1
था दुःख को तो जलना
अब सुख की खातिर
है राहो पर चलना ।
2
रिमझिम बदरा आए
पुलकित है धरती
हिय मचल मचल जाए । .
3
है
मन जग का मैला
बेटी को मारे
पातक दर-दर फैला ।
4
इन कलियों का खिलना
सतरंगी सपने
मन पाखी- सा मिलना ।
5
थी जीने की आशा
थाम कलम मैंने
की है दूर निराशा ।
6
अब काहे का खोना
बीते ना रैना
घर खुशियों का कोना
।
7
भोर सुहानी आई
आशा का सूरज
मन के अँगना लाई।
8
पाखी बन उड़ जाऊँ
संग तुम्हारे मैं
गुलशन को महकाऊँ । -------- शशि पुरवार
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteपाखी बन उड़ जाऊँ
ReplyDeleteसंग तुम्हारे मैं
गुलशन को महकाऊँ
वाह, प्रभावी..
ReplyDeleteथी जीने की आशा
ReplyDeleteथाम कलम मैंने
की है दूर निराशा ..
बहुत खूब ... सभी पल लाजवाब लिखे हैं ...
बहुत खूब ..
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeletelatest post क्या अर्पण करूँ !
latest post सुख -दुःख
Aapki sabhi rachnayen aashaka sandesh deteen hain....eeshwar kare aap hamesha aisee hee banee rahen!
ReplyDeleteसुंदर रचना... मेरी नयी पोस्ट के लिये पधारे... मन का मंथन... मेरे विचारों कादर्पण...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteअच्छा लिखा है आपने!
बहुत ही लाजवाब रचना, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.