१
दो पल की है जिंदगी, आगा पीछा छोड़
हँसकर जी ले तू जरा, मन के बंधन तोड़
२
सरपट दौड़ी रेलगाड़ी , छोड़ समय की डोर
मन ने भरी उड़ान फिर , शब्द हुए सिरमौर
३
लेखक बनते ही गए, जन जन की आवाज
पाठक ही सरताज है, रचना के दमसाज
४
बर्फ हुई संवेदना, बर्फ हुए संवाद
खुरच खुरच कर भर रहे, तनहाई अवसाद
४
प्रिय तुम्हारे प्रेम की, है विरहन को आस
दो शब्दों में सिमट गया, जीवन का विन्यास
५
मन में बैचेनी बढ़ी, साँस हुई हलकान
दिल भी बैठा जा रहा, फीकी सी मुस्कान
६
कर्म ज्योति बनकर जले, फल का नहीं प्रसंग
राहों में मिलने लगे, सुरभित कोमल रंग
शशि पुरवार
दो पल की है जिंदगी, आगा पीछा छोड़
हँसकर जी ले तू जरा, मन के बंधन तोड़
२
सरपट दौड़ी रेलगाड़ी , छोड़ समय की डोर
मन ने भरी उड़ान फिर , शब्द हुए सिरमौर
३
लेखक बनते ही गए, जन जन की आवाज
पाठक ही सरताज है, रचना के दमसाज
४
बर्फ हुई संवेदना, बर्फ हुए संवाद
खुरच खुरच कर भर रहे, तनहाई अवसाद
४
प्रिय तुम्हारे प्रेम की, है विरहन को आस
दो शब्दों में सिमट गया, जीवन का विन्यास
५
मन में बैचेनी बढ़ी, साँस हुई हलकान
दिल भी बैठा जा रहा, फीकी सी मुस्कान
६
कर्म ज्योति बनकर जले, फल का नहीं प्रसंग
राहों में मिलने लगे, सुरभित कोमल रंग
शशि पुरवार











