धीरे धीरे कदम बढ़ा
डर कर पीछे होना क्या
जीवन की इस बगियाँ में
काँटों को भी ढोना क्या
काँटों को भी ढोना क्या
दुःख सुख तो है एक नदी
क्या पाना फिर खोना क्या
मस्ती का यह कोना क्या
दुनियादारी भूल गए
मीठे का फिर दोना क्या
क्या पाना फिर खोना क्या
मिल जाये खुशियाँ सारी
थककर केवल सोना क्या.
सखी सहेली जब मिल बैठेंमस्ती का यह कोना क्या
दुनियादारी भूल गए
मीठे का फिर दोना क्या
-- शशि पुरवार

















