सब बच्चों को माँ से प्यार माँ का आशीष शुभ दुलार आदिशक्ति मातृभवानी जगतजननी कृपनिधानी शक्तिस्वरूपा सिंहवाहिनी महिषासुर का किया संहार देवों का बेड़ा पार माँ का आशीष शुभ दुलार कोमलांगी कमलवासिनी विश्वव्यापी विश्वमोहिनी शुभमंगल वरदायिनी तेरे गुण गाए संसार भक्तों का बेड़ा पार माँ का आशीष शुभ दुलार काली, दुर्गा औ सरस्वती अनेक रूपों में भगवती नवरात्रि का त्यौहार माँ का सोलह शृंगार मन मंदिर में बजी झंकार -शशि पुरवार |
Monday, October 22, 2012
माँ का आशीष शुभ दुलार
Thursday, October 18, 2012
लघुकथा --पतन , माँ का एक यह रूप भी .........
लघुकथा -- पतन
भोपाल जाने के लिए बस जल्दी पकड़ी और आगे की सीट पर सामान रखा था कि किसी के जोर जोर से रोने की आवाज आई, मैंने देखा एक भद्र महिला छाती पीट -पीट कर जोर जोर से रो रही थी .
" मेरा बच्चा मर गया ...हाय क्या करू........ कफ़न के लिए भी पैसे नहीं है ..
मदद करो बाबूजी , कोई तो मेरी मदद करो , मेरा बच्चा ऐसे ही पड़ा है घर पर ......हाय मै क्या करूं ."
उसका करूण रूदन सभी के दिल को बैचेन कर रहा था , सभी यात्रियों ने पैसे जमा करके उसे दिए ,
" बाई जो हो गया उसे नहीं बदल सकते ,धीरज रखो "
"हाँ बाबू जी , भगवान आप सबका भला करे , आपने एक दुखियारी की मदद की ".....
ऐसा कहकर वह वहां से चली गयी , मुझसे रहा नहीं गया , मैंने सोचा पूरे पैसे देकर मदद कर देती हूँ , ऐसे समय तो किसी के काम आना ही चाहिए .
जल्दी से पर्स लिया और उस दिशा में भागी जहाँ वह महिला गयी थी . , पर जैसे ही बस के पीछे की दीवाल के पास पहुची तो कदम वही रूक गए .
द्रश्य ऐसा था कि एक मैली चादर पर एक 6-7 साल का बालक बैठा था और कुछ खा रहा था . उस भद्र महिला ने पहले अपने आंसू पोछे , बच्चे को प्यारी सी मुस्कान के साथ , बलैयां ली , फिर सारे पैसे गिने और अपनी पोटली को कमर में खोसा फिर बच्चे से बोली -
"अभी आती हूँ यहीं बैठना , कहीं नहीं जाना "
और पुनः उसी रूदन के साथ दूसरी बस में चढ़ गयी .
मै अवाक सी देखती रह गयी व थकित कदमो से पुनः अपनी सीट पर आकर बैठ गयी . यह नजारा नजरो के सामने से गया ही नहीं ,लोग कैसे - कैसे हथकंडे अपनाते है भीख मांगने के लिए , कि बच्चे की इतनी बड़ी झूठी कसम भी खा लेते है , आजकल लोगो की मानसिकता में कितना पतन आ गया है .
--------शशि पुरवार
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मित्रो आप सभी को नवरात्री की हार्दिक शुभकामनाये ...............स्वास्थ परेशानी के चलते ज्यादा समय नहीं दे पा रही हूँ ....पर जितना भी हो सकेगा आपके ब्लॉग पर पढने आती रहूंगी , तब तक के लिए क्षमाप्राथी हूँ , यह सत्य घटना आपके समक्ष .............लघुकथा के रूप में ..... अपना अमूल्य स्नेह बनाये रखें .-शशि
भोपाल जाने के लिए बस जल्दी पकड़ी और आगे की सीट पर सामान रखा था कि किसी के जोर जोर से रोने की आवाज आई, मैंने देखा एक भद्र महिला छाती पीट -पीट कर जोर जोर से रो रही थी .
" मेरा बच्चा मर गया ...हाय क्या करू........ कफ़न के लिए भी पैसे नहीं है ..
मदद करो बाबूजी , कोई तो मेरी मदद करो , मेरा बच्चा ऐसे ही पड़ा है घर पर ......हाय मै क्या करूं ."
उसका करूण रूदन सभी के दिल को बैचेन कर रहा था , सभी यात्रियों ने पैसे जमा करके उसे दिए ,
" बाई जो हो गया उसे नहीं बदल सकते ,धीरज रखो "
"हाँ बाबू जी , भगवान आप सबका भला करे , आपने एक दुखियारी की मदद की ".....
ऐसा कहकर वह वहां से चली गयी , मुझसे रहा नहीं गया , मैंने सोचा पूरे पैसे देकर मदद कर देती हूँ , ऐसे समय तो किसी के काम आना ही चाहिए .
जल्दी से पर्स लिया और उस दिशा में भागी जहाँ वह महिला गयी थी . , पर जैसे ही बस के पीछे की दीवाल के पास पहुची तो कदम वही रूक गए .
द्रश्य ऐसा था कि एक मैली चादर पर एक 6-7 साल का बालक बैठा था और कुछ खा रहा था . उस भद्र महिला ने पहले अपने आंसू पोछे , बच्चे को प्यारी सी मुस्कान के साथ , बलैयां ली , फिर सारे पैसे गिने और अपनी पोटली को कमर में खोसा फिर बच्चे से बोली -
"अभी आती हूँ यहीं बैठना , कहीं नहीं जाना "
और पुनः उसी रूदन के साथ दूसरी बस में चढ़ गयी .
मै अवाक सी देखती रह गयी व थकित कदमो से पुनः अपनी सीट पर आकर बैठ गयी . यह नजारा नजरो के सामने से गया ही नहीं ,लोग कैसे - कैसे हथकंडे अपनाते है भीख मांगने के लिए , कि बच्चे की इतनी बड़ी झूठी कसम भी खा लेते है , आजकल लोगो की मानसिकता में कितना पतन आ गया है .
--------शशि पुरवार
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मित्रो आप सभी को नवरात्री की हार्दिक शुभकामनाये ...............स्वास्थ परेशानी के चलते ज्यादा समय नहीं दे पा रही हूँ ....पर जितना भी हो सकेगा आपके ब्लॉग पर पढने आती रहूंगी , तब तक के लिए क्षमाप्राथी हूँ , यह सत्य घटना आपके समक्ष .............लघुकथा के रूप में ..... अपना अमूल्य स्नेह बनाये रखें .-शशि
Friday, October 12, 2012
सिंदूरी आभा
1सिंदूरी आभा
सुनहरा गहना
साँझ है सजी .
2 अम्बर संग
अवनि का मिलन
संध्या बेला में
3 सुनहरा है
प्रकृति का बंधन
स्वर्णिम पल
4 उषाकाल में
केसरिया चुनर
हिम पिघले .
5 शूल जो मिले
हम तो नहीं हारे
छु के गगन .
6 छु लिया जहाँ
मिला श्रम का मोल
सुहानी भोर
7 सुनहरा है
आने वाला सबेरा
नया जीवन
8 पाया है जहाँ
सुनहरा आसमां
कर्मो से सजा .
9 हरीतिमा की
भीनी चदरिया
सावन भादो
10 नयना प्यासे
प्रभु दरसन के
सुनो अरज
11 पाखी है मन
चंचल चितवन
नैना सलोने .
-शशि पुरवार
Saturday, October 6, 2012
मेरे सपनो का ताजमहल
मेरे ख्वाबों का
सुन्दर आशियाना
प्यार की रेशमी डोर
विश्वास का खजाना
सतरंगी सपनो से
आने वाले कल की
झालर बनाना
बचपन के पलों को
सहेज पिटारे में रख
पंछी बन उड़ जाना ,
आकांशाओ के वृक्ष पे
आशा का दीपक रखना
पूर्ण ,अपूर्ण अनुभूतियों की
एक ख्वाबगाह बनाना
दीवारों पे अपने नाम का
दुधियाँ रंग सार्थक कर
शशि की शीतलता
को जग में फैलाना।
अमावस की काली रात में
कलम से उकेरे शब्दों की
शीतल किरणों सा प्रकाश
दीप प्रज्वलित करना
जीवन की राहो में
पी का साथ निभाना।
कांटो को चुन ,उसकी
राहो में फूल बिछाना ,
नहीं कोई चाहत दिल में
बस मेरे जाने के बाद तुम
मेरे सपनो का ताजमहल
मत बनाना , खुश रहना
मुझे मेरी कलम में ही ढूंढ लेना
मै अविरल सी बहती हूँ मेरे
ख्वाबो के ताजमहल में
जब जी चाहे मेरे
सपनो की घाटियों में
एक फूल ले चले आना
सदा अमर रहूंगी
शब्दों के माध्यम से
जब जी चाहे चाहे
आकर मिल जाना .
--शशि पुरवार
सुन्दर आशियाना
प्यार की रेशमी डोर
विश्वास का खजाना
सतरंगी सपनो से
आने वाले कल की
झालर बनाना
बचपन के पलों को
सहेज पिटारे में रख
पंछी बन उड़ जाना ,
आकांशाओ के वृक्ष पे
आशा का दीपक रखना
पूर्ण ,अपूर्ण अनुभूतियों की
एक ख्वाबगाह बनाना
दीवारों पे अपने नाम का
दुधियाँ रंग सार्थक कर
शशि की शीतलता
को जग में फैलाना।
अमावस की काली रात में
कलम से उकेरे शब्दों की
शीतल किरणों सा प्रकाश
दीप प्रज्वलित करना
जीवन की राहो में
पी का साथ निभाना।
कांटो को चुन ,उसकी
राहो में फूल बिछाना ,
नहीं कोई चाहत दिल में
बस मेरे जाने के बाद तुम
मेरे सपनो का ताजमहल
मत बनाना , खुश रहना
मुझे मेरी कलम में ही ढूंढ लेना
मै अविरल सी बहती हूँ मेरे
ख्वाबो के ताजमहल में
जब जी चाहे मेरे
सपनो की घाटियों में
एक फूल ले चले आना
सदा अमर रहूंगी
शब्दों के माध्यम से
जब जी चाहे चाहे
आकर मिल जाना .
--शशि पुरवार
Thursday, October 4, 2012
माँ का अंगना प्यारा रे
माँ का अंगना प्यारा रे........
प्यारा सलोना
दुनियां में रखा जब पहला कदम
माँ के आँचल में
खिला बचपन
सपनो को लगे
सुनहरे पंख ........!,
गुरु बनके ज्ञान दे दिया रे
हुआ सफल जीवन,
माँ का आशीष प्यारा रे
प्यारा सलोना
जीवन की राहो में बढ़ते कदम
मुश्किल घडी में
डरता यह मन
कैसे लड़ेंगे
तुफानो से हम .........,
तपते मन को सहला दिया रे
बनके शीतल पवन ,
माँ का साथ लागे प्यारा रे
प्यारा सलोना
स्नेह वात्सल्य से भरा बंधन
शादी कर माँ ने
निभाया धरम
आँखों में मोती
छुपा के किया भ्रम ......... ,
कालजे पे पत्थर रख लिया रे
बेटी बने सुहागन
माँ का प्यार बड़ा न्यारा रे
प्यारा सलोना
पल पल माँ को ढूंढें नयन
माँ की छाया
कैसे बने हम
दिल में महकती
माँ की छुअन......... ,
पीहर की तड़प बढ़ा गयी रे
चली यादों की पवन
माँ का अंगना प्यारा रे
प्यारा सलोना .
3.10.12
--------- शशि पुरवार
माँ के आँचल में
खिला बचपन
सपनो को लगे
सुनहरे पंख ........!,
गुरु बनके ज्ञान दे दिया रे
हुआ सफल जीवन,
माँ का आशीष प्यारा रे
प्यारा सलोना
जीवन की राहो में बढ़ते कदम
मुश्किल घडी में
डरता यह मन
कैसे लड़ेंगे
तुफानो से हम .........,
तपते मन को सहला दिया रे
बनके शीतल पवन ,
माँ का साथ लागे प्यारा रे
प्यारा सलोना
स्नेह वात्सल्य से भरा बंधन
शादी कर माँ ने
निभाया धरम
आँखों में मोती
छुपा के किया भ्रम ......... ,
कालजे पे पत्थर रख लिया रे
बेटी बने सुहागन
माँ का प्यार बड़ा न्यारा रे
प्यारा सलोना
पल पल माँ को ढूंढें नयन
माँ की छाया
कैसे बने हम
दिल में महकती
माँ की छुअन......... ,
पीहर की तड़प बढ़ा गयी रे
चली यादों की पवन
माँ का अंगना प्यारा रे
प्यारा सलोना .
3.10.12
--------- शशि पुरवार
Wednesday, September 26, 2012
कैसा संहार .?
निति नियमो को
ताक पर रखकर
संरक्षक बना है भक्षक
ये कैसी हार
नोच लिए रूह के तार
भेड़िया बन खींची है खाल
थमा के मीठी गोली
खेली है खूनी होली
टूट गयी विश्वास की डोर
बिखरा है लहु चारो ओर
अपने जिय के टुकड़ों का
ये कैसा संहार
टूट रही लज्जा की गागर
फट रहा जिय का सागर
कैसे छुपाये नाजुक काया
पीछे पड़ा है एक साया
बीच बाजार बिकती साख
भेद रही गिद्ध की आंख
खतरा फैला है चहुँ और
सफेदपोश है निशाचर
ये कैसा आधार
निति नियमो को
ताक पे रखकर हुआ
ये कैसा व्यवहार.
---शशि पुरवार
Sunday, September 23, 2012
आँखों का धोखा
हाइकु
1 तरसे नैना
परदेश सजन
कैसे पुकारू
2 नैना प्यासे
प्रभु दरसन के
सुनो अरज .
3 आँखों की हया
लज्जा की चुनर
नारी गहना
4 मोह औ माया
अहंकार का पर्दा
आँखों का धोखा .
5 पाखी है मन
चंचल चितवन
नैना सलोने .
6
अधूरी प्यास
अजन्मी ख्वाहिशे
वक़्त है कम .
7
रीता ये मन
कोख का सूनापन
अतृप्त आत्मा .
8
अधूरापन
ज्ञान के खिले फूल
खिला पलाश .
9
अतृप्त मन
भटकता जीवन
ढूंढें किनारा .
10
नन्हे कदम
मोहिनी म्रदुहास्य
खिला अंगना .
11
अश्क आँखों के
सूख गए है जैसे
रीता झरना .
12
पीर तन की
अब सही न जाती
वृद्धा जीवन
13
आँखों में देखा
छलकता पैमाना
अहंकार का .
14
अंतरगित
सन्नाटे में बिखरी
तेज चीत्कार .
15
सुख के सब
होते है संगी- साथी
स्वार्थी जहान .
----शशि पुरवार
हाइकु
1 तरसे नैना
परदेश सजन
कैसे पुकारू
1 तरसे नैना
परदेश सजन
कैसे पुकारू
2 नैना प्यासे
5 पाखी है मन
चंचल चितवन
नैना सलोने .
6
अधूरी प्यास
अजन्मी ख्वाहिशे
वक़्त है कम .
7
रीता ये मन
कोख का सूनापन
अतृप्त आत्मा .
8
अधूरापन
ज्ञान के खिले फूल
खिला पलाश .
9
अतृप्त मन
भटकता जीवन
ढूंढें किनारा .
प्रभु दरसन के
सुनो अरज .
3 आँखों की हया
लज्जा की चुनर
नारी गहना
4 मोह औ माया
अहंकार का पर्दा
आँखों का धोखा .
सुनो अरज .
3 आँखों की हया
लज्जा की चुनर
नारी गहना
4 मोह औ माया
अहंकार का पर्दा
आँखों का धोखा .
5 पाखी है मन
चंचल चितवन
नैना सलोने .
अधूरी प्यास
अजन्मी ख्वाहिशे
वक़्त है कम .
7
रीता ये मन
कोख का सूनापन
अतृप्त आत्मा .
8
अधूरापन
ज्ञान के खिले फूल
खिला पलाश .
9
अतृप्त मन
भटकता जीवन
ढूंढें किनारा .
10
नन्हे कदम
मोहिनी म्रदुहास्य
खिला अंगना .
11
अश्क आँखों के
सूख गए है जैसे
रीता झरना .
12
पीर तन की
अब सही न जाती
वृद्धा जीवन
13
आँखों में देखा
छलकता पैमाना
अहंकार का .
14
अंतरगित
सन्नाटे में बिखरी
तेज चीत्कार .
15
सुख के सब
होते है संगी- साथी
स्वार्थी जहान .
----शशि पुरवार
नन्हे कदम
मोहिनी म्रदुहास्य
खिला अंगना .
11
अश्क आँखों के
सूख गए है जैसे
रीता झरना .
12
पीर तन की
अब सही न जाती
वृद्धा जीवन
13
आँखों में देखा
छलकता पैमाना
अहंकार का .
14
अंतरगित
सन्नाटे में बिखरी
तेज चीत्कार .
15
सुख के सब
होते है संगी- साथी
स्वार्थी जहान .
----शशि पुरवार
Tuesday, September 18, 2012
जाने कहाँ आ गए हम
जाने कहाँ आ गए हम
छोड़ी धरती
चूमा गगन .
आकांशाओ के वृक्ष पर
बारूदो का ढेर बनाया
तोड़े पहाड़ , कटाये वन
दूषित कर पवन ,रोग लगाया
सूखी हरीतिमा की छाँव
सिमटे खेत , गाँव
बना मशीनी इंसान
पत्थर की मूरत भगवान .
जग का बदला स्वरुप
नए उपकरण ,
मशीनी इंसान ,
रोबोट सीखे काम ,
नए नए आविष्कार
खूब फला कृत्रिम व्यापार
मशीनी होते काम
मानव चाहे पूर्ण आराम
माथे की मिट जाये शिकन .
भर बारूद , रोकेट
संग, उड़ चला अंतरिक
विधु पे पड़े कदम
मिला नया मुकाम ,
पर धुएं में मिले जहर से
कम होती ओजोन की छाँव
सौर मंडल पर भी
प्रदुषण के बढ़ते कदम
यह हार है या जीत
जब खतरा बन रही
जीवन पर , अविष्कारों
की बढती भीड़
न बच सकी धरणी
न छूटा गगन .
-------------शशि पुरवार
Saturday, September 15, 2012
मेहंदी लगे हाथ......!
मेहंदी लगे हाथ कर रहें हैं
पिया का इंतजार
सात फेरो संग माँगा है
उम्र भर का साथ.
यूँ मिलें फिर दो अजनबी
जैसे नदी के दो किनारो
का हुआ है संगम, फिर
बदल गयी हैं दिशाए
जीवन की मधुरम हवाए
और
बहने लगी एक जलधारा .
नाजुक होते हैं यह रिश्ते
कांच से कच्चे धागों से बंधी हुई
विश्वास की डोर, दिलो की प्रीत
,पर
कठिन हैं जीवन की
पथरीली राहों का सफर.
मजबूती के साथ चल रहे हैं हम
एक गाड़ी के दो पहिये; जिसे
तोड़ न सके कोई कंकर
प्रेम की इन गलियों में
उलफत कभी न होगी कम
बस इक खलिस है
ह्रदय में;
सनम
अंतिम ख्वाहिश मानकर
जिगर में मत रखना कोई रंज
पहले इस जहान से रुकसत होंगे
हम ,
इक सुहागन बन कर ही
निकले मेरा दम
खाली रह जाएँ ना हाथ
करतल पे लगा देना मेहंदी
चढ़ जाये पुनः प्रेम का रंग ; फिर
यह जन्म न मिलेगा बार बार .
----------- शशि पुरवार
Wednesday, September 12, 2012
जग की जननी है नारी ........!
जग की जननी है नारी
विषम परिवेश में नहीं हारी
काली का धरा रूप , जब
संतान पे पड़ी विपदा भारी
सह लेती काटों का दर्द
पर हरा देता एक मर्द
क्यूँ रूह तक कांप जाती
अन्याय के खिलाफ
आवाज नहीं उठाती
ममता की ऐसी मूरत
पी कर दर्द हंसती सूरत
छलनी हो रहे आत्मा के तार
चित्कारता ह्रदय करे पुकार
आज नारी के अस्तित्व का सवाल
परिवर्तन के नाम उठा बबाल
वक़्त की है पुकार
नारी को भी मिले उसके अधिकार
कर्मण्यता , सहिष्णु , उदारचेता
है उसकी पहचान
स्वत्व से मिला सम्मान .
जग की जननी है नारी
विषम परिवेश में नहीं हारी .
---------------- शशि पुरवार
Thursday, September 6, 2012
मेरे मन का अभिमन्यु ,
जीवन चक्र
कठिन है राहों की डगर
खिले हैं जो फूल, उन्हें
शूल का भी सहना होगा दर्द।
सुख का छोटा सा पल
बीत रहा है यूँ ,
वक़्त का पहिया
तेजी से घूमता हरपल .
दुःख से रीत जाते
सारे एहसास
निकल जाता है वक़्त
बिखरते है ख्वाब ,पर
कर्म की वेदी पर
नहीं हारता
मेरे मन का अभिमन्यु ,
आशा का छोटा सा दिया
जगमगाता है काली रात में
तम में भी रहता
रौशनी का बसेरा ,
वक़्त का होता पग -फेरा
हर रात के बाद है सबेरा
लिखना यूँ नया इतिहास
रौशन हो कलम से
रचे एहसास
एक नयी शुरुआत
सुनहरी किरणों का प्रकाश
नए शून्य की तलाश
एक नया आकाश .
-----शशि पुरवार
वक़्त का पहिया
तेजी से घूमता हरपल .
दुःख से रीत जाते
सारे एहसास
निकल जाता है वक़्त
बिखरते है ख्वाब ,पर
कर्म की वेदी पर
नहीं हारता
मेरे मन का अभिमन्यु ,
आशा का छोटा सा दिया
जगमगाता है काली रात में
तम में भी रहता
रौशनी का बसेरा ,
वक़्त का होता पग -फेरा
हर रात के बाद है सबेरा
लिखना यूँ नया इतिहास
रौशन हो कलम से
रचे एहसास
एक नयी शुरुआत
सुनहरी किरणों का प्रकाश
नए शून्य की तलाश
एक नया आकाश .
-----शशि पुरवार
Monday, September 3, 2012
जीवन के रंग ...!
चोका
यह जीवन
है गहरा गागर
सुख औ दुःख
गाड़ी के दो पहिये
धूप औ छाँव
सुख के दिन चार
आँख के आँसू
छलते हरबार
जो पाँव तले
खिसकती धरती
अधूरी प्यास
पहाड़ -सा ह्रदय
शोक -विषाद
अत्यंत मंथर हैं
बोझिल पल
वक़्त की रेतघडी
धीमा है पल
संकल्पों का संघर्ष
फौलादी जंग
आगमन -प्रस्थान
अभिन्न अंग
मुट्ठी से फिसलते
सुखद पल
वक़्त का पग -फेरा
बहता जल
पतझर -सा झरे
दुर्गम पथ
बदलता मौसम
भोर के पल
सुनहरी किरण
परिवर्तन
मोहजाल से मुक्त
वर्तमान के
खुशहाल लम्हों का
करो स्वागत
छिटकी है मुस्कान
जीवन में उदित
नया है रास्ता
खुशियों की तलाश
सुनहरी सौगात .
-------------------
हाइकु ---
1 चांदनी रात
नयना बहे नीर
दुःख की पीर .
2 रिश्तो में मिला
पल पल छलावा
मन का दर्द .
3 वक़्त के साथ
भर जाते है जख्म
रिसते घाव .
4 सुख खातिर
करे सारे जतन
कठिन तप
5 पतझर से
झरते है नयन
प्रेम अगन
6
रिश्तो की लड़ी
बिताये हुए पल
है जमा पूंजी .
7
अश्क आँखों के
सुख गए है अब
रीता झरना
8 पीर तन की
अब सही न जाती
वृद्धा आश्रम
9 आँखों में देखा
छलकता पैमाना
सुखसागर
10 खामोश रात्र
सन्नाटे में बिखरी
तेज चीत्कार
11 सुख के सब
होते है संगी साथी
स्वार्थी जहान .
12 तीखे संवाद
दबी है सिसकार
मन की हूक .
13
नन्हे कदम
मोहिनी म्रदु हास्य
खिला अंगना .
15 यह जीवन
आत्मा होती अमर
चंचल मन .
16 तेरे आने की
हवा भी दे सूचना
धडके दिल .
17
सूना अंगना
महका गुलशन
खिले जो फूल .
18 खिली मुस्कान
मासूम बचपन
मन मोहन .
----शशि पुरवार
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मेहंदी लगे हाथ कर रहें हैं पिया का इंतजार सात फेरो संग माँगा है उम्र भर का साथ. यूँ मिलें फिर दो अजनबी जैसे नदी के दो किनारो का...
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साल नूतन आ गया है नव उमंगों को सजाने आस के उम्मीद के फिर बन रहें हैं नव ठिकाने भोर की पहली किरण भी आस मन में है जगाती एक कतरा धूप भी, ...
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