रूह में बसा है एक
शबनमी एःसास
शब्दों से परे,
झिझकती साँसे
कुछ सकुचाई सी
और अधर पर लगे है
लज्जा के ताले!
पलके झुकी झुकी
मुस्काती सी
एक लचीली डाल !
और
बह रहे है सपने
मन के प्रांजल में
पर
न कोई वादा ,न कसमे
बस हाथो को थाम
उँगलियों ने कह दिए
सात वचन!
अनुबंध है यह प्रेम का
अनुरक्त रहे
विश्वास के बीज से!
रिश्ते खेलते है सदैव
दिल और दिमाग
के पत्तो से ,पर
खिलखिलाता है
जीवन का बसंत !
मिलन है यह
आत्मा से आत्मा का
शाश्वत प्रेम का,
सत्य वचन ,बंधन
जन्मो जन्मो का ....!
24.04.13
--------- शशि पुरवार