1 -- लघुकथा --- ख्वाब
रोज छोटू को सामने वाली दूकान पर काम करते हुए देखती थी , रोज ऑफिस में चाय देने आता था , हँसता , बोलता पर आँखों में कुछ ख्वाब से तैरते थे .एक दिन मैंने उससे कहा
" छोटू पढने नहीं जाते "
"नहीं दीदी समय नहीं मिलता "
"क्यूँ घर में कौन कौन है "
"माँ ,बापू बड़ी बहन ,छोटी बहन "
"तो सब क्या करते है "
"सभी काम करते है "
"तुम्हे पढना नहीं अच्छा लगता ?"
वह चुप हो गया ,और नीहिर भाव आँखों में था ,धीरे से बोला ---
" हाँ बहुत मन करता है पढूं , अच्छे अच्छे कपडे पहनू , स्कूल जाऊ और मै भी एक दिन ऐसे ही नौकरी कर बड़ा इंसान बनू , पर इतने पैसे नहीं है ,जो मिलता है सब मिलकर उससे खाना ले कर आते है ,".........काश में भी बड़े घर में जन्म लेता .......
शब्द खामोश हो गए और नयन सजल ,यह सजा भगवान् ने नहीं दी , इंसानों ने ही तो अमीर गरीब बनाये है ,स्वप्न तो सभी की आँखों में एक जैसे ही आते है .
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2 लघुकथा --- दोहरा व्यक्तित्व
स्कूल की अध्यापिका ने बाल शोषण के खिलाफ बहुत कुछ भाषण में कहा , कि बाल श्रम अपराध है , बाल शोषण नहीं करना चाहिए , सबको इसके खिलाफ मिलकर आवाज उठानी चाहिए .वगैरह ,....!
उनकी बातो से सभी बहुत प्रभावित हुए , सभी बच्चो के माता पिता ने भी बहुत प्रसन्नता व्यक्त करी कि हमारे बच्चे कितने अच्छे स्कूल में पढ़ते है .मै उन अध्यापिका से परिचित थी ,बहुत सौम्य स्वाभाव की थी ,हर कोई प्रभावित हो जाता था उनसे , एक दिन किसी कार्यवश एक परिचित के साथ उनके घर जाने का मौका मिला , वह अविवाहित थी और अकेले रहती थी , जब हम पहुचे कोई 10 वर्ष की लड़की ने दरवाजा खोला , ठीक ठाक कपड़ो में थी वह लड़की , तो वह कोई सदस्य तो नहीं लग रही थी परिवार की ,हम बैठे तो तो उन महोदया ने आवाज दी ---
"रानी पानी लेकर आओ और काम हो गया हो तो घर चली जाओ "
" जी मैडम , हो गया "
हम आश्चर्य से देखते रह गए उन्हें , मुझसे रहा नहीं गया मैंने पूछ ही लिया
"क्या यह आपके यहाँ काम करती है ?"
"अरे नहीं , वह तो मै इसे पढ़ा देती हूँ , स्कूल की फ़ीस भी भरती हूँ इसकी , कपडे खाना सभी करती हूँ वक़्त आने पर , अब इतना कुछ करती हूँ , तो थोडा घर का काम करा लेने से क्या फर्क पड़ेगा ,आखिर पैसे देती हूँ . इसके माँ -बाप गरीब है , बर्तन का ही काम करते है , वह तो अच्छा है कि यह मेरे पास है तो इसका भला हो गया ,अब यही रहती है मेरे पास , ख़ुशी से ही करती है यह सब ,वैसे भी तो काम क्या होता है हम दोनों का ....!
मै चकित थी इस दोहरे व्यक्तिव से , एक तरफ बाल श्रम के लिए उनके विचार एवं दूसरी तरफ ऐसा कार्य , क्या समझे इसे ....दोहरा व्यक्तिव जो आम है आजकल ?
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3 लघु कथा --- शोषण
आज आरती के घर में बहुत चहल पहल थी ,9 साल की आरती और 11 प्रकाश साल का कजिन दोनों अपने नाना के घर पर थे , आज मेहमान भी घर पर आये थे , माँ , नानी ,व परिवार के अन्य सदस्य रिश्तेदारों में व्यस्त थे , बच्चे उधम मचा रहे थे , एक दूर का रिश्तेदार उम्र 24 होगी वह भी था और बीच बीच में बच्चो के साथ भी खेल लेता था . इतनी चहलपहल थी कि ठहाको की आवाजे ही बाहर आती थी . एक दिन सभी आराम कर रहे थे ,बच्चे छत पर खेल रहे थे , आरती वैसे ही खेल रही थी और प्रकाश पतंग उड़ा रहा था ,अपने दोस्त के साथ . थोड़ी देर में वह लड़का जिसे मामा कह रहे थे बच्चे ,छत पर आया और बच्चो के साथ खेलने लगा , फिर खेलते खेलते आरती से बोला ---
"चलो हम थोड़ी देर बैठते है और चाकलेट खाते है इनको पतग उड़ाने दो , "
" नहीं मामा यही पर खेलना है , मुझे नहीं बैठना "
" अब यह तो नहीं खेल रहे है फिर ....." बात काट कर आरती बोली --
" नहीं मुझे कहीं नहीं जाना , मै यही खेलूंगी "
"ओह हो....... तो खेलना है तुम्हे ,चलो हम कुछ और खेलेंगे "
" सच्ची में ......"
"हाँ , चलो वहां छत के कोने में ,अब प्रकाश तुम्हे पतंग नहीं दे रहा है तो , हम भी उसे नहीं खिलाएंगे "
" ठीक है मामा ,हम क्या खेलेंगे ?
" आओ मै बताता हूँ , पर किसी से कुछ नहीं कहना , नहीं तो सब मारेंगे तुम्हे और मै फिर नहीं खेलूंगा ,
" जैसा मै कहता हूँ वैसा ही करो ....."
और छत पर उस तथाकथित मामा ने जो खेल खेला वह आरती समझ ही नहीं सकी ,और दर्द ,डर से पीड़ित हो गयी , और मामा ने कहा --
" अरे डरो मत सब ठीक हो जायेगा , पर किसी से कुछ कहना नहीं ." धीरे से धमकी .
आज रिश्तो का खून हो चूका था , कैसे अपनों पर भी विश्वास किया जाये ,आज रिश्ते नाते भी कठघरे में है ,जो अपनी गन्दी विकृत मानसिकता के चलते मासूम बचपन के मन व जीवन और रिश्तो पर काले घाव के निशाँ अंकित कर देते है .
----- शशि पुरवार
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4 कथा ------ स्वाहा
रामू चाय की दुकान पर काम करता था पढने का बहुत शोक था दिन में काम करता और रात के समय पढता था , पिता ने उसे काम करने के लिए कहा था ,वह कहते थे की पढने से पैसे नहीं मिलते ,पर झुग्गी छोपडी में एक स्कूल था जो मुफ्त शिक्षा देता था ,तो रामू की लगन से वहां उसे दाखिला मिल गया था ,सिर्फ परीक्षा के समय पैसे भरने होते थे फॉर्म के ,तो रामू के पिता ने उसे कह दिया
" ठीक है देखेंगे.......... "
हर महीने की पगार वह आजकर रामू के सेठ से ले जाते थे .आज कप धोते धोते रामू को याद आया कि कल स्कूल में कहा गया है कि अगर आज रूपये नहीं भरे तो परीक्षा नहीं दे सकते . उसने सेठ से कहा
काका जल्दी से आता हूँ घर से .........वह घर की तरफ भागा ,और अपने पिता से बोला --
" बाबा फ़ीस भरनी है आज ,"
" पैसे नहीं है मेरे पास ............. पता नहीं सा पहाड़ मिल जायेगा पढ़ कर .."कड़कती आवाज में जबाब आया ,फिर वह सड़क पर निकल गए .
रामू को कुछ समझ नहीं आया ,आँखों में आंसू आ गए , सोचा रात को अम्मा से कहूँगा ,नहीं तो स्कूल वाले भगा देंगे स्कूल से ,
रात को जब अम्मा घर आई वह कुछ कह पाता उससे पहले पिता शराब की बोतल पीते हुए लडखडाते ,गन्दी गलियां देते हुए घर में घुसे , आज सन्नाटा सा छा गया झोपड़ी में .........आज खाने में लात घुसे ही मिले , निरीह आँखे तक रही थी अँधेरे को , एक खामोश चीत्कार थी रामू के मन में .आशाएं , इक्छाएं धू धू कर जल रही थी . शराब में सब कुछ स्वाहा हो गया .
------- शशि पुरवार
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बाल शोषण ----- एक नजर
बाल शोषण यह एक ऐसी समस्या है जिसका निदान ही नहीं निकल रहा, अक्सर इसके बारे में हम समाचार पत्रों में पढ़ते रहते है, यह शोषण समाज में बुरी तरफ मकडजाल की तरह फैला हुआ है. बाल शोषण सिर्फ काम करवाने से ही नहीं होता अपितु शारीरिक , मानसिक शोषण भी जघन्य अपराध है एवं शोषण की श्रेणी में ही आता है। इसे आप दबे रूप में कहीं न कहीं देख ही सकते है। गरीब माँ बाप तो इस महंगाई की मार से परेशान होकर अपने बच्चो को काम पर लगा देते है. निम्न वर्ग को सरकार जो रूपये देती है वह भी उन बच्चो पर खर्च न होकर उनकी जेबों में ही जाता है. निम्न वर्ग अपने बच्चो को भीख मांगने के लिए गलियों ,चौराहे या मंदिर के बार खड़ा कर देते है.नहीं तो सर्कस या करतब दिखाकर पैसे का कमाने का कार्य सौंप देते है . एक बार जब मुझे कार्य वश होलसेल बाजार में जाने का काम पड़ा, चौराहे पर चाट का एक ठेला खड़ा था और थोड़ी दूर पर 5, 6 -8 -10 साल के 6-7 बच्चे बैठे थे. करीब 22 साल का एक लड़का कुछ दूरी पर बैठ कर सब पर नजर रखे हुए था . 2 -2 बच्चे आगे एक गन्दी सी छोटी चादर पर बारी बारी आकर बैठते। एक बाजा बजाता तो दूसरा करतब दिखाता। जब 5-6 साल के बच्चो ने आँखों से सुई उठाई, बांस पर चले , शरीर को तोड़ मोड़ कर प्रस्तुत किया तो वहां ठेले पर खड़े कुछ लोगो ने 1 -1 रूपए डाल दिए ,परन्तु किसी ने भी उन्हें यह कार्य करने से नहीं रोका , और धीरे धीरे वह पैसा बड़े लड़के की जेब में जाता रहा. इस अपराध के हिस्सेदार वह लोग भी है जो ऐसे खेल को देख आनंदित होते है और बढ़ावा देते है . जो इन बातों का विरोध करते है उन्हें स्वयं समाज का विरोध झेलना पड़ता है .
बच्चो का शोषण सिर्फ श्रम से ही नहीं होता अपितु स्कूल में शिक्षक द्वारा, एवं घर में परिचित या रिश्तेदार भी उनका शोषण कर लेते है। सामान्यतः यह बात खुलकर बाहर नहीं आ पाती . बच्चो को चाकलेट या मिठाई के बहाने बुलाकर , फुसलाकर उनका शारीरिक शोषण किया जाता है . उन्हें जान से मरने की धमकी देकर डराया जाता है और इसी बहाने बच्चे लगातार शोषित किये जातें है। चाहे लड़का हो या लड़की सभी इसके शिकार होते है। कई बार सुनने में आया कि फलां टीचर ने विद्यार्थी के साथ अनुचित व्यवहार किया है. कई शिक्षक ऐसे होते है जो बालउम्र को ध्यान में न रखकर सजा के रूप में उनकी इतनी पीटाई करते है कि कई बार बच्चो की हालत ख़राब हो जाती है और उन्हें अस्पताल तक ले जाना पडा . भय उनके मन में घर कर जाता है।
कई बार ऐसी परिस्थिति भी सामने आई है जैसा कि आरती के साथ हुआ था। उसके घर में उसके दूर के मामा ने उसका शारीरिक शोषण किया और डरा कर चुप करा दिया। वह डर के कारण कुछ नहीं कह सकी . बाल्यावस्था में बच्चों के साथ हुई घटनाएं उनके बालमन पर सदा के लिए अंकित हो जाती है। आरती के साथ जो कुछ भी हुआ उसके दुःख और परेशानी की काली छाया उसके जीवन पर सदा के लिए अंकित हो गयी .इसके ठीक विपरीत साहसी नीलम की दाद देनी पड़ेगी। वह कोचीन क्लास में पढने जाती थी। विद्यार्थीयों को अपनी डिफिकल्टी के लिए कक्षा के बाद ही रुक कर पूछना पड़ता था। एक दिन नीलम अपने प्रश्न के लिए वहां रुकी। उसके टीचर ने उसके साथ अकेले में अशोभनीय व्यवहार किया , पहले तो वह कुछ नहीं बोली, पर यह सिलसिला अक्सर होने लगा तो उसने विरोध किया। जबाब में उस शिक्षक ने उसे धमकी दी यदि ज्यादा आवाज करोगी तो तुम्हे बदनाम कर दूंगा। पर नीलम की समझदारी उसे कोई बड़ा कांड होने से बचा लिया। उसने माता -पिता को यह बात बताई और पुलिस की मदद से बालबाल बच गयी . हर बच्चे को बचपन से ही यह शिक्षा देनी चाहिए कि डरो मत अपितु अपनों का सहारा लो. अनजान पर विश्वास मत करो .
अपराध तो ख़त्म नहीं होते। आज समाज में जगह - जगह राक्षस फैले हुए हैं। अक्सर समाचार पत्र दुष्कृत की काली ख़बरों से रंगे हुए होते हैं। कुछ दुष्कर्मी युवको ने शराब के नशे में न जाने कितनी मासूम कन्याओ को अपना शिकार बनाया, सबसे ज्यादा खेद जनक स्थिति है कि अपने मानसिक विकृत कृत्य में उन्होंने 3-- 6 महीने की नवजात शिशु को भी नहीं बख्शा। आज लोगों का मानवता से भरोसा उठ गया है। शिशु आज अपने घर में भी सुरक्षित नहीं है। विकृत मनोदशा वाले लोग सामान्य स्थिति में हमारे आसपास ही मौजूद होते हैं। सोशल मीडिया पर मौजूद पोर्न विडिओ ने किशोरों को भी अपनी गिरफ्त में लेकर मानसिक रोगी बनाया है। कई लोग पुलिस की गिरफ्त में भी आये और सजा भी हुई। पर अपराध का मकड़जाल इस तरह फैला हुआ है कि इसकी सफाई करना मुश्किल है। सभ्य कपड़ों में काले कुकर्मी घूमते हैं।
लोग समाज के डर से यह बात ही छुपा लेते है . खासकर जब कन्या हो,कहीं उसकी शादी में अड़चन न हो जाये। ऐसा विचार अपराधी को बढ़ावा देते हैं इंसानियत मरने लगी है। न्यायालयों में पोक सो के केसों की बढ़ती संख्या चिंतनीय है। मानसिक विकृति का खामियाजा नवजात बच्चों और बच्चियों का भुगतना पड़ता है। शिक्षिकों द्वारा किये गए कृत्य कितने गलत हैं, जब गुरु ही गलत होगा तो बच्चों को क्या शिक्षा मिलेगी! शोषण सिर्फ शारीरिक ही नहीं मानसिक भी होता है, एक बार स्कूल में एक शिक्षिका ने 1-2 बच्चो को बहुत मारा , नंबर भी काट लेने की बात कही, क्रोध में बहुत ज्यादा होमेवोर्क दिया, सजा दी . एक बार एक लड़की इस पीड़ा को न सह सकी और डर के कारण घर पर भी किसी को कुछ नहीं बताया व अंत में आत्महत्या कर ली. एक नोट छोड़ दिया और जिंदगी हमेशा के लिए मिट गयी। . इस तरह के हालात समाज को अंदर से खोखला कर रहें हैं। नन्हे कदम जो हाथ थाम कर चलना सीख रहें हैं उन्हें दुनिया को अच्छी नज़रों से दिखाना चाहिए न कि काली करतूतों से भरी दुनियां को। बालपन में हुए हादसे उनके जीवन पर विपरीत प्रभाव भी डालते हैं। उनके साथ हुई घटनाओं का जिम्मेदार वह दुनिया को मानते है एवं बदला लेने के लिए भविष्य में वही कार्य दोहराते हैं। ऐसी कई घटनाए हमारे समाज में हो रही है. बाल मजदूरी भी हमारे समाज का हिस्सा बन गयी है। समाज में फैली अपराधों के चलते कई लोग घर में काम के लिए छोटे बच्चो को रख लेते हैं। क्यूंकि वह परेशान नहीं करते और सारा काम चन्द पैसे और खाने के लालच में कर देते है .
बचपन एक फूल के समान है जिसे प्यार भरे संरक्षण की आवश्यकता है , जब नींव अच्छी रखी जाएगी तो वह पौधा बन कर अच्छे फल- फूल देगा . आज बाल शोषण जैसी समस्या को जड़ से मिटाने के लिए सभी को साथ में मिलकर समाप्त करना होगा . चंद पंक्तियाँ कहना चाहूंगी--
बेटी हो या बेटा ,
बचपन एक समान
न मसलो नन्हें पौधों को
दो अधरों पर मुस्कान
--शशि पुरवार