shashi purwar writer

Saturday, November 7, 2015

झिलमिलाती है दिवाली






दीप खुशियों के जलाकर, टिमटिमाती  है दिवाली
तम घना मन से मिटाकर, जगमगाती  है दिवाली

फर्श रंगोली सजी है, द्वार बंदनबार झूलें
भीत पर लड़ियाँ चमकतीं, झिलमिलाती है दिवाली

मुल्क से अपने सभी घर, लौट कर आने लगे है 
फासले होने लगे कम, दिल मिलाती है दिवाली

मग्न है सब खेलने में, ताश, बूढ़े और बच्चे
मिल ठहाकों के पटाखे, खिलखिलाती है दिवाली

झोपडी में एक दीपक रोज जलता हौसलों का
पेट भर भोजन मिला जो, मुस्कुराती है दिवाली

एक साया  ढूंढता है ,अधजले से कागजों में
काश मिल जाये फटाका, मन लुभाती है दिवाली.

फिर अमावश रात काली, खो गयी है रौशनी में
सत्य का जगमग उजेरा, गीत गाती है दिवाली.

              -- शशि पुरवार

आप सभी ब्लॉगर परिवार और मित्रों को सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ 

Monday, November 2, 2015

आसमान से उतरे सितारे -- राजनीती की धरा पर


     

       सिने जगत एक ऐसा आसमान है, जहाँ  अनगिनत सितारे चमकते रहते है और ऐसे सितारे जिनकी चमक  कभी  धूमिल नहीं  होती है . दुनियाँ  की आँखों को चकाचौंध भरी रौशनी से चुंधियाता  हुआ रुपहला पर्दा, यहाँ हम बात कर रहे है उन  सदाबहार अभिनेत्रियों की जिन्होंने न केवल रुपहले पर्दे पर किरदारो को जिया है बल्कि वे किरदार आज भी लोगो के दिलों पर  जीवंत राज करते  है, वक़्त तो अपनी गति से  बढ़ता चला  गया परन्तु जैसे इन सितारो  का वक़्त वहीँ ठहर गया है. आज भी  इन सदाबहार अभिनेत्रियों के  चाहने  वालों की कमी नहीं है. आज भी इनके हुस्न की चर्चा होती है, कुछ अभिनेत्रियों ने रुपहले परदे के  अलावा राजनीति के गलियारें में भी कदम रखे, तो लोगो का हुजूम ऐसा  उमड़ा  कि  जैसे सितारे ने आसमान से जमीं पर कदम रखें हों. लोगों ने इन सितारों  का स्वागत भीगे हुए स्नेहिल मन से  किया।  रुपहले परदे की कई अदाकारा जिन्होंने कला के साथ साथ राजनीति में भी अपना भाग्य आजमाया है , क्या लोगों ने उन्हें एक राजनीतिक के रूप में स्वीकार किया है है या आज भी वह एक  अभिनेत्रियों के  रूप में भी पहचानी जाती है।  एक राजनीतीक के रूप में वह कितनी सफल हुई  इस पर एक नजर डालते है …… बॉलीबुड की कई चर्चित अभिनेत्रिया जैसे हिंदी सिनेमा से नरगीस, रेखा, जया प्रदा ,हेमामालिनी,  जया  बच्चन, गुलपनाग दक्षिण की जयललिता , नगमा, बंगाल से मुनमुन सेन, अर्पिता घोष ,शताब्दी राय, संध्या राय, उड़ीसा से अपराजिता भवन्ति ……… आदि  कई अभिनेत्रियों ने राजनीति  में  अपना भाग्य आजमाया है। आईये एक नजर डालते है  उन अभिनेत्रयों के  फिल्मों से राजनीतिक सफ़र तक और किसने कहाँ तक यह सफ़र जारी रखा है।

  फ़िल्मी सफ़र से राजनितिक सफ़र पर एक नजर ---
सबसे पहले बात करते है दक्षिण की जानीमानी अदाकारा जय जयललिता जी की, जो न सिर्फ रुपहले पर्दे पर सफल रहीं है  बल्कि एक राजनितिक के रूप में भी कामयाबी ने उनका दामन थामे रखा है . लोगों ने इन्हें वही प्यार दिया जो एक अभिनेत्री  को दिया था। 
२४ फरवरी १९४८ को जन्मी जयललिता के सर से उनके पिता का साया महज २ वर्ष की उम्र मे मिट गया था, बेहद गरीबी और अभावों में पली जयललिता ने परिवार  चलाने के लिए  १५  वर्ष की उम्र में सिनेमा का रुख किया और जाने माने निर्देशक श्रीधर की फ़िल्म " वेन्नीरादई " से अपना कॅरिअर शुरू किया फिर तमिल, हिंदी और तेलगु की  लगभग ३०० फिल्मों में काम किया। गोल चेहरा, बड़ी आंखें और आकर्षक अंदाज वाली इस अभिनेत्री ने २० साल तक लोगों के दिलों में पर एक हीरोइन के रूप में राज किया 
 अपने सफलता के इसी अंदाज  को उन्होंने राजनीति में भी बरकरार  रखा है. सपनों की  परिभाषा बदल कर सपनों को नए रंगो से सरोबार कर दिया। 
  राजनीति  में " अम्मा " के नाम से  मशहूर जयललिता को  पार्टी के अंदर और सरकार में रहते हुए मुश्किल  कठोर फैसलों के  कारण तमिलनाडू में " आइरन लेडी " और तमिल की  "मार्ग्रेट थ्रेचर "भी कहा जाता है. सन १९८२ में  पूर्व साथी  अभिनेता और नेता एम्. जी. रामचंद्रन ही  जयललिता को राजनीति में लाए, उसी साल वह ए.आई.ए.डी.एम.के. के टिकट पर राज्यसभा  के लिए मनोनीत की गईं. उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। हालाकि १९८७ में उन्हें पार्टी के प्रोपोगेंडा  सचिव के पद से हटा दिया गया था। आल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम पार्टी से  तमिलनाडु में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठीं जयललिता  ने 1991 से 1996 के बीच, फिर कुछ वक्‍त 2001 में और उसके बाद 2002 से 2006 के बीच मुख्यमंत्री का कार्यभार संभाला  हैं। समर्थकों के लिए वह अम्मा भी हैं और क्रांतिकारी नेता (पुरात्ची थलाइवी) भी।
  
           सन १९९१ में राजीव गांधी की हत्या के बाद  जयललिता ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया, जिसका उन्हें फायदा पहुंचा. लोगों के मन में डीएमके के प्रति जबरदस्त गुस्सा था क्योंकि लोग उसे लिट्टे का समर्थक समझते थे. मुख्यमंत्री बनने के बाद जयललिता ने लिट्टे पर पाबंदी लगाने का अनुरोध किया, जिसे केंद्र सरकार ने मान लिया. हालांकि  वह हिंदूवादी समझी जाती हैं लेकिन उन्होंने शिव सेना और बीजेपी की कार सेवा के खिलाफ बोला.   2001 में वह दोबारा सत्ता में आईं तब उन्होंने लॉटरी टिकट पर पाबंदी लगा दी. हड़ताल पर जाने की वजह से दो लाख कर्मचारियों को एक साथ नौकरी से निकाल दिया, किसानों की मुफ्त बिजली पर रोक लगा दी, राशन की दुकानों में चावल की कीमत बढ़ा दी, 5000 रुपये से ज्यादा कमाने वालों के राशन कार्ड खारिज कर दिए, बस किराया बढ़ा दिया और मंदिरों में जानवरों की बलि पर रोक लगा दी.लेकिन 2004 के लोकसभा चुनाव में बुरी तरह हारने के बाद उन्होंने पशुबलि की अनुमति दे दी थी  और फिर किसानों की मुफ्त बिजली भी बहाल हो गई.  कई कठोर  फैसले लिए  जिसके कारन आलोचना का सामना भी करना पड़ा फिर उन्होने पुराने फैसलों से सीख लेते हुए पार्टी को बिखरने नहीं दिया…… उन्हें अपनी आलोचना बिल्कुल पसंद नहीं है, इसी  वजह से उन्होंने कई अखबारों के ख़िलाफ़ मानहानि के मुक़दमे दायर  कर रखें हैं। खैर बात यह नहीं कि क्या हुआ ? मुख्य बात यह है कि जयलिता ने सिनेमा और  राजनीती दोनों  में सफलता के नए मापदंड स्थापित किये है और  लोगों ने जयललिता के दोनों किरदारों  को बेहद पसंद किया व जयललिता आज भी लोगों के दिलो में राज करतीं है।

ऐसी ही एक अभिनेत्री जया भादुडी  बच्चन -
सन ९ अप्रैल १९४८ को मध्यप्रदेश के जबलपुर में बंगाली परिवार में जन्मी जया   भादुडी ने  महज १५ वर्ष की उम्र में अपने  फ़िल्मी सफ़र की शुरुआत सन  १९६३ में बंगाली फ़िल्म महानगर से की थी , फ़िल्मी दुनिया में जब उन्होंने कदम रखा तब शर्मीला टैगोर और हेममनीलिनी का जादू  लोगो पर चढ़ा हुआ था, ऐसे में सीधी सादी मासूम सी लड़की का सफल और स्थापित होना लोगों को नामुमकिन लगता था, परन्तु यही सादगी लोगो के दिलो में बस गयी।  आम लड़की के रूप में  किरदारों जिया है. लोगों को  उनमे अपने ही  पड़ोस की लड़की नजर आती थी। प्रतिभा और बेजोड़ अभिनय की धनी जया ने अपने बेहतरीन अभिनय द्वारा फ़िल्म जगत को  अनगिनत यादगार फिल्में दीं है और परदे पर हर किरदार को जीवंत  कर दिया, गुड्डी के नाम से मशहूर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री जया को उनके सर्वश्रेष्ठ अभिनय के लिए अनेकों फिल्मफेयर पुरस्कार, अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म फेयर पुरस्कार, सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार , लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार, सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री पुरस्कारो से नवाजा जा चुका है. सन ३ जून १९७३ को मशहूर अभिनेता अभिताभ बच्चन से उनकी शादी संपन्न हुई और  वे जय बच्चन बनी। उनका फ़िल्मी सफ़र कभी भी समाप्त हुआ, आज भी वें यदा कदा  बेहतरीब फिल्मों में अपने अभिनय का जादू  बिखेरतीं है।  उन्होंने अपनी एक विशिष्ठ पहचान स्थापित की है।  जया बच्चन को वर्ष २००४ में  राज्यसभा के सदस्य के तौर पर चयनित किया गया था. तब जया बच्चन उत्तर प्रदेश फ़िल्म डेवलपमेंट कॉउसिल के अध्यक्ष के तौर पर अन्य सेवाएं भी दे रहीं थी।  कांग्रेस के भारत के राष्ट्रपति ने उनसे इस्तीफा देने के लिए कहा था जिससे उनका कार्यकाल पूरा नहीं हो सका था। वर्ष १९९२ ने जया बच्चन को भारत सरकार द्वारा  पद्म श्री प्रदान किया गया और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा  यश भर्ती सम्मान से नवाजा गया। आज भी जया बच्चन अपना विशिष्ठ स्थान बनायें हुएँ है।
 इस कड़ी में नाम जुड़ता है बला की  खूबसूरत अभिनेत्री रेखा का। ....
     रेखा का असली नाम  भानुरेखा गणेशन है।  सन १० ओक्टुबर १९५४ को जन्मी प्रतिभाशाली अभिनेत्री रेखा का जन्म चेन्नई में हुआ था. एक बाल कलाकार के रूप में रेखा ने १५ वर्ष की उम्र से तेलगु फ़िल्म रंगुला रत्नम से फिल्मजगत में कदम रखा था, लेकिन हिंदी सिनेमा में उनकी प्रविष्टि फ़िल्म सावन भादो से हुई,  फिर रेखा ने पलट कर नहीं देखा, अपने ४० साल के फिल्मी करिअर में उन्होंने कई सुपरहिट फिल्में दीं है। १८० से ज्यादा फिल्मों में काम कर चुकी यह  सांवली रंग की  खूबसूरत अदाकारा अपने बेजोड़ अभिनय ,सदाबहार हुस्न और जीवंत किरदारों के कारण आज भी लोगों के दिलों पर  राज करती है, अभिनय तो जैसे इनकी रगों में बसा हुआ है, फ़िल्म जगत को कई यादगार फिल्में देने वाली रेखा का हुस्न और सौंदर्य आज भी कशिश भरा है. यह सौंदर्य लोगो के लिए  रहस्य बना हुआ है , उमराव जान का किरदार व कई गानें तो लगता है जैसे रेखा के लिए ही लिखे गए थे।  इन आँखों की मस्ती के….......  सच ने दीवानें आज भी हैं। रेखा का फ़िल्मी सफ़र कभी समाप्त नहीं हुआ अपितु कम हुआ है।  उनकी उपस्थिति आज भी दर्शको को  बॉक्स ओफ़िस तक खींच लाती है।  रेखा जितनी अपने सौंदर्य को लेकर चर्चित रही है उतनी ही कई बार अपने साथी अभिनेता से अपने अफैयर को लेकर भी चर्चित हुई है. कभी विनोद मेहरा , कभी विश्व्जीत तो कभी अमिताभ बच्चन जिनके साथ इनका नाम सबसे ज्यादा जुड़ा, तो कभी अपने  पति मुकेश गौस्वामी की  आत्महत्या के कारन चर्चा में आयीं, परन्तु रेखा का सौंदर्य और अभिनय सदैव सर्वोपरि  रहा है , हर किरदारों को  परदे पर जीवंत करने वाली रेखा को  उनके अभिनय के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार भी प्रदान किया गया है।
 सरकार ने रेखा के शानदार अभिनय और फिल्मजगत में उनके योगदान को सम्मानित करते हुए उन्हें राज्यसभा के तौर  पर मनोनीत किया गया ,१५ मई २०१२ को रेखा ने राज्यसभा सदस्य के रूप में शपथ ली थी। सांसद रेखा रिटेल में एफडीआई के पक्ष में नहीं थी। वह एफडीआई के पक्ष में वोट भी नहीं करना चाहती थी। सरकार ने रेखा को पटाने के लिए उनकी एक मांग पूरी कर दी और आखिरी मौके पर रेखा ने सरकार के पक्ष में वोट भी डाल दिया। एक समाचार पत्र के मुताबिक रेखा दिल्ली में मन मुताबिक आवास सुविधा नहीं मिलने से नाराज थीं। वे राजनीती में सक्रीय है पर रेखा आज भी लोगों के दिलो में एक अभिनेत्री के रूप में राज करती है।
 एक और खूबसूरत अदकारा, हर उम्र के लोगो की ड्रीम गर्ल हेमामालिनी जिन्होंने साइन जगत से अपने कदम राजनीति की धरती पर रखें है - १६ ओक्टुबर १९४८ को अम्मनकुडी में जन्मी हेमामालिनी को दर्शक ड्रीम गर्ल  के नाम से जानते है , हर उम्र के लोगों  की ड्रीम गर्ल  कही जाने वाली हेमामालिनी एक प्रसिद्ध अभिनेत्री के साथ- साथ प्रसिद्ध नृत्यांगना भी है , यह उन गिनी चुनी सदाबहार अभिनेत्रयो में से है जिनमें  सौंदर्य , अभिनय और ग्लैमर का अनूठा संगम है, अपने फ़िल्मी सफ़र की  शुरुआत में उन्होंने बहुत संघर्ष किया है। तमिल निर्देशक श्रीधर ने तो यहाँ  तक कह दिया था कि इनमे स्टार  अपील नहीं है, कई संघर्षो के बाद  उन्हें राजकपूर की फ़िल्म सपनों के सौदागर में बतौर नायिका काम मिला , जिसमे उन्हें ड्रीम गर्ल कह कर प्रचारित किया गया था, फ़िल्म तो नहीं चली पर उनका सौंदर्य लोगों के दिलो में जगह बनाने में कामयाब रहा।  सन १९७० की फ़िल्म जानी मेरा नाम से उन्हें सफलता हासिल हुई , करीब १५० से ज्यादा फिल्मो में काम कर चुकी हेमामालिनी  आज भी ड्रीम गर्ल कहा जाता है .  उनका सौंदर्य और अभिनय आज भी लोगो को परदे पर आकर्षित करता है।  कई फिल्मफेयर पुरस्कार से नवाजी जा चुकी हेमामालिनी ने समाजसेवा कार्य हेतु राजनीति  में प्रवेश लिया और भारतीय जनता पार्टी के सहयोग से  राज्यसभा सदस्य बनी हेमा मालिनी को फिल्मों में उल्लेखनीय योगदान के लिए 1999 में फिल्मफेयर का लाइफटाइम एचीश्री सम्मान से भी सम्मानित की गईं। हेमामालिनी आज भी फ़िल्म और राजनीति  में सक्रियता बनाये हुए है.
अब हम बात करते है बुद्धिजीवी  कही जाने वाली बेहतरीन आदाकारा शबाना आजमी की -- शबाना आजमी जितनी बड़ी सशक्त अभिनेत्री है वह उतनी ही अच्छी व सशक्त समाजकर्ता भी है.  शोषित समाज के लिए तो वह मुखर  आवाज बनी हुईं है । मशहूर शायर कैफी आजमी की बेटी  शबाना आजमी का जन्म १८ सितम्बर १९५० हुआ था, प्रखर बुद्धि की शबाना आजमी कभी फिल्मों में आना नहीं चाहती थी, शुरू से ही प्रोग्रेसिव विचारो, परम्पराओ एव मान्यताओं से जुडी शबाना आजमी का   झुकाव अभिनय  की   तरफ नहीं  था , लेकिन फ़िल्म सुमन में जया बच्चन की एक्टिंग से प्रभावित होकर शबाना आजमी ने फ़िल्म एक्टिंग और टेलीविजन इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया में दाखिला ले लिया।  सन  १९७३ को डिप्लोमा पूरा करके वापिस लौटी तो मरहूम ख्वाजा अहमद अल्बास ने उन्हें अपनी फ़िल्म  फासला के लिए  साइन कर लिया।  शबाना आजमी को पेड़ों के इर्द गिर्द घूमना पसंद नहीं था। उनकी फिल्में आम फिल्मों से अधिक सशक्त विषय पर आधारित होती थी.  बेजोड़ शानदार अभिनय के बतौर उन्होंने अर्थ ,स्पर्श , पार……  आदि अनगिनत फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवाया है। फिल्मो में जिस तरह उन्होंने आम आदमी का दर्द प्रस्तुत किया, उसी तरह असल जीवन में भी वे आम आदमी के दर्द से जुड़कर उनकी आवाज बनी।  उन्होंने एक सफल सामाजिक कार्यकर्त्ता के रूप में भी अपनी  पहचान बनायीं है।  जावेद अख्तर के साथ उन्होंने शादी की।  उनके बेजोड़ अभिनय के लिए कई नेशनल अवार्ड  से से सम्मानित किया गया , शबाना आजमी को भारत सरकार द्वारा पद्मश्री पुरस्कार भी दिया गया है. एक सामजिक कार्यकर्त्ता के तौर  पर भी शबाना आजमी एक सफल शक्शियत  बन कर उभरी है। दोनों किरदार फिल्म व राजनिति मे  शबाना आजमी एक सफल नाम है।

इसी कड़ी में आगे नाम जुड़ा अभिनेत्री  जयाप्रदा का ---
जया प्रदा  एक सफल अभिनेत्री और सफल राजनितीज्ञ के रूप में जानी जाती है . ३ अप्रैल १९६२ में जन्मी जयाप्रदा का असली नाम ललिता रानी है ,आंध्र प्रदेश के राममंड्री में जन्मी जयाप्रदा ने बचपन से ही नृत्य और संगीत में दक्षता हासिल कर ली  थी . स्कूल के वार्षिक  समारोह में १४ वर्ष की जयाप्रदा ने नृत्य प्रस्तुति दी थी।,तब वहाँ तमिल के एक निर्देशक भी मौजूद थे। जिन्होंने बाद में जयाप्रदा को अपनी तमिल  फ़िल्म भूमिकोसम  में ३ मिनिट का नृत्य करने के लिए कहा था।  उनके परिवार ने उन्हें प्रोत्साहित किया और इस तरह उन्होंने फिल्मों में अपने कदम रखे।  ३ मिनिट के उनके नृत्य को देखकर उनके पास अनगिनत फिल्मों के प्रस्ताव बाढ़ की तरह आने लगे। उनके नृत्य कौशल के बल पर उन्होंने बहुत जल्दी तमिल में फ़िल्मी सफलता हासिल कर ली , उनकी  फ़िल्म के बालचंदर की अंतुलेनी कथा जबरजस्त हिट  हुई।  उन्होंने तेलगु  के  अलावा तमिल, मलयालम और कन्नड़ फिल्मो में भी अभिनय किया एवं  सभी जगह सफलता के नए मुकाम स्थापित किये . जब   के. विश्वनाथ की  फ़िल्म सिरी सिरी  मुब्बा को हिंदी में सरगम नाम से बनाया गया था,  तब  इस फ़िल्म से सफलता के झंडे  गाड़ दिए थे। अपने ३० वर्षीय फ़िल्मी केरियर में उन्होंने ३००  से ज्यादा फिल्में की है। इस तरह हिंदी फिल्मों में भी उनका पदार्पण हुआ. अनगिनत पुरस्कारो से नवाजा गया है। उन्हें  सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री, सर्वश्रेष्ठ कला अभिनेत्री  के अलावा उन्हें लाइफ टाइम अचीवमेंट  पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है.  कुछ अन्य कई पुरस्कार जैसे  राजीव गांधी पुरस्कार , नर्गिस दत्त पुरस्कार , शकुंतला कला रत्नम पुरस्कार , उत्तम कुमार पुरस्कार , उत्तम लेखन पुरस्कार , ANR उपलब्धि पुरस्कार , किन्नेर सावित्री पुरस्कार , कला सरस्वती पुरस्कार …… समेत अनगिनत पुरस्कारो से उन्हें नवाजा गया है। सन १९८६ में श्रीकांत नहाटा से उन्होंने शादी की जो पहले से शादी शुदा थे। जितनी सफल वे फिल्मो में हुई उतनी ही राजनिति  में भी  सफलतापूर्वक पहचान स्थापित करके  सक्रीय है जयाप्रदा के राजनितिक  जीवन पर नजर डालें तो कई रोचक तथ्य भी मिलते हैं . फ़िल्मी कॅरिअर के चरम पर पहुचने के बाद जयाप्रदा ने अपने साथी अभिनेता   एन टी रामाराव  की पार्टी से १९९४ में तेलगुदेसम पार्टी से अपना राजनीतिक सफ़र शुरू किया।  एन टी रामाराव का स्वास्थ ख़राब होने पर चन्द्र बाबू नायडू को आंध्रप्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया और उसी दौरान जयाप्रदा  राज्यसभा के लिए नामित हुई थी। सन १९९६ में जयाप्रदा तेलगु की महिला अध्यक्ष बनी।  बाद में उन्होंने तेपेदा छोड़ दिया और समाजवादी पार्टी में शामिल हो गयी। सन २००४ के आम चुनाव में उन्होंने रामपुर से संसदीय चुनाव लड़ा व ८५ हजार वोटो से जीती।  पांच साल तक सांसद रहने के बाद पुनः चुनाव लड़ा और ३०,००० से  ज्यादा वोटो के अंतर पर विजयी रही।  आज भी जयाप्रदा राजनिति  में उतनी ही शिद्दत से कार्यरत है  और सफल है। 
अब बात करतें है उस युवा अभिनेत्री की जिसने कम उम्र में सफलता के कई आयाम स्थापित किये हैं।   यहाँ हम बात कर रहे हैं बॉलीबुड , टोलीवुड और कॉलीवुड की  सफलतम अभिनेत्री नगमा की जिनका वास्तविक नाम है नंदिता मोरारजी या नम्रता सदाना, जिनका  जन्म २५ दिसम्बर १९७४ को हुआ।
 मुसलमान माँ  और हिन्दू पिता की  संतान नगमा  सभी धर्मो का सम्मान करती है. अपनी मिश्रित धार्मिक प्रवर्ति के कारन उन्होंने  कुरान , भगवतगीता , बाइबल सभी का अध्यन किया है। सन  १९९० में १६ साल की  उम्र में उन्होंने अभिनेता सलमान खान के साथ बागी नाम की  सफलतम हिंदी फ़िल्म से फ़िल्म जगत में अपनी जोरदार एंट्री की थी । हिंदी , तेलगु , तमिल ,कन्नड़ , मलयालम , भोजपुरी , बंगाली , भोजपुरी , पंजाबी और मराठी सभी फिल्मो में उल्लेखनीय कार्य किया।  तमिल में  प्रसंशको ने  तो उनका एक मंदिर ही बना दिया और भोजपुरी सिनेमा में तो वह भोजपुरी फिल्मो की माधुरी दीक्षित कही जाती है। सन २००५ में भोजपुरी फ़िल्म दूल्हा मिलाल दिलदार  के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार प्राप्त हुआ।   अप्रैल  २००४ में उन्होंने कांग्रेस पार्टी के लिए आँध्रप्रदेश में प्रचार किया था , कांग्रेस पार्टी की समर्थक नगमा को भाजपा ने लुभाने की बहुत कोशिश  की, परन्तु वे कांग्रेस पार्टी की स्टार प्रचारक थी।   धर्मनिरपेक्षता , कमजोर  और गरीब वर्ग के उद्धार के लिए प्रतिबध्द नगमा को सन  २००७ में राज्य सभा  सीट के लिए  नामित किया गया था।   राजीव गांधी   की प्रशंसक होने के कारण उन्होंने कोंग्रेस को ही प्रमुख रखा, नगमा एक राजनीतियज्ञ और अभिनेत्री के तौर पर सफल एवं सक्रीय भूमिका में है।
इसी तरह कई अभिनेत्रिया है जो सिने  परदे से निकलकर राजनीति की दुनिया में आयी है। आगे बात करते है बंगाली और हिंदी की  सफल अभिनेत्री और बंगाल की महान अदाकारा सुचित्रा की बेटी  मुनमुन  सेन की, जो भारतीय सिनेमा की प्रमुख अभिनेत्री रही है। २८ मार्च १९४८ को कोलकत्ता में   जन्मी मुनमुन सेन ने हिंदी के अलावा भी बंगला तमिल और मराठी फिल्मों में भी काम किया है कला के अलावा मुनमुन सेन को सामजिक कार्यो में भी रूचि थी, यही कारण है कि उन्होंने शादी से पहले ही एक बच्चे को गोद ले लिया था। अपने बोल्ड और   सेक्सी अंदाज के लिए मशहूर रही मुनमुन सेन एक सफल अभिनेत्री के  तौर पर कभी स्थापित नहीं हो सकी थी।  सन २०१४ में पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा लोकसभा सीट से तृणमूल की उमीदवार के तौर पर उन्होंने अपना टिकिट दाखिल किया है। चूँकि यह महान बंगाली अदाकारा की बेटी हैं  तो इसी वजह से राज्य की जनता से उन्हें बहुत स्नेह मिलता है। उन्होंने यह उम्मीद जतायी है कि यदि उन्हें जनसमर्थन प्राप्त होता है तो इस नए किरदार में वह लोगों के दुःख दर्द को जानने का मौका मिलेगा और वह उनके लिए कुछ अच्छा करना चाहेंगी।

      इस तरह  ५   ओक्टुबर १९६९ को जन्मी बंगला अभिनेत्री, निर्देशक , और डाइरेक्टर  शताब्दी राय ने भी तृणमूल कोंग्रेस से ही राजनीती में अपने कदम बढ़ाएं है  और सफलता पूर्वक राजनीति में सक्रीय है , इसी कड़ी बंगाल के रंगमंच की कलाकार अर्पित घोष भी राजनीति में अपनी सक्रियता बनाये हुए है। बंगाल का एक और नाम अभिनेत्री  संध्या राय ने तृणमूल कांग्रस से अपना  मार्च २०१४ में नामांकन दाखिल किया था.

 हाल ही में बॉलीबुड की जानी मानी मॉडल एवं अभिनेत्री गुलपनाग जिनका जन्म ३ जनवरी १९७९ को हुआ है, उन्होंने भी राजनीति की  तरफ रुख किया है। गुलपनाग पूर्व में मिस इंडिया रह चुकी है। शानदार, सशक्त अभिनय करने  वाली गुलपनाग चित्रपट के मामले में बहुत चूजी रही है ,इन्हे क्रिटिक्स चॉइस सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार प्राप्त हुआ है।  गुलपनाग अभिनय के साथ साथ सामजिक कार्यो से जुडी हुई थी। गुलपनाग भ्रष्टाचार ,वंशवाद और अपराधी राजनीति के आंदोलनो में सक्रिय  रही है, इन्होने १४ मार्च २०१४ को आप पार्टी के नामांकन  दाखिल किया था  यह भी सबसे कम उम्र की अभिनेत्री है। जिन्होंने राजनीति में अपने कदम बढ़ाये है।
    यह सफ़र तो यहीं ख़त्म नहीं होता, किन्तु सभी अभिनेत्रियां , एक अभिनेत्री के रूप में सभी के दिलों पर  राज कर रही है किन्तु हम तो यही चाहेंगे कि यह सभी चमकते सितारे राजनीति के गलियारो को सकारात्मक ऊर्जा और नयी रौशनी से रौशन कर दे।  यहाँ भी उसी चमक के साथ लोगो के दिलो पर राज करें और समाज में में अपने महत्वपूर्ण कार्यों में अपना योगदान प्रदान कर सकें। शुभकामनाओ सहित।
-------- शशि पुरवार 


Tuesday, October 6, 2015

रंग जमाया - छोटी बहर

मन को जिसने
फिर भरमाया

जादू ऐसा
दिल पिघलाया

लगता हमको
प्यारा साया

सखी सहेली
पास बुलाया

महफ़िल में अब
रंग जमाया

हर कोई फिर
दौड़ा आया
-शशि पुरवार
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Monday, September 21, 2015

मन खो रहा संयम


आस्था के नाम पर,
बिकने  लगे हैं भ्रम
कथ्य को विस्तार दो ,
यह आसमां है कम .

लाल तागे में बंधी
विश्वास की कौड़ी
अक्ल पर जमने लगी, ज्यों
धूल भी थोड़ी
नून राई, मिर्ची निम्बू
द्वार पर कायम

द्वेष, संशय, भय हृदय में
जीत कर हारे
पत्थरों को पूजतें, बस
वह हमें तारे
तन भटकता, दर -बदर
मन खो रहा संयम.

मोक्ष दाता को मिली है
दान में शैया
पेंट ढीली कर रहे, कुछ
भाट के भैया
वस्त्र भगवा बाँटतें,
गृह, काल. घटनाक्रम .
- शशि  पुरवार

Saturday, September 19, 2015

तिलिस्मी दुनियाँ



काटकर इन जंगलो को
तिलिस्मी दुनियाँ बसी है 
वो फ़ना जीवन हुआ, फिर
पंछियों की बेकसी है.

चिलचिलाती धूप में, ये
पाँव जलते है हमारे
और आँखें देखती है
खेत के उजड़े नज़ारे
ठूँठ की इन बस्तियों में
पंख जलना बेबसी है

वृक्ष  गमलों में लगे जो
आज बौने हो गए है
आम पीपल और बरगद 
गॉंव भी कुछ खो गए है
ईंट गारे के  महल  में
खोखली रहती हँसी है

तीर सूखे  है नदी के
रेत का फिर आशियाँ है
जीव - जंतु लुप्त हुए जो
अब नहीं नामो- निशाँ है
चाँद पर जाने लगे हम
गर्द में धरती फँसी है
-- शशि पुरवार



Monday, September 14, 2015

विश्व फलक पर चमक रही है हिंदी



1४ सितम्बर हिंदी दिवस है लेकिन हिंदी दिवस एक दिन या एक महीने के लिए नहीं अपितु हिंदी दिवस रोज मनाएँ। हिंदी सिर्फ भाषा नहीं मातृभाषा है, हिंदी का विकास हमारा विकास है। शान से कहें हिंदी है हम। हिंदी दिवस पर विशेष शुभकामनाएँ।


विश्व फलक पर चमक रही है
हिंदी  मधुरम भाषा
कोटि कोटि जन के नैनों की
सुफल हुई अभिलाषा.

बागिया में वह खिलती

सखी- सहेली के संग -संग
गले सभी के मिलती
पुष्पित होती, हँसते गाते
मन की कोमल आशा ।

यह सूफी  मुस्काई

तुलसी के अँगना में उतरी
बन दोहा -चौपाई
झूल प्रकृति के पलने में
प्रतिदिन, गढ़ती परिभाषा।

गागर में सागर भरती

हिंदी  का रस पान करें
निज भाषा अपनी है, हम
हिंदी का सम्मान करें
एक सूत्र में सबको बाँधे
हिंदी  देशज भाषा।


                                       - शशि पुरवार 
 

Wednesday, September 9, 2015

हर पल रोना धोना क्या



हँस कर जीना सीख लिया 
हर पल रोना धोना क्या

धीरे धीरे कदम बढ़ा
डर कर पीछे होना क्या

जीवन की इस बगियाँ में
काँटों को भी ढोना क्या

दुःख सुख तो है एक नदी
क्या पाना फिर खोना क्या

मिल जाये खुशियाँ सारी
थककर केवल  सोना क्या.

सखी सहेली  जब मिल बैठें
मस्ती का यह कोना क्या

दुनियादारी भूल गए
मीठे का फिर दोना क्या 
 --  शशि पुरवार 

Sunday, September 6, 2015

हे प्रिय हस्ताक्षर





नित हिंदी के पाँव पखारो
हे प्रिय हस्ताक्षर,
बिखरें, जग के हर कोने में
उसके स्वर्णाक्षर

सरस-सुगम, उन्नत ये भाषा
संस्कृति की बानी है
अंग्रेजी की सर्द धरा पर
ये, अनुसंधानी है

ज्ञान ज्योति की अलख जगाते
हिंदी अंत्याक्षर
नित हिंदी के पाँव पखारो
हे प्रिय हस्ताक्षर

गरिमामयी, हिन्द की रोली
रंगो को अपनाएँ
मनमोहक शब्दों के मोती
मिल प्रतिबिम्ब बनाएँ

गीत-गजल औ छंद-विधाएँ
हिंदी अमृताक्षर
नित हिंदी के पाँव पखारो
हे प्रिय हस्ताक्षर

हिंदी का सत्कार करें, हो
जन जन की अभिलाषा
गाँव-शहर हर आँगन के
सँग, बने राष्ट्र की भाषा

सीना तान, गर्व से बोलें
हम हिंदी साक्षर

नित हिंदी के पाँव पखारो
हे प्रिय हस्ताक्षर

-- शशि पुरवार

Tuesday, August 18, 2015

मन प्रांगण बेला महका। .

मन, प्रांगण बेला महका
याद तुम्हारी आई 
इस दिल के कोने में बैठी 
प्रीति, हँसी-मुस्काई।

नोक झोंक में बीती रतियाँ 
गुनती रहीं तराना 
दो हंसो का जोड़ा बैठा 
मौसम लगे सुहाना

रात चाँदनी, उतरी जल में 
कुछ सिमटी, सकुचाई।

शीतल मंद, पवन हौले से 
बेला को सहलाए 
पाँख पाँख, कस्तूरी महकी  
साँसों में घुल जाए। 

कली कली सपनों की बेकल 
भरने लगी लुनाई 

निस  दिन झरते, पुष्प धरा पर 
चुन कर उसे उठाऊँ 
रिश्तों के यह अनगढ़ मोती 
श्रद्धा सुमन चढ़ाऊँ

रचे अल्पना, आँख शबनमी 
दुलहिन सी शरमाई।    
     --- शशि पुरवार 

Sunday, July 5, 2015

जिंदगी चित्र

नमस्कार मित्रों , आज आपके लिए चित्र मय हाइकु -- शशि पुरवार

Wednesday, July 1, 2015

याद की खुशबु हवा में



गॉँव के बीते दिनों की,
याद आती है मुझे
याद की खुशबु हवा में
गुदगुदाती है मुझे.

धूल से लिपटी सड़क पर
पाँव नंगे दौड़ना
वृक्ष पर लटके  फलों को
मार कंकर तोडना
जीत के हासिल पलों को
दोस्तों से बाँटना
और माँ का प्यार की उन
झिड़कियों से डाँटना

गंध साँसों में घुली है
माटी बुलाती है मुझे
याद  की खुशबु हवा में....

नित सुहानी थी सुबह
हम खेलते थे बाग़ में
हाथ में तितली पकड़ना
खिलखिलाना राग में
मस्त मौला उम्र थी
मासूम फितरत से भरी
भोर शबनम सी  खिली
नम दूब पर जादूगरी.

फूल पत्ते और कलियाँ
फिर रिझाती  है मुझे
याद की खुशबु हवा में ....

गॉँव के परिवेश बदले
आज साँसे तंग है
रौशनी के हर शहर 
जहरी धुएँ के संग है
पत्थरों के आशियाँ है
शुष्क संबंधों भरे
द्वेष की चिंगारियाँ है
नेह खिलने से डरे
वक़्त  की सरगोशियाँ
पल पल डराती है मुझे।
गॉँव के बीते दिनों की
याद आती है मुझे
याद की खुशबु हवा में
गुदगुदाती है मुझे।
-- शशि पुरवार
अनहद कृति -- काव्य उन्मेष उत्सव में इस गीत को सर्वोत्तम छंद काव्य रचना के लिए चुना गया है।

Friday, June 19, 2015

बाँसुरी अधरों छुई





बाँसुरी अधरों छुई
बंशी बजाना आ गया 
बांसवन में गीत गूँजे, राग
अंतस छा गया 

चाँदनी झरती वनों में 
बाँस से लिपटी रही 
लोकधुन  के नग्म गाती 
बाँसुरी, मन आग्रही 

रात्रि की बेला  सुहानी 
मस्त मौसम भा गया. 

गाँठ मन पर थी पड़ी, यह 
बांस  सा  तन  खोखला 
बाँस की हर बस्तियाँ , फिर 
रच रही थीं श्रृंखला 

पॉंव धरती में धँसे 
सोना हरा फलता गया . 

लुप्त होती जा रही है 
बाँस की अनुपम छटा 
वन घनेरे हैं नहीं अब 
धूप की बिखरी जटा 

संतुलन बिगड़ा धरा का,
जेठ,सावन आ गया  
----- शशि पुरवार 




Thursday, May 14, 2015

उजाले पाक है अच्छाईयों में ....


एक ताजा गजल आपके लिए -

कदम  बढ़ते रहे रुसवाइयों में
मिटा दिल का सुकूँ ऊँचाइयों में

जगत, नाते, सभी धन  के सगे हैं
पराये हो रहे कठनाइयों में

मेरे दिल की व्यथा किसको सुनाऊँ
जलाया घर मेरा दंगाइयों में

दिलों में आग जब जलती घृणा की
दिखा है रंज फिर दो भाइयों में

बुरी संगत  अंधेरों में धकेले
उजाले पाक हैं अच्छाइयों में

दिलों में है जवां दिलकश मुहब्बत
जुदा होकर मिले  परछाइयों  में

मिली जन्नत, किताबों में मुझे, अब
मजा आने लगा  तन्हाईयों में

---   शशि पुरवार 

Monday, April 27, 2015

प्रेम कहानी

 
 
 
१ 
दर्द की दास्ताँ 
कह गयी कहानी 
प्रेम रूमानी 
२ 
एक ही  धुन 
भरनी  है गागर 
फूल सगुन 
३ 
प्रेम  कहानी 
मुहब्बत ऐ  ताज 
पीर  जुबानी
४ 
रूह  में  बसी 
जवां है मोहब्बत  
खामोश  हंसी  
५ 
धरा  की  गोद  
श्वेत ताजमहल 
प्रेम  का  स्त्रोत 
६ 
ख़ामोश  प्रेम 
दफ़न  है  दास्ताँ 
ताज की  रूह
७ 
पाक दामन  
अप्रतिम  सौन्दर्य 
प्रेम  पावन  
८ 
अमर  कृति
हुस्न ऐ  मोहब्बत 
प्रेम  सम्प्रति
९ 
 ताजमहल
अनगिन रहस्य 
यादें दफ़न 
 - 
   शशि।.

Saturday, April 25, 2015

जब मुकद्दर आजमाना आ गया




जब  मुकद्दर आजमाना आ गया
वक़्त भी अपना सुहाना आ गया

झूमती हैं डालियाँ गुलशन सजे
ये समां भी कातिलाना आ गया

ठूंठ की इन बस्तियों को देखिये
शामे गम महफ़िल सजाना आ गया

आदमी  जब  राम से रावण बने
आग में खुद को जलाना आ गया

दर्द जब मन की  हवेली के मरे
रफ्ता रफ्ता मुस्कुराना आ गया

भागते हैं लोग अंधी दौड़ में
मार औरों को गिराना आ गया

जालिमों के हाथ में हथियार हैं
खौफ़ो वहशत का ज़माना आ गया

मौत से अब डर नहीं लगता मुझे
जिंदगी को गुनगुनाना आ गया

-- शशि पुरवार

Tuesday, April 21, 2015

हाइकु -- सुख की ठाँव




सुख की ठाँव
जीवन के दो रंग
धूप औ छाँव

भ्रष्ट अमीरी
डोल गया ईमान
तंग गरीबी

शब्दो  का मोल
बदली परिभाषा
थोथे  है  बोल

मन के काले
धूर्तता आवरण
सफेदपोश
--- शशि पुरवार

Monday, April 20, 2015

कागा -- मन के भोले

 


एक ही धुन
भरनी है गागर
फूल सगुन

दर्द की नदी
कहानी लिख रही
ये नई सदी
 ३ 
तन के काले
मूक सक्षम पक्षी
मुंडेर संभाले

कर्कश बोली
संकट पहँचाने
कागा की टोली

मूक है प्राणी
कौवा अभिमानी
कोई न सानी।

भोली सूरत
क्यों कागा बदनाम
छलिया नाम

कोयल साथी
धर्म कर्म के नाम
कागा खैराती
--- शशि पुरवार
आपके समक्ष एकसत्य घटना साझा करना चाहती हूँ कोई माने या ना माने एक सत्य को मैंने यह सत्य करीब से जिया है , इस निरीह प्राणी को स्नेह समझ आता है बोली समझ आती है। एक दो पोस्टिंग पर मैंने यह अनुभव लिया है , कौवा रोज सुबह रसोईघर की खिड़की पर बैठकर वही भोजन मेरे हाथों से खाता था जो बनाती थी , धीरे धीरे उसके भाव समझने की कोशिश की तब यह आश्चर्य था उसे जो भी चाहिए उस वस्तु पर हाथ रखो तो वही खाने के लिए कॉँव कॉँव करता था , जो नहीं चाहिए उस पर से नजर हटा दी । कोई और दे तो नहीं खाता था घर वाले हैरान थे वह मेरी बात समझ रहाहै जब वह शहर छोड़ा तब २ दिन कागा ने कुछ नहीं खाया , ट्रक में जैसे ही सामान भर गया, मैंने किसी का रोदन सुना , कोई आसपास नहीं दिखा , तब एक पेड़ पर वही कौवा बैठा था , उसके गले की हलचल और आवाज देखकर मै हैरान थी कि पक्षी रो रहा है। वहां खड़े लोगों ने यह आश्चर्य देखा है। सोचा जाते जाते पानी पिला देती हूँ पानी भर कर रखा  वहउतरा किन्तु उसने पानी नहीं पिया। यह हृदय को छू गयी सत्य घटना है जिसने कागा के लिए मेरी सोच बदल दी। स्नेह सर्वोपरि है.

  मेरे लिएयह रोमांचकारी था ,एक किस्सा और बताती हों मै जब मावा बनाती थी तब वह मावा विशेष रूप से पसंद करता था जब तक नहीं दो कॉँव कॉँव बंद ही नहीं होती थी। यह हमें ज्ञात है कि पशुपक्षी केलिए घी तेल हानिकारक होते हैं इसीलिए ऊँगली में जरा सा मावा रखकर खिड़की से बाहर हाथ रखती थी और वह इधर उधर ऐसे देखता था कि कोई देख तो नहींरहा और चुपचाप हाथ पर रखा मावा नजाकत से चोंच से उठाकर खाता था , , यहमूक प्राणी कोई भी हों स्नेह समझतें है और वफादारी भी निभातें है। ऐसे रोमांच जीवनपर्यन्त यादगार होतें है , मै हरजगह किसी न किसी मूक प्राणी से रिश्त बनाने का प्रयास जरूर करतीं हूँ।

Friday, April 10, 2015

आईना सत्य कहता है।



  लघुकथा

आज आईने में जब खुद का अक्स देखा तो ज्ञात हुआ  वक़्त कितना बदल गया है। जवां दमकते चहरे, काले बाल, दमकती त्वचा के स्थान पर श्वेत केश, अनुभव की उभरी लकीरें, उम्र की मार से कुछ ढीली होती त्वचा ने ले ली है, झुर्रियां अपने श्रम की  कहानी बयां कर रही हैं।  उम्र को धोखा देने वाली वस्तुओं पास मेज पर  बैठी कह रही थी मुझे आजमा लो किन्तु  मन  आश्वस्त था इसीलिए इन्हे आजमाने का मन  नहीं हुआ. चाहे लोग बूढ़ा बोले किन्तु आइना तो सत्य कहता है।  मुझे आज भी आईने के दोनों और आत्मविश्वास से भरा, सुकून से लबरेज मुस्कुराता चेहरा ही नजर आ रहा है। उम्र बीती कहाँ है, वह तो आगे चलने के संकेत दे रही है। होसला अनुभव , आत्मविश्वास आज भी कदम बढ़ाने के लिए  तैयार है। 
शशि  पुरवार

Wednesday, March 25, 2015

आदमी ने आदमी को चीर डाला है।




चापलूसों का
सदन में बोल बाला है
आदमी ने आदमी
को चीर डाला है

आँख से अँधे
यहाँ पर कान के कच्चे
चीख कर यूँ बोलतें, ज्यों 
हों वही सच्चे.
राजगद्दी प्रेम का
चसका निराला है

रोज पकती है यहाँ
षड़यंत्र की खिचड़ी
गेंद पाले में गिरी या
दॉंव से पिछड़ी
वाद का परोसा गया
खट्टा रसाला है

आस खूटें बांधती है
देश की जनता
सत्य की आवाज को
कोई नहीं सुनता
देख अपना स्वार्थ
पगड़ी को उछाला है
आदमी ने आदमी को चीर डाला है
-- शशि पुरवार

सामाजिक मीम पर व्यंग्य कहानी अदद करारी खुश्बू

 अदद करारी खुशबू  शर्मा जी अपने काम में मस्त   सुबह सुबह मिठाई की दुकान को साफ़ स्वच्छ करके करीने से सजा रहे थे ।  दुकान में बनते गरमा गरम...

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