Tuesday, December 24, 2013
Tuesday, December 17, 2013
हाइकु -- नवपत्रक
पवन में झूमती
है कोमलांगी।
.
३
ले अंगडाई
बीजों से निकलते
नवपत्रक .
४
प्रफुल्लित है
ये नन्हे प्यारे पौधे
छूना न मुझे
५
ये हरी भरी
झूमती है फसलें
लहकती सी।
६
तप्त धरती
सब बीजों को मिला
नव जीवन ।
७
बीजों से झांके
बेक़रार पृकृति
थाम लो मुझे
८
मुस्कुराती है
ये नन्ही सी कालिया
तोड़ो न मुझे।
९
पत्रों पे बैठे
बारिश के मनके
जड़ा है हीरा।
जड़ा है हीरा।
१०
हवा के संग
खेलती ये लताएँ
पुलकित है
११
संग खेलते
ऊँचे होते पादप
छू लें आसमां
-- शशि पुरवार
नमस्ते मित्रो लम्बे अंतराल के बाद ब्लॉग पर पुनः सक्रियता और वापसी कर रहे है , आशा है आपका स्नेह सदा की तरह मिलता रहेगा। -- जल्दी आपसे आपके ब्लॉग पर भी मिलंगे। स्नेह बनाये रखे -- आप सभी का दिन मंगलमय हो - शशि पुरवार
हवा के संग
खेलती ये लताएँ
पुलकित है
११
संग खेलते
ऊँचे होते पादप
छू लें आसमां
-- शशि पुरवार
नमस्ते मित्रो लम्बे अंतराल के बाद ब्लॉग पर पुनः सक्रियता और वापसी कर रहे है , आशा है आपका स्नेह सदा की तरह मिलता रहेगा। -- जल्दी आपसे आपके ब्लॉग पर भी मिलंगे। स्नेह बनाये रखे -- आप सभी का दिन मंगलमय हो - शशि पुरवार
Thursday, November 7, 2013
बाल साहित्य
जीवन में कुछ बनना है ,तो
लिखना पढना जरुरी है
अच्छी अच्छी बाते सीखो
अच्छी संगति जरुरी है .
वृक्षों को तुम मत काटना
हरियाली भी बचानी है
पेड़ों से ही हमको मिलता
अन्न ,दाना -पानी है
प्रदूषण को मिलकर मिटाओ
पेड लगाना भी जरुरी है
देश के तुम हो भावी प्रणेता
देश के तुम हो भावी प्रणेता
राहों में आगे बढ़ना
मुश्किलें कितनी भी आयें
हिम्मत से डटे रहना
भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाना
चैनो -अमन भी जरुरी है
-------- शशि पुरवार
२८/ ९/ १३
नवम्बर २०१३ के बाल साहित्य विशेषांक के अंक में प्रकाशित मेरी रचना -- पाखी कविता के अंतर्गत अभिनव इमरोज पत्रिका , पंजाब
Saturday, November 2, 2013
जगमग दीपावली के कुछ यह भी रंग ......................... !
माहिया -
1
फिर आयी दीवाली
झिलमिल दीप जले
झूम रही हर डाली .
2
कण- कण है में बिखरी
दीपों की आभा
यह रजनी भी निखरी .
3
रंगोली द्वार खिली
राह तके लड़ियाँ
घर खुशियाँ आन मिली।
4
गूँज रही किलकारी
झूम रही बगिया
ममता भी बलिहारी
हाइकु --
1
जीवन साथी
सुख -दुःख , लड़ियाँ
दिया औ बाती।
2
दीप भी जले
खुशियाँ घर आईं
संग तुम्हारे ।
3
आशा की ज्योत
हर घर रौशन
नेह दीपक ।
4
झूमे रौशनी
धरती पे उतरी
दीप चाँदनी।
५
जलती बाती
अँधेरों से लड़ता
रौशन दिया।
-- सेदोका
1
यादों के दीप
फिर हिय में जले
सलोने उजियारे ,
भीगी चाँदनी
खिल उठा चाँद
मन के अंधियारे ।
2
अखंड दीप
जीवन ,पथ पर
हाँ ,माँ ने जलाया,
संस्कारों की लौ
महकता आशीष
तिमिर को मिटाया ।
३१ /१० /१३
:-- शशि पुरवार
सभी मित्रो , ब्लोगर परिवार को दीपावली कि हार्दिक शुभकामनाये , जीवन में खुशियां सदैव जगमगाती रहे। अपने टिपणी से आपके आगमन कि सुचना दे , जिससे जल्दी से। ............. दोस्तों समय मिलते ही आपसे आपके ब्लॉग पर मिलने जरुर आउंगी , यह वादा है --- स्नेह बनाये रखें
! शुभ दीपवली !
-- शशि पुरवार
Tuesday, October 29, 2013
1 लघुकथा ---- रोज दिवाली
रामू धन्नी सेठ के यहाँ मजूरी के हिसाब से काम करता था , सेठ रामू के काम और ईमानदारी से खुश रहता था , परन्तु काम के हिसाब से वह मजूरी कम देता था , रामू को जितना मिलता उसमें ही संतुष्ट रहता था ,इस बार सेठ को त्यौहार के कारण अनाज में तीन गुना मुनाफा हुआ , तो ख़ुशी उसके चेहरे से टपक पड़ी , घमंड भरे भाव में ,वह रामू से बोला --
" रामू इस बार मुनाफ खूब हुआ है , सोच रहा हूँ कि इस दिवाली घर का फर्नीचर बदल दूं , घर वालो को खूब नए कपडे ,गहने और मिठाई इत्यादि ले कर दे दूं , तो इस बार उनकी दिवाली भी खास हो जाये .................! "
सेठ बोलता जा रहा था और रामू शांत भाव से अपने काम में लगा हुआ था , जब धन्नी सेठ ने यह देखा तो उसे बहुत गुस्सा आया , और रामू को नीचा दिखने के लिए उसने कहा ---
" मै कब से तुमसे बात कर रहा हूँ , सुर तुम कुछ बोल नहीं रहे हो .... ठीक है तुम्हे भी 100 रूपए दे दूंगा , अब तो खुश हो न ...? , यह बताओ कि तुम क्या क्या करोगे इस दिवाली पर ...............? "
रामू शांत भाव से बोला ----
" सेठ हमारे यहाँ तो रोज ही दिवाली होती है . "
" रोज दिवाली होती है ..........? क्या मतलब ? ......आश्चर्य का भाव सेठ के चेहरे पर था ."
" जब रोज शाम को पैसे लेकर घर जाता हूँ तो सब पेट भर के खाना खाते है और जो ख़ुशी होती है उनके चेहरे पर , यह हमारे लिए किसी दिवाली से कम नहीं है ." कहकर रामू अपने काम में मगन हो गया .
------शशि पुरवार
बीते साल दैनिक भास्कर में प्रकाशित हमारी यह लघुकथा ---
Saturday, October 26, 2013
दिलकश चाँद खिला। ……… माहिया
Friday, October 18, 2013
गजल -- फिर हर काम से पहले
जतन करना पड़ेगा आज ,फिर हर काम से पहले
खिलेंगे फूल राहों में , तभी इलहाम से पहले
कभी तो दिन भी बदलेंगे ,मिलेंगी सुख भरी रातें
दुखों का अंत होगा फिर सुरीली शाम से पहले
बिना मांगे नहीं मिलती ,कभी कोई ख़ुशी पल में
जरा दिल की सभी बातें ,लिखो कुहराम से पहले
बढ़ो फिर आज जीवन में ,मुझे मत याद करना तुम
कभी पहचान भी होगी ,मेरे उपनाम से पहले
वफ़ा मैंने निभाई है ,तुम्हारे साथ हर पल ,पर
तुम्हारा नाम ही आएगा ,मेरे नाम से पहले।
--- 28 /9 /2013
शशि पुरवार
खिलेंगे फूल राहों में , तभी इलहाम से पहले
कभी तो दिन भी बदलेंगे ,मिलेंगी सुख भरी रातें
दुखों का अंत होगा फिर सुरीली शाम से पहले
बिना मांगे नहीं मिलती ,कभी कोई ख़ुशी पल में
जरा दिल की सभी बातें ,लिखो कुहराम से पहले
बढ़ो फिर आज जीवन में ,मुझे मत याद करना तुम
कभी पहचान भी होगी ,मेरे उपनाम से पहले
वफ़ा मैंने निभाई है ,तुम्हारे साथ हर पल ,पर
तुम्हारा नाम ही आएगा ,मेरे नाम से पहले।
--- 28 /9 /2013
शशि पुरवार
Thursday, October 10, 2013
संत पहाड़
पहाड़ --
१
अडिग खड़ा १
शैल का अंक
नाचते है झरने
खिलखिलाते
७
पर्वत पुत्री
धरती पे जा बसी
बसा है गाँव।
८
झुकता नहीं
लाख आये तूफ़ान
मिटता नहीं ।
Tuesday, October 8, 2013
माँ शक्ति है ,माँ भक्ति है। ………. !
माँ शक्ति है
माँ भक्ति है
माँ ही मेरा अराध्य
माँ सा नहीं है दूजा जग में
माँ से ही संसार
माँ धर्म है
माँ कर्म है
माँ ही है सतसंग
माँ सा नहीं है दूजा मन में
माँ , जीवन का आधार
माँ भारती है
माँ सारथी है
माँ ही मार्गदर्शक
माँ सा नहीं है दूजा पथ में
माँ ही गीता का सार
माँ सखा है
माँ ही सहेली
माँ ही प्रथम गुरु
माँ सा नहीं दूजा हिय में
माँ ममता का आकार
माँ निश्छल है
माँ संबल है
माँ ही रिश्तो की पूंजी
माँ सा नहीं दूजा घर में
माँ से ही संस्कार।
माँ भगवती
माँ अन्नपूर्णा
माँ ही दुर्गा का रूप
माँ सा नहीं है दूजा भू पर
माँ से साक्षात्कार
--- शशि पुरवार
१८ /९ / १३
Saturday, October 5, 2013
शुभ समाचार - खुशखबरी। ……
शुभ समाचार --- विश्व हिंदी संसथान और अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका प्रयास के संयुक्त त्वरित राष्ट्र भक्ति गीत का परिणाम अब आ गया है और यह आपके समक्ष ---- खुशखबरी :- _/\_
मेरे पूरे परिवार , समस्त मित्रगण और उन सभी मित्रो का जो मेरी लिस्ट में नहीं है ,परन्तु सभी ने अपने अनमोल वोटिंग द्वारा मुझे विजेता बनाया . तो यह जीत सिर्फ मेरी जीत नहीं है …… आप सबकी भी जीत है . आप सभी का स्नेह और योगदान है इसमें , मेरी कलम की मेहनत और देशभक्ति के जज्बे को ताकत आपने ही प्रदान की है तो यह जीत मै आपसे भी साँझा करती हूँ। तहे दिल से सभी का शुक्रिया और आपको भी हार्दिक बधाई . :)
:----- शशि पुरवार
Thursday, October 3, 2013
कण कण में बसी है माँ
कण कण में बसी है माँ।
उडती खुशबु रसोई की
नासिका में समाये
भोजन बना स्नेह भाव से
क्षुधा शांत कर जाय
प्रातः हो या साँझ की बेला
तुमसे ही सजी है माँ
कण कण में बसी है माँ।
संतान के ,सुख की खातिर
अपने स्वप्न मिटाये
अपने मन की पीर ,कभी
ना घाव कभी दिखलाये
खुशियाँ ,घर के सभी कोने में
तुमने ही भरी है माँ
कण कण में बसी है माँ .
माँ ने , दुर्गम राहो पर भी
हमें चलना सिखाया
जीवन के हर मोड़ पर भी
ज्ञान दीप जलाया
संबल बन कर ,हर मुश्किल में
संग खडी है माँ
कण कण में बसी है माँ।
शांत निश्छल उच्च विचार
मन को खूब भाते
माँ से मिले संस्कार , हम
जीवन में अपनाते
जीवन की हर अनुभूति में
कस्तूरी सी घुली माँ
कण कण में बसी है माँ।
-- शशि पुरवार
Tuesday, October 1, 2013
आज से रस्ता हमारा और है। …। गजल
आज से रस्ता हमारा और है
साथ चलने का इशारा और हैचल रही ऐसी यहाँ पर आंधियाँ
ख्वाहिशों को तुमने तोड़ा था कभी
हार जाने का इजारा और है
भूल जायेंगे चलो दुख की निशा
प्यार के सुख का सहारा और है.
जीत लेंगे मुश्किलों की रहगुजर
22 / 9 /13
Monday, September 16, 2013
मन के भाव। ….
१
मन के भाव
शांत उपवन में
पाखी से उड़े .
२
उड़े है पंछी
नया जहाँ बसाने
नीड़ है खाली।
३
मन की पीर
शब्दों की अंगीठी से
जन्मे है गीत।
४
सुख औ दुःख
नदी के दो किनारे
खुली किताब।
५
मै कासे कहूँ
सुलगते है भाव
सूखती जड़े।
६
मोहे न जाने
मन का सांवरिया
खुली पलकें
७
मन चंचल
बदलता मौसम
सर्द रातों में।
८
मन उजला
रंगों की चित्रकारी
कलम लिखे।
-- शशि पुरवार
Saturday, September 14, 2013
भारत की पहचान है हिंदी
भारत की पहचान है हिंदी
हर दिल का सम्मान है हिंदी
जन जन की है मोहिनी भाषा
समरसता की खान है हिंदी
छन्दों के रस में भीगी ,ये
गीत गजल की शान है हिंदी
ढल जाती भावो में ऐसे
कविता का सोपान है हिंदी
शब्दों का अनमोल है सागर
सब कवियों की जान है हिंदी
सात सुरों का है ये संगम
मीठा सा मधुपान है हिंदी
क्षुधा ह्रदय की मिट जाती है
देवों का वरदान है हिंदी
वेदों की गाथा है समाहित
संस्कृति की धनवान है हिंदी
गौरवशाली भाषा है यह
भाषाओं का ज्ञान है हिंदी
भारत के जो रहने वाले
उन सबका अभिमान है हिंदी।
--- शशि पुरवार
हर दिल का सम्मान है हिंदी
जन जन की है मोहिनी भाषा
समरसता की खान है हिंदी
छन्दों के रस में भीगी ,ये
गीत गजल की शान है हिंदी
ढल जाती भावो में ऐसे
कविता का सोपान है हिंदी
शब्दों का अनमोल है सागर
सब कवियों की जान है हिंदी
सात सुरों का है ये संगम
मीठा सा मधुपान है हिंदी
क्षुधा ह्रदय की मिट जाती है
देवों का वरदान है हिंदी
वेदों की गाथा है समाहित
संस्कृति की धनवान है हिंदी
गौरवशाली भाषा है यह
भाषाओं का ज्ञान है हिंदी
भारत के जो रहने वाले
उन सबका अभिमान है हिंदी।
--- शशि पुरवार
Friday, September 13, 2013
अक्स लगा पराया
१
मेरा ही अंश
मुझसे ही कहता
मै हूँ तोरी ही छाया
जीवन भर
मै तो प्रीत निभाऊँ
क्षणभंगुर माया।
२
जीवन संध्या
सिमटे हुए पल
फिर तन्हा डगर
ठहर गयी
यूँ दो पल नजर
अक्स लगा पराया
३
शांत जल में
जो मारा है कंकर
छिन्न भिन्न लहरें
मचल गयी
पाषाण बना हुआ
मेरा ही प्रतिबिम्ब .
४
चंचल रवि
यूँ मुस्काता आया
पसर गयी धूप
कण कण में
विस्मित है प्रकृति
चहुँ और है छाया।
५
चांदनी रात
छुपती परछाईयाँ
खोल रही है पन्ने
महकी यादें
दिल की घाटियों मे
घूमता बचपन।
६
जन्म से नाता
मिली परछाईयाँ
मेरे ही अस्तित्व की
खुली तस्वीर
उजागर करती
सुख दुःख की छाँव।
७
नन्हे कदम
धीरे से बढ़ चले
चुपके से पहने
पिता के जूते
पहचाना सफ़र
बने उनकी छाया।
---- शशि पुरवार
Wednesday, September 11, 2013
ये नया जहाँ। .
१
पुलकित है
खिलखिलाते शिशु
हवा के संग।
२
बेकरारी सी
भर लूँ निगाहों में
ये नया जहाँ।
३
मै भी तो चाहूँ
एक नया जीवन
खिलखिलाता
४
साथ साथ ये
बढ़ रहे कदम
छू लूं आसमां।
५
मुस्कुरा रही
ये नन्ही सी गुडिया
थाम लो मुझे
६
प्रफुल्लित है
नन्हे प्यारे से पौधे
छूना न मुझे
७
दुलार करूँ
भर लूँ आँचल में
मेरा ही अंश
८
हरे भरे से
रचे नया संसार
धरा का स्नेह
-- शशि पुरवार
Thursday, September 5, 2013
हृदय की तरंगो ने गीत गाया है। ।
हृदय की तरंगो ने गीत गया है
खुशियों का पैगाम लिए
मनमीत आया है
जीवन में बह रही
ठंडी हवा
सपनो को पंख मिले
महकी दुआ
मन में उमंगो का
शोर छाया है
भोर की सरगम ने ,मधुर
नवगीत गाया है।
भूल गए पल भर में
दुख की निशा
पलकों को मिल गयी
नयी दिशा
सुख का मोती नजर में
झिलमिलाया है
हाँ ,रात से ममता भरा
नवनीत पाया है।
तुफानो की कश्ती से
डरना नहीं
सागर की मौजों में
खोना नहीं
पूनों के चाँद ने
मुझे बुलाया है
रोम रोम सुभितियों में
संगीत आया है।
ह्रदय की तरंगो ने गीत गया है।
------- शशि पुरवार
Friday, August 30, 2013
श्री कृष्ण -- छेड़े गोप वधू
१
श्री कृष्ण
नाम है
आनंद की अनुभूति का,
प्रेम के प्रतिक का ,
ज्ञान के सागर का
और जीवन की
पूर्णता का।
२
श्री कृष्ण ने
गीता में दिया है
निति नियमो का ज्ञान
जीवन को जीने का सार ,
पर इस युग में तो
मानव ने
राहों में रोप दिए है
क्षुद्रता के
कंटीले तार।
३
मोहन ने
शंख बजाकर
उद्घोष किया था
करो दुष्टों का नाश.
आज कलयुग में
अधमता के
काले बादलों से
भरा हुआ है आकाश।
४
लक्ष्य
निर्धारित करता है
आने वाले कल की
दिशाएँ
और
नए संसार का
अभिकल्प।
५
श्री कृष्ण
जन्मोउत्सव
ह्रदय में
उन्माद की आंधी
श्याम बनने को होड़ में
बाल गोपाल
फोड़ रहे है
दही हांड़ी।
६
फूलों से सजा
हिंडोला
दूध - दही की
बहती गंगा
विविध पकवान
पंचामृत का भोग
भक्ति का बहता सागर
मन हो जाये चंगा।
24.8.13 १
-------------
1
श्याम ने दिया
प्रेम का गूढ़ अर्थ
भक्तों ने जिया।
२
सांसों में बसी
भक्ति - भाव की धारा
ज्ञान लौ जली
३
नियम सारे
ज्ञान का सागर है
मोहन प्यारे।
४
माहिया --
- शशि पुरवार
श्री कृष्ण
नाम है
आनंद की अनुभूति का,
प्रेम के प्रतिक का ,
ज्ञान के सागर का
और जीवन की
पूर्णता का।
२
श्री कृष्ण ने
गीता में दिया है
निति नियमो का ज्ञान
जीवन को जीने का सार ,
पर इस युग में तो
मानव ने
राहों में रोप दिए है
क्षुद्रता के
कंटीले तार।
३
मोहन ने
शंख बजाकर
उद्घोष किया था
करो दुष्टों का नाश.
आज कलयुग में
अधमता के
काले बादलों से
भरा हुआ है आकाश।
४
लक्ष्य
निर्धारित करता है
आने वाले कल की
दिशाएँ
और
नए संसार का
अभिकल्प।
५
श्री कृष्ण
जन्मोउत्सव
ह्रदय में
उन्माद की आंधी
श्याम बनने को होड़ में
बाल गोपाल
फोड़ रहे है
दही हांड़ी।
६
फूलों से सजा
हिंडोला
दूध - दही की
बहती गंगा
विविध पकवान
पंचामृत का भोग
भक्ति का बहता सागर
मन हो जाये चंगा।
24.8.13 १
-------------
1
श्याम ने दिया
प्रेम का गूढ़ अर्थ
भक्तों ने जिया।
२
सांसों में बसी
भक्ति - भाव की धारा
ज्ञान लौ जली
३
नियम सारे
ज्ञान का सागर है
मोहन प्यारे।
४
हर्षोल्लास
भक्ति भाव की गंगा
गोकुल खास
५
बाल गोपाल
दही हांडी की धूम
हर चौराहे।माहिया --
१
हाँ ,शीश मुकुट सोहे
हाँ ,शीश मुकुट सोहे
अधरों पे बंशी
मन को कान्हा मोहे।
२
राधा लागे है प्यारी
छेड़े गोप वधू
रास रचे है गिरधारी
25 .8 13 - शशि पुरवार
Tuesday, August 27, 2013
कान्हा नजर न आये ………।
मनमोहन का जाप जपे है
साँस साँस अब मोरी
नटखट कान्हा ने गोकुल में
कितने स्वाँग रचाये
कंकर मारे, मटकी तोड़ी
माखन-दही चुराये
यमुना तीरे पंथ निहारे
हरिक गाँव की छोरी
जग को अर्थ प्रेम का सच्चा
मोहन ने समझाया
राधा-मीरा, गोप-गोपियाँ
सबने श्याम को पाया
उनकी बंसी-धुन को सुनना
चाहे हर इक गोरी
वृन्दावन की कुंज गलिन में
मन मोरा रम जाए
कान्हा-कान्हा हिया पुकारे
कान्हा नजर न आये
मै तो मन ही मन खेलूँ हूँ
- शशि पुरवार
२१ / ०८ / १३
साँस साँस अब मोरी
नटखट कान्हा ने गोकुल में
कितने स्वाँग रचाये
कंकर मारे, मटकी तोड़ी
माखन-दही चुराये
यमुना तीरे पंथ निहारे
हरिक गाँव की छोरी
जग को अर्थ प्रेम का सच्चा
मोहन ने समझाया
राधा-मीरा, गोप-गोपियाँ
सबने श्याम को पाया
उनकी बंसी-धुन को सुनना
चाहे हर इक गोरी
वृन्दावन की कुंज गलिन में
मन मोरा रम जाए
कान्हा-कान्हा हिया पुकारे
कान्हा नजर न आये
मै तो मन ही मन खेलूँ हूँ
- शशि पुरवार
२१ / ०८ / १३
Sunday, August 18, 2013
आजादी के बाद कितनी आजादी पायी है। ।?
आजादी के बाद
कैसी आजादी पायी है
लाखों टन अनाज
गोदामों में सड़ जाता है
फिर जाने कितने
भूखों का पेट भर पाता है
मोटी चमड़ी के
हाथों में दूध मलाई है
रंक की थरिया में
फिर महंगाई आयी है
रोज नये वचन के
झूठे आश्वासन होते है
लुगड़ी चुपड़ी बात
भरे सियासी दिन होते है
चारे और घपले
करने की दौड़ लगायी है
गरीबी रेखा में
फिर आधी जनता आयी है
उन्नति की डगर पर
अब तो मिटने लगे है गाँव
कंक्रीट के शहर में
खो जाती है पेड़ की छाँव
अब आधुनिकरण ने
बाजार में साख जमायी है
संकुचित मूल्यों से
कितनी आजादी पायी है।
- शशि पुरवार
१६ /अगस्त /१३
कैसी आजादी पायी है
लाखों टन अनाज
गोदामों में सड़ जाता है
फिर जाने कितने
भूखों का पेट भर पाता है
मोटी चमड़ी के
हाथों में दूध मलाई है
रंक की थरिया में
फिर महंगाई आयी है
रोज नये वचन के
झूठे आश्वासन होते है
लुगड़ी चुपड़ी बात
भरे सियासी दिन होते है
चारे और घपले
करने की दौड़ लगायी है
गरीबी रेखा में
फिर आधी जनता आयी है
उन्नति की डगर पर
अब तो मिटने लगे है गाँव
कंक्रीट के शहर में
खो जाती है पेड़ की छाँव
अब आधुनिकरण ने
बाजार में साख जमायी है
संकुचित मूल्यों से
कितनी आजादी पायी है।
- शशि पुरवार
१६ /अगस्त /१३
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