shashi purwar writer

Wednesday, November 16, 2016

प्रीत पुरानी

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१ 
प्रीत पुरानी
यादें हैं हरजाई 
छलके पानी। 
२ 
नेह के गीत 
आँखों की चौपाल में 
मुस्काती प्रीत 
३ 
सुधि बैचेन 
रसभीनी बतियाँ 
महकी  रैन 
४ 
जोगनी गंध 
फूलों की घाटी में 
शोध प्रबंध 
५ 
धूप चिरैया 
पत्थरों पर बैठी 
सोनचिरैया 
.-----शशि पुरवार  

Monday, August 22, 2016

सुख की मंगल कामना








बाबुल के अँगना खिला, भ्रात बहन का प्यार 
भैया तुमसे भी जुड़ा, है मेरा संसार। 

माँ आँगन की धूप है, पिता नेह की छाँव 
भैया बरगद से बने , यही प्रेम का गॉँव 

सुख की मंगलकामना, बहन करें हर बार 
पाक दिलों को जोड़ता, इक रेशम का तार 

चाहे कितने दूर हो, फिर भी दिल से पास 
राखी पर रहती सदा, भ्रात मिलन की आस 

प्रेम डोर अनमोल ये, जलें ख़ुशी के दीप 
माता के आँचल पली, बेटी बनकर सीप 
-- शशि पुरवार 


Sunday, July 24, 2016

अाँख जो बूढ़ी रोई





खोई खोई चांदनी, खुशियाँ भी है दंग

सुख दुख के सागर यहाँ, कुदरत के हैं रंग
कुदरत के हैं रंग, न जाने दीपक बाती
पल मे छूटे संग, समय ने लिख दी पाती
शशि  कहती  यह सत्य, अाँख जो बूढ़ी रोई
ममता चकनाचूर, छाँव भी खोई खोई।  
      

जाने कैसा हो गया, जीवन का संगीत

साँसे बूढ़ी लिख रही, सूनेपन का गीत
सूनेपन का गीत, विवेक तृष्णा से हारा
एकल हो परिवार, यही है जग का नारा
शशि कहती यह  सत्य,  प्रीत से बढ़कर पैसा
नही त्याग का मोल, हुअा वक़्त न जाने कैसा।
शशि पुरवार 

Friday, July 15, 2016

सुधि गलियाँ





 स्वप्न साकार
मुस्कुराती है राहें 
दरिया पार। 
२ 
धूप सुहानी 
दबे पॉँव लिखती 
छन्द रूमानी। 
३ 
लाडो सयानी 
जोबन दहलीज 
कच्चा है पानी।  
धूप बातूनी 
पोर पोर उन्माद 
आँखें क्यूँ सूनी ?
५ 
माँ की चिंता 
लाडो है परदेश 
पाती, ममता। 
६ 
दुःखो को भूले 
आशा का मधुबन 
उमंगे झूले। 
७ 
प्रीत पुरानी 
सूखे गुलाब बाँचे 
प्रेम कहानी। 
८ 
छेड़ो न तार 
रचती सरगम 
 हिय झंकार। 
९ 
प्रेम कलियाँ 
बारिश में भीगी है 
सुधि गलियाँ। 
१० 
 आई जबानी  
छूटा है बचपन 
बद गुमानी। 
 -- शशि पुरवार 



Monday, July 11, 2016

मौसम से अनुबंध


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१ 
लहक उठी है जेठ की,  नभ में उड़ती धूल
कालजयी अवधूत बन, खिलते शिरीष फूल।
 २
चाहे जलती धूप हो, या मौसम की मार
हँस हँस कर कहते सिरस, हिम्मत कभी न हार.

लकदक फूलों से सजा, सिरसा छायादार
मस्त रहे आठों पहर, रसवंती संसार।

हरी भरी छतरी सजा, कोमल पुष्पित जाल    
तपकर खिलता धूप में, करता सिरस कमाल।

फल वृक्षों के कर रहे, मौसम से अनुबंध
खड़खड़ करती बालियाँ, लिखें मधुरतम छन्द।
 --  शशि  पुरवार

Wednesday, April 20, 2016

कुण्डलियाँ -- प्रेम से मिटती खाई



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अच्छाई की राह पर, नित करना तुम काज 
सच्चाई मिटटी नहीं, बनती है सरताज  
बनती है सरताज, झूठ की परतें खोले 
मिट  जाए संताप, मौन सी सरगम  डोले
कहती शशि यह सत्य, प्रेम से मिटती खाई
दंभ, झूठ का हास, चमकती है सच्चाई। 


दलदल ऐसा झूठ का, राही  धँसता जाय
एक बार जो फँस गया, निकल कभी ना पाय
निकल कभी ना पाय,  मृषा के रास्ते खोटे
मति पर परदा डाल, लोभ के चशमें मोटे
कहाँ साँच को आँच, चित्त को देता संबल
कर देता  बर्बाद, झूठ का ऐसा दलदल 
                --- शशि पुरवार 

Monday, April 18, 2016

कुण्डलियाँ -- दिन गरमी के आ गए


दिन गरमी के आ गए, लेकर भीषण ताप 
धरती से पानी उड़ा, नभ में बनकर भाप 
नभ में बनकर भाप, तपिश से दिन घबराये 
लाल लाल तरबूज, कूल, ऐसी मन भाये
 कहती शशि यह सत्य,  वृक्ष की शीतल नरमी  
रसवंती आहार, खिलखिलाते दिन गरमी .

          -- शशि पुरवार 

Tuesday, April 12, 2016

कुण्डलियाँ भरे कैसी यह सुविधा ?






सुविधा के साधन बहुत, पर गलियाँ हैं तंग 
भीड़ भरी सड़कें यहाँ, है शहरों के रंग 
है शहरों के रंग, नजर ना पंछी आवे 
तीस मंजिला फ्लैट, गगन को नित भरमावे 
बिन आँगन का नीड, हवा पानी की दुविधा 
यन्त्र चलित इंसान, भरे कैसी यह सुविधा। 

2
पीरा मन का क्षोभ है, सुख है संचित नीर
दबी हुई चिंगारियाँ,  ईर्ष्या बनती पीर
ईर्ष्या बनती पीर, चैन भी मन का खोते
कटु शब्दों के बीज, ह्रदय में अपने बोते
कहनी मन की बात, तोष है अनुपम हीरा
सहनशील धनवान , कभी न जाने पीरा।
---- शशि पुरवार 

Friday, April 8, 2016

कुण्डलियाँ




मँहगाई की मार से, खूँ खूँ जी बेहाल 
आटा गीला हो गया, नोंचे सर के बाल
नोचे सर के बाल, देख फिर खाली थाली 
महँगे चावल दाल, लाल पीली घरवाली 
शक्कर, पत्ती, दूध, न होती रोज कमाई  
टैक्स भरें धमाल, नृत्य करती महँगाई।
    ----- शशि पुरवार 
--- 

Monday, April 4, 2016

रात में जलता बदन अंगार हो जैसे।



जिंदगी जंगी हुई,
तलवार हो जैसे
पत्थरों पर  घिस रही,

वो धार हो जैसे। 

निज सड़क पर रात में
जब  देह कांपी थी 
काफिरो ने  हर जगह 
फिर राह नापी थी 
कातिलों से घिर गया 
संसार हो जैसे।


है द्रवित मंजर यहाँ 
छलती गरीबी है 
आबरू को लूटता 
वह भी करीबी है। 
आह भीनिकला हुआ 
इक वार हो जैसे.

आँख में पलता रहा है 
रोज इक सपना 
जून भर भोजन मिले 
घर,द्वार  हो अपना। 
रात में जलता बदन 
अंगार हो जैसे .
 --- शशि पुरवार 

Tuesday, March 22, 2016

फागुन के अरमान




छेड़ो कोई तान सखी री
फागुन का अरमान सखी री

कुसुमित डाली लचकी जाए
कूके कोयल आम्बा बौराये
गुंचों से मधुपान
सखी री

गोप गोपियाँ छैल छबीले
होठों पर है छंद  रसीले
प्रेम रंग का भान
सखी री

नीले  पीले रंग गुलाबी
बिखरे रिश्ते खून खराबी
गाउँ कैसे गान
सखी री


शीतल मंद पवन हमजोली
यादों में सजना  की हो ली
भीगा है मन प्रान
सखी री

पकवानों में भंग मिली है
द्वारे द्वारे धूम मची है
सतरंगी परिधान
सखी री
फागुन का अरमान सखी री
- शशि पुरवार
आप सभी मित्रों को सपरिवार होली की रंग भरी शुभकामनाएँ। 


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Wednesday, March 16, 2016

धुआँ धुआँ होती व्याकुलता





धुआँ धुआँ होती  व्याकुलता 
प्रेम राग के गीत सुनाओ
सपनों की मनहर वादी है
पलक बंद कर ख्वाब सजाओ  

 लोगों की आदत होती है   
दुनियाँ  के परपंच बताना 
प्रेम त्याग अब बिसरी बातें 
बदल रहा  है नया जमाना।

घायल होते संवेदन को 
निजता का इक पाठ पढ़ाओ। 
धुआँ धुआँ होती  व्याकुलता 
प्रेम राग के गीत सुनाओ .


दूर देश में हुआ बसेरा 
अलग अलग डूबी थी रातें 
कहीं उजेराकहीं चाँदनी 
चुपके से करती है  बातें
जिजीविषाजलती पगडण्डी 
तपते  क़दमों को सहलाओ.
धुआँ धुआँ होती  व्याकुलता 
प्रेम राग के गीत सुनाओ.

ममताकरुणा और अहिंसा 
भूल गया जग मीठी वाणी 
आक्रोशों की  नदियाँ बहती 
 
हिंसा की  बंदूकें तानी
झुलस रहा है मन वैशाली 
भावों पर काबू पाओ  
धुआँ धुआँ होती  व्याकुलता 
प्रेम राग के गीत सुनाओ  
  ---  शशि पुरवार

सामाजिक मीम पर व्यंग्य कहानी अदद करारी खुश्बू

 अदद करारी खुशबू  शर्मा जी अपने काम में मस्त   सुबह सुबह मिठाई की दुकान को साफ़ स्वच्छ करके करीने से सजा रहे थे ।  दुकान में बनते गरमा गरम...

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