भोर
हुई मन बावरा,
सुन
पंछी का गान
गंध
पत्र बाँटे पवन,
धूप
रचे प्रतिमान
पानी
जैसा हो गया,
संबंधो
में खून
धड़कन
पर लिखने लगे,
स्वारथ
का कानून
आशा
सुख की रागिनी,
जीवन
की शमशीर
गम
की चादर तान कर,
फिर
सोती है पीर
सोने
जैसी जिंदगी,
हीरे
सी मुस्कान
तपकर
ही मिलता यहाँ,
खुशियों
का बागान
जीवन
तपती रेत सा,
अंतहीन
सी प्यास
झरी
बूँद जो प्रेम की,
ठहर
गया मधुमास
सत्ता
में होने लगा,
जंगल
जैसा राज
गीदड़
भी आते नहीं,
तिड़कम
से फिर बाज
सत्ता
में होने लगा,
जंगल
जैसा राज
गीदड़
भी आते नहीं,
तिड़कम
से फिर बाज
उपकरणों
का ढेर है,
सुविधा
का सामान
धरती
बंजर हो रही,
मिटे
खेत खलियान
फिसल
गई ज्यों शब्द से,
टेढी
हुई जुबान
अपना
ही घर फूंकते,विवादित
से बयान
मन
भी गुलमोहर हुआ,
प्रेम
रंग गुलजार
ह्रदय
वसंती मद भरा ,गीत
झरे कचनार
समय
लिख रहा माथ पर,उमर
फेंटती ताश
तन
धरती पर रम रहा,
मन
चाहे आकाश
संवादों
में हो रहा,
शब्दों
से आघात
हरा
रंग वह प्रेम का,
झरते
पीले पात
शशि पुरवार