Sunday, July 21, 2013

उड़ गयी फिर नींदे ....!

1 
था दुःख को तो जलना
अब सुख की खातिर 
है राहो पर चलना ।
2
रिमझिम बदरा आए
पुलकित है धरती
हिय मचल मचल जाए । . 
3
है  मन जग का मैला 
बेटी को मारे 
पातक दर-दर फैला ।
4
इन कलियों का खिलना 
सतरंगी सपने 
मन पाखी- सा मिलना ।
5
थी जीने की आशा 
 थाम कलम मैंने
की है दूर निराशा ।
6
अब काहे का खोना
बीते ना रैना 
घर खुशियों का कोना 
7
भोर सुहानी  आई
आशा का सूरज
मन के अँगना लाई।
8
पाखी बन उड़ जाऊँ 
संग तुम्हारे मैं
गुलशन को महकाऊँ  

-------- शशि पुरवार









10 comments:

  1. बहुत सुन्दर

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  2. पाखी बन उड़ जाऊँ
    संग तुम्हारे मैं
    गुलशन को महकाऊँ

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  3. थी जीने की आशा
    थाम कलम मैंने
    की है दूर निराशा ..

    बहुत खूब ... सभी पल लाजवाब लिखे हैं ...

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  4. Aapki sabhi rachnayen aashaka sandesh deteen hain....eeshwar kare aap hamesha aisee hee banee rahen!

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  5. सुंदर रचना... मेरी नयी पोस्ट के लिये पधारे... मन का मंथन... मेरे विचारों कादर्पण...

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    अच्छा लिखा है आपने!

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  7. बहुत ही लाजवाब रचना, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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