रामू धन्नी सेठ के यहाँ मजूरी के
हिसाब से काम करता था , सेठ रामू के काम और ईमानदारी से खुश रहता था ,
परन्तु काम के हिसाब से वह मजूरी कम देता था , रामू को जितना मिलता
उसमें ही संतुष्ट रहता था ,इस बार सेठ को त्यौहार के कारण अनाज में तीन
गुना मुनाफा हुआ , तो ख़ुशी उसके चेहरे से टपक पड़ी , घमंड भरे भाव में ,वह
रामू से बोला --
" रामू इस बार मुनाफ खूब हुआ है , सोच रहा हूँ कि इस दिवाली घर का
फर्नीचर बदल दूं , घर वालो को खूब नए कपडे ,गहने और मिठाई इत्यादि ले कर
दे दूं , तो इस बार उनकी दिवाली भी खास हो जाये .................! "
सेठ बोलता जा रहा था और रामू शांत भाव से अपने काम में लगा हुआ था ,
जब धन्नी सेठ ने यह देखा तो उसे बहुत गुस्सा आया , और रामू को नीचा दिखने
के लिए उसने कहा ---
" मै कब से तुमसे बात कर रहा हूँ , सुर तुम कुछ बोल नहीं रहे हो ....
ठीक है तुम्हे भी 100 रूपए दे दूंगा , अब तो खुश हो न ...? , यह
बताओ कि तुम क्या क्या करोगे इस दिवाली पर ...............? "
रामू शांत भाव से बोला ----
" सेठ हमारे यहाँ तो रोज ही दिवाली होती है . "
" रोज दिवाली होती है ..........? क्या मतलब ? ......आश्चर्य का भाव सेठ के चेहरे पर था ."
"
जब रोज शाम को पैसे लेकर घर जाता हूँ तो सब पेट भर के खाना खाते है और
जो ख़ुशी होती है उनके चेहरे पर , यह हमारे लिए किसी दिवाली से कम नहीं
है ." कहकर रामू अपने काम में मगन हो गया .
------शशि पुरवार
बीते साल दैनिक भास्कर में प्रकाशित हमारी यह लघुकथा ---