पर्व खुशियों के मनाने का बहाना है
डोर उमंगो की बढाओ गीत गाना है १
घुल रही है फिर हवा में गंध सौंधी सी
माँ के हाथों की रची खुशबु खजाना है ३
संग बच्चों के सभी बूढ़े मिले छत पर
उम्र पीछे छोड़कर बचपन बुलाना है। ४
देखना हैं जोर कितना आज बाजू में
लहकती नभ में पतंगे काट लाना है ५
संग चाचा के खड़ी चाची कहे हँसकर
पेंच हमसे भी लड़ाओ आजमाना है। ६
पेंच हमसे भी लड़ाओ आजमाना है। ६
गॉँव में सजने लगें संक्रांत के मेले
संस्कृति का हाट से रिशता पुराना है ७
उड़ रही नभ में पतंगे, धर्म ना देखें
फिर कहे शशि प्रेम का बंधन निभाना है ८
-- शशि पुरवार








