ब्लॉग सपने - जीवन के रंग अभिव्यक्ति के साथ, प्रेरक लेख , कहानियाँ , गीत, गजल , दोहे , छंद

Thursday, January 14, 2016

समीक्षा - सदी को सुन रहा हूँ मै

जयकृष्ण राय तुषार के नवगीत संग्रह "सदी को सुन रहा हूँ मैं" की सहज अभिव्यक्ति और सरल शैली विशेष रसानुभूति का आभास कराती है।  पाठकों से संवाद स्थापित करते हुए गीत तरलता से दिलों में अपनी गेयता की पदचाप छोड़ते हैं।  और जन जन की मुखर वाणी बन नए उपमान प्रस्तुत करते हैं।  अनेक समसामयिक गीत जनमानस की समस्याओं को इंगित करते हुए अपना पाठक के साथ सीधा तादात्मय स्थापित करते हैं। 

आज के बोझिल व्यस्त वातावरण में जब मधुर संवाद धूमिल होने लगे हैं।  अपराधिक गतिविधियाँ बढ़ रही हैं, लोग दहशत के साये में जीने के लिए बाध्य हैं, संसार गरीबी और बेकारी से त्रस्त है और देश में फैली अराजकता और उथल पुथल हर किसी को व्याकुल कर रही है, गीतकार की संवेदना से निकली वाणी,  संवेदना के धरातल पर पाठक के अंतःस्थल को छूती है।  कवि का हृदय, संगम की पावन भूमि पर पड़ने वाले कदमों को शांति का सन्देश भी देता है और उनके सुख की कामना भी करता है।  संकलन  का प्रथम गीत ओ मेरे दिनमान एक ऐसा ही गीत है।

नए साल में नयी सुबह ले 
ओ मेरे दिनमान निकलना   
संगम पर आने से पहले  
मेलजोल की धारा पढना 
अनगढ़ पत्थर 
छेनी लेकर 
अकबर पन्त निराला गढ़ना 
सबकी किस्मत रहे दही गुड 
नहीं किसी की खोटी लाना 
बस्ती गाँव 
शहर के सारे 
मजलूमों को रोटी लाना 
फिर फिर राहू ग्रहण लायेगा 
साथ लिए किरपान निकलना 

गीतकार ने त्योहारों और ऋतुओं को अपनी कविता का प्रमुख विषय बनाया है। बसंती मौसम का केवल सौंदर्य-वर्णन ही नहीं किया है बल्कि उसके कल्याणकारी स्वरूप से त्रासदी झेल रहे लोगों के जीवन में सुख की याचना भी की है, गीत में मुखरित हुई इन मोहक पंक्तियों को देखिये-

अब की शाखों पर बसंत तुम 
फूल नहीं रोटियाँ लाना 
युगों युगों से प्यासे होठों को 
अपना मकरंद पिलाना  
साँझ ढले स्लम की देहरी पर  
उम्मीदों के दिए जलाना 

माँ का रिश्ता हर रिश्तों से पृथक और अनमोल रिश्ता होता है।  माँ की ममता का आकलन नहीं किया जा सकता है।  माँ खुद के अस्तिव को मिटाकर, बिना स्वार्थ, के सिर्फ स्नेह लुटाना जानती है। यहाँ माँ के पावन रूप को गीतकार ने गंगा नदी की उपमा प्रदान की है।  गंगा नदी और माँ निस्वार्थ बच्चों को अपने अंक में समेट कर रखती है, फिर भी मानव जाति उसकी क़द्र नहीं कर सकी है।  कवि के ह्रदय से निकली हुई इन सटीक  पंक्तियोँ को देखें जिनमें, माँ के प्रति असीम प्रेम भाव उमड़ पड़ा है-

मेरी ही यादों में खोयी
अक्सर तुम पागल होती हो 
माँ तुम गंगाजल होती हो

हम तो नहीं भागीरथ जैसे 
कैसे सर से कर्ज उतारें 
तुम तो खुद ही गंगाजल हो 
तुमको हम किस जल से तारें  

थककर बैठी हुई 
उम्र की इस ढलान पर 
कभी बहा करती थी
यह  गंगा उफान पर

प्रेम एक शास्वत काव्यात्मक अनुभूति है, जिसे नकारा नहीं जा सकता है, इसमें कोमल अनुभूतियों के पनपने के लिए उपजाऊ भूमि आसानी से तैयार नहीं होती है।  विरोधी, चुभन भरी हवा अपना रंग जमाने के लिए लालायित रहती है।  इस संग्रह में प्रेम की लोकरंजक  अनुभूति  को नवगीत में सुन्दरता और कलात्मकता के साथ प्रस्तुत किया गया है।  बेटी, प्रेयसी, पत्नी रोजमर्रा के कार्यो में उलझी नारी के विविध रूपों, उनकी पीड़ा, समर्पण, सौन्दर्य  का गीतकार ने कलात्मक वर्णन किया है।  प्रेम के ये  बसंती रंग, जीवन की  परंपरा को आलोकित कर उसे जीवन के धरातल से जोड़तें हैं।   भिन्न भिन्न भावों की पृथक पृथक अभिव्यति की  बानगी देखें जो नयी ताजगी का अहसास कराते हुए सीधे दिल में उतरती है। 

साँझ चूल्हे के धुएँ में 
लग रहा चेहरा  तुम्हारा 
ज्यों घिरा हो बादलों में 
एक टुकड़ा चाँद प्यारा
रोटियों के शिल्प में है 
हीर राँझा की कहानी 
शाम हो या दोपहर हो 
हँसी, पीढ़ा और पानी 
याद रहता है तुम्हें सब 
कि कहाँ किसने पुकारा 

रंग- गुलालों वाला मौसम 
कोई मेरा गाल छू गया 
खुली चोंच से जैसे कोई
पंछी मीठा ताल छू गया 
जाने क्या हो गया चैत में 
लगी देह परछाई बोने 
पीले हाथ लजाती आँखें 
भरे दही-गुड, पत्तल-दोने 

सागर खोया था लहरों में 
एक अपरिचित पाल छू गया 

प्रेम गीत है, चिडिया है और सुगंध भी है, जयशंकर तुषार के नवगीतों में प्रेम के ये सहज बिम्बात्मक स्वर प्रकृति को अपने में समेटे हुए पाठक के मन को गुदगुदाते हैं। 

अक्षरों में खिले फूलों सी 
रोज साँसों में महकती है 
ख्वाब में आकर मुंडेरों पर 
एक चिड़िया सी चहकती है 

फिर गुलाबी धूप तीखे 
मोड़ पर मिलने लगी है 
यह  जरा सी बात पूरे 
शहर को खलने लगी है 
रेशमी जुड़े बिखरकर 
गाल पर सोने लगे हैं  
गुनगुने जल एडियों को 
रगड़कर धोने लगे हैं 

बिना माचिस के प्रणय की 
आग फिर जलने लगी है 
सुबह उठकर हलद चन्दन 
देह पर मलने लगी है 

तुषार जी के गीतों में राजनितिक और सामाजिक विसंगतियों पर प्रहार करते हुए यथार्थ में पाँव भी जले हैं।  इन गीतों की अभिव्यक्ति, लय, गेयता और शिल्प कथ्य के अनुरूप परिवर्तित होता है।  तुषार जी के लंबे गीत (जो कम से कम ४ अंतरे के हैं) भी अपनी बात ठीक से प्रेषित करते दिखाई देते हैं।  वे लम्बे होते हुए भी नीरस और उबाऊ होने से बचे रहे हैं।  राजनितिक और सामाजिक विसंगतियों के कठिन समय में गीतकार की कलम पलायनवादी, निराशावादी बनकर नहीं चली है अपितु विसंगतियों की परतें खोल रहीं है 
१ 
चुप्पी ओढ़ परिंदे सोये 
सारा जंगल राख हुआ 
वन-राजों का जुर्म हमेशा ही
जंगल में माफ़ हुआ 
२ 
तानाशाही झुक जाती जब 
जनता आगे आती है 
हथकड़ियों जेलों से कोई
क्रांति कहाँ रुक जाती है 
कहाँ अहिंसा से लड़ने की 
हिम्मत है तलवारों में 
३ 
रातें होतीं कोसोवी सी
दिन लगते हैं वियतनाम से 
सर लगता है अब प्रणाम से 
हवा बह रही अंगारे सी 
दैत्य सरीखे हँसते टापू
नंगी पीठ गठरियाँ उन पर 
नोनिहाल हो रहे कबाड़ी 
आप चलाते गाँव-गाँव में 
उम्मीदों की आँगनबाड़ी 
४ 
सोई है यह राज्यव्यवस्था 
मुँह पर पानी डालो 
खून हमारा बर्फ हो रहा 
कोई इसे उबालो 
५ 
कालिख पुते हुए हाथों में 
दिए दिवाली के 
कापालिक की कैद सभी 
मंतर खुशहाली के 
फूलों की घाटी में मौसम की 
हथेलियाँ रँगी खून से 

इस संग्रह के गीतो की भाषा मुहावरेदार हिंदी है।  बोलचाल में प्रयुक्त होने वाले शब्दों के अतिरिक्त आंचलिक शब्दों का प्रयोग पाठक को उसकी माटी से जोड़ता है।  दैनिक जीवन के प्रचलित कई शब्दों से गीत पाठक के आसपास ही घूमते मालूम होते हैं।  मकई पान, रोटी, किरपान, बौर आम, सरसों, गेहूँ, रथ, पल्लू, केसर, परदे, संवस्तर, मादल ,गंगाजल, लॉन कुर्सी, पुलोवर, शावर, डाकिया, रिसालों, चूड़ियाँ, मजदूर, गाझ, चिंगारी, तितली, हरियाली, गुलदस्ता, स्लम, दिया, तिथियाँ, गिरगिट, तालमखाना, पोखर, जूडे, चाय, दर्पण, अजनबी, मेंहंदी, निठल्ले, मोरपंख, स्कूल, कलम, गुस्ताख, कॉफ़ी, दालान, यज्ञ, अर्ध्य, भगवान् , कमीना, सफीना, वालमार्ट, जोंक, तिजोरी, मंहगी गैस, डीजल, टिफिन, कांजीवरम सिल्क, ब्रत ,आरती, पूजा, निर्जला, गोदरेज, टू जी, थ्री जी, दलाल, टोल टैक्स, लाल किला, शापिंग माल, नाख़ून, कैनवास, रिबन, रंगोली, राजमिस्त्री, अनशन, टापू, चाकू, गुर्दा, धमनी, कठपुतली, दफ्तर, कंकड़, यजमान, गारंटी, खनखनाती, फोन टॉस, पंडे, वेद, तुलसी ,सागरमाथा, गेंदा, गुडहल, लैम्पपोस्ट, न्याय सदन, दियासलाई, कालिख, बेताल, लैपटॉप, केलेंडर इत्यादि शब्दों का सहजता से उपयोग हुआ है।  यह शब्द कहीं भी जबरन ठूँसे हुए प्रतीत नहीं हुए हैं, न ही इन शब्दों से गीत की गेयता, शिल्प और लय पर कोई प्रभाव पड़ा है।  
   
युग्म शब्दों का भी नवगीत में बेहद सहजता से सुन्दर प्रयोग हुआ है । दही-गुड, मघई-पान, छेनी-पत्थर, हल्दी-उबटन, नीले-पीले, फूल- टहनियाँ, सुग्गा-दाना, कुशल-क्षेम, लय-गति, वंशी-मादल, घूसर मिटटी, लू-लपट, रिश्ते-नाते, घुटन-बेबसी, हँसते-गाते, बाप-मतारी, बीबी-बच्चे, गंध-कस्तूरी,  पल-छिन, खून-पसीना, भौंरे- फूल, काशी-मदीना, सिताब-दियारा, राग-दरबारी,  साँझ-चूल्हा, हीर-राँझा, राजा-रानी, आँधी-पानी, कूड़ा-कचरा, कोर्ट-कचहरी, सत्य-अहिंसा, दाना-पानी, मुखिया-परधानो, चिरई-चुनमुन, अपने-अपने, जंतर-मंतर,  भाग्य-विधाता, ओझा-सोखा, घर-आँगन, ढोल-मँजीरे, आँख-मिचोनी , पूजित पूजित, आन-बान, साँझ-सुबहो, दफ्तर-थकान, घर-गिरस्ती ,सौ-सौ, पूजा-हवन, कण कण, सँवरा-निखरा, चंपा-चंपा, चम्पई-उँगलियों, धुआँ- धुंध, चिहुंक-चिहुंक, यमुना-गंगा, जन-गन मन, दूध-मलाई, पान-सुपारी, जादू-टोने, तंत्र-मंत्र, चढ़ते-उतरते, साधू-सन्यासी, पल-भर, पक्ष-विपक्ष, सत्य-अहिंसा, लूट-डकैती, दया-धर्म, भूख-बेगारी, जाती-धरम कौवे-चील, हार-जीत, अनेक शब्द सामान्य परिवेश के आसपास घूमते हुए पाठक की बोली का अहसास कराते हैं।  सामान्य जन के आसपास घूमते हुए गीतों में बोल चाल के शब्दों का भरपूर प्रयोग हुआ है।  कुछ कुछ शब्दों  के बिम्ब बहुत सुन्दर प्रतीत हुए हैं । 
  
तुषार जी का यह संकलन एक बार पढ़कर रख देने वाला नहीं है अपितु गीतों की ताजगी का अहसास पाठक को बारम्बार महसूस होता है।  जहाँ गीतों में कसावट और गेयता पाठक को बाँधे रखने में सक्षम है। वहीं सहज रसानुभूति इन्हें स्मृतियों में सहेजती है।  इन्हें पढना सुखद अनुभूति है।  ताजगी से भरपूर इस संकलन हेतु तुषार जी को  हार्दिक बधाई।
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गीत- नवगीत संग्रह - सदी को सुन रहा हूँ मैं, रचनाकार- जयकृष्ण राय तुषार, प्रकाशक- साहित्य भण्डार ५० , चाहचन्द , इलाहबाद - २०११०३२, प्रथम संस्करण-२०१४, मूल्य- रूपये ५०, पृष्ठ १२६, ISBN- ९७८-८१-७७७९-३४३-७, परिचय- शशि पुरवार

Monday, January 11, 2016

दफ्तरों से पल




दफ्तरों से बन गए है,
जिंदगी के पल
शाम से मिलते, थके दिन
रात का आँचल।

अब समय के साथ चलते,
दौड़ते साये
चाँद - तारों सी तमन्ना
हाथ में लाये
नींद आँखों में नहीं है
प्रश्न का जंगल।

अक्स अपना देखते, जब 
रोज दरपन में
भार से काँधे झुके है
रोष है मन में
बस नजर आती नहीं है
इक हँसी निश्छल।

धूप बैठी हाशिये पर
ढल गया यौवन
भीड़ में कुछ ढूँढता है
यह प्रवासी मन
रात गहराने लगा है
आँख का काजल।
      ---- शशि पुरवार

Friday, January 1, 2016

हौसलों के गीत गाओ


साल नूतन  आ गया है कुछ नया करके दिखाओ
स्वप्न आँखों में सजाकर हौसलों के गीत गाओ.

द्वेष, कुंठा, खूँ - खराबा रात्रि गहराने लगी है
लाख गहराये अँधेरा एक दीपक तुम जलाओ.

तोड़ दो खामोशियों को जुल्म को सहना नहीं है
जुल्म के हर वार रोको भीत नफरत की हटाओ.

खिड़कियों से झाँकती जो एक टुकड़ा धूप छनकर
आस की वैसी किरण बन, हर तिमिर जग से मिटाओ.

दुर्गुणों का अंत हो, हो  अंतरात्मा की सफाई
देश में चैनो अमन हो, राग  मिलकर गुनगुनाओ.

नव सुबह का खुश नजारा ,हर पनीली आँख देखे
वेदना के स्वर मिटाकर इक हँसी बन खिलखिलाओ.

चिलचिलाती धूप जब पाँवों में डाले बेड़ियां, तब
फिर कहे शशि छंद रचकर जय  को गुनगुनाओ.  
   --- शशि पुरवार

Friday, December 11, 2015

जिंदगी के इस सफर में भीड़ का हिस्सा नहीं हूँ।


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जिंदगी के
इस सफर में
भीड़ का हिस्सा नहीं हूँ
गीत हूँ मै,
इस सदी का
व्यंग का किस्सा नहीं हूँ.

शाख पर
बैठे परिंदे
प्यार से जब बोलतें है
गीत भी
अपने समय की
हर परत  को खोलतें हैं
भाव का
खिलता कँवल हूँ
मौन का भिस्सा नहीं हूँ।

शब्द उपमा
और रूपक
वेदना के स्वर बनें हैं
ये अमिट
धनवान हैं जो
छंद बन झर झर झरे हैं
प्रीति का मधुमास हूँ
खलियान का मिस्सा नहीं हूँ

अर्थ
बिम्बों में समेटे
राग रंजित मंत्र प्यारे
कंठ से
निकले हुए स्वर
कर्ण प्रिय
मधुरस नियारे
मील का
पत्थर बना हूँ
दरकता
सीसा नहीं हूँ।
-- शशि पुरवार 




Saturday, December 5, 2015

थका थका सा दिन




थका थका सा
दिन है बीता
दौड़ -भाग में बनी रसोई
थकन  रात
सिरहाने लेटी
नींद नहीं आँखों में सोई

रोज पकाऊ
दिनचर्या की
घिसी पिटी सी परिपाटी
नेह भरे
झरनों से वंचित
सम्बन्धो  की सूखी घाटी

कजरारी
बदली ने आकर
नर्म धूप की लटें भिगोई

साँस साँस पर
चढ़ी  उधारी
रहने का भी नहीं ठिकाना
संध्या के
होठों पर ठहरा
ठंडे संवादों का बाना

उमर निगोड़ी
नदी किनारे
जाने किन सपनों में खोई

नहीं आजकल
दिखते कागा
पाहुन का सन्देश सुनाते
स्वारथ के
इस अंधे युग में
कातिल धोखे मिलने आते

गन्ने की
बदली है सीरत
फाँखे भी है छोई छोई।
--- शशि पुरवार

Wednesday, December 2, 2015

समय छिछोरा












खाली खाली मन से रहते,
तन है जैसे टूटा लस्तक
जर्जर होती अलमारी में,
धूल फाँकती, बैठी पुस्तक।

समय छिछोरा,
कूटनीति की
कुंठित भाषा बोल रहा है
महापुरुषों की
अमृत वाणी
रद्दी में तौल रहा है
अर्थहीन, कटु कोलाहल
सुन सुन
घूम रहा है मस्तक।

शरम- लाज,
आँखों का पानी
सूख गयी है आँख नदी
गिरगिट जैसा
रंग बदलती
धुआं उड़ाती नयी सदी
अर्धनग्न कपड़ें को पहने
द्वार पश्चिमी गाये मुक्तक.

खून पसीना,
छद्म चाँदनी
निगल रही है  अर्थव्यवस्था
आदमखोर
हुई महंगाई
बोझ तले मरती हर इक्छा
यन्त्र चलित
हो गयी जिंदगी
यदा कदा खुशियों की दस्तक.
    -- शशि पुरवार

अंतर्राष्ट्रीय नवगीत महोत्सव की काव्य संध्या में प्रस्तुत किया गया यह नवगीत। 

Saturday, November 7, 2015

झिलमिलाती है दिवाली






दीप खुशियों के जलाकर, टिमटिमाती  है दिवाली
तम घना मन से मिटाकर, जगमगाती  है दिवाली

फर्श रंगोली सजी है, द्वार बंदनबार झूलें
भीत पर लड़ियाँ चमकतीं, झिलमिलाती है दिवाली

मुल्क से अपने सभी घर, लौट कर आने लगे है 
फासले होने लगे कम, दिल मिलाती है दिवाली

मग्न है सब खेलने में, ताश, बूढ़े और बच्चे
मिल ठहाकों के पटाखे, खिलखिलाती है दिवाली

झोपडी में एक दीपक रोज जलता हौसलों का
पेट भर भोजन मिला जो, मुस्कुराती है दिवाली

एक साया  ढूंढता है ,अधजले से कागजों में
काश मिल जाये फटाका, मन लुभाती है दिवाली.

फिर अमावश रात काली, खो गयी है रौशनी में
सत्य का जगमग उजेरा, गीत गाती है दिवाली.

              -- शशि पुरवार

आप सभी ब्लॉगर परिवार और मित्रों को सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ 

Monday, November 2, 2015

आसमान से उतरे सितारे -- राजनीती की धरा पर


     

       सिने जगत एक ऐसा आसमान है, जहाँ  अनगिनत सितारे चमकते रहते है और ऐसे सितारे जिनकी चमक  कभी  धूमिल नहीं  होती है . दुनियाँ  की आँखों को चकाचौंध भरी रौशनी से चुंधियाता  हुआ रुपहला पर्दा, यहाँ हम बात कर रहे है उन  सदाबहार अभिनेत्रियों की जिन्होंने न केवल रुपहले पर्दे पर किरदारो को जिया है बल्कि वे किरदार आज भी लोगो के दिलों पर  जीवंत राज करते  है, वक़्त तो अपनी गति से  बढ़ता चला  गया परन्तु जैसे इन सितारो  का वक़्त वहीँ ठहर गया है. आज भी  इन सदाबहार अभिनेत्रियों के  चाहने  वालों की कमी नहीं है. आज भी इनके हुस्न की चर्चा होती है, कुछ अभिनेत्रियों ने रुपहले परदे के  अलावा राजनीति के गलियारें में भी कदम रखे, तो लोगो का हुजूम ऐसा  उमड़ा  कि  जैसे सितारे ने आसमान से जमीं पर कदम रखें हों. लोगों ने इन सितारों  का स्वागत भीगे हुए स्नेहिल मन से  किया।  रुपहले परदे की कई अदाकारा जिन्होंने कला के साथ साथ राजनीति में भी अपना भाग्य आजमाया है , क्या लोगों ने उन्हें एक राजनीतिक के रूप में स्वीकार किया है है या आज भी वह एक  अभिनेत्रियों के  रूप में भी पहचानी जाती है।  एक राजनीतीक के रूप में वह कितनी सफल हुई  इस पर एक नजर डालते है …… बॉलीबुड की कई चर्चित अभिनेत्रिया जैसे हिंदी सिनेमा से नरगीस, रेखा, जया प्रदा ,हेमामालिनी,  जया  बच्चन, गुलपनाग दक्षिण की जयललिता , नगमा, बंगाल से मुनमुन सेन, अर्पिता घोष ,शताब्दी राय, संध्या राय, उड़ीसा से अपराजिता भवन्ति ……… आदि  कई अभिनेत्रियों ने राजनीति  में  अपना भाग्य आजमाया है। आईये एक नजर डालते है  उन अभिनेत्रयों के  फिल्मों से राजनीतिक सफ़र तक और किसने कहाँ तक यह सफ़र जारी रखा है।

  फ़िल्मी सफ़र से राजनितिक सफ़र पर एक नजर ---
सबसे पहले बात करते है दक्षिण की जानीमानी अदाकारा जय जयललिता जी की, जो न सिर्फ रुपहले पर्दे पर सफल रहीं है  बल्कि एक राजनितिक के रूप में भी कामयाबी ने उनका दामन थामे रखा है . लोगों ने इन्हें वही प्यार दिया जो एक अभिनेत्री  को दिया था। 
२४ फरवरी १९४८ को जन्मी जयललिता के सर से उनके पिता का साया महज २ वर्ष की उम्र मे मिट गया था, बेहद गरीबी और अभावों में पली जयललिता ने परिवार  चलाने के लिए  १५  वर्ष की उम्र में सिनेमा का रुख किया और जाने माने निर्देशक श्रीधर की फ़िल्म " वेन्नीरादई " से अपना कॅरिअर शुरू किया फिर तमिल, हिंदी और तेलगु की  लगभग ३०० फिल्मों में काम किया। गोल चेहरा, बड़ी आंखें और आकर्षक अंदाज वाली इस अभिनेत्री ने २० साल तक लोगों के दिलों में पर एक हीरोइन के रूप में राज किया 
 अपने सफलता के इसी अंदाज  को उन्होंने राजनीति में भी बरकरार  रखा है. सपनों की  परिभाषा बदल कर सपनों को नए रंगो से सरोबार कर दिया। 
  राजनीति  में " अम्मा " के नाम से  मशहूर जयललिता को  पार्टी के अंदर और सरकार में रहते हुए मुश्किल  कठोर फैसलों के  कारण तमिलनाडू में " आइरन लेडी " और तमिल की  "मार्ग्रेट थ्रेचर "भी कहा जाता है. सन १९८२ में  पूर्व साथी  अभिनेता और नेता एम्. जी. रामचंद्रन ही  जयललिता को राजनीति में लाए, उसी साल वह ए.आई.ए.डी.एम.के. के टिकट पर राज्यसभा  के लिए मनोनीत की गईं. उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। हालाकि १९८७ में उन्हें पार्टी के प्रोपोगेंडा  सचिव के पद से हटा दिया गया था। आल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम पार्टी से  तमिलनाडु में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठीं जयललिता  ने 1991 से 1996 के बीच, फिर कुछ वक्‍त 2001 में और उसके बाद 2002 से 2006 के बीच मुख्यमंत्री का कार्यभार संभाला  हैं। समर्थकों के लिए वह अम्मा भी हैं और क्रांतिकारी नेता (पुरात्ची थलाइवी) भी।
  
           सन १९९१ में राजीव गांधी की हत्या के बाद  जयललिता ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया, जिसका उन्हें फायदा पहुंचा. लोगों के मन में डीएमके के प्रति जबरदस्त गुस्सा था क्योंकि लोग उसे लिट्टे का समर्थक समझते थे. मुख्यमंत्री बनने के बाद जयललिता ने लिट्टे पर पाबंदी लगाने का अनुरोध किया, जिसे केंद्र सरकार ने मान लिया. हालांकि  वह हिंदूवादी समझी जाती हैं लेकिन उन्होंने शिव सेना और बीजेपी की कार सेवा के खिलाफ बोला.   2001 में वह दोबारा सत्ता में आईं तब उन्होंने लॉटरी टिकट पर पाबंदी लगा दी. हड़ताल पर जाने की वजह से दो लाख कर्मचारियों को एक साथ नौकरी से निकाल दिया, किसानों की मुफ्त बिजली पर रोक लगा दी, राशन की दुकानों में चावल की कीमत बढ़ा दी, 5000 रुपये से ज्यादा कमाने वालों के राशन कार्ड खारिज कर दिए, बस किराया बढ़ा दिया और मंदिरों में जानवरों की बलि पर रोक लगा दी.लेकिन 2004 के लोकसभा चुनाव में बुरी तरह हारने के बाद उन्होंने पशुबलि की अनुमति दे दी थी  और फिर किसानों की मुफ्त बिजली भी बहाल हो गई.  कई कठोर  फैसले लिए  जिसके कारन आलोचना का सामना भी करना पड़ा फिर उन्होने पुराने फैसलों से सीख लेते हुए पार्टी को बिखरने नहीं दिया…… उन्हें अपनी आलोचना बिल्कुल पसंद नहीं है, इसी  वजह से उन्होंने कई अखबारों के ख़िलाफ़ मानहानि के मुक़दमे दायर  कर रखें हैं। खैर बात यह नहीं कि क्या हुआ ? मुख्य बात यह है कि जयलिता ने सिनेमा और  राजनीती दोनों  में सफलता के नए मापदंड स्थापित किये है और  लोगों ने जयललिता के दोनों किरदारों  को बेहद पसंद किया व जयललिता आज भी लोगों के दिलो में राज करतीं है।

ऐसी ही एक अभिनेत्री जया भादुडी  बच्चन -
सन ९ अप्रैल १९४८ को मध्यप्रदेश के जबलपुर में बंगाली परिवार में जन्मी जया   भादुडी ने  महज १५ वर्ष की उम्र में अपने  फ़िल्मी सफ़र की शुरुआत सन  १९६३ में बंगाली फ़िल्म महानगर से की थी , फ़िल्मी दुनिया में जब उन्होंने कदम रखा तब शर्मीला टैगोर और हेममनीलिनी का जादू  लोगो पर चढ़ा हुआ था, ऐसे में सीधी सादी मासूम सी लड़की का सफल और स्थापित होना लोगों को नामुमकिन लगता था, परन्तु यही सादगी लोगो के दिलो में बस गयी।  आम लड़की के रूप में  किरदारों जिया है. लोगों को  उनमे अपने ही  पड़ोस की लड़की नजर आती थी। प्रतिभा और बेजोड़ अभिनय की धनी जया ने अपने बेहतरीन अभिनय द्वारा फ़िल्म जगत को  अनगिनत यादगार फिल्में दीं है और परदे पर हर किरदार को जीवंत  कर दिया, गुड्डी के नाम से मशहूर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री जया को उनके सर्वश्रेष्ठ अभिनय के लिए अनेकों फिल्मफेयर पुरस्कार, अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म फेयर पुरस्कार, सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार , लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार, सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री पुरस्कारो से नवाजा जा चुका है. सन ३ जून १९७३ को मशहूर अभिनेता अभिताभ बच्चन से उनकी शादी संपन्न हुई और  वे जय बच्चन बनी। उनका फ़िल्मी सफ़र कभी भी समाप्त हुआ, आज भी वें यदा कदा  बेहतरीब फिल्मों में अपने अभिनय का जादू  बिखेरतीं है।  उन्होंने अपनी एक विशिष्ठ पहचान स्थापित की है।  जया बच्चन को वर्ष २००४ में  राज्यसभा के सदस्य के तौर पर चयनित किया गया था. तब जया बच्चन उत्तर प्रदेश फ़िल्म डेवलपमेंट कॉउसिल के अध्यक्ष के तौर पर अन्य सेवाएं भी दे रहीं थी।  कांग्रेस के भारत के राष्ट्रपति ने उनसे इस्तीफा देने के लिए कहा था जिससे उनका कार्यकाल पूरा नहीं हो सका था। वर्ष १९९२ ने जया बच्चन को भारत सरकार द्वारा  पद्म श्री प्रदान किया गया और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा  यश भर्ती सम्मान से नवाजा गया। आज भी जया बच्चन अपना विशिष्ठ स्थान बनायें हुएँ है।
 इस कड़ी में नाम जुड़ता है बला की  खूबसूरत अभिनेत्री रेखा का। ....
     रेखा का असली नाम  भानुरेखा गणेशन है।  सन १० ओक्टुबर १९५४ को जन्मी प्रतिभाशाली अभिनेत्री रेखा का जन्म चेन्नई में हुआ था. एक बाल कलाकार के रूप में रेखा ने १५ वर्ष की उम्र से तेलगु फ़िल्म रंगुला रत्नम से फिल्मजगत में कदम रखा था, लेकिन हिंदी सिनेमा में उनकी प्रविष्टि फ़िल्म सावन भादो से हुई,  फिर रेखा ने पलट कर नहीं देखा, अपने ४० साल के फिल्मी करिअर में उन्होंने कई सुपरहिट फिल्में दीं है। १८० से ज्यादा फिल्मों में काम कर चुकी यह  सांवली रंग की  खूबसूरत अदाकारा अपने बेजोड़ अभिनय ,सदाबहार हुस्न और जीवंत किरदारों के कारण आज भी लोगों के दिलों पर  राज करती है, अभिनय तो जैसे इनकी रगों में बसा हुआ है, फ़िल्म जगत को कई यादगार फिल्में देने वाली रेखा का हुस्न और सौंदर्य आज भी कशिश भरा है. यह सौंदर्य लोगो के लिए  रहस्य बना हुआ है , उमराव जान का किरदार व कई गानें तो लगता है जैसे रेखा के लिए ही लिखे गए थे।  इन आँखों की मस्ती के….......  सच ने दीवानें आज भी हैं। रेखा का फ़िल्मी सफ़र कभी समाप्त नहीं हुआ अपितु कम हुआ है।  उनकी उपस्थिति आज भी दर्शको को  बॉक्स ओफ़िस तक खींच लाती है।  रेखा जितनी अपने सौंदर्य को लेकर चर्चित रही है उतनी ही कई बार अपने साथी अभिनेता से अपने अफैयर को लेकर भी चर्चित हुई है. कभी विनोद मेहरा , कभी विश्व्जीत तो कभी अमिताभ बच्चन जिनके साथ इनका नाम सबसे ज्यादा जुड़ा, तो कभी अपने  पति मुकेश गौस्वामी की  आत्महत्या के कारन चर्चा में आयीं, परन्तु रेखा का सौंदर्य और अभिनय सदैव सर्वोपरि  रहा है , हर किरदारों को  परदे पर जीवंत करने वाली रेखा को  उनके अभिनय के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार भी प्रदान किया गया है।
 सरकार ने रेखा के शानदार अभिनय और फिल्मजगत में उनके योगदान को सम्मानित करते हुए उन्हें राज्यसभा के तौर  पर मनोनीत किया गया ,१५ मई २०१२ को रेखा ने राज्यसभा सदस्य के रूप में शपथ ली थी। सांसद रेखा रिटेल में एफडीआई के पक्ष में नहीं थी। वह एफडीआई के पक्ष में वोट भी नहीं करना चाहती थी। सरकार ने रेखा को पटाने के लिए उनकी एक मांग पूरी कर दी और आखिरी मौके पर रेखा ने सरकार के पक्ष में वोट भी डाल दिया। एक समाचार पत्र के मुताबिक रेखा दिल्ली में मन मुताबिक आवास सुविधा नहीं मिलने से नाराज थीं। वे राजनीती में सक्रीय है पर रेखा आज भी लोगों के दिलो में एक अभिनेत्री के रूप में राज करती है।
 एक और खूबसूरत अदकारा, हर उम्र के लोगो की ड्रीम गर्ल हेमामालिनी जिन्होंने साइन जगत से अपने कदम राजनीति की धरती पर रखें है - १६ ओक्टुबर १९४८ को अम्मनकुडी में जन्मी हेमामालिनी को दर्शक ड्रीम गर्ल  के नाम से जानते है , हर उम्र के लोगों  की ड्रीम गर्ल  कही जाने वाली हेमामालिनी एक प्रसिद्ध अभिनेत्री के साथ- साथ प्रसिद्ध नृत्यांगना भी है , यह उन गिनी चुनी सदाबहार अभिनेत्रयो में से है जिनमें  सौंदर्य , अभिनय और ग्लैमर का अनूठा संगम है, अपने फ़िल्मी सफ़र की  शुरुआत में उन्होंने बहुत संघर्ष किया है। तमिल निर्देशक श्रीधर ने तो यहाँ  तक कह दिया था कि इनमे स्टार  अपील नहीं है, कई संघर्षो के बाद  उन्हें राजकपूर की फ़िल्म सपनों के सौदागर में बतौर नायिका काम मिला , जिसमे उन्हें ड्रीम गर्ल कह कर प्रचारित किया गया था, फ़िल्म तो नहीं चली पर उनका सौंदर्य लोगों के दिलो में जगह बनाने में कामयाब रहा।  सन १९७० की फ़िल्म जानी मेरा नाम से उन्हें सफलता हासिल हुई , करीब १५० से ज्यादा फिल्मो में काम कर चुकी हेमामालिनी  आज भी ड्रीम गर्ल कहा जाता है .  उनका सौंदर्य और अभिनय आज भी लोगो को परदे पर आकर्षित करता है।  कई फिल्मफेयर पुरस्कार से नवाजी जा चुकी हेमामालिनी ने समाजसेवा कार्य हेतु राजनीति  में प्रवेश लिया और भारतीय जनता पार्टी के सहयोग से  राज्यसभा सदस्य बनी हेमा मालिनी को फिल्मों में उल्लेखनीय योगदान के लिए 1999 में फिल्मफेयर का लाइफटाइम एचीश्री सम्मान से भी सम्मानित की गईं। हेमामालिनी आज भी फ़िल्म और राजनीति  में सक्रियता बनाये हुए है.
अब हम बात करते है बुद्धिजीवी  कही जाने वाली बेहतरीन आदाकारा शबाना आजमी की -- शबाना आजमी जितनी बड़ी सशक्त अभिनेत्री है वह उतनी ही अच्छी व सशक्त समाजकर्ता भी है.  शोषित समाज के लिए तो वह मुखर  आवाज बनी हुईं है । मशहूर शायर कैफी आजमी की बेटी  शबाना आजमी का जन्म १८ सितम्बर १९५० हुआ था, प्रखर बुद्धि की शबाना आजमी कभी फिल्मों में आना नहीं चाहती थी, शुरू से ही प्रोग्रेसिव विचारो, परम्पराओ एव मान्यताओं से जुडी शबाना आजमी का   झुकाव अभिनय  की   तरफ नहीं  था , लेकिन फ़िल्म सुमन में जया बच्चन की एक्टिंग से प्रभावित होकर शबाना आजमी ने फ़िल्म एक्टिंग और टेलीविजन इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया में दाखिला ले लिया।  सन  १९७३ को डिप्लोमा पूरा करके वापिस लौटी तो मरहूम ख्वाजा अहमद अल्बास ने उन्हें अपनी फ़िल्म  फासला के लिए  साइन कर लिया।  शबाना आजमी को पेड़ों के इर्द गिर्द घूमना पसंद नहीं था। उनकी फिल्में आम फिल्मों से अधिक सशक्त विषय पर आधारित होती थी.  बेजोड़ शानदार अभिनय के बतौर उन्होंने अर्थ ,स्पर्श , पार……  आदि अनगिनत फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवाया है। फिल्मो में जिस तरह उन्होंने आम आदमी का दर्द प्रस्तुत किया, उसी तरह असल जीवन में भी वे आम आदमी के दर्द से जुड़कर उनकी आवाज बनी।  उन्होंने एक सफल सामाजिक कार्यकर्त्ता के रूप में भी अपनी  पहचान बनायीं है।  जावेद अख्तर के साथ उन्होंने शादी की।  उनके बेजोड़ अभिनय के लिए कई नेशनल अवार्ड  से से सम्मानित किया गया , शबाना आजमी को भारत सरकार द्वारा पद्मश्री पुरस्कार भी दिया गया है. एक सामजिक कार्यकर्त्ता के तौर  पर भी शबाना आजमी एक सफल शक्शियत  बन कर उभरी है। दोनों किरदार फिल्म व राजनिति मे  शबाना आजमी एक सफल नाम है।

इसी कड़ी में आगे नाम जुड़ा अभिनेत्री  जयाप्रदा का ---
जया प्रदा  एक सफल अभिनेत्री और सफल राजनितीज्ञ के रूप में जानी जाती है . ३ अप्रैल १९६२ में जन्मी जयाप्रदा का असली नाम ललिता रानी है ,आंध्र प्रदेश के राममंड्री में जन्मी जयाप्रदा ने बचपन से ही नृत्य और संगीत में दक्षता हासिल कर ली  थी . स्कूल के वार्षिक  समारोह में १४ वर्ष की जयाप्रदा ने नृत्य प्रस्तुति दी थी।,तब वहाँ तमिल के एक निर्देशक भी मौजूद थे। जिन्होंने बाद में जयाप्रदा को अपनी तमिल  फ़िल्म भूमिकोसम  में ३ मिनिट का नृत्य करने के लिए कहा था।  उनके परिवार ने उन्हें प्रोत्साहित किया और इस तरह उन्होंने फिल्मों में अपने कदम रखे।  ३ मिनिट के उनके नृत्य को देखकर उनके पास अनगिनत फिल्मों के प्रस्ताव बाढ़ की तरह आने लगे। उनके नृत्य कौशल के बल पर उन्होंने बहुत जल्दी तमिल में फ़िल्मी सफलता हासिल कर ली , उनकी  फ़िल्म के बालचंदर की अंतुलेनी कथा जबरजस्त हिट  हुई।  उन्होंने तेलगु  के  अलावा तमिल, मलयालम और कन्नड़ फिल्मो में भी अभिनय किया एवं  सभी जगह सफलता के नए मुकाम स्थापित किये . जब   के. विश्वनाथ की  फ़िल्म सिरी सिरी  मुब्बा को हिंदी में सरगम नाम से बनाया गया था,  तब  इस फ़िल्म से सफलता के झंडे  गाड़ दिए थे। अपने ३० वर्षीय फ़िल्मी केरियर में उन्होंने ३००  से ज्यादा फिल्में की है। इस तरह हिंदी फिल्मों में भी उनका पदार्पण हुआ. अनगिनत पुरस्कारो से नवाजा गया है। उन्हें  सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री, सर्वश्रेष्ठ कला अभिनेत्री  के अलावा उन्हें लाइफ टाइम अचीवमेंट  पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है.  कुछ अन्य कई पुरस्कार जैसे  राजीव गांधी पुरस्कार , नर्गिस दत्त पुरस्कार , शकुंतला कला रत्नम पुरस्कार , उत्तम कुमार पुरस्कार , उत्तम लेखन पुरस्कार , ANR उपलब्धि पुरस्कार , किन्नेर सावित्री पुरस्कार , कला सरस्वती पुरस्कार …… समेत अनगिनत पुरस्कारो से उन्हें नवाजा गया है। सन १९८६ में श्रीकांत नहाटा से उन्होंने शादी की जो पहले से शादी शुदा थे। जितनी सफल वे फिल्मो में हुई उतनी ही राजनिति  में भी  सफलतापूर्वक पहचान स्थापित करके  सक्रीय है जयाप्रदा के राजनितिक  जीवन पर नजर डालें तो कई रोचक तथ्य भी मिलते हैं . फ़िल्मी कॅरिअर के चरम पर पहुचने के बाद जयाप्रदा ने अपने साथी अभिनेता   एन टी रामाराव  की पार्टी से १९९४ में तेलगुदेसम पार्टी से अपना राजनीतिक सफ़र शुरू किया।  एन टी रामाराव का स्वास्थ ख़राब होने पर चन्द्र बाबू नायडू को आंध्रप्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया और उसी दौरान जयाप्रदा  राज्यसभा के लिए नामित हुई थी। सन १९९६ में जयाप्रदा तेलगु की महिला अध्यक्ष बनी।  बाद में उन्होंने तेपेदा छोड़ दिया और समाजवादी पार्टी में शामिल हो गयी। सन २००४ के आम चुनाव में उन्होंने रामपुर से संसदीय चुनाव लड़ा व ८५ हजार वोटो से जीती।  पांच साल तक सांसद रहने के बाद पुनः चुनाव लड़ा और ३०,००० से  ज्यादा वोटो के अंतर पर विजयी रही।  आज भी जयाप्रदा राजनिति  में उतनी ही शिद्दत से कार्यरत है  और सफल है। 
अब बात करतें है उस युवा अभिनेत्री की जिसने कम उम्र में सफलता के कई आयाम स्थापित किये हैं।   यहाँ हम बात कर रहे हैं बॉलीबुड , टोलीवुड और कॉलीवुड की  सफलतम अभिनेत्री नगमा की जिनका वास्तविक नाम है नंदिता मोरारजी या नम्रता सदाना, जिनका  जन्म २५ दिसम्बर १९७४ को हुआ।
 मुसलमान माँ  और हिन्दू पिता की  संतान नगमा  सभी धर्मो का सम्मान करती है. अपनी मिश्रित धार्मिक प्रवर्ति के कारन उन्होंने  कुरान , भगवतगीता , बाइबल सभी का अध्यन किया है। सन  १९९० में १६ साल की  उम्र में उन्होंने अभिनेता सलमान खान के साथ बागी नाम की  सफलतम हिंदी फ़िल्म से फ़िल्म जगत में अपनी जोरदार एंट्री की थी । हिंदी , तेलगु , तमिल ,कन्नड़ , मलयालम , भोजपुरी , बंगाली , भोजपुरी , पंजाबी और मराठी सभी फिल्मो में उल्लेखनीय कार्य किया।  तमिल में  प्रसंशको ने  तो उनका एक मंदिर ही बना दिया और भोजपुरी सिनेमा में तो वह भोजपुरी फिल्मो की माधुरी दीक्षित कही जाती है। सन २००५ में भोजपुरी फ़िल्म दूल्हा मिलाल दिलदार  के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार प्राप्त हुआ।   अप्रैल  २००४ में उन्होंने कांग्रेस पार्टी के लिए आँध्रप्रदेश में प्रचार किया था , कांग्रेस पार्टी की समर्थक नगमा को भाजपा ने लुभाने की बहुत कोशिश  की, परन्तु वे कांग्रेस पार्टी की स्टार प्रचारक थी।   धर्मनिरपेक्षता , कमजोर  और गरीब वर्ग के उद्धार के लिए प्रतिबध्द नगमा को सन  २००७ में राज्य सभा  सीट के लिए  नामित किया गया था।   राजीव गांधी   की प्रशंसक होने के कारण उन्होंने कोंग्रेस को ही प्रमुख रखा, नगमा एक राजनीतियज्ञ और अभिनेत्री के तौर पर सफल एवं सक्रीय भूमिका में है।
इसी तरह कई अभिनेत्रिया है जो सिने  परदे से निकलकर राजनीति की दुनिया में आयी है। आगे बात करते है बंगाली और हिंदी की  सफल अभिनेत्री और बंगाल की महान अदाकारा सुचित्रा की बेटी  मुनमुन  सेन की, जो भारतीय सिनेमा की प्रमुख अभिनेत्री रही है। २८ मार्च १९४८ को कोलकत्ता में   जन्मी मुनमुन सेन ने हिंदी के अलावा भी बंगला तमिल और मराठी फिल्मों में भी काम किया है कला के अलावा मुनमुन सेन को सामजिक कार्यो में भी रूचि थी, यही कारण है कि उन्होंने शादी से पहले ही एक बच्चे को गोद ले लिया था। अपने बोल्ड और   सेक्सी अंदाज के लिए मशहूर रही मुनमुन सेन एक सफल अभिनेत्री के  तौर पर कभी स्थापित नहीं हो सकी थी।  सन २०१४ में पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा लोकसभा सीट से तृणमूल की उमीदवार के तौर पर उन्होंने अपना टिकिट दाखिल किया है। चूँकि यह महान बंगाली अदाकारा की बेटी हैं  तो इसी वजह से राज्य की जनता से उन्हें बहुत स्नेह मिलता है। उन्होंने यह उम्मीद जतायी है कि यदि उन्हें जनसमर्थन प्राप्त होता है तो इस नए किरदार में वह लोगों के दुःख दर्द को जानने का मौका मिलेगा और वह उनके लिए कुछ अच्छा करना चाहेंगी।

      इस तरह  ५   ओक्टुबर १९६९ को जन्मी बंगला अभिनेत्री, निर्देशक , और डाइरेक्टर  शताब्दी राय ने भी तृणमूल कोंग्रेस से ही राजनीती में अपने कदम बढ़ाएं है  और सफलता पूर्वक राजनीति में सक्रीय है , इसी कड़ी बंगाल के रंगमंच की कलाकार अर्पित घोष भी राजनीति में अपनी सक्रियता बनाये हुए है। बंगाल का एक और नाम अभिनेत्री  संध्या राय ने तृणमूल कांग्रस से अपना  मार्च २०१४ में नामांकन दाखिल किया था.

 हाल ही में बॉलीबुड की जानी मानी मॉडल एवं अभिनेत्री गुलपनाग जिनका जन्म ३ जनवरी १९७९ को हुआ है, उन्होंने भी राजनीति की  तरफ रुख किया है। गुलपनाग पूर्व में मिस इंडिया रह चुकी है। शानदार, सशक्त अभिनय करने  वाली गुलपनाग चित्रपट के मामले में बहुत चूजी रही है ,इन्हे क्रिटिक्स चॉइस सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार प्राप्त हुआ है।  गुलपनाग अभिनय के साथ साथ सामजिक कार्यो से जुडी हुई थी। गुलपनाग भ्रष्टाचार ,वंशवाद और अपराधी राजनीति के आंदोलनो में सक्रिय  रही है, इन्होने १४ मार्च २०१४ को आप पार्टी के नामांकन  दाखिल किया था  यह भी सबसे कम उम्र की अभिनेत्री है। जिन्होंने राजनीति में अपने कदम बढ़ाये है।
    यह सफ़र तो यहीं ख़त्म नहीं होता, किन्तु सभी अभिनेत्रियां , एक अभिनेत्री के रूप में सभी के दिलों पर  राज कर रही है किन्तु हम तो यही चाहेंगे कि यह सभी चमकते सितारे राजनीति के गलियारो को सकारात्मक ऊर्जा और नयी रौशनी से रौशन कर दे।  यहाँ भी उसी चमक के साथ लोगो के दिलो पर राज करें और समाज में में अपने महत्वपूर्ण कार्यों में अपना योगदान प्रदान कर सकें। शुभकामनाओ सहित।
-------- शशि पुरवार 


Tuesday, October 6, 2015

रंग जमाया - छोटी बहर

मन को जिसने
फिर भरमाया

जादू ऐसा
दिल पिघलाया

लगता हमको
प्यारा साया

सखी सहेली
पास बुलाया

महफ़िल में अब
रंग जमाया

हर कोई फिर
दौड़ा आया
-शशि पुरवार
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Monday, September 21, 2015

मन खो रहा संयम


आस्था के नाम पर,
बिकने  लगे हैं भ्रम
कथ्य को विस्तार दो ,
यह आसमां है कम .

लाल तागे में बंधी
विश्वास की कौड़ी
अक्ल पर जमने लगी, ज्यों
धूल भी थोड़ी
नून राई, मिर्ची निम्बू
द्वार पर कायम

द्वेष, संशय, भय हृदय में
जीत कर हारे
पत्थरों को पूजतें, बस
वह हमें तारे
तन भटकता, दर -बदर
मन खो रहा संयम.

मोक्ष दाता को मिली है
दान में शैया
पेंट ढीली कर रहे, कुछ
भाट के भैया
वस्त्र भगवा बाँटतें,
गृह, काल. घटनाक्रम .
- शशि  पुरवार

Saturday, September 19, 2015

तिलिस्मी दुनियाँ



काटकर इन जंगलो को
तिलिस्मी दुनियाँ बसी है 
वो फ़ना जीवन हुआ, फिर
पंछियों की बेकसी है.

चिलचिलाती धूप में, ये
पाँव जलते है हमारे
और आँखें देखती है
खेत के उजड़े नज़ारे
ठूँठ की इन बस्तियों में
पंख जलना बेबसी है

वृक्ष  गमलों में लगे जो
आज बौने हो गए है
आम पीपल और बरगद 
गॉंव भी कुछ खो गए है
ईंट गारे के  महल  में
खोखली रहती हँसी है

तीर सूखे  है नदी के
रेत का फिर आशियाँ है
जीव - जंतु लुप्त हुए जो
अब नहीं नामो- निशाँ है
चाँद पर जाने लगे हम
गर्द में धरती फँसी है
-- शशि पुरवार



Monday, September 14, 2015

विश्व फलक पर चमक रही है हिंदी



1४ सितम्बर हिंदी दिवस है लेकिन हिंदी दिवस एक दिन या एक महीने के लिए नहीं अपितु हिंदी दिवस रोज मनाएँ। हिंदी सिर्फ भाषा नहीं मातृभाषा है, हिंदी का विकास हमारा विकास है। शान से कहें हिंदी है हम। हिंदी दिवस पर विशेष शुभकामनाएँ।


विश्व फलक पर चमक रही है
हिंदी  मधुरम भाषा
कोटि कोटि जन के नैनों की
सुफल हुई अभिलाषा.

बागिया में वह खिलती

सखी- सहेली के संग -संग
गले सभी के मिलती
पुष्पित होती, हँसते गाते
मन की कोमल आशा ।

यह सूफी  मुस्काई

तुलसी के अँगना में उतरी
बन दोहा -चौपाई
झूल प्रकृति के पलने में
प्रतिदिन, गढ़ती परिभाषा।

गागर में सागर भरती

हिंदी  का रस पान करें
निज भाषा अपनी है, हम
हिंदी का सम्मान करें
एक सूत्र में सबको बाँधे
हिंदी  देशज भाषा।


                                       - शशि पुरवार 
 

Wednesday, September 9, 2015

हर पल रोना धोना क्या



हँस कर जीना सीख लिया 
हर पल रोना धोना क्या

धीरे धीरे कदम बढ़ा
डर कर पीछे होना क्या

जीवन की इस बगियाँ में
काँटों को भी ढोना क्या

दुःख सुख तो है एक नदी
क्या पाना फिर खोना क्या

मिल जाये खुशियाँ सारी
थककर केवल  सोना क्या.

सखी सहेली  जब मिल बैठें
मस्ती का यह कोना क्या

दुनियादारी भूल गए
मीठे का फिर दोना क्या 
 --  शशि पुरवार 

Sunday, September 6, 2015

हे प्रिय हस्ताक्षर





नित हिंदी के पाँव पखारो
हे प्रिय हस्ताक्षर,
बिखरें, जग के हर कोने में
उसके स्वर्णाक्षर

सरस-सुगम, उन्नत ये भाषा
संस्कृति की बानी है
अंग्रेजी की सर्द धरा पर
ये, अनुसंधानी है

ज्ञान ज्योति की अलख जगाते
हिंदी अंत्याक्षर
नित हिंदी के पाँव पखारो
हे प्रिय हस्ताक्षर

गरिमामयी, हिन्द की रोली
रंगो को अपनाएँ
मनमोहक शब्दों के मोती
मिल प्रतिबिम्ब बनाएँ

गीत-गजल औ छंद-विधाएँ
हिंदी अमृताक्षर
नित हिंदी के पाँव पखारो
हे प्रिय हस्ताक्षर

हिंदी का सत्कार करें, हो
जन जन की अभिलाषा
गाँव-शहर हर आँगन के
सँग, बने राष्ट्र की भाषा

सीना तान, गर्व से बोलें
हम हिंदी साक्षर

नित हिंदी के पाँव पखारो
हे प्रिय हस्ताक्षर

-- शशि पुरवार

Tuesday, August 18, 2015

मन प्रांगण बेला महका। .

मन, प्रांगण बेला महका
याद तुम्हारी आई 
इस दिल के कोने में बैठी 
प्रीति, हँसी-मुस्काई।

नोक झोंक में बीती रतियाँ 
गुनती रहीं तराना 
दो हंसो का जोड़ा बैठा 
मौसम लगे सुहाना

रात चाँदनी, उतरी जल में 
कुछ सिमटी, सकुचाई।

शीतल मंद, पवन हौले से 
बेला को सहलाए 
पाँख पाँख, कस्तूरी महकी  
साँसों में घुल जाए। 

कली कली सपनों की बेकल 
भरने लगी लुनाई 

निस  दिन झरते, पुष्प धरा पर 
चुन कर उसे उठाऊँ 
रिश्तों के यह अनगढ़ मोती 
श्रद्धा सुमन चढ़ाऊँ

रचे अल्पना, आँख शबनमी 
दुलहिन सी शरमाई।    
     --- शशि पुरवार 

जेन जी का फंडा सेक्स, ड्रिंक और ड्रग

    आज की युवा पीढ़ी कहती है - “ हम अपनी शर्तों पर जीना चाहते हैं समय बहुत बदल गया है   ….  हमारे माता पिता हमें हर वक़्त रोक टोक करते हैं, क्...

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🏆 Shashi Purwar — Honoured as 100 Women Achievers of India | Awarded by Maharashtra Sahitya Academy & MP Sahitya Academy