविक है कि इनमें प्रकृति के सौंदर्य का चित्रण हो। 

स्नेह-बंधन / फूलों से महकते / हर सिंगार। 

हरसिंगार / महकता जीवन / मन प्रसन्न।

पत्रों पे बैठे / बारिश के मनके / जड़ा है हीरा।

ले अंगडाई / बीजों से निकलते / नव पत्रक।

काली घटाएँ / सूरज को छुपाए / आँख मिचोली।

प्रकृति के विविध रूपों का हाइकुकरण करते समय बिम्बों, प्रतीकों और मानवीकरण करते समय कृत्रिमता अथवा पुनरावृत्ति का खतरा होता है।  शशि के हाइकु इस दोष से मुक्त ही नहीं विविधता और मौलिकता से संपन्न भी हैं। 

सिंधु गरजे / विध्वंश के निशान / अस्तित्व मिटा।

नभ ने भेजी / वसुंधरा को पाती / बूँदों ने बाँची।

राग-बैरागी / सुर गाए मल्हार / छिड़ी झंकार ।

धरा-अम्बर / तारों की चूनर का / सौम्य शृंगार।

हाइकू के माध्यम से नवाशा और नवाचार को स्पर्श  करने का सफल प्रयास करती हैं शशि- 

हौसले साथ / जब बढे़ कदम / छू लो आसमां ।

हरे भरे से / रचे नया संसार / धरा का स्नेह।

संग खेलते / ऊँचे होते पादप / छू ले आंसमा।

शशि का शब्द भंडार समृद्ध है। तत्सम-तद्भव शव्दों के साथ वे आवश्यक  अंग्रेजी या अरबी शब्दों का सटीक प्रयोग करती हैं -

रूई सा फाहा / नजरो में समाया / उतरी मिस्ट।

जमता खून / हुई कठिन साँसे / फर्ज-इन्तिहाँ।

हिम-से जमे / हृदय के ज़ज़्बात / किससे कहूँ?

करूँ रास का काव्य से गहरा नाता है। कविता का उत्स मिथुनरत क्रौंच युगल के नर का बहेलिया द्वारा वध करने पर क्रौंची के चीत्कार को सुनकर आदिकवि वाल्मीकि के मुख से नि:सृत श्लोक से हुआ है। शशि के हाइकु करुण रस से भी संपृक्त हैं। 

उड़ता पंछी / पिंजरे में जकड़ा / है परकटा। 

दरख्तों को / जड़ से उखडती / तूफानी हवा।

शशि परंपरा का अनुकरण ही  करतीं, आवश्यकता होने पर उसे तोड़ती भी हैं।  उन्होंने  ६-७-५  वर्ण लेकर भी हाइकु लिखा है -

शूलों-सी चुभन / दर्द भरा जीवन / मौन रुदन।

हाइकु के लघु कलेवर में मनोभावों को शब्दित कर पाना आसान नहीं होता। शशि ने इस चुनौती को स्वीकार कर मनोभाव केंद्रित हाइकु रचे हैं -

अवचेतन / लोलुपता की प्यास / ठूँठ बदन।

सूखी पत्तियाँ / बेजार होता तन / अंतिम क्षण।

वर्तमान समय का  संकट सबसे बड़ा पर्यावरण का असंतुलन है। शशि का हाइकुकार इस संकट से जूझने के लिए सन्नद्ध है-

कम्पित धरा / विषैली पोलिथिन / मानवी भूल।

जगजननी / धरती की पुकार / वृक्षारोपण।

पर्वत पुत्री / धरती पे जा बसी / सलोना गाँव। 

मानुष काटे / धरा का हर अंग / मिटते गाँव।

केदारनाथ / बेबस जगन्नाथ / वन हैं कटे। 

सामाजिक टकराव और पारिवारिक बिखराव भी  चिंता का अंग हैं - 

बेहाल प्रजा / खुशहाल है नेता / खूब घोटाले।

चिंता का नाग / फन जब फैलाये / नष्ट जीवन।

पति-पत्नी में / वार्तालाप सीमित / अटूट रिश्ता।

जोगिनी गंध में नागर और ग्रामीण, वैयक्तिक और सामूहिक, सांसारिक और आध्यात्मिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक अर्थात परस्पर विरोध और भिन्न पहलुओं को समेटा गया है।  गागर में सागर की तरह शशि का हाइकुकार त्रिपदियों और सत्रह वर्णों में अकथनीय भी कह सका है। प्रथम हाइकु संग्रह अगले संकलनों के प्रतिउत्सुकता जाग्रत करता है। पाठकों को यह संकलन निश्चय भायेगा और  ख्याति दिलाएगा। 
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संपर्क - विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१  अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१, 
चलभाष - ७९९९५५९६१८, ईमेल - salil.sanjiv@gmail.com 

समीक्षा -- है न -

  शशि पुरवार  Shashipurwar@gmail.com समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा  है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह  जिसमें प्रेम के विविध रं...

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