Wednesday, April 11, 2012
Monday, April 9, 2012
हरसिंगार.........2
हरसिंगार
जीने की आस
बढ़ता उल्लास
महकता जाये
भीनी भीनी मोहक सुगंध
रोम -रोम में समाये
मदहोश हुआ मतवाला तन
बिन पिए नशा चढ़ता जाये
शैफाली के आगोश में लिपटा शमा
मधुशाला बनता जाये
पारिजात महकता जाये
संग हो जब सजन -सजनी
मन हरसिंगार
विश्वास -प्रेम के खिले फूल
जीवन में लाये बहार
प्यार का बढ़ता उन्माद
पल-पल शिउली सा
महकता जाये ...!
नयनो में समाया शीतल रूप
जीवन के पथ पर कड़कती धूप
न हारो मन के साथ
महकने की हो प्यास
कर्म ही है सुवास
मुस्काता उल्लास
जीवन हरसिंगार
महकता जाये ...!
:_---शशि पुरवार
Friday, March 30, 2012
हरसिंगार.....1
शिउली सौन्दर्य
लतिका पे खिला
गुच्छो में भरा
पारिजात लदा बदा
दुग्ध -उज्जवल शेफालिका
कोमल बासंती नाजुक अंग
शशि किरण में है बिखरा
आच्छादित सौन्दर्य अपलक
भीनी -भीनी मोहक सुगन्धित सुवास
रोम -रोम में समाये
मदमाती बयार इठलाये
निखरता शिवली का यौवन
अँखियो की प्यास बुझाए
होले-होले चुपके से
प्राजक्त रात्र में खिले
अंजुल भर -भर
हरसिंगार ,
झर -झर झरते
धरा का नवल श्रृंगार करे
व प्रकृति का उन्माद बढे
लजाती मोहिनी शेफाली
मुस्काता चंचल बसंत
प्राकृतिक सौन्दर्य की पराकाष्ठा
अप्रतिम अतुल्य
ईश्वरीय सृजन .
:_------शशि पुरवार
Wednesday, March 28, 2012
बिखरते रिश्ते ...!
जीवन के रुपहले पर्दे से
बिखरते रिश्ते ...!
पतला होता खून
बढती धन की भूख
अपने होते है पराये
सुकून भी न घर में आए
भाई को भाई न भाए
सिमटते रिश्ते
क्या ननद क्या भौजाई
प्यारी लागे सिर्फ कमाई
सैयां मन को भावे
सैयां मन को भावे
कांच से नाजुक धागे
बूढ़े माँ - बाप भी बोझ लागे
खोखले होते रिश्ते
अब कहाँ वो आंगन
जहाँ खड़कते चार बर्तन
गूंजे अब न किलकारी
सिर्फ बंटवारे की चिंगारी
स्वार्थी होता खून
टूटते बिखरते रिश्ते .
नादाँ ये न जाने
कैसे बीज है बोये
माँ के कलेजे के टुकड़े कर
कैसे चैन से सोये
आने वाला कल
खुद को दोहराता है
वक्त तब निकल जाता है
प्राणी तू अब क्यो रोये
पीछे छुटते रिश्ते .
बिखरते रिश्ते ...!
:------शशि पुरवार
Wednesday, March 21, 2012
Friday, March 16, 2012
नाजुक धागे .................बसा है बागवान .
तांका---------------
१ आये अकेले
दुनिया के झमेले
जाना है पार ,
जिंदगी की किताब
नयी है हर बार .
२ ढलती उम्र
शिथिल है पथिक
अकेलापन ,
जूझता है जीवन
स्वयं के कर्मो संग .
३ पैसे का नशा
मस्तक पे है चढ़ा
सोई चेतना ,
नजर का है धोखा
वक्त जब बदला .
४ यादो के पल
झिलमिलाता कल
महकता है ,
दिलो के अरमान
बसा है बागवान .
५ तेज रफ़्तार
दूर है संगी -साथी
न परिवार ,
जूनून है सवार
मृगतृष्णा की प्यास .
६ बालियो संग
मचलता यौवन
ठिठकता सा ,
प्राकृतिक सौन्दर्य
लहलहाता वन .
हयुक ------------------
१ नाजुक धागे
मजबूत बंधन
गठबंधन .
२ तीखी चुभन
सूखे गुलाब संग
दीवानापन .
३ सर्द है यादे
शूल बनी तन्हाई
हरे नासूर .
४ प्यासा है मन
साहित्य की अगन
ज्ञानपिपासा .
५ कलम करे
रचना का सृजन
मनभावन .
६ अभिव्यक्ति की
चरम अनुभूति
है स्पंदन .
:-------- शशि पुरवार
Monday, March 5, 2012
प्रस्फुटन बसंत ........ रंगो की बौछार ...... होली में है खास ......!
गीत .....
भरी पिचकारी ,
छाई है खुमारी
भरी पिचकारी ,
छाई है खुमारी
भीगा तन - मन ,
मोरे कान्हा तोरे संग .
मोरे कान्हा तोरे संग .
भीगी अंगिया चोली ,
रंगो की है होली
रंगो की है होली
प्यार बेशुमार ,
नशा चढ़े बार -बार .
नशा चढ़े बार -बार .
नयन मिले ,
धड़कन बढे
धड़कन बढे
नटखट सैयां
मोहे अंग लगे .
मोहे अंग लगे .
रंगो की बौछार ,
नहीं गिले -शिकवे आज
नहीं गिले -शिकवे आज
प्रेम की फुहार ,
है यह मिलन का त्यौहार.
है यह मिलन का त्यौहार.
खुशियाँ आये बार -बार ,
मन की पुकार
मन की पुकार
मोरे कान्हा तोरे संग ,
जुड़े है दिल के तार .
जुड़े है दिल के तार .
भर पिचकारी .........!
----------------------------------------- !!!!!!!!!!!!!!! !------------------ ........क्षणिकाएँ,.......!
१ ) करे श्रींगार
पिया का प्यार
लज्जा गुलाबी
अधर हुए लाल
रंग -अबीर से
रंगे है गाल.
२) गुझिया पपड़ी
भांग की कुल्फी
होली में है खास ,
बाजारो की
रौनक बढाये
रंग बिरंगी पिचकारी ,
और गुलाल .
पटी है दुकाने
आये नटखट बाल गोपाल .
३) फूलो पत्तो का
प्रस्फुटन बसंत
प्रकृति करती सृजन
बयार की उन्माद
फैला चारो दिशाओ
में उल्लास .
४) गुब्बारो में
पिया का प्यार
लज्जा गुलाबी
अधर हुए लाल
रंग -अबीर से
रंगे है गाल.
२) गुझिया पपड़ी
भांग की कुल्फी
होली में है खास ,
बाजारो की
रौनक बढाये
रंग बिरंगी पिचकारी ,
और गुलाल .
पटी है दुकाने
आये नटखट बाल गोपाल .
३) फूलो पत्तो का
प्रस्फुटन बसंत
प्रकृति करती सृजन
बयार की उन्माद
फैला चारो दिशाओ
में उल्लास .
४) गुब्बारो में
भर के पानी ,
फैके बालगोपाल
बड़े - बूढ़े भागते
इधर -उधर
छिटके रंगो की मार
बुरा न मानो होली है
सब तरफ गूंजे यही आवाज .
फैके बालगोपाल
बड़े - बूढ़े भागते
इधर -उधर
छिटके रंगो की मार
बुरा न मानो होली है
सब तरफ गूंजे यही आवाज .
-----------------------------! !----------------------------
हाइकु ...........!
१ ) ले पिचकारी
भरे रंग गुलाबी
छोरो की टोली
२) खिले पलाश
अंबुआ की बहार
फागुन आया .
३) रंगो की होली
मिलन का त्योहार
गुझिया खास .
४) ले पिचकारी
भरे रंग गुलाबी
बाल गोपाल .
५) उड़े गुलाल
रंगो का है खुमार
प्यारी सौगात .
६) कृष्ण राधा की
प्यार की है प्रतिक
अमरबेल .
:-------शशि पुरवार
----------------------------------------------! !-------------------------------
दोस्तो इस बार सोचा की होली पर सब रंग बिखेरूं .....इसीलिए मिली जुली प्रस्तुति .......आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाये ...........
होली का त्यौहार,
रंगों की बौझार
गुब्बारो की मार
दोस्तों का प्यार
मिठाइयाँ खास
आप सभी के जीवन में रंगो की बौझार हो ............हर पल महकता सा, अधरों पे मुस्कान का राज हो .....:)))))..............हैप्प ी होली ............. आपको एवं आपके परिवार को .
--------- शशि पुरवार
Tuesday, February 28, 2012
होली के रंग में रंग दो
एक पुरानी रचना ....बहुत सालो पहले लिखी थी ....
होली के रंग में रंग दो मुझे
ओ मेरे सपनो के कन्हैया ,
याद में बैठी हूँ आज तुम्हारे
इंतजार में उम्मीद के सहारे .
देख कर औरो की होली
मचल उठा मन खेलने को
लगा दो कोई ऐसा रंग
जो नाम न ले उतरने को
प्यार के उस रंग में रंगने को
खड़ी हूँ मै , आज द्वारे
अब तो आकर ले चलो मुझे
तुम अपने घर के द्वारे .
देखन को कर रहा मन
ब्रज की सुंदर होली
जहाँ खेले थे कन्हैया
राधा के संग होली .
:-- शशि पुरवार
Saturday, February 25, 2012
खिले पलाश........
१) रात अकेली
सन्नाटे की सहेली
काली घनेरी .
२) चिंता का नाग
फन जब फैलाये
नष्ट जीवन .
३ ) पति -पत्नी में
वार्तालाप सिमित
अटूट रिश्ता .
४ ) खिले पलाश
अंबुआ की बहार
फागुन आया .
५ ) रंगो की होली
मिलन का त्यौहार
गुझिया खास .
------------------------६)दरख्तो को है -----------------------
जड़ से उखड़ती
तूफानी हवा .
७) गडगडाहट
चमकती बिजली
आई बारिश .
८ ) काले घनेरे
बादलो का डेरा
गर्म तपिश .
९ ) थिरकता बिभोर
सावन के झूले
मन मयूर .
:------शशि पुरवार
Thursday, February 16, 2012
जार - जार होते सिद्धांत....
हे प्रभु , तेरी लीला है न्यारी ,
जग पे छाई , है यह कैसी खुमारी ..
गिरते मूल्य ,
छोटे होते इंसान
मौकापरस्त है वे ,
सेकते अपने हाथ ,
रूपैया महान....!
भारी होती जेबें ,
खिसियानी मुसकान .
चहुँ और फैले दानव ,
मासूमियत परेशां...!
कर के नाम पर
साधू दे दान ,
चतुर छुपाये काम
तभी तो होगा
देश का कल्याण .
मासूम चेहरे
हैवानियत भरी नजरे
कुटिलता है पहचान .
जार - जार होते सिद्धांत
इंसानियत हैरान .
नर हो या नारी
कटाक्ष की तलवार
सोने सी भारी
स्वार्थ , अहं , दुश्मनी
तानाशाही , खुनी मंजर की
आग में है झुलसे
दुनिया सारी..... !
हे प्रभु , तेरी लीला है न्यारी ...!
:--शशि पुरवार
Wednesday, February 8, 2012
थकित कदम....!
चुपचाप हौले से , वाट जोहते है तेरी ,
धीरे से अब तो आ जाओ , खुशियाँ
दामन में मेरी ....!
पेशानी की सलवटो को छुपाते
दर्द की ज्वाला को दिल में दबाते ,
अधरो पे हैं मुस्कान लाते
जीवन के रण में बस ,
कैक्टस को ही गिनते जाते ..!
रूत बदली , बसंत ने ली अंगड़ाई
नवकोपलों पे है, खुमारी छाई .
झरते पत्ते दे रहे पुनरागमन का पैगाम ,
फिर कब ख़त्म होगा सब्र का इन्तिहाँ .
बीतते वक्त के साथ , मद्धम होती रौशनी
जर्जर तन , थकित कदम , सुप्त सा मन .
एक सा लागे सारा मौसम ....बसंत .
ऐसे ही खाली जाम के संग ,
जीवन से रुकसत होते हम .....!
चुपचाप , हौले से वाट जोहते है तेरी ,
अब तो आ जाओ ...खुशियाँ ....
दामन में मेरी .............!
:-- शशि पुरवार
:-- शशि पुरवार
कभी -कभी ऊपर वाला भी सितम करता है ,
भरे हुए जाम को सदैव छलकाता है और जिसका प्याला खाली है उसका खाली ही रह जाता है ....!
थोडा सा जाम यदि खाली प्याले में गिरे तो मन तृप्त हो जाता है ..........पर जिसके जाम गिरते रहते है.... उन्हें कहाँ किसी का दर्द नजर आता है .......!
:----शशि पुरवार.
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