shashi purwar writer

Friday, August 2, 2013

जीवन के ताप सहती

जीवन के ताप सहती
कैसे असुरी

जलती है धूप नित
सांझ सवेरे
मधुवन में क्षुद्रता के
मेघ घनेरे .

रातों में चाँद देखे
पाँव इंजुरी .

भाल पर अंकित है
किंचित रेखा
काया को घिसते यहाँ
किसने देखा

नटनी सी घूम रही
देखो लजुरी .

मुखड़े पर शोभित है
मोहिनी मुस्कान
वाणी में फूल झरे
देह बेइमान

हौले से छोर भरे
कैसे अंजुरी .

शशि पुरवार

13 comments:

  1. बहुत ही बढ़िया


    सादर

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  2. सुंदर रचना .....बधाई

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  3. प्यारी सी अंजुरी
    खुबसूरत रचना :)

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  4. सुन्दर - सार्थक अभिव्यक्ति .शुभकामनायें .
    हम हिंदी चिट्ठाकार हैं
    भारतीय नारी

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  5. गहन अभिवयक्ति......

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  6. भाल पर अंकित है
    किंचित रेखा
    काया को घिसते यहाँ
    किसने देखा

    नटनी सी घूम रही
    देखो लजुरी .
    Behad sundar!

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  7. बहुत सुंदर पंक्तियाँ

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  8. आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज के ब्लॉग बुलेटिन - इंतज़ार उसका मुझे पर स्थान दिया है | बहुत बहुत बधाई |

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  9. Man mnthan ko ujagar karne me safal rachna .

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