काटकर इन जंगलो को
वो फ़ना जीवन हुआ, फिर
पंछियों की बेकसी है.
और आँखें देखती है
खेत के उजड़े नज़ारे
ठूँठ की इन बस्तियों में
पंख जलना बेबसी है
आज बौने हो गए है
आम पीपल और बरगद
गॉंव भी कुछ खो गए है
ईंट गारे के महल में
खोखली रहती हँसी है
तीर सूखे है नदी के
रेत का फिर आशियाँ है
जीव - जंतु लुप्त हुए जो
अब नहीं नामो- निशाँ है
चाँद पर जाने लगे हम
गर्द में धरती फँसी है 

















