Saturday, June 2, 2012

शिशु सा मन ....!



आँखों का पानी 
बनावट के फूल 
कच्चे है धागे .

घना कोहरा 
नजरो का है फेर 
गहरी खाई .

रूई सा फाहा 
नजरो में समाया 
उतरी मिस्ट .

कोई न जाने 
दर्द दिल में बंद 
बेटी पराई .

अकेलापन 
मन की उतरन 
अँधेरी रात .


सफ़र संग 
छटती हुई धुंध 
कटु सत्य .

चटक लाल 
प्राकृतिक खुमार    
अमलतास .


तीखी चुभन 
घुमड़ते बादल
तेज रफ़्तार .


खारा लवण
कसैला हुआ मन 
समुद्री जल .

उड़ता पंछी
पिंजरे में जकड़ा 
है परकटा .

तेज हवा में 
सुलगता है दर्द 
जमती बर्फ .

उफना दर्द 
जख्म बने नासूर 
स्वाभिमान के .

शिशु सा मन 
ढूंढता है आँचल 
प्यार से भरा .
     :--शशि पुरवार






 

8 comments:

  1. bahut khoobsurat haaiku ek se badhkar ek.

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  2. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन हाइकू ,,,,,,

    RECENT POST .... काव्यान्जलि ...: अकेलापन,,,,,

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  3. सभी हाइकु...एक से बढ़ कर एक हैं

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  4. सुन्दर हाइकू

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  5. बेहतरीन .. लाजवाब

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  6. उड़ता पंछी
    पिंजरे में जकड़ा
    है परकटा .

    ye wala mere pe fit baithta hai :P

    waise aapne copy option disbale kyun kar rakha hai.
    javascript ka kya hai disable kar do to koi kaam ki nahi...example aapke samne hai :P

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  7. Very nice post.....
    Aabhar!
    Mere blog pr padhare.

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  8. बहुत सुंदर रचना। ऐसी रचनाएं कभी कभी पढने को मिलती हैं।
    फुर्सत मिले तो आदत मुस्कुराने की पर ज़रूर आईये

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