Saturday, October 8, 2011
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समीक्षा -- है न -
शशि पुरवार Shashipurwar@gmail.com समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह जिसमें प्रेम के विविध रं...
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मेहंदी लगे हाथ कर रहें हैं पिया का इंतजार सात फेरो संग माँगा है उम्र भर का साथ. यूँ मिलें फिर दो अजनबी जैसे नदी के दो किनारो का...
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हास्य - व्यंग्य लेखन में महिला व्यंग्यकार और पुरुष व्यंग्यकार का अंतर्विरोध - कमाल है ! जहां विरोध ही नही होना चाहिए वहां अ...
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साल नूतन आ गया है नव उमंगों को सजाने आस के उम्मीद के फिर बन रहें हैं नव ठिकाने भोर की पहली किरण भी आस मन में है जगाती एक कतरा धूप भी, ...
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neele aakaash ko khidkee se dekhte ham
ReplyDeletesundar shabd se rachaa hai aapne
sneh aur aashirvaad ke saath
The second and last paragraph are so beautifully crafted. Few words take my heart away...And, the title is so profound...
ReplyDeleteSaru
bahut sundar kavita....
ReplyDeletebadhayi
mere blog se judne aur padhne ke liye is link pe click karain
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naa jane kyon dekh liya SUNHARE SAPNO KA SAPNA
ReplyDeletePOORA HEE NAHIN PEECHHE PADA HATNA