Sunday, July 14, 2013

दर्द कहाँ अल्फाजों में है




अश्क आँखों में औ
तबस्सुम होठो पे है

सूखे गुल  की दास्ताँ
अब बंद किताबो में है

बीते वक़्त का वो लम्हा
कैद मन की यादों में है

दिल  में दबी है चिंगारी
जलती शमा रातो में है

चुभन है यह विरह की
दर्द कहाँ अल्फाजों में है

नश्वर होती  है  रूह
प्रेम समर्पण भाव में है

अविरल चलती ये साँसे
रहती जिन्दा तन में है

खेल है यह तकदीर का
डोर खुदा के हाथो में है 


शशि  पुरवार

20 comments:

  1. बहुत सही कहा, सुंदर रचना.

    रामराम.

    ReplyDelete
  2. छोटी बहर की बहुत सुन्दर ग़ज़ल!

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर....
    नश्वर होती है रूह
    प्रेम समर्पण भाव में है
    वाह...

    सस्नेह
    अनु

    ReplyDelete
  4. खेल है यह तकदीर का
    डोर खुदा के हाथो में है
    Aah! Behad sundar rachana...

    ReplyDelete
  5. खेल है यह तकदीर का
    डोर खुदा के हाथो में है
    बहुत ही सुन्दर भावों को पिरोया है।

    ReplyDelete
  6. बीते वक़्त का वो लम्हा
    कैद मन की यादों में है
    bahut sundar abhivyakti .....shubhkamnayen ...!!

    ReplyDelete
  7. सुंदर रचना.

    ReplyDelete
  8. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज सोमवार (15-07-2013) को आपकी गुज़ारिश : चर्चा मंच 1307 में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete

  9. सुंदर प्रस्तुति...
    मुझे आप को सुचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी का लिंक 19-07-2013 यानी आने वाले शुकरवार की नई पुरानी हलचल पर भी है...
    आप भी इस हलचल में शामिल होकर इस की शोभा बढ़ाएं तथा इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और नयी पुरानी हलचल को समृद्ध बनाएं.... आपकी एक टिप्पणी हलचल में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान और रचनाकारोम का मनोबल बढ़ाएगी...
    मिलते हैं फिर शुकरवार को आप की इस रचना के साथ।



    जय हिंद जय भारत...


    मन का मंथन... मेरे विचारों कादर्पण...


    यही तोसंसार है...

    ReplyDelete
  10. सूखे गुल की दास्ताँ
    अब बंद किताबो में है

    बीते वक़्त का वो लम्हा
    कैद मन की यादों में है

    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...

    ReplyDelete
  11. खेल है यह तकदीर का
    डोर खुदा के हाथो में है

    बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...

    ReplyDelete
  12. वाह, क्या ही उत्तम और सुन्दर भाव हैँ! सच मेँ डोर तो खुदा के ही हाथोँ मेँ है । बधाई । सस्नेह

    ReplyDelete
  13. sach kaha.....chalti ka nam zindagi.....bahut sudar


    ReplyDelete

आपकी प्रतिक्रिया हमारे लिए अनमोल है। हमें अपने विचारों से अवगत कराएं। सविनय निवेदन है --शशि पुरवार

आपके ब्लॉग तक आने के लिए कृपया अपने ब्लॉग का लिंक भी साथ में पोस्ट करें
.



समीक्षा -- है न -

  शशि पुरवार  Shashipurwar@gmail.com समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा  है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह  जिसमें प्रेम के विविध रं...

https://sapne-shashi.blogspot.com/

linkwith

http://sapne-shashi.blogspot.com