दर्द कहाँ अल्फाजों में है
अश्क आँखों में औ
तबस्सुम होठो पे है
सूखे गुल की दास्ताँ
अब बंद किताबो में है
बीते वक़्त का वो लम्हा
कैद मन की यादों में है
दिल में दबी है चिंगारी
जलती शमा रातो में है
चुभन है यह विरह की
दर्द कहाँ अल्फाजों में है
नश्वर होती है रूह
प्रेम समर्पण भाव में है
अविरल चलती ये साँसे
रहती जिन्दा तन में है
खेल है यह तकदीर का
डोर खुदा के हाथो में है
शशि पुरवार
शशि पुरवार Shashipurwar@gmail.com समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह जिसमें प्रेम के विविध रं...
https://sapne-shashi.blogspot.com/
-
मेहंदी लगे हाथ कर रहें हैं पिया का इंतजार सात फेरो संग माँगा है उम्र भर का साथ. यूँ मिलें फिर दो अजनबी जैसे नदी के दो किनारो का...
-
हास्य - व्यंग्य लेखन में महिला व्यंग्यकार और पुरुष व्यंग्यकार का अंतर्विरोध - कमाल है ! जहां विरोध ही नही होना चाहिए वहां अ...
-
साल नूतन आ गया है नव उमंगों को सजाने आस के उम्मीद के फिर बन रहें हैं नव ठिकाने भोर की पहली किरण भी आस मन में है जगाती एक कतरा धूप भी, ...
बहुत सही कहा, सुंदर रचना.
ReplyDeleteरामराम.
छोटी बहर की बहुत सुन्दर ग़ज़ल!
ReplyDeletebahut sunder bahv
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....
ReplyDeleteनश्वर होती है रूह
प्रेम समर्पण भाव में है
वाह...
सस्नेह
अनु
खेल है यह तकदीर का
ReplyDeleteडोर खुदा के हाथो में है
Aah! Behad sundar rachana...
खेल है यह तकदीर का
ReplyDeleteडोर खुदा के हाथो में है
बहुत ही सुन्दर भावों को पिरोया है।
बहुत खूब,सुंदर प्रस्तुति ,,,
ReplyDeleteRECENT POST : अपनी पहचान
बीते वक़्त का वो लम्हा
ReplyDeleteकैद मन की यादों में है
bahut sundar abhivyakti .....shubhkamnayen ...!!
सुंदर रचना.
ReplyDeleteसुंदर रचना.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज सोमवार (15-07-2013) को आपकी गुज़ारिश : चर्चा मंच 1307 में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति...
मुझे आप को सुचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी का लिंक 19-07-2013 यानी आने वाले शुकरवार की नई पुरानी हलचल पर भी है...
आप भी इस हलचल में शामिल होकर इस की शोभा बढ़ाएं तथा इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और नयी पुरानी हलचल को समृद्ध बनाएं.... आपकी एक टिप्पणी हलचल में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान और रचनाकारोम का मनोबल बढ़ाएगी...
मिलते हैं फिर शुकरवार को आप की इस रचना के साथ।
जय हिंद जय भारत...
मन का मंथन... मेरे विचारों कादर्पण...
यही तोसंसार है...
bahut khoob ..sundar rachna ...
ReplyDeleteसूखे गुल की दास्ताँ
ReplyDeleteअब बंद किताबो में है
बीते वक़्त का वो लम्हा
कैद मन की यादों में है
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
खेल है यह तकदीर का
ReplyDeleteडोर खुदा के हाथो में है
बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...
वाह बहुत खूब
ReplyDeleteक्या बात, बहुत सुंदर
ReplyDeleteवाह, क्या ही उत्तम और सुन्दर भाव हैँ! सच मेँ डोर तो खुदा के ही हाथोँ मेँ है । बधाई । सस्नेह
ReplyDeleteसच कहा, सुन्दर कहा..
ReplyDeletesach kaha.....chalti ka nam zindagi.....bahut sudar
ReplyDelete