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Tuesday, July 16, 2013

प्रकृति ने दिया है अपना जबाब ,



प्रकृति की
नैसर्गिक चित्रकारी पर
मानव ने खींच दी है
विनाशकारी लकीरें,
सूखने लगे है जलप्रताप, नदियाँ
फिर
एक जलजला  सा
समुद्र  की गहराईयों में
और  प्रलय का नाग
लीलने  लगा
मानव निर्मित कृतियों को.
धीरे  धीरे
चित्त्कार उठी धरती
फटने  लगे बादल
बदल गए मौसम
बिगड़ गया  संतुलन, 
ये जीवन, फिर
हम किसे दोष दे ?
प्रकृति  को ?
या मानव को ?
जिसने 
अपनी
महत्वकांशाओ तले
प्राकृतिक सम्पदा का
विनाश किया।
अंततः  
रौद्र रूप  धारण करके
प्रकृति ने दिया है
अपना जबाब ,
मानव की
कालगुजारी का,
लोलुपता  का,
विध्वंसता का,
जिसका
नशा मानव से
उतरता ही नहीं .
और 
प्रकृति उस नशे को
ग्रहण  करती नहीं .

 --शशि पुरवार
१२ -७ - १ ३
१२ .५ ५ am









Sunday, July 14, 2013

दर्द कहाँ अल्फाजों में है




अश्क आँखों में औ
तबस्सुम होठो पे है

सूखे गुल  की दास्ताँ
अब बंद किताबो में है

बीते वक़्त का वो लम्हा
कैद मन की यादों में है

दिल  में दबी है चिंगारी
जलती शमा रातो में है

चुभन है यह विरह की
दर्द कहाँ अल्फाजों में है

नश्वर होती  है  रूह
प्रेम समर्पण भाव में है

अविरल चलती ये साँसे
रहती जिन्दा तन में है

खेल है यह तकदीर का
डोर खुदा के हाथो में है 


शशि  पुरवार

Tuesday, June 25, 2013

एक तोहफा आशीष भरा --

यह शब्दों का प्यारा सा तोहफा मुझे मिला रूपचंद्र शाश्त्री जी से --- आप सबके साथ शेयर कर रही हूँ .
 इस आभासी संसार में
 चर्चा मंच की चर्चाकार 
"शशि पुरवार" का जन्मदिन है।
उपहारस्वरूप कुछ शब्द सजाये हैं!
जन्मदिन पुरवार शशि का आज आया।
आज बिटिया के लिए, आशीष का उपहार लाया।।
मन नवल उल्लास लेकर, नृत्य आँगन में करें,
धान्य-धन परिपूर्ण होवे, जगनियन्ता सुख भरें,
आपके सिर पर रहे, सौभाग्य का अनमोल साया।
आज बिटिया के लिए, आशीष का उपहार लाया।।
शशि तुम्हारी रौशनी से, हो रहा पुलकित हो गगन,
जब कली खिलती, तभी खुशबू लुटाता है चमन,
जगमगाते तारकों ने, आज मंगलगान गाया।
आज बिटिया के लिए, आशीष का उपहार लाया।।
बाँटता खुशियाँ सदा, आभास का संसार है,
घन खुशी के तब बरसते, जब सरसता प्यार है,
डोर नातों की बँधी तो, नेह ने अधिकार पाया।
आज बिटिया के लिए, आशीष का उपहार लाया।।

Saturday, June 22, 2013

सदा साथ होंगे हम ........शब्दों के माध्यम से।

सपनो को लगा के पंख 
कुछ यूँ  मुस्काये 
जज्बात
जैसे ठहर गयी हो 
चांदनी मन की
 घाटियों में
कैसे कहूँ ,
मन के भावो को 
घुमड़ रहे 
अनगिनत विचार ,
व 
खेल रहे सपने 
शब्दों के सूरज से,
और 
बना रहे 
एक नया
आकाश,
एक ब्रह्मांड 
मेरे सपनो की 
घाटियों में .
कल हो न हो 
पर महकेंगे  मेरे

भावो के फूल
जीवन बन कर 
सपनो की 
इन्ही यादों में 
फिर 
सदा साथ होंगे हम
गीत ,गजल ,या छंद
नहीं ,बस 
एक खूबसूरत सा 
एःसास और 
प्यार बन के 
शब्दों के 

माध्यम से
इन्ही वादियों में ...... शशि पुरवार 







आज से तीन साल पहले मैंने  मेरे जन्मदिन पर मेरे प्यारे ब्लॉग सपने  को एक आकर दिया था और  किताबों में बंद रचनाये कब यहाँ खेलने लगी और समय पंख लगा के उड़ने लगा पता ही नहीं चला  .आज मेरे ब्लॉग सपने का ३ रा जन्मदिन है , जिसे आप सभी ने बहुत प्यार दिया ,आज मुझे अंतरजाल पर भी प्यारा सा परिवार मिला ,जिसका प्यार अनमोल है , और साथ यहाँ अमर रहेगा , एक खूबसूरत एअह्साह है जो हमें सदा महकता रहेगा ,हम हमारे शब्दों में सदा जीवंत रहेंगे .------- आज खुद को खुद से मिला रही हूँ .
मेरे पूरे  परिवार और मित्रो को धन्यवाद कह के पराया नहीं करना चाहूंगी सभी का स्नेह मेरे लिए अनमोल है .    :)  ---- शशि पुरवार

Wednesday, April 24, 2013

अनुबंध है यह प्रेम का .......शाश्वत




रूह में बसा है एक
शबनमी एःसास
शब्दों से परे,
झिझकती साँसे
कुछ सकुचाई सी 
और अधर पर लगे है
लज्जा के ताले!
पलके झुकी झुकी
मुस्काती सी
एक लचीली डाल !
और
बह रहे है सपने
मन के प्रांजल में
पर
न कोई वादा ,न कसमे
बस हाथो को थाम
उँगलियों ने कह दिए
सात  वचन!
अनुबंध है यह प्रेम  का
अनुरक्त  रहे 
विश्वास के बीज से!
रिश्ते खेलते है सदैव    
दिल और  दिमाग
के पत्तो से ,पर
खिलखिलाता है
जीवन का बसंत !
मिलन है  यह
आत्मा  से  आत्मा का
शाश्वत  प्रेम का,
सत्य वचन ,बंधन
जन्मो जन्मो का ....!
 24.04.13
 ---------    शशि पुरवार






















Monday, April 22, 2013

हर मछली को लील रहा



शांत जल में आया है   
कैसा यह भूचाल
हर मछली को लील रहा 
जल का नाग आज.

विषधारी हो गये है
मगरमच्छ सारे
शैवालो पर बैठकर  
शिकारी डेरा डारे
फँस गयी यहाँ जलपरी
धँस गई आवाज

शांत जल में आया ...!

फूल गया है सेमर
हुआ लाल पानी
दैत्यों की कहानी तो
कहती थी नानी
बढ़ गयी है पशुता
मेंढक धरे ताज
शांत जल में आया ...!

उथला हो गया है
तंत्र का आँगन
अब फना हो रहा है
कँवल का जीवन
तड़प रहे है जलचर 
न्याय मांगे आज 
शांत जल में आया ...

21-04-13
  ------शशि पुरवार 

 सेमर -- दलदल ,
 तंत्र -- प्रणाली , स्वत्रन्त्र तत्वों का समूह ,
 पशुता -- हैवानियत ,दरिंदगी ,
  कँवल -कमल
 

Wednesday, April 17, 2013

तन्हाई में सिमटी रात ........!


1 सर्द हुआ मौसम
तन्हाई में
सिमटी रात
कोई तो जलाओ
अब अलाव .
2
रुत बदले
मौसम ने ली
अंगडाई
शीत लहर से
खामोशी भी
घबराई .
3
चाँदी के कण
जो उतरे धरा पे
बिछी चाँदनी
लहू को जमा दे
कैसे निभाए फर्ज .
4
पीर धरा की
सही न जाये
तपता रेगिस्तान
अब सर्द मौसम
मलहम लगाये .
5
बन जाऊं में
शीतल पवन
जो तपन मिटाऊं
बहती जलधारा
प्यास बुझाऊं .
6
सर्द मौसम में
सिकुड़ जाती है यादें
जम जाता है लहू
बिखरी बाते .
7
सर्द मौसम में
सिमटता धरा का
अंग ,
बर्फ का कण
पिघलता है
रिश्तों की
तपिश में
8
सर्द मौसम
गरीब मांगे बस
दो गज का कपडा
प्यार के दो बोल बस .
9
कितनी प्यारी राते
चाँद तारो के संग
बचपन की प्यारी बाते
बीते पलछिन .
10
रचाओ हाथ अब
अब मेंहंदी
हार बिंदी कंगना
सजन पधारे अंगना .
कितनी करायी मनुहार
फिर दिखा के ठसक
साजन चले ससुराल .
11
झरते श्वेत कण
ढक रहे थे
पेड़ रस्ते
और साथ में
जम रहे थे
रिश्तो में
जज्बात .
12
दूर तलक
खाली पड़े थे
रस्ते ,
ठिठुरती
सर्द रात में
सड़क किनारे
कोई सिमटा फटी
कामरी में .
13
जम गए थे रिश्ते
बर्फ की तरह
बहता है लहु
अब आँखों में .
  14
बर्फीली वादियों में
सन्नाटे को चीरती
ख़ामोशी में
चहलकदमी करती
देश की खातिर
अकेली जान .
---------शशि पुरवार 

Monday, April 15, 2013

राहे चलती

 1
शीत काल में
केसर औ  चन्दन
काया दमके  .
2
अलसाये से
तृण औ लतिकाए
चाँदी चमकी  .
3
सर्दी  है आई
गुड की चिक्की भाई
अलाव जले  .
4
हिम से जमे
ह्रदय के जज्बात
मै को से कहूं .
5
श्वेत  रजाई
धरा को खूब भाई
कण दमके .
6
सर्द मौसम
सुलगती है पीर
नीर न बहे .
7
तन्हा सड़क 
कंपकपाती राते
चाँदनी हँसे .
8
खोल खिड़की
आई शीत लहर
भानु भी डरा .

9
 थकित मन
दूर बैठी मंजिल
राहे चलती . 
  ----शशि पुरवार

--------------------------------------------------------------------
तांका --

1 .
झरते कण
अब ढँक रहे थे
वृक्ष औ रास्ते
हम तुम भी  साथ
जम गए जज्बात .
2
सर्द मौसम
सुनसान थे रास्ते
और  किनारे
कोई सिमट रहा
था, फटी कामरी में .
3
भाजी बहार
टमाटर लाल औ
गाजर संग
सूप की भरमार
लाल हुए है गाल .
4
मटर कहे
मेरी है बादशाही
गाजर बोली
सूप हलुआ लायी
सब्जियों की लड़ाई .
5
जमती साँसे
चुभती है पवन
फर्ज प्रथम   
जवानों की गश्त के
बर्फीले है कदम .

शशि पुरवार

Thursday, April 4, 2013

कलम जरा टेक लगाओ .........






कवि ह्रदय में बजते है
जज्बातों के चंग
कलम जरा टेक लगाओ .


पल पल बदले नयनो का 
सतरंगी बसंत
भावों का पंछी बहके
जन्में पद अनंत,

मन बावरा फिर कहे
खूब सुरीले छंद

कलम जरा टेक लगाओ।

कहीं बबूल कहीं फूल
की छन रही है भंग
अरहर सरसों पी रहे
कलियाँ भी है संग

भौरें नाचे बाग़ में
मच गयी हुरदंग
कलम जरा टेक लगाओ।


पूनो का चाँद खिला,करें
तारो से बतियाँ
अमा का नाग डसे, तो
छिटक जाए सखियाँ

तन्हाई की बेला में
शब्द बजाते मृदंग 

कलम जरा टेक लगाओ।


टेसू से दहक रहा वन
उदासी भी लुढके
शाखों पर अमराई
मुस्काए छुप छुपके

बार बार नहीं दिखाता
मौसम अपने रंग
कलम जरा टेक लगाओ।
3/04/13
 -----शशि पुरवार











Wednesday, March 27, 2013

रंगों की सौगात ले आई है होली .....!





गीत ---

रंगों की सौगात ले,
आई है होली

हर डाली पर खिल उठे
शोख टेसू लाल
प्रेम पुरवा से हुए
सुर्ख-सुर्ख गाल
मैना से तोता करे
प्रेम की बोली.

झूमते हर बाग में
इंद्र्धनुषी फूल
रँग बसंती की उडी
आसमाँ तक धूल
घूमती मस्तानों की
हर गली टोली

बिखरी निर्जन वन में भी
रंगो की घटा
हरिक दिल में बस गई
फागुनी छटा
दूर है रँग भेद से
रंगों की बोली .
रंगों की सौगात ले,
आई है होली.........!
13.03.13 

--------------------------------------------------------------
 हाइकू ---

1
सपने पाखी
इन्द्रधनुषी रंग
होरी के संग
2
रंग अबीर
फिजा में लहराते
प्रेम के रंग
3
सपने हँसे
उड़ चले गगन
बासंती रंग
4
दहके टेसू
बौराई अमराई

फागुन डोले
5
अनुरक्त मन
गीत फागुनी गाये
रंगों की धुन .

23.03.13 -
---------------------------------------------------------------
1हवा  उडाती
अमराई की जुल्फे
टेसू हुए आवारा
हिय का पंछी 
उड़ने को बेताब
रंगों का समां प्यारा .

2
  डोले मनवा
 ये  पागल जियरा
 गीत गाये बसंती
 हर डाली  पे
खिल गए पलाश
भीगी ऋतू सुगंधी .

3
 झूमे बगिया
दहके है  पलाश
भौरों को ललचाये
कोयल कूके
कुंज गलियन में
पाहुन क्यूँ न आये .

4
झूम रहे है
हर गुलशन में
नए नवेले फूल
हँस रही है
डोलती पुरवाई
रंगों की उड़े धूल .

5
 लचकी डाल
यह कैसा  कमाल
मधुऋतू है आई
 सुर्ख पलाश
मदमाए फागुन
कैरी खूब मुस्काई .

6
जोश औ जश्न
मन  में  है उमंग 
गीत होरी  के गाओ
भूलो मलाल
उमंगो का त्यौहार
झूमो जश्न मनाओ .
24.03.13
शशि पुरवार
 -----------------------------------------------

आया होली का त्यौहार
सब मिलकर करे धमाल .

मिल जुल कर जश्न मनाये
स्नेह के भजिये ,
तल कर खाए
रंगों से आँगन नहलाये
हुए मुखड़े पीले लाल .

आया होली का त्यौहार .
स्नेही सभी संगी साथी
दूर देश की है पाती
सभी को जोड़ते
दिल के तार ,
सभी पर करो रंगों की बौझार
आया होली का त्यौहार .

बुरा न मानो होली है ,
भंग में पगी ठिठोली है
नहीं तो ,भैया
पड़ जाएगी मार ,
सब मिलकर करे धमाल .
अरे ..... आया होली का त्यौहार
-----शशि पुरवार
22.03.13
ब्लॊगर के पुरे परिवार को और सभी मित्रो ,सखीओं को होली ही हार्दिक शुभकामनाए , यह पल सभी के जीवन में खुशियों के पल लाये . शशि पुरवार


अनुभूति के होली विशेषांक में प्रकाशित होली दोहे इस लिंक पर पढ़िए ,










------------- शशि पुरवार 



Sunday, March 24, 2013

अनछुए से रंग



रंगों का त्यौहार
लागे
सबको प्यारा
कहीं रंग कहीं बेरंग
यह कैसा इशारा .

अनछुए से चले  गए
रंग जीवन से
 जब
मांग में सोई  गमी।

हरी मेंहदी
करतल पर दहने लगी ,
फिर
खनकती हंसी
काल कोठरी में पली
और
विरह की आग से खेलते
शृंगारो की खूब होली जली ।

हिय के दलदल में
दफ़न हो गए
हरे पीले लाल रंग ,
श्वेत रंग  वन में जगे,
रंगों  का कोई दोष नहीं
दिलकश  होते है  रंग
क्या लिखा है नियति ने ?
किसे दोष दे ....... ?

हर बार की तरह
मौसम
तो बदलेंगे
वृक्ष तो छाया ही देंगे
पर
सूखें वनों को चाहिए
सिर्फ
प्रेम की फुहार।.
फागुन तो
आता है हर साल
भर 
स्नेह की पिचकारी 
लगाओ  गुलाल।
15.03.13
-- शशि पुरवार

Monday, February 11, 2013

सीली सी यादें .....!



सुलग रहे थे ख्वाब
वक़्त की
दहलीज पर
और
लम्हा लम्हा
बीत रहा था पल
काले धुएं के
बादल में।
सीली सी यादें
नदी बन बह गयी ,
छोड़ गयी
दरख्तों को
राह में
निपट अकेला।
फिर
कभी तो चलेगी
पुरवाई
बजेगा
निर्झर संगीत
इसी चाहत में
बीत जाती है सदियाँ
और
रह जाते है निशान
अतीत के पन्नो में।
क्यूँ
सिमटे हुए पल
मचलते है
जीवंत होने की
चाह में।
न कोई  ठोर
न ठिकाना 

न तारतम्य
आने वाले कल से।
फिर भी
दबी है चिंगारी
बुझी हुई राख में।
अंततः
बदल जाते है
आवरण,
पर

नहीं बदलते
कर्मठ ख्वाब,
कभी तो होगा
जीर्ण युग का अंत
और एक
नया आगाज।
------ शशि पुरवार 





Tuesday, January 15, 2013

खूनी पंजे की लगी छाप


खूनी पंजे की लगी  छाप
काल के थम्ब रिस पड़े
नूतन वर्ष पर दीवारों के
वे  पंचांग ,अब बदल  रहे .

आतंकी तारीखे  बनी
अमावस की काली रात
कैद हुए  मंजर आँखों में
और गोलियों की बरसात 
चीत्कार उठा था ब्रम्हांड
तारे अब भी सुलग रहे.

ताबूत बने थे वे दिन ,
जब सोई मानवता की लाश
उफन रही थी बर्बरता
उजड़  रही थी साँस
देखो घर के भेदी ,अपने
ही घर को निगल रहे.

उत्तरकाल के गुलशन की
नवपल्लव ने जगाई आशा
दिन ,महीने हो गुलजार
ह्रदय की यही अभिलाषा
युवा क्रांति के दृढ़ कदम, अब
दर्पण जग का बदल रहे .
नूतन वर्ष पर दीवारों के
पंचांग  अब बदल रहे .
शशि पुरवार

Thursday, November 29, 2012

अब कर दो विदा





अब कर दो विदा


जकड़ी हैं मान्यताएं


थोथले विचार
परंपरा के नाम पर 
आदमी लाचार
बेगारी का फंदा बन
रहा है जी का जंजाल,
ऐसे फरमानों को
अब कर दो विदा .

इर्ष्या के कीड़ों से

कलुषित हुआ मन
बदले की आग में
सुलग रहा है तन
साखर में पगा हुआ है
धूर्त का संसार
ऐसे मेहमानों को
अब कर दो विदा

जब सोया है जमीर ,तो

कैसे उच्च विचार
चील,कौए सा युद्ध है 
छिछोरा आचार
शैवाल सा बढ़ रहा है 
काला व्यापार
ऐसे धनवानों को
अब कर दो विदा

---------शशि पुरवार

Sunday, November 25, 2012

**** नेह की पाती ******



   नेह की पाती 
मै बिटिया को लिखूं
  दिल का हाल 
ममता औ आशीष
 पैगाम लिखूं
सर्वथा  खुश रहे
प्यारी दुलारी
मेरी राजकुमारी
फूलो सी खिले
जीवन भी महके
राहों  में मिले 
मखमली डगर
नर्म बिछोना
बाबुल का अंगना
ख्वाबो की तुम 
उड़ान भी भरना
 दिली तमन्ना  
सुखमय जीवन
सदैव ,पर
दुर्गम यह पथ 
फूल औ शूल
यथार्थ का सफ़र 
पल में धोखा
अपनों से भी रंज 
तूफानों में भी
अडिग हो कदम
जटिल वक़्त  
में फौलादी जिगर 
नारी की जंग
खुद को संभालना 
है  कटु  सत्य
बेदर्द ये  जमाना
परवरिश  
पाषण ह्रदय से
यही  चाहत 
महफूज सफ़र  
नहीं भरोसा
कब तक जीवन
हमारे बाद
सुख भरा संसार 
माता पिता की दुआ .
----------शशि पुरवार 

Saturday, October 6, 2012

मेरे सपनो का ताजमहल


मेरे ख्वाबों  का
सुन्दर आशियाना
प्यार की रेशमी डोर
विश्वास का खजाना
सतरंगी सपनो से
आने वाले कल की
झालर बनाना
बचपन के पलों को
सहेज पिटारे में रख
पंछी बन उड़ जाना ,
आकांशाओ के वृक्ष पे
आशा का दीपक रखना
पूर्ण ,अपूर्ण अनुभूतियों की
एक ख्वाबगाह बनाना
दीवारों पे अपने नाम का
दुधियाँ रंग सार्थक कर
शशि की शीतलता
को जग में फैलाना। 
अमावस की काली रात में
कलम से उकेरे शब्दों की
शीतल किरणों सा प्रकाश
दीप प्रज्वलित करना
जीवन की राहो में
पी का साथ निभाना। 


कांटो को चुन ,उसकी
राहो में फूल बिछाना ,
नहीं कोई चाहत दिल में
बस मेरे जाने के बाद तुम
मेरे सपनो का ताजमहल
मत बनाना , खुश रहना
मुझे मेरी कलम में ही ढूंढ लेना
मै अविरल सी बहती हूँ मेरे
ख्वाबो के ताजमहल में
जब जी चाहे मेरे
सपनो की घाटियों में
एक फूल ले चले आना
सदा अमर रहूंगी
शब्दों के माध्यम से
जब जी चाहे चाहे
आकर मिल जाना .
--शशि पुरवार

Thursday, October 4, 2012

माँ का अंगना प्यारा रे


माँ का अंगना प्यारा रे........
प्यारा सलोना

दुनियां में रखा जब पहला कदम
माँ के आँचल में
खिला बचपन
सपनो को लगे
सुनहरे पंख ........!,
गुरु बनके ज्ञान दे दिया रे
हुआ सफल जीवन,

माँ का आशीष प्यारा रे

प्यारा सलोना

जीवन की राहो में बढ़ते कदम

मुश्किल घडी में
डरता यह मन
कैसे लड़ेंगे
तुफानो से हम .........,
तपते मन को सहला दिया रे
बनके शीतल पवन ,

माँ का साथ लागे प्यारा रे

प्यारा सलोना

स्नेह वात्सल्य से भरा बंधन

शादी कर माँ ने
निभाया धरम
आँखों में मोती
छुपा के किया भ्रम ......... ,
कालजे पे पत्थर रख लिया रे
बेटी बने सुहागन

माँ का प्यार बड़ा न्यारा रे

प्यारा सलोना

पल पल माँ को ढूंढें नयन

माँ की छाया
कैसे बने हम
दिल में महकती
माँ की छुअन......... ,
पीहर की तड़प बढ़ा गयी रे
चली यादों की पवन

माँ का अंगना प्यारा रे

प्यारा सलोना .
3.10.12
--------- शशि पुरवार

Wednesday, September 26, 2012

कैसा संहार .?


निति नियमो को
ताक  पर रखकर 
संरक्षक बना है भक्षक
ये कैसी हार 

नोच लिए रूह के तार
भेड़िया बन खींची है खाल
थमा के मीठी गोली
खेली है खूनी होली
टूट गयी विश्वास की डोर
बिखरा है लहु चारो ओर 
अपने जिय के टुकड़ों का 
 ये कैसा संहार

टूट रही लज्जा की गागर 
फट रहा जिय का सागर
कैसे छुपाये नाजुक काया
पीछे पड़ा  है एक  साया
बीच बाजार बिकती साख
भेद रही गिद्ध  की आंख
खतरा फैला है  चहुँ और 
सफेदपोश है निशाचर 
ये कैसा आधार  

निति नियमो  को
ताक पे रखकर हुआ 
ये  कैसा व्यवहार.
---शशि पुरवार  


Tuesday, September 18, 2012

जाने कहाँ आ गए हम



जाने कहाँ आ गए हम
छोड़ी धरती
चूमा गगन .

आकांशाओ  के  वृक्ष  पर  
बारूदो का  ढेर बनाया
तोड़े पहाड़ , कटाये   वन 
दूषित कर पवन ,रोग लगाया
सूखी हरीतिमा की  छाँव
सिमटे  खेत , गाँव
बना  मशीनी इंसान
पत्थर की मूरत भगवान .

जग का बदला स्वरुप
नए उपकरण ,
मशीनी इंसान ,
रोबोट सीखे काम ,
नए नए  आविष्कार
खूब फला कृत्रिम व्यापार 
मशीनी  होते काम
मानव  चाहे पूर्ण  आराम
माथे की मिट जाये  शिकन .

भर बारूद , रोकेट
संग, उड़  चला अंतरिक
विधु  पे पड़े कदम 
मिला नया मुकाम ,
पर धुएं में मिले जहर से 
कम होती ओजोन की  छाँव
सौर मंडल पर भी
प्रदुषण के बढ़ते कदम
यह हार है या जीत
जब खतरा बन रही
जीवन पर , अविष्कारों 
की बढती भीड़
न बच सकी धरणी 
न छूटा  गगन .
-------------शशि पुरवार

Saturday, September 15, 2012

मेहंदी लगे हाथ......!



मेहंदी लगे हाथ कर रहें हैं 
पिया का इंतजार
सात फेरो संग माँगा है 
उम्र भर का साथ. 


यूँ  मिलें फिर दो अजनबी
जैसे नदी के दो किनारो
का हुआ है संगम, फिर
बदल गयी हैं  दिशाए
जीवन की मधुरम हवाए 

और 
बहने लगी एक जलधारा .

नाजुक होते हैं यह रिश्ते
कांच से कच्चे धागों से बंधी हुई
विश्वास की डोर, दिलो की प्रीत 

,पर
कठिन  हैं जीवन की
पथरीली राहों का सफर.  
मजबूती के साथ चल रहे हैं हम
एक गाड़ी के दो पहिये; जिसे
तोड़ न सके कोई कंकर

प्रेम की इन गलियों में
उलफत कभी न होगी कम
बस इक खलिस है
ह्रदय में; 

 सनम
अंतिम ख्वाहिश मानकर
जिगर में मत रखना कोई रंज
पहले इस जहान  से रुकसत होंगे
 हम , 
इक सुहागन बन कर ही
निकले मेरा दम  

खाली रह जाएँ ना हाथ
करतल पे लगा देना मेहंदी

चढ़ जाये पुनः प्रेम का रंग ; फिर
यह जन्म न मिलेगा बार बार .
----------- शशि पुरवार

समीक्षा -- है न -

  शशि पुरवार  Shashipurwar@gmail.com समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा  है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह  जिसमें प्रेम के विविध रं...

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