गर्मी परवान चढ़ रही है, मई भी मजबूर लग रही है.जिसे देखो वह अपने किरदार में खोया हुआ पसीना बहा रहा है. कोई धूप में पसीने से नहा रहा हैं। कोई पंखे की गर्म हवा में स्वयं को सुखाने का प्रयास कर रहा है। सूरज आग उगल रहा है , गर्मी में ठंडक देने वाले उपकरण को बनाने वाले, उस आग में बिना जले अपने हाथ सेंक रहे हैं. लोग बेफिक्र होकर तन - मन को ठंडा करने का प्रयास कर रहें हैं। सोशल साइट्स भी बहुत कुछ ठंडी पड़ने लगी है।
हमारे शर्मा जी अपनी दिमागी कसरत करके इतने थक गए कि सुबह से लस्सी पीकर बदहजमी करने में लगे हुए हैं। जी हाँ सोशल साइट के दीवानों में शर्मा जी नाम शुमार है. इसका नशा जितनी तेजी से चढ़ा अब उतना ही फिसलने लगा है. हर चीज की अति भी बुरी है. फिर भी सुधरते नहीं। सुबह से फेसबुकिया गलियों में घूम- घूम कर थक गए सिर्फ मायूसी हाथ लगी. इधर उधर की तांक - झाँक में कुछ पुराने गुजरे हुए पलों की तस्वीरें थीं या ऐसे चुटकुले जिन्हे पढ़कर हंसी ने रेंगना भी पसंद नहीं किया। आखिर दिमागी घोड़े कितने दौड़ेंगे। बेचारे वह भी थकने लगे, दिमाग भी काम करके पसीना बहाता है. उदासीनता घर बनाने लगी. सोशल साइट की दीवानगी बढ़ाने के लिए और थकान मिटाने के लिए फ्रिज की ठंडी खाद्य सामग्री जीभ की लालसा को पूर्ण करने में लगी हुई थी। जीभ की क्षुधा का तो पता नहीं लेकिन तन का आकार जरूर खुशनुमा होता जा रहा था।
आज कुछ पोस्ट नहीं किया, इस दुःख के कारण शर्मा जी बैचेन आत्मा की तरह भटक रहे थे। अपडेट रखना भी मज़बूरी है। कुछ न मिला तो आज पुराने खजाने में कुछ पुरानी तस्वीर निकाल कर चिपका दी। मानना होगा बला की सुंदरता खुद को खुश रख रही थी कि पंखे की हवा पर बिजली ने अपनी लगाम कस दी। काटो तो खून नहीं वैसे भी आजकल प्रेम की हवा बंद है।
पत्नी की नजरों से कुछ नहीं छुपा - " क्यों जी सुबह से क्या रायता फैला रखा है। गर्मी है तो ठंडाई पीकर आराम करो, काहे खून जला रहे हो".
कुछ नहीं -- के साथ चोर नजरें बगलें झाँकने लगी, अब क्या पत्नी की बेहाल शक्ल ही देखेंगे ?
फिर चुपके अपनी एक और तस्वीर चिपका दी, आँखे किसी को ढूंढने लगी। कोई तो होगा जो उस छोटी सी खिड़की पर मिलेगा। लेकिन सिवाय हार के कुछ नहीं मिला। आभाषी रिश्ते भी अब शरीर के पसीने की तरह बहने लगे। शर्मा जी की उकताहट इतनी बढ़ गयी कि उल फिजूल लिखना शुरू कर दिया। सत्य है दिमाग फिरते समय नहीं लगता। आजकल सोशल साइट पर भी नोटबंदी जैसी बुरी मार पड़ी है , लोगों का उबाल मजबूर हो गया है। बेचारा खून भी उबलता नहीं। कंपनी चलाने वालों को शर्मा जी जैसे कोशिश करने वालों की बहुत जरुरत है, नहीं तो कंपनी कैसे चलेगी। इसी उदासीनता दीवानगी का नतीजा था। कोई अपनी हद तोड़ भी सकता है , इसी कमजोरी के चलते एक लड़के ने अपना लाइव सुसाइड करता हुआ विडिओ उपलोड कर दिया, इसे पागलपन नहीं तो क्या कहेंगे।
इस मनहूसियत को मिटाने के लिए कंपनी वाले नए नए लालच देने के लिए तैयार बैठे हैं. आजकल हर कोई एक दूसरे को हलाल करने में लगा हुआ है। सबसे मजेदार बात यह है कि इससे दोनों पक्ष खुश है। दोनों को लगता है वह एक दूजे को बेबकुफ़ बना रहे हैं। लेकिन बेबकुफ़ कौन ? यह एक पहेली बन गया है। जिसे आजतक कोई नहीं सुलझा सका. कुर्सी के लोग बदलते रहे लेकिन कुर्सी की महिमा अभी तक नहीं समझे कि कौन किसे बना रहा है।
हाल ही में अखबारों में करोड़पति की नयी सूचि आयी जिसमे अम्बानी को भी पीछे छोड़कर कुछ लोग आगे निकल गए.
एक बात समझ नहीं आयी सस्ता सामान बेचकर कोई करोड़पति कैसे बना ? कोई एप बनाकर पेड़े खा रहा है. मज़बूरी, इंसान से जो न करवाये कम है , हमारे शर्मा जी बार बार इसका शिकार हो गए फिर भी शिकार बनने ली प्रवृति समाप्त ही नहीं होती है. हम मजबूर है मई में मजबूर दिवस मनाये या अपनी मज़बूरी को छुपाये, दिमागी घोड़े मार खाकर भी नहीं दौड़ रहे हैं, सिर से इतना पसीना निकला कि केश नहा लिए। लेखन कैसे करें, कलम को भी पसीने छूट रहे हैं. रंग लैस होली खेली, बिना गुदगुदी के चुटकुले पढ़े, तस्वीरों में भाव भंगिमा से कसीदाकारी की, तिस पर मई सोंटे मार रही है. दिल दिमाग सुन्न हो गया, हमारे संपादक फेसबूकि दुनियां घूमने भेज देते हैं. वक़्त एक सा नहीं होता आजकल सोशल साइट पर दुनियादारी लुभाने लगी है, लोग इससे विराम ले रहे हैं तो हम भी विश्राम कर लेते हैं। भाई यह उदासीनता हमें भी मार रही है। लिखना हमारी मज़बूरी है पढ़ना आपकी मज़बूरी। दोनों ही मजबूर। हमें माफ़ करें शर्मा जी की चहलकदमी हमें बैचेन कर रही हैं। आप एक गिलास ठंडा पानी पी ले। आज हम मजबूर हैं आपने हमें झेला उसके लिए आभार।
शशि पुरवार