गेंहू -------
Wheat (disambiguation)
गेहूँ लोगो का मुख्य आहार है .खाद्य पदार्थों में गेहूँ का महत्वपूर्ण स्थान है , सभी प्रकार के अनाजो की अपेक्षा गेहूँ में पोष्टिक तत्व अधिक होते है और दैनिक आहार के सब प्रकार के अनाजों में गेहूँ श्रेष्ठ है , इसीलिए गेहूँ को " अनाजों का राजा " माना जाता है .
भारत में सर्वत्र गेहूँ का उत्पादन होता है , विशेषतः पंजाब ,गुजरात और उत्तरी भारत में गेहूँ पर्याप्त मात्रा में होता है , एवं उत्तरी भारत का सर्वमान्य आहार गेहूँ है
वर्षाऋतु में खरीब फसल के रूप में और सर्दी में रबी फसल के रूप में गेहूं बोया जाता है . सिचाई वाले रबी फसल के गेहूँ को अच्छे निथार वाली काली , पीली या बेसर रेतीली जमीन अधिक अनुकूल पड़ती है जबकि बिना सिचाई की वर्षा की फसल के लिए काली और नमी का संग्रह करने वाली चकनी जमीन अनुकूल होती है . सामान्यतः नरम काली जमीन गेहूँ की फसल के लिए अनुकूल होती है .
गेहूँ का पौधा डेढ़ -दो हाथ ऊँचा होता है .उसका तना पोला होता है एवं उस पर ऊमियाँ ( बालियाँ ) लगती है , जिसमे गेहूँ के दाने होते है . गेहूँ की हरी ऊमियों को सेंककर खाया जाता है और सिके हुए बालियों के दाने स्वादिष्ट होते है .
गेहूँ की अनेक किस्में होती है . कठोर गेहूँ और नरम गेहूँ मुख्य है , रंगभेद की दृष्टी गेहूँ के सफ़ेद और लाल दो प्रकार होते है .इसके उपरान्त बाजिया , पूसा , बंसी , पूनमिया , टुकड़ी , दाऊदखानी , जुनागढ़ी , शरबती , सोनारा ,कल्याण , सोना , सोनालिका , १४७ , लोकमान्य , चंदौसी ...आदि गेहूँ की अनेक प्रसिद्ध किस्में है .इन सभी में गुजरात में भाल -प्रदेश के कठोर गेहूँ और मध्य भारत में इंदौर - मालवा के के गेहूँ प्रशंसनीय है .
गेहूँ के आटे से रोटी , सेव , पाव रोटी , ब्रेड ,पूड़ी , केक , बिस्किट , बाटी , बाफला आदि अनेक बानगियाँ बनती है . उपरान्त गेहू के आटे से हलुआ , लपसी , मालपुआ , घेवर ,खाजे , जलेबी वगेरह पकवान भी बनते है .
गेहूँ के पकवानों में घी,शक्कर , गुड़ या शर्करा डाली जाती है .गेहूँ को ५ -६ दिन भिगोकर रखने के बाद उसके सत्व से बादामी पोष्टिक हलुआ बनाया जाता है , गेहूँ का दालिया भी पोष्टिक होता है और इसका उपयोग अशक्त बीमार लोगो को शक्ति प्रदान करने के लिए होता है , गेहूँ के सत्व से पापड़ और कचरिया भी बनायी जाती है .
गेहूँ में चरबी का अंश कम होता है अतः उसके आटे में घी या तेल का मोयन दिया जाता है , और उसकी रोटी चपाती , बाटी के साथ घी या मक्खन का उपयोग होता है .घी के साथ गेहू का आहार करने से वायु प्रकोप दूर होता है और बदहजमी नहीं होती . सामान्यतः गेहू का सेवन बारह मास किया जाता है .
गेहूँ से आटा , मैदा , रवा और थूली तैयार की जाती है . गेहूँ में मधुर , शीतल ,वायु और पित्त को दूर करने वाले गरिष्ठ , कफकारक , वीर्यवर्धक , बलदायक ,स्निग्ध , जीवनीय , पोष्टिक , व्रण के लिए हितकारी , रुचि उत्पन्न करने वाले और स्थिरता लाने वाले विशेष तत्व है .
---------------------------------गेहूँ के जवारे ----------------
आजकल हर्बल ट्रीटमेंट का बोलबाला है . हर जगह हर्बल चिकित्सा व सौन्दर्य उपचार के विज्ञापन देखने को मिलते है . आयुर्वेद से उत्पन्न गेहूँ रस चिकित्सा विधि भी एक ऐसा ही उपचार है जिसके द्वारा कोई भी व्यक्ति घर बैठे जी लाभ उठा सकता है .
गेहूँ के जवारे को आहार शास्त्री धरती की संजीवनी मानते है . यह वह अमृत है जिसमे अनेक पोषक तत्वों के साथ साथ रोग निवारक तत्व भी है . अनेक फल व सब्जियों के तत्वों का मिश्रण हमें सिर्फ गेहू के रस में ही मिल जाता है .
गेहूँ के रस में प्रचुर मात्रा में पोषक तत्व होते है तथा इनके सेवन से शरीर में शक्तिवर्धन होता है इसीलिए इसे हरा खून भी कहा जाता है . डा. विग्मोर ने कई रोगों में गेहूँ के जवारे के रस का सफल उपयोग किया है . उन्होंने कहा था कि गेहूँ के जवारों का रस एक सम्पूर्ण आहार है , केवल इसके रस का सेवन कर मनुष्य अपना पूरा जीवन व्यतीत कर सकता है , जवारे का रस केवल औषधि नहीं है बल्कि कायाकल्प करने वाला अमृत है . डा. विग्मोर के अनुसार अगर कुछ दिनों तक नियमित गेहूँ के रस का प्रयोग किया जाये तो असाध्य बीमारीओं से निजात पाई जा सकती है . जैसे ----
- गेहूँ रस का सेवन करने से कब्ज व्याधि दूर होती है , गैसीय विकार भी दूर होता है .
- गेहूँ रस का सेवन करने से रक्त का शुद्धीकरण भी होता है परिणामतः रक्त सम्बन्धी विकार जैसे फोड़े , फुंसी , चर्मरोग आदि भी दूर होता है . , फूटे हुए घावों व फोड़ो पर जवारे के रस की पट्टी बांधने से शीघ्र लाभ होता है .
- श्वसन तंत्र पर भी गेहू रस का अच्छा प्रभाव होता है सामान्य सर्दी खांसी तो जवारे के प्रयोग से ४-५ दिनों में ही मिट जाती है व दम जैसा अत्यंत दुस्साहस रोग भी नियंत्रित हो जाता है .
- गेहू के रस के सेवन से गुर्दों की क्रियाशीलता बढती है और पथरी भी गल जाती है .
- दांत व हड्डियों की मजबूती के कारगर है .
- गेहू के रस से नेत्र विकार दूर होते है और नेत्र ज्योति बढती है .
- गेहू के जवारे के रस का सेवन करने वालों को रक्तचाप व ह्रदय रोग नहीं होते है .
-पेट के कृमि को शरीर से बाहर निकल दिए जाने में यह एक सफल उपचार है .
-मासिक धर्म की अनियमितताए में भी जवारे का रस उपयोगी है और भी अनेक बीमारियां है जिनमे इस रस का प्रयोग उपयोगी सिद्ध हुआ है .
सावधानियां --------------!
जहाँ गेहू का रस हमारे लिए एक कारगर एवं सफल इलाज है वही इसके प्रयोग में कुछ सावधानियां बरतना अत्यंत आवश्यक है .जैसे ...........
-जवारे का रस हमेशा ताजा ही प्रयोग में लायें , इसे फ्रिज में रखकर कभी भी इस्तमाल न करें क्यूंकि तब वह तत्वहीन हो जाता है .
-जवारे का सेवन करने से आधा घंटा पहले व आधा घंटा बाद में कुछ न लें वैसे सेवन के लिए प्रातः काल का समय ही उत्तम है .
-रस को धीरे धीरे जायका लेते हुए पीना चाहिए न कि पानी की तरह गटागट करके .
-जब तक आप गेहू के जवारे का सेवन कर रहे हो उस अवधि में सदा व संतुलित भोजन करें , ज्यादा मसालेयुक्त भोजन से परहेज रखे .
-कभी कभी जवारे के रस का सेवन करते ही सर्दी या जुखाम हो जाता है या उलटी दस्त या बुखार आ जाता है मगर इसमें घबराने कि कोई बात नहीं है १ या २ दिन में ही शरीर स्थित सब विकार विसर्जित हो जाते है और व्यक्ति पुनः सामान्य हो जाता है
. इस अवधि में रस का प्रयोग कम करें या पानी मिलकर करें परन्तु बंद न करें , शरीर शुद्ध हो जाने पर इस तरह की परेशानी की रोकथाम हो जाती है .
- यदि आप जवारे के रस बनाने की झंझट से बचना चाहते है तो गेहूं के पौधे का सीधे सेवन भी किया जा सकता है .
गेहूं के पौधे प्राप्त करना अत्यंत आसान है ,अपने घर में ८ -१० गमले अच्छी मिटटी से भर ले इन गमलों को ऐसे स्थान पर रखें जहाँ पर सूर्य का प्रकाश तो रहे पर धूप न पड़े ,साथ ही वह स्थान हवादार भी हो , यदि जगह है तो क्यारी भी बना सकते है .
सबसे पहले न. १ गमले में उत्तम प्रकार के चंद गेहूं के दमे बो दे इसी तरह दूसरे दिन न . २ गमले में , फिर न . ३ गमले में ...आदि . यदा कदा पानी के छीटें भी गमले में मारते रहें जिससे नमी बनी रहे , आठ दिन में दाने अंकुरित होकर ८-१० इंच लम्बे हो जाते है बस उन्हें नीचे से काटकर ( जड़ के पास से ) पानी से धोकर रस बना लें , मिक्सी में भी रस बना सकते है .उसे मिक्सी में पीसकर छानकर रोगी को पिला दे . खाली गमले में पुनः गेहूं के दाने बो दे इस तरह रस को सुबह शाम लिया जा सकता है परन्तु हर शरीर कि अपनी एक तासीर होती है इसीलिए एक बार अपने डाक्टर से सलाह जरूर ले . वैसे इससे कुछ नुकसान तो नहीं है फिर भी सलाह लेना हितकर होता है .
----------------------शशि पुरवार
उम्मीद है दोस्तों आपको पसंद आया होगा , यह अनुभूति अंतरजाल पत्रिका और पत्र पत्रिकाओ में प्रकाशित हो चुका है , आज सोचा ब्लॉग पर कुछ हट कर पोस्ट करू ...आपके अनमोल विचारो से जरूर अवगत कराये।