Saturday, April 28, 2012

जीवन मुट्ठी से फिसलती रेत....



जीवन मुट्ठी से फिसलती रेत
पल -पल बदलता
वक़्त का फेर
हिम्मत से डटे रहना
यहीं है कर्मो का खेल !

हर आहट देती है
सुनहरे कदमो के निशां
चिलचिलाती धुप में
नंगे पैरों से चलकर
बनता है आशियाँ !

छोड़ो बीती बातें
मुड के न देखना
वक़्त जीने का है कम
रस्सी को ज्यादा न खेचना !

जीवन आस की पगडण्डी
इसके टेढ़े -मेढ़े है रास्ते
आसां नहीं है यह पथ
हिम्मत कभी न छोड़ना

अथाह है जीवन का समंदर
प्यास बढती ही जाती
पार हो जायेगा तू , हे नाविक
हाथों से इसको खेना !

उम्र न ठहरेगी एक पल
जी ले प्राणी,
तू मन का चंचल
मौत आएगी चुपके से
तब ख़त्म हो जायेगा यह सफ़र !

जीवन मुट्ठी से .............!

:-- शशि पुरवार
 

18 comments:

  1. बहुत सुंदर प्रस्तुति,..बेहतरीन पोस्ट

    MY RESENT POST .....आगे कोई मोड नही ....

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  2. बहुत सुंदर............

    मुट्ठी ना ज्यादा कसनी है ना ढीली छोडनी है..............

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  3. सकारात्मक सोच लिये बहुत सुंदर और प्रभावी रचना...

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  4. बहुत ही बढ़िया



    सादर

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  5. कल 29/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    हलचल - एक निवेदन +आज के लिंक्स

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  6. जीवन का हौसला बढ़ाती बेहतरीन रचना शशि जी...
    आप यूँ ही लिखती रहें हम सब का हौसला बढ़ता रहे यही दुआ है....

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  7. बहुत खूब लिखा है |
    आशा

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  8. प्रेरक और खूबसूरत रचना

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  9. जीवन दर्शन को समेटे सार्थक प्रस्तुति !

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  10. बहुत गहरी बात कही है आपने शशि जी

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  11. नंगे पैरों से चलकर बनता है आशियाँ.

    यह समीक्षा भी जरूरी है समय समय पर सही राह पकडने के लिये. गया वक्त भी दोबारा नहीं आता.

    सुंदर प्रस्तुति.

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  12. बेहतरीन और शानदार......आखिरी पंक्तियाँ तो कमाल की हैं।

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  13. ये ही जिंदगी हैं

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  14. सच है जीवन में हिम्मत नहीं छोडनी चाहिए ...कठिनाइयां तो आती रहेंगी सामना जरूरी है ... अच्छी रचना ..

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  15. आपके पोस्ट पर आना सार्थक हुआ । प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे पोस्ट पर आपका आमंत्रण है । धन्यवाद ।

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