हस्ताक्षर
की
कही
कहानी
चुपके से गलियारों ने
मिर्च मसाला, बनती खबरे
छपी सुबह अखबारों में.
चुपके से गलियारों ने
मिर्च मसाला, बनती खबरे
छपी सुबह अखबारों में.
राजमहल
में बसी रौशनी
भारी भरकम खर्चा है
महँगाई ने बाँह मरोड़ी
झोपड़ियों की चर्चा है
भारी भरकम खर्चा है
महँगाई ने बाँह मरोड़ी
झोपड़ियों की चर्चा है
रक्षक भक्षक
बन
बैठे
है
खुले आम दरबारों में.
खुले आम दरबारों में.
अपनेपन
की
नदियाँ
सूखी,
सूखा खून शिराओं में
रूखे रूखे आखर झरते
कंकर फँसा निगाहों में
बनावटी है मीठी वाणी
उदासीन व्यवहारों में.
सूखा खून शिराओं में
रूखे रूखे आखर झरते
कंकर फँसा निगाहों में
बनावटी है मीठी वाणी
उदासीन व्यवहारों में.
किस
पतंग
की
डोर कटी
है
किसने पेंच लडाये है
दांव पेंच के बनते जाले
सभ्यता पर घिर आये है
किसने पेंच लडाये है
दांव पेंच के बनते जाले
सभ्यता पर घिर आये है
आँखे
गड़ी
हुई
खिड़की
पर
होंठ नये आकारों. में.
होंठ नये आकारों. में.
------ शशि पुरवार