Tuesday, October 29, 2013

1 लघुकथा ---- रोज दिवाली



रामू धन्नी सेठ के यहाँ  मजूरी के हिसाब से काम करता था , सेठ रामू के काम और ईमानदारी से खुश रहता था , परन्तु काम के हिसाब से वह  मजूरी कम देता था , रामू  को  जितना मिलता उसमें ही  संतुष्ट रहता था ,इस बार सेठ को त्यौहार के कारण  अनाज में तीन गुना मुनाफा हुआ , तो ख़ुशी उसके चेहरे से टपक पड़ी ,  घमंड भरे भाव में ,वह रामू से बोला --

" रामू इस बार मुनाफ  खूब हुआ है , सोच रहा  हूँ कि इस दिवाली  घर का फर्नीचर बदल दूं , घर वालो को खूब नए कपडे ,गहने और मिठाई इत्यादि  ले कर दे दूं , तो इस बार उनकी दिवाली  भी खास हो जाये .................! "

सेठ बोलता जा रहा था और रामू शांत भाव से अपने काम में लगा हुआ था , जब  धन्नी सेठ ने यह देखा तो  उसे बहुत गुस्सा आया , और रामू को नीचा दिखने के लिए उसने कहा ---

"  मै  कब से  तुमसे बात कर  रहा हूँ , सुर तुम  कुछ बोल नहीं रहे हो .... ठीक है  तुम्हे  भी 100 रूपए दे दूंगा , अब तो खुश हो  न ...? , यह बताओ  कि तुम  क्या क्या करोगे इस दिवाली  पर ...............? "
रामू शांत भाव से बोला ----
" सेठ हमारे यहाँ तो रोज ही  दिवाली होती है . "
" रोज दिवाली होती है ..........? क्या मतलब ? ......आश्चर्य का भाव सेठ के चेहरे  पर था ."
" जब रोज  शाम को पैसे लेकर घर जाता हूँ तो सब पेट भर के खाना खाते है  और जो  ख़ुशी होती है उनके चेहरे पर , यह हमारे लिए  किसी दिवाली से कम नहीं  है  ." कहकर रामू अपने काम में मगन हो गया .

------शशि पुरवार

बीते साल दैनिक भास्कर में  प्रकाशित  हमारी यह  लघुकथा ---


Saturday, October 26, 2013

दिलकश चाँद खिला। ……… माहिया



1
सिमटे नभ में  तारे 
दिलकश चाँद खिला 
हम दिल देकर हारे ।
2
फैली शीतल किरनें
मौसम भी बदला
फिर छंद लगे झरने ।
3
पूनो का चाँद खिला
रातों को जागे
चातक हैरान मिला। 
4
हर डाली शरमाई  
चंदा में देखे
प्रियतम की परछाई .
5
रातों चाँद निहारे
छवि इतनी प्यारी
मन में चाँद उतारे .

शशि पुरवार 
-0-

Friday, October 18, 2013

गजल -- फिर हर काम से पहले

जतन करना पड़ेगा आज ,फिर हर काम से पहले
खिलेंगे फूल राहों में  , तभी इलहाम से पहले

कभी तो दिन भी बदलेंगे  ,मिलेंगी सुख भरी रातें
दुखों का अंत होगा फिर सुरीली शाम से पहले

बिना मांगे नहीं मिलती ,कभी कोई ख़ुशी पल में
जरा दिल की सभी बातें ,लिखो कुहराम से पहले

बढ़ो फिर आज जीवन में ,मुझे मत याद करना तुम
कभी पहचान भी होगी ,मेरे उपनाम से पहले

वफ़ा मैंने निभाई है ,तुम्हारे साथ हर पल ,पर
तुम्हारा नाम ही आएगा ,मेरे नाम से पहले।

--- 28 /9 /2013
 शशि पुरवार

Thursday, October 10, 2013

संत पहाड़

पहाड़ --
अडिग खड़ा
देखे कई बसंत
संत पहाड़
उगले ज्वाला
गर्म काली लहरे
स्याह धरती
चंचल भानू
रास्ता रोके खड़ा है
बूढा पर्वत
धोखा पाकर
पहाड़ जैसी बनी
नाजुक कन्या
हिम से ढके
प्रकृति बुहारते
शांत भूधर
शैल का अंक 
नाचते है झरने
खिलखिलाते

पर्वत पुत्री
धरती पे जा बसी
बसा है गाँव।
झुकता नहीं
लाख आये तूफ़ान
मिटता  नहीं ।

- शशि पुरवार

Tuesday, October 8, 2013

माँ शक्ति है ,माँ भक्ति है। ………. !

माँ शक्ति है
माँ भक्ति है
माँ ही मेरा अराध्य
माँ सा नहीं है दूजा जग में
माँ से ही संसार

माँ धर्म है
माँ कर्म है
माँ ही है सतसंग
माँ सा नहीं है दूजा मन में
माँ , जीवन का आधार

माँ भारती है
माँ सारथी है
माँ ही मार्गदर्शक
माँ सा नहीं है दूजा पथ में
माँ ही गीता का सार

माँ सखा है
माँ ही सहेली
माँ ही प्रथम गुरु
माँ सा नहीं दूजा हिय में
माँ ममता का आकार

माँ निश्छल है
माँ संबल है
माँ ही रिश्तो की पूंजी
माँ सा नहीं दूजा घर में
माँ  से ही संस्कार।

माँ भगवती
माँ अन्नपूर्णा
माँ ही दुर्गा का रूप
माँ सा नहीं है दूजा भू पर
माँ से  साक्षात्कार
 --- शशि पुरवार
१८ /९ / १३


Saturday, October 5, 2013

शुभ समाचार - खुशखबरी। ……





शुभ समाचार --- विश्व हिंदी संसथान और अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका प्रयास के संयुक्त त्वरित राष्ट्र भक्ति गीत का परिणाम अब आ गया है और यह आपके समक्ष ---- खुशखबरी :- _/\_

मेरे पूरे परिवार , समस्त मित्रगण और उन सभी मित्रो का जो मेरी लिस्ट में नहीं है ,परन्तु सभी ने अपने अनमोल वोटिंग द्वारा मुझे विजेता बनाया . तो यह जीत सिर्फ मेरी जीत नहीं है …… आप सबकी भी जीत है . आप सभी का स्नेह और योगदान है इसमें , मेरी कलम की मेहनत और देशभक्ति के जज्बे को ताकत आपने ही प्रदान की है तो यह जीत मै आपसे भी साँझा करती हूँ। तहे दिल से सभी का शुक्रिया और आपको भी हार्दिक बधाई .  :) 

:----- शशि पुरवार

Thursday, October 3, 2013

कण कण में बसी है माँ


कण कण में बसी है माँ।

उडती खुशबु रसोई की
नासिका में समाये
भोजन बना स्नेह भाव से
क्षुधा शांत कर जाय

प्रातः हो या साँझ की बेला
तुमसे ही सजी है माँ
कण कण में बसी है माँ।

संतान के ,सुख की खातिर
अपने स्वप्न मिटाये
अपने मन की पीर ,कभी 
ना घाव कभी दिखलाये 

खुशियाँ ,घर के सभी कोने में
तुमने ही भरी है माँ
कण कण में बसी है माँ .

माँ ने , दुर्गम राहो पर भी
हमें चलना सिखाया
जीवन के हर मोड़ पर भी
ज्ञान  दीप जलाया

संबल बन कर ,हर मुश्किल में
संग  खडी है माँ
कण कण में बसी है माँ।

शांत निश्छल उच्च विचार
मन को खूब भाते
माँ से मिले संस्कार , हम
जीवन में अपनाते

जीवन की हर अनुभूति में
कस्तूरी सी घुली  माँ
कण कण में बसी है माँ।

-- शशि पुरवार
१८ / ९ /१३

माँ से बढ़कर और क्या हो सकता है , इसीलिए यह गीत मेरी माँ को समर्पित करती हूँ ,नमन करती हूँ

Tuesday, October 1, 2013

आज से रस्ता हमारा और है। …। गजल

आज से रस्ता हमारा और है
साथ चलने का इशारा और है

चल रही ऐसी यहाँ पर आंधियाँ
घर का बिखरा ये नजारा और है

या खुदा रहमत नहीं अब चाहिए
फासलों का ये किनारा और है

ख्वाहिशों को तुमने तोड़ा था कभी
फिर भी दिल ने हाँ पुकारा और है

हर ख़ुशी मिलती नहीं टकराव से
हार जाने का इजारा और है

भूल जायेंगे चलो दुख की निशा
प्यार के सुख का सहारा और है.

जीत लेंगे मुश्किलों  की रहगुजर
होसलों का अब नजारा और है
----- शशि पुरवार
 22 / 9 /13







Monday, September 16, 2013

मन के भाव। ….




मन के भाव
शांत उपवन में 
पाखी से उड़े .

उड़े है  पंछी
नया जहाँ बसाने
नीड़ है खाली।

मन की पीर
शब्दों की अंगीठी से
जन्मे है गीत।

सुख औ दुःख
नदी के दो किनारे
खुली किताब।

मै कासे कहूँ
सुलगते है भाव
सूखती जड़े।

मोहे न जाने
मन का सांवरिया
खुली पलकें

मन चंचल
बदलता मौसम
सर्द रातों में।

मन उजला
रंगों की चित्रकारी
कलम लिखे।

 
-- शशि पुरवार


Saturday, September 14, 2013

भारत की पहचान है हिंदी

भारत की पहचान है हिंदी
हर दिल का सम्मान है हिंदी

जन जन की है मोहिनी भाषा
समरसता की खान है हिंदी

छन्दों के रस में भीगी ,ये
गीत गजल की शान है हिंदी

ढल जाती भावो में ऐसे
कविता का सोपान है हिंदी

शब्दों  का अनमोल है सागर
सब कवियों की जान है हिंदी

सात सुरों का है ये संगम
मीठा सा मधुपान  है हिंदी

क्षुधा ह्रदय  की मिट जाती है
देवों का वरदान  है  हिंदी

वेदों की गाथा है समाहित
संस्कृति की धनवान है हिंदी

गौरवशाली भाषा है यह
भाषाओं का ज्ञान है हिंदी

भारत के  जो रहने वाले  
उन सबका अभिमान है हिंदी।
--- शशि पुरवार


Friday, September 13, 2013

अक्स लगा पराया




मेरा  ही अंश
मुझसे ही  कहता
मै हूँ तोरी ही छाया
जीवन भर
मै तो प्रीत निभाऊँ
क्षणभंगुर माया।


जीवन संध्या
सिमटे हुए पल
फिर तन्हा डगर
ठहर गयी
यूँ दो पल नजर
अक्स लगा पराया


शांत जल में
जो मारा है कंकर
छिन्न भिन्न लहरें
मचल गयी
पाषाण बना हुआ
मेरा ही प्रतिबिम्ब .


चंचल रवि
यूँ मुस्काता आया
पसर गयी धूप
कण कण में
विस्मित है प्रकृति
चहुँ और है छाया।


चांदनी रात
छुपती परछाईयाँ
खोल रही है पन्ने
 महकी यादें
दिल की घाटियों मे
घूमता बचपन।

 ६
जन्म से  नाता
मिली परछाईयाँ
मेरे ही अस्तित्व की
खुली तस्वीर
उजागर करती
सुख दुःख की छाँव।


नन्हे   कदम
धीरे से बढ़ चले
चुपके से पहने
पिता के जूते
पहचाना सफ़र
बने उनकी छाया। 

---- शशि  पुरवार





Wednesday, September 11, 2013

ये नया जहाँ। .



 
पुलकित है
खिलखिलाते शिशु
हवा के संग।


बेकरारी सी
भर लूँ निगाहों में
ये नया जहाँ।


मै भी तो चाहूँ
एक नया जीवन
खिलखिलाता


साथ साथ ये

बढ़ रहे कदम
छू लूं आसमां।


मुस्कुरा रही
ये नन्ही सी गुडिया
थाम लो मुझे


प्रफुल्लित है
नन्हे प्यारे से पौधे
छूना न मुझे


दुलार करूँ
भर लूँ आँचल में
मेरा ही अंश


हरे भरे से
रचे नया संसार
रा का स्नेह

-- शशि पुरवार

Thursday, September 5, 2013

हृदय की तरंगो ने गीत गाया है। ।



हृदय की तरंगो ने गीत गया है
खुशियों का पैगाम लिए
मनमीत आया है

जीवन में बह रही
ठंडी हवा
सपनो को पंख मिले
महकी दुआ

मन में उमंगो का
शोर छाया है
भोर की सरगम ने  ,मधुर
नवगीत गाया  है।


भूल गए पल भर में
दुख की निशा
पलकों को मिल गयी
नयी दिशा

सुख का मोती नजर में
झिलमिलाया है
हाँ ,रात से ममता  भरा
नवनीत पाया  है।

तुफानो की कश्ती से
डरना नहीं
सागर की मौजों में
खोना नहीं

पूनों के चाँद ने
मुझे बुलाया है
रोम  रोम सुभितियों में
संगीत आया है।
ह्रदय की तरंगो ने गीत गया है।
 ------- शशि पुरवार



Friday, August 30, 2013

श्री कृष्ण -- छेड़े गोप वधू


श्री कृष्ण
नाम है
आनंद की अनुभूति का,
प्रेम के प्रतिक का ,
ज्ञान के सागर का
और जीवन की
पूर्णता का।


श्री कृष्ण ने
गीता में  दिया है
निति नियमो का ज्ञान
जीवन को जीने का सार ,
पर इस युग में तो
मानव ने
राहों में रोप दिए है
क्षुद्रता के
 कंटीले  तार।


मोहन ने
शंख  बजाकर
उद्घोष किया था
करो दुष्टों का नाश.
आज कलयुग में
अधमता के
काले बादलों से
भरा हुआ है आकाश।


लक्ष्य
निर्धारित करता है
आने वाले कल की
दिशाएँ
और
नए  संसार का
अभिकल्प।  


श्री कृष्ण
जन्मोउत्सव
ह्रदय में
उन्माद  की आंधी
श्याम बनने को होड़ में
बाल गोपाल
फोड़ रहे  है
दही हांड़ी।

 ६
फूलों से सजा
हिंडोला
दूध - दही की
बहती गंगा
विविध पकवान
पंचामृत का भोग
भक्ति का बहता सागर
मन हो जाये चंगा।
24.8.13 १


-------------


1
श्याम ने दिया
प्रेम का गूढ़ अर्थ
भक्तों ने जिया।

सांसों में बसी
भक्ति - भाव की धारा
ज्ञान लौ जली

 नियम सारे
ज्ञान का सागर है
मोहन प्यारे।


हर्षोल्लास
भक्ति भाव की  गंगा
गोकुल खास
बाल गोपाल
दही हांडी की धूम
 हर चौराहे।

माहिया --


हाँ ,शीश मुकुट सोहे
अधरों पे बंशी
मन को कान्हा मोहे।
राधा लागे है प्यारी
 छेड़े गोप वधू
रास रचे है  गिरधारी
25 .8 13


- शशि पुरवार



Tuesday, August 27, 2013

कान्हा नजर न आये ………।

मनमोहन का जाप जपे है
साँस साँस अब मोरी


नटखट कान्हा ने गोकुल में
कितने स्वाँग रचाये
कंकर मारे, मटकी तोड़ी
माखन-दही चुराये
यमुना तीरे पंथ निहारे
हरिक गाँव की छोरी

जग को अर्थ प्रेम का सच्चा
मोहन ने समझाया
राधा-मीरा, गोप-गोपियाँ
सबने श्याम को पाया
उनकी बंसी-धुन को सुनना
चाहे हर इक गोरी

वृन्दावन की कुंज गलिन में
मन मोरा रम जाए
कान्हा-कान्हा हिया पुकारे
कान्हा नजर न आये
मै तो मन ही मन खेलूँ हूँ


- शशि पुरवार 

२१ / ०८ / १३


 


Sunday, August 18, 2013

आजादी के बाद कितनी आजादी पायी है। ।?

आजादी के बाद
कैसी आजादी पायी है

लाखों टन अनाज
गोदामों में सड़ जाता है
फिर जाने कितने
भूखों का पेट भर पाता है

मोटी चमड़ी के
हाथों में दूध मलाई है
रंक  की थरिया में
फिर महंगाई आयी है

रोज नये वचन के
झूठे आश्वासन होते है
लुगड़ी चुपड़ी बात
भरे सियासी दिन होते है

चारे  और घपले
करने की दौड़ लगायी है
गरीबी रेखा में
फिर आधी जनता आयी है

उन्नति की डगर पर
अब तो मिटने लगे है गाँव
कंक्रीट के शहर में
खो जाती है पेड़ की छाँव

अब आधुनिकरण ने
बाजार में साख जमायी है
संकुचित मूल्यों से
कितनी आजादी पायी है।

-  शशि पुरवार
१६ /अगस्त /१३










Thursday, August 15, 2013

अब जोश दिलों में भंग न हो.…।





जय भारत के  वीर जवानों

आजादी  के मस्तानो
अब जोश दिलों में भंग न हो।

नव भारत में नयी दिशाएं 

मिट जाएँ काली निशायें
घर घर में फैले उजियारा
फिर खुशियों की बहे हवाएं

प्रातः की नयी किरणों में

आतंक  का बेरंग न हो,
अब जोश दिलों में भंग न हो।
 
नये पौध  के नये आचार
संस्कारों का दृढ़ आधार 
विदेशी धरती पर भी देखो
कर रहे संस्कृति का प्रसार 

नव सांसो में नव प्राण दो

पर जड़े अपनी तंग न हो
अब जोश दिलों में भंग न हो

नए राष्ट्र के प्रांगण में

चैनो अमन के फूल खिले
राष्ट्रप्रेम की जन अभिलाषा
हर बालक के दिल में मिले

नवयुग का आह्वान करो

पर निज स्वार्थ की जंग न हो
अब जोश दिलों  भंग न हो।

पावन भूमि यह भारती की 

माँ , हमारी पालनहार है
मातृभूमि की लाज बचाने
यहाँ जन जन भी तैयार है 

वैरी की आशा तोड़ दो

हाँ सेना अपनी भंग न हो।
अब जोश दिलों में भंग न  हो

-- शशि पुरवार 


सभी मित्रो और परिजनों को स्वतंत्रा  दिवस  शुभकामनाये। 

जय हिन्द ,जय भारत। - शशि पुरवार

Sunday, August 4, 2013

चम्पा चटकी

चम्पा चटकी
इधर डाल पर
महक उठी अँगनाई ।

उषाकाल नित
धूप तिहारे
चम्पा को सहलाए ,
पवन फागुनी
लोरी गाकर
फिर ले रही बलाएँ।

निंदिया आई
अखियों में और
सपने भरें लुनाई

श्वेत चाँद -सी
पुष्पित चम्पा
कल्पवृक्ष-सी लागे
शैशव चलता
ठुमक -ठुमक कर
दिन तितली- से भागे

नेह- अरक में
डूबी पैंजन
बजे खूब शहनाई.

-शशि पुरवार



३. महक उठी अंगनाई --- नवगीत की पाठशाला में प्रकाशित मेरा नवगीत 

Friday, August 2, 2013

जीवन के ताप सहती

जीवन के ताप सहती
कैसे असुरी

जलती है धूप नित
सांझ सवेरे
मधुवन में क्षुद्रता के
मेघ घनेरे .

रातों में चाँद देखे
पाँव इंजुरी .

भाल पर अंकित है
किंचित रेखा
काया को घिसते यहाँ
किसने देखा

नटनी सी घूम रही
देखो लजुरी .

मुखड़े पर शोभित है
मोहिनी मुस्कान
वाणी में फूल झरे
देह बेइमान

हौले से छोर भरे
कैसे अंजुरी .

शशि पुरवार

Thursday, August 1, 2013

यूँ बदल गए मौसम।

 1
क्यूँ तुम खामोश रहे
पहले कौन कहे
दोनों ही तड़प सहें ।

2
आसान नहीं राहें
पग- पग पे  धोखा
थामी तेरी बाहें ।

3
सतरंगी यह जीवन
राही चलता जा
बहुरंगी तेरा मन ।

4
साँचे ही करम करो
छल करना छोड़ो
उजियारे रंग भरो ।

5
बीते कल की बतियाँ
महकाती यादें
है आँखों में रतियाँ ।

6
ये  पीर पुरानी है
यूँ बदले  मौसम 
खुशियाँ नूरानी है  ।


है खुशियों को जीना
हँसता चल राही
दुःख आज नहीं पीना ।


मन में सपने जागे
पैसे की खातिर
क्यूँ हर पल हम भागे?


है दिल में जोश भरा
मंजिल मिलती है
दो पल ठहर जरा ।

१०
झम झम बरसा पानी
मौसम बदल गए
क्यूँ रूठ गई रानी ?

११
क्यों मद में होते  हो
दो पल का जीवन
क्यों नाते खोते हो ।

१२
है क्या सुख की भाषा
हलचल है दिल में
क्यों  टूट रही आशा ।?

१३
दिन आज सुहाना है
कल की खातिर क्यों
फिर आज जलाना है ।

----शशि पुरवार

समीक्षा -- है न -

  शशि पुरवार  Shashipurwar@gmail.com समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा  है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह  जिसमें प्रेम के विविध रं...

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