Friday, December 21, 2012
Monday, December 10, 2012
एक सवाल - विकृत दर्पण समाज का .......... ? बाल शोषण
1 -- लघुकथा --- ख्वाब
रोज छोटू को सामने वाली दूकान पर काम करते हुए देखती थी , रोज ऑफिस में चाय देने आता था , हँसता , बोलता पर आँखों में कुछ ख्वाब से तैरते थे .एक दिन मैंने उससे कहा
" छोटू पढने नहीं जाते "
"नहीं दीदी समय नहीं मिलता "
"क्यूँ घर में कौन कौन है "
"माँ ,बापू बड़ी बहन ,छोटी बहन "
"तो सब क्या करते है "
"सभी काम करते है "
"तुम्हे पढना नहीं अच्छा लगता ?"
वह चुप हो गया ,और नीहिर भाव आँखों में था ,धीरे से बोला ---
" हाँ बहुत मन करता है पढूं , अच्छे अच्छे कपडे पहनू , स्कूल जाऊ और मै भी एक दिन ऐसे ही नौकरी कर बड़ा इंसान बनू , पर इतने पैसे नहीं है ,जो मिलता है सब मिलकर उससे खाना ले कर आते है ,".........काश में भी बड़े घर में जन्म लेता .......
शब्द खामोश हो गए और नयन सजल ,यह सजा भगवान् ने नहीं दी , इंसानों ने ही तो अमीर गरीब बनाये है ,स्वप्न तो सभी की आँखों में एक जैसे ही आते है .
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2 लघुकथा --- दोहरा व्यक्तित्व
स्कूल की अध्यापिका ने बाल शोषण के खिलाफ बहुत कुछ भाषण में कहा , कि बाल श्रम अपराध है , बाल शोषण नहीं करना चाहिए , सबको इसके खिलाफ मिलकर आवाज उठानी चाहिए .वगैरह ,....!
उनकी बातो से सभी बहुत प्रभावित हुए , सभी बच्चो के माता पिता ने भी बहुत प्रसन्नता व्यक्त करी कि हमारे बच्चे कितने अच्छे स्कूल में पढ़ते है .मै उन अध्यापिका से परिचित थी ,बहुत सौम्य स्वाभाव की थी ,हर कोई प्रभावित हो जाता था उनसे , एक दिन किसी कार्यवश एक परिचित के साथ उनके घर जाने का मौका मिला , वह अविवाहित थी और अकेले रहती थी , जब हम पहुचे कोई 10 वर्ष की लड़की ने दरवाजा खोला , ठीक ठाक कपड़ो में थी वह लड़की , तो वह कोई सदस्य तो नहीं लग रही थी परिवार की ,हम बैठे तो तो उन महोदया ने आवाज दी ---
"रानी पानी लेकर आओ और काम हो गया हो तो घर चली जाओ "
" जी मैडम , हो गया "
हम आश्चर्य से देखते रह गए उन्हें , मुझसे रहा नहीं गया मैंने पूछ ही लिया
"क्या यह आपके यहाँ काम करती है ?"
"अरे नहीं , वह तो मै इसे पढ़ा देती हूँ , स्कूल की फ़ीस भी भरती हूँ इसकी , कपडे खाना सभी करती हूँ वक़्त आने पर , अब इतना कुछ करती हूँ , तो थोडा घर का काम करा लेने से क्या फर्क पड़ेगा ,आखिर पैसे देती हूँ . इसके माँ -बाप गरीब है , बर्तन का ही काम करते है , वह तो अच्छा है कि यह मेरे पास है तो इसका भला हो गया ,अब यही रहती है मेरे पास , ख़ुशी से ही करती है यह सब ,वैसे भी तो काम क्या होता है हम दोनों का ....!
मै चकित थी इस दोहरे व्यक्तिव से , एक तरफ बाल श्रम के लिए उनके विचार एवं दूसरी तरफ ऐसा कार्य , क्या समझे इसे ....दोहरा व्यक्तिव जो आम है आजकल ?
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3 लघु कथा --- शोषण
आज आरती के घर में बहुत चहल पहल थी ,9 साल की आरती और 11 प्रकाश साल का कजिन दोनों अपने नाना के घर पर थे , आज मेहमान भी घर पर आये थे , माँ , नानी ,व परिवार के अन्य सदस्य रिश्तेदारों में व्यस्त थे , बच्चे उधम मचा रहे थे , एक दूर का रिश्तेदार उम्र 24 होगी वह भी था और बीच बीच में बच्चो के साथ भी खेल लेता था . इतनी चहलपहल थी कि ठहाको की आवाजे ही बाहर आती थी . एक दिन सभी आराम कर रहे थे ,बच्चे छत पर खेल रहे थे , आरती वैसे ही खेल रही थी और प्रकाश पतंग उड़ा रहा था ,अपने दोस्त के साथ . थोड़ी देर में वह लड़का जिसे मामा कह रहे थे बच्चे ,छत पर आया और बच्चो के साथ खेलने लगा , फिर खेलते खेलते आरती से बोला ---
"चलो हम थोड़ी देर बैठते है और चाकलेट खाते है इनको पतग उड़ाने दो , "
" नहीं मामा यही पर खेलना है , मुझे नहीं बैठना "
" अब यह तो नहीं खेल रहे है फिर ....." बात काट कर आरती बोली --
" नहीं मुझे कहीं नहीं जाना , मै यही खेलूंगी "
"ओह हो....... तो खेलना है तुम्हे ,चलो हम कुछ और खेलेंगे "
" सच्ची में ......"
"हाँ , चलो वहां छत के कोने में ,अब प्रकाश तुम्हे पतंग नहीं दे रहा है तो , हम भी उसे नहीं खिलाएंगे "
" ठीक है मामा ,हम क्या खेलेंगे ?
" आओ मै बताता हूँ , पर किसी से कुछ नहीं कहना , नहीं तो सब मारेंगे तुम्हे और मै फिर नहीं खेलूंगा ,
" जैसा मै कहता हूँ वैसा ही करो ....."
और छत पर उस तथाकथित मामा ने जो खेल खेला वह आरती समझ ही नहीं सकी ,और दर्द ,डर से पीड़ित हो गयी , और मामा ने कहा --
" अरे डरो मत सब ठीक हो जायेगा , पर किसी से कुछ कहना नहीं ." धीरे से धमकी .
आज रिश्तो का खून हो चूका था , कैसे अपनों पर भी विश्वास किया जाये ,आज रिश्ते नाते भी कठघरे में है ,जो अपनी गन्दी विकृत मानसिकता के चलते मासूम बचपन के मन व जीवन और रिश्तो पर काले घाव के निशाँ अंकित कर देते है .
----- शशि पुरवार
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4 कथा ------ स्वाहा
रामू चाय की दुकान पर काम करता था पढने का बहुत शोक था दिन में काम करता और रात के समय पढता था , पिता ने उसे काम करने के लिए कहा था ,वह कहते थे की पढने से पैसे नहीं मिलते ,पर झुग्गी छोपडी में एक स्कूल था जो मुफ्त शिक्षा देता था ,तो रामू की लगन से वहां उसे दाखिला मिल गया था ,सिर्फ परीक्षा के समय पैसे भरने होते थे फॉर्म के ,तो रामू के पिता ने उसे कह दिया
" ठीक है देखेंगे.......... "
हर महीने की पगार वह आजकर रामू के सेठ से ले जाते थे .आज कप धोते धोते रामू को याद आया कि कल स्कूल में कहा गया है कि अगर आज रूपये नहीं भरे तो परीक्षा नहीं दे सकते . उसने सेठ से कहा
काका जल्दी से आता हूँ घर से .........वह घर की तरफ भागा ,और अपने पिता से बोला --
" बाबा फ़ीस भरनी है आज ,"
" पैसे नहीं है मेरे पास ............. पता नहीं सा पहाड़ मिल जायेगा पढ़ कर .."कड़कती आवाज में जबाब आया ,फिर वह सड़क पर निकल गए .
रामू को कुछ समझ नहीं आया ,आँखों में आंसू आ गए , सोचा रात को अम्मा से कहूँगा ,नहीं तो स्कूल वाले भगा देंगे स्कूल से ,
रात को जब अम्मा घर आई वह कुछ कह पाता उससे पहले पिता शराब की बोतल पीते हुए लडखडाते ,गन्दी गलियां देते हुए घर में घुसे , आज सन्नाटा सा छा गया झोपड़ी में .........आज खाने में लात घुसे ही मिले , निरीह आँखे तक रही थी अँधेरे को , एक खामोश चीत्कार थी रामू के मन में .आशाएं , इक्छाएं धू धू कर जल रही थी . शराब में सब कुछ स्वाहा हो गया .
------- शशि पुरवार
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बाल शोषण ----- एक नजर
बाल शोषण यह एक ऐसी समस्या है जिसका निदान ही नहीं निकल रहा, अक्सर इसके बारे में हम समाचार पत्रों में पढ़ते रहते है, यह शोषण समाज में बुरी तरफ मकडजाल की तरह फैला हुआ है. बाल शोषण सिर्फ काम करवाने से ही नहीं होता अपितु शारीरिक , मानसिक शोषण भी जघन्य अपराध है एवं शोषण की श्रेणी में ही आता है। इसे आप दबे रूप में कहीं न कहीं देख ही सकते है। गरीब माँ बाप तो इस महंगाई की मार से परेशान होकर अपने बच्चो को काम पर लगा देते है. निम्न वर्ग को सरकार जो रूपये देती है वह भी उन बच्चो पर खर्च न होकर उनकी जेबों में ही जाता है. निम्न वर्ग अपने बच्चो को भीख मांगने के लिए गलियों ,चौराहे या मंदिर के बार खड़ा कर देते है.नहीं तो सर्कस या करतब दिखाकर पैसे का कमाने का कार्य सौंप देते है . एक बार जब मुझे कार्य वश होलसेल बाजार में जाने का काम पड़ा, चौराहे पर चाट का एक ठेला खड़ा था और थोड़ी दूर पर 5, 6 -8 -10 साल के 6-7 बच्चे बैठे थे. करीब 22 साल का एक लड़का कुछ दूरी पर बैठ कर सब पर नजर रखे हुए था . 2 -2 बच्चे आगे एक गन्दी सी छोटी चादर पर बारी बारी आकर बैठते। एक बाजा बजाता तो दूसरा करतब दिखाता। जब 5-6 साल के बच्चो ने आँखों से सुई उठाई, बांस पर चले , शरीर को तोड़ मोड़ कर प्रस्तुत किया तो वहां ठेले पर खड़े कुछ लोगो ने 1 -1 रूपए डाल दिए ,परन्तु किसी ने भी उन्हें यह कार्य करने से नहीं रोका , और धीरे धीरे वह पैसा बड़े लड़के की जेब में जाता रहा. इस अपराध के हिस्सेदार वह लोग भी है जो ऐसे खेल को देख आनंदित होते है और बढ़ावा देते है . जो इन बातों का विरोध करते है उन्हें स्वयं समाज का विरोध झेलना पड़ता है .
बच्चो का शोषण सिर्फ श्रम से ही नहीं होता अपितु स्कूल में शिक्षक द्वारा, एवं घर में परिचित या रिश्तेदार भी उनका शोषण कर लेते है। सामान्यतः यह बात खुलकर बाहर नहीं आ पाती . बच्चो को चाकलेट या मिठाई के बहाने बुलाकर , फुसलाकर उनका शारीरिक शोषण किया जाता है . उन्हें जान से मरने की धमकी देकर डराया जाता है और इसी बहाने बच्चे लगातार शोषित किये जातें है। चाहे लड़का हो या लड़की सभी इसके शिकार होते है। कई बार सुनने में आया कि फलां टीचर ने विद्यार्थी के साथ अनुचित व्यवहार किया है. कई शिक्षक ऐसे होते है जो बालउम्र को ध्यान में न रखकर सजा के रूप में उनकी इतनी पीटाई करते है कि कई बार बच्चो की हालत ख़राब हो जाती है और उन्हें अस्पताल तक ले जाना पडा . भय उनके मन में घर कर जाता है।
कई बार ऐसी परिस्थिति भी सामने आई है जैसा कि आरती के साथ हुआ था। उसके घर में उसके दूर के मामा ने उसका शारीरिक शोषण किया और डरा कर चुप करा दिया। वह डर के कारण कुछ नहीं कह सकी . बाल्यावस्था में बच्चों के साथ हुई घटनाएं उनके बालमन पर सदा के लिए अंकित हो जाती है। आरती के साथ जो कुछ भी हुआ उसके दुःख और परेशानी की काली छाया उसके जीवन पर सदा के लिए अंकित हो गयी .इसके ठीक विपरीत साहसी नीलम की दाद देनी पड़ेगी। वह कोचीन क्लास में पढने जाती थी। विद्यार्थीयों को अपनी डिफिकल्टी के लिए कक्षा के बाद ही रुक कर पूछना पड़ता था। एक दिन नीलम अपने प्रश्न के लिए वहां रुकी। उसके टीचर ने उसके साथ अकेले में अशोभनीय व्यवहार किया , पहले तो वह कुछ नहीं बोली, पर यह सिलसिला अक्सर होने लगा तो उसने विरोध किया। जबाब में उस शिक्षक ने उसे धमकी दी यदि ज्यादा आवाज करोगी तो तुम्हे बदनाम कर दूंगा। पर नीलम की समझदारी उसे कोई बड़ा कांड होने से बचा लिया। उसने माता -पिता को यह बात बताई और पुलिस की मदद से बालबाल बच गयी . हर बच्चे को बचपन से ही यह शिक्षा देनी चाहिए कि डरो मत अपितु अपनों का सहारा लो. अनजान पर विश्वास मत करो .
अपराध तो ख़त्म नहीं होते। आज समाज में जगह - जगह राक्षस फैले हुए हैं। अक्सर समाचार पत्र दुष्कृत की काली ख़बरों से रंगे हुए होते हैं। कुछ दुष्कर्मी युवको ने शराब के नशे में न जाने कितनी मासूम कन्याओ को अपना शिकार बनाया, सबसे ज्यादा खेद जनक स्थिति है कि अपने मानसिक विकृत कृत्य में उन्होंने 3-- 6 महीने की नवजात शिशु को भी नहीं बख्शा। आज लोगों का मानवता से भरोसा उठ गया है। शिशु आज अपने घर में भी सुरक्षित नहीं है। विकृत मनोदशा वाले लोग सामान्य स्थिति में हमारे आसपास ही मौजूद होते हैं। सोशल मीडिया पर मौजूद पोर्न विडिओ ने किशोरों को भी अपनी गिरफ्त में लेकर मानसिक रोगी बनाया है। कई लोग पुलिस की गिरफ्त में भी आये और सजा भी हुई। पर अपराध का मकड़जाल इस तरह फैला हुआ है कि इसकी सफाई करना मुश्किल है। सभ्य कपड़ों में काले कुकर्मी घूमते हैं।
लोग समाज के डर से यह बात ही छुपा लेते है . खासकर जब कन्या हो,कहीं उसकी शादी में अड़चन न हो जाये। ऐसा विचार अपराधी को बढ़ावा देते हैं इंसानियत मरने लगी है। न्यायालयों में पोक सो के केसों की बढ़ती संख्या चिंतनीय है। मानसिक विकृति का खामियाजा नवजात बच्चों और बच्चियों का भुगतना पड़ता है। शिक्षिकों द्वारा किये गए कृत्य कितने गलत हैं, जब गुरु ही गलत होगा तो बच्चों को क्या शिक्षा मिलेगी! शोषण सिर्फ शारीरिक ही नहीं मानसिक भी होता है, एक बार स्कूल में एक शिक्षिका ने 1-2 बच्चो को बहुत मारा , नंबर भी काट लेने की बात कही, क्रोध में बहुत ज्यादा होमेवोर्क दिया, सजा दी . एक बार एक लड़की इस पीड़ा को न सह सकी और डर के कारण घर पर भी किसी को कुछ नहीं बताया व अंत में आत्महत्या कर ली. एक नोट छोड़ दिया और जिंदगी हमेशा के लिए मिट गयी। . इस तरह के हालात समाज को अंदर से खोखला कर रहें हैं। नन्हे कदम जो हाथ थाम कर चलना सीख रहें हैं उन्हें दुनिया को अच्छी नज़रों से दिखाना चाहिए न कि काली करतूतों से भरी दुनियां को। बालपन में हुए हादसे उनके जीवन पर विपरीत प्रभाव भी डालते हैं। उनके साथ हुई घटनाओं का जिम्मेदार वह दुनिया को मानते है एवं बदला लेने के लिए भविष्य में वही कार्य दोहराते हैं। ऐसी कई घटनाए हमारे समाज में हो रही है. बाल मजदूरी भी हमारे समाज का हिस्सा बन गयी है। समाज में फैली अपराधों के चलते कई लोग घर में काम के लिए छोटे बच्चो को रख लेते हैं। क्यूंकि वह परेशान नहीं करते और सारा काम चन्द पैसे और खाने के लालच में कर देते है .
बचपन एक फूल के समान है जिसे प्यार भरे संरक्षण की आवश्यकता है , जब नींव अच्छी रखी जाएगी तो वह पौधा बन कर अच्छे फल- फूल देगा . आज बाल शोषण जैसी समस्या को जड़ से मिटाने के लिए सभी को साथ में मिलकर समाप्त करना होगा . चंद पंक्तियाँ कहना चाहूंगी--
बेटी हो या बेटा ,
बचपन एक समान
न मसलो नन्हें पौधों को
दो अधरों पर मुस्कान
--शशि पुरवार
Wednesday, December 5, 2012
एक भूल और .............................!
1
रंगीन मिजाज
अनिरुद्ध एक सॉफ्टवेयर इंजीनयर था। वह अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ हंसी ख़ुशी जीवन कर रहा था। वह अक्सर काम के सिलसिले में शहर से बाहर जाता था . इस बार जब वह वापिस आया तो देखा उसकी नेहा की तबियत ठीक नहीं है। बुखार बार बार आ रहा था व वह थोड़ी कमजोर दिख रही थी . अनिरुद्ध चिंतित हो गया और उसने नेहा से पूछा --
"नेहा क्या हुआ, डाक्टर को दिखाया ...?"
" कुछ नहीं, ठीक हूँ , बुखार के कारण कमजोरी आ गयी है , आजकल वायरल भी बहुत फैला है "
" हाँ यह तो है , परन्तु अपना ध्यान रखो ....... "
इधर आजकल कुछ दिनों से बेटे की तबियत भी बिगड़ने लगी। चेहरे और शरीर पर दाने निकलने लगे और बुखार भी बार बार आ रहा था। उधर निशा का स्वास्थ भी धीरे -धीरे बिगड़ता जा रहा था। एक दिन तो वह काम करते करते गिर गयी, अनिरुद्ध दोनों को अस्पताल लेकर गया तो वहां नेहा एवं बेटे को एडमिट कर लिया गया, दवाईयां असर नहीं कर रही थी। फिर उनकी सभी प्रकार की जांच शुरू हो गयी. शाम को डाक्टर ने अनिरुद्ध से कहा कि --
" आप धीरज रखें , आपको अपनी पत्नी को भी हिम्मत देना है। और एक बार आप अपना व अपनी बेटी का ब्लड टेस्ट करवा लें। "
" क्यों डाक्टर ! मेरी नेहा को क्या हुआ है और हम सभी की जाँच क्या कोई चिंता की बात है ?" अनिरुद्ध की आवाज में चिंता झलक रही थी।
" मै एतिहात के तौर पर सभी की एच . आई वी टेस्ट करवा रहा हूँ, आपकी पत्नी और बेटे की रिपोर्ट पॉजिटिव आई है और hiv संक्रमण आखिरी स्टेज पर पहुँच चुका है "
" यह सुनते ही अनिरुद्ध जड़ हो गया, उसके मन मस्तिष्क ने जैसे काम करना ही बंद कर दिया हो !"
परिवार के सभी सदस्य की जांच हुई तो पता चला कि सभी इस बीमारी से ग्रसित है, वह ग्लानी से भर गया कि उसके रंगीन मिजाज स्वाभाव व असंयम के कारण आज पूरा परिवार काल के द्वार पर खड़ा था। नेहा की निगाहे उससे खामोश सवाल कर रही थी, जिससे वह नजर उठाने में असमर्थ था। शादी से पहले से ही उसने इन रंगीन गलियों की आदत जो डाल रखी थी।
-----शशि पुरवार .
२ असावधानी
सुलोचना स्वयं को होशियार समझती थी. वह हमेशा पैसे बचाने के चक्कर में रहती थी. एक बार उसकी तबीयत नासाज थी. वह पास में ही डाक्टर को दिखाने गई. डाक्टर ने उसे दवा दी और इंजेक्शन लेने के लिए कहा। साधारण दवाखाना था किन्तु बहुत चलता था। वह कम्पाउंडर के पास इंजेक्शन के लिए गयी तो देखा वहां बहुत से लोग लाइन में बैठे है। कम्पाउंडर सभी को एक एक करके इंजेक्शन लगा रहा था. वहां एक बर्तन में गर्म पानी रखा था, हर बार सुई लगाने के बाद उसमे डाल देता और दूसरी को निकालकर लोगों को इंजेक्शन लगाता .सुलोचना ने सोचा गर्म पानी में सभी कीटाणु मर जाते है तो नयी डिस्पोजेबल सुई में के लिए फालतू में पैसे खर्च क्यों करूँ।
जब सुलोचना की बारी आई तो कम्पाउंडर ने कहा --
" आपका परचा ?"
" हाँ यह लीजिये। यह इंजेक्शन लगाना है "
" ठीक है "
फिर वह गर्वित भाव से यह सोचते सोचते घर आ गयी कि - "डिस्पोजल के पैसे तो बचे।कुछ नहीं होता है, आजकल मेडिकल वालों ने भी लोगों को ठगने का धंधा बना लिया है. पहले भी तो लोग ऐसा करते थे। "
बीमारी तो ठीक हो गयी, परन्तु जो हुआ उसकी कल्पना से परे था। 2-3 महीने बाद जब सुलोचना थकी थकी सी रहने लगी तो घर वालो को चिंता हुई,
बाद में सभी जांच हुई तो पता चला कि खून संक्रमित हो गया है. एच . आई .वी . के कीटाणु खून में पाए गए। यह जानकर सभी सदमे में आ गए.
सुलोचना ने विचलित होकर डाक्टर ने कहा --यह कैसे संभव हो सकता है।
" आप चिंता मत करो शुरुआत है, आपका इलाज हो सकता है "
" पर डाक्टर यह कैसे हो गया। हम कितनी सावधानी बरतते है "
" यह संक्रमण का रोग है, किसी भी असावधानी से यह रोग हो सकता है , इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति का संक्रमित खून दिये जाने पर या संक्रमित व्यक्ति को लगाईं हुई सुई का उपयोग करने पर भी यह बीमारी हो जाती है। अनेक ऐसी सावधानियां हमें बरतनी चाहिए। कभी भी डिस्पोजेबल सुई का उपयोग करें , हर बात की बारीकी से बाजार रखें। आप ध्यान कीजिये ऐसा कुछ आपके साथ घटित हुआ है क्या ? "
डाक्टर की बातें सुनकर सुलोचना को अपनी गलती का अहसास हो गया, थोड़ी सी बचत करने के चक्कर में उसने अपनी ही जान जोखिम में डाल दी। बुरा वक़्त कभी भी कह कर नहीं आता , स्वयं सावधानी लेना आवश्यक है .
-----शशि पुरवार
Thursday, November 29, 2012
अब कर दो विदा
अब कर दो विदा
जकड़ी हैं मान्यताएं
थोथले विचार
परंपरा के नाम पर
आदमी लाचार
बेगारी का फंदा बन
रहा है जी का जंजाल,
ऐसे फरमानों को
अब कर दो विदा .
इर्ष्या के कीड़ों से
कलुषित हुआ मन
बदले की आग में
सुलग रहा है तन
साखर में पगा हुआ है
धूर्त का संसार
ऐसे मेहमानों को
अब कर दो विदा
जब सोया है जमीर ,तो
कैसे उच्च विचार
चील,कौए सा युद्ध है
छिछोरा आचार
शैवाल सा बढ़ रहा है
काला व्यापार
ऐसे धनवानों को
अब कर दो विदा
---------शशि पुरवार
अब कर दो विदा
जकड़ी हैं मान्यताएं
थोथले विचार
परंपरा के नाम पर
आदमी लाचार
बेगारी का फंदा बन
रहा है जी का जंजाल,
ऐसे फरमानों को
अब कर दो विदा .
इर्ष्या के कीड़ों से
कलुषित हुआ मन
बदले की आग में
सुलग रहा है तन
साखर में पगा हुआ है
धूर्त का संसार
ऐसे मेहमानों को
अब कर दो विदा
जब सोया है जमीर ,तो
कैसे उच्च विचार
चील,कौए सा युद्ध है
छिछोरा आचार
शैवाल सा बढ़ रहा है
काला व्यापार
ऐसे धनवानों को
अब कर दो विदा
---------शशि पुरवार
परंपरा के नाम पर
आदमी लाचार
बेगारी का फंदा बन
रहा है जी का जंजाल,
ऐसे फरमानों को
अब कर दो विदा .
इर्ष्या के कीड़ों से
कलुषित हुआ मन
बदले की आग में
सुलग रहा है तन
साखर में पगा हुआ है
धूर्त का संसार
ऐसे मेहमानों को
अब कर दो विदा
जब सोया है जमीर ,तो
कैसे उच्च विचार
चील,कौए सा युद्ध है
छिछोरा आचार
शैवाल सा बढ़ रहा है
काला व्यापार
ऐसे धनवानों को
अब कर दो विदा
---------शशि पुरवार
Sunday, November 25, 2012
**** नेह की पाती ******
नेह की पाती
मै बिटिया को लिखूं
दिल का हाल
ममता औ आशीष
पैगाम लिखूं
सर्वथा खुश रहे
प्यारी दुलारी
मेरी राजकुमारी
फूलो सी खिले
जीवन भी महके
राहों में मिले
मखमली डगर
नर्म बिछोना
बाबुल का अंगना
ख्वाबो की तुम
उड़ान भी भरना
दिली तमन्ना
सुखमय जीवन
सदैव ,पर
दुर्गम यह पथ
फूल औ शूल
यथार्थ का सफ़र
पल में धोखा
अपनों से भी रंज
तूफानों में भी
अडिग हो कदम
जटिल वक़्त
में फौलादी जिगर
नारी की जंग
खुद को संभालना
है कटु सत्य
बेदर्द ये जमाना
परवरिश
पाषण ह्रदय से
यही चाहत
महफूज सफ़र
नहीं भरोसा
कब तक जीवन
हमारे बाद
सुख भरा संसार
माता पिता की दुआ .
----------शशि पुरवार
Tuesday, November 13, 2012
दीप से दीप जलाएं ---------रंगबिरंगी दीपावली ------
गीत ---
1दीपों की लडिया सजाएँ
लौ से लौ जलाएं
आओ खुशियाँ फैलाएं
द्वार पे रंगोली डले
असंख दिवली खिले
सुप्त मन , तम में
दिया औ बाती जले ,
अंतर्घट की ज्योत जलाएं
आओ खुशियाँ फैलाएं
कुटिलता से भरे
शामनी से परे
बांकपन की आग में
तन को स्वाहा करे ,
दुर्गुणों को जड़ से मिटाएँ
आओ खुशियाँ फैलाएं
सद्गुणों का चाँद हो
शीतलता व्याप्त हो
यतीम ,बेघर ,हिंसा की
न ऐसी काली रात हो ,
गली गली चौबारे पे
सज्ञान के दीपक जलाएं
आओ खुशियाँ फैलाएं .
------ शशि पुरवार
=================================================
2
गौधुली बेला में
दमकता दिया
स्नेहिल आबंध
हर्षित हिया
सोने का कंगन
चांदी की बिछिया
हीरे जैसे पिया
धडके जिया
विश्वास की बाती
प्रेम का दिवा
समर्पण भाव
अर्पण किया
खील - बताशे
मिठाई, पटाखे
गणेश लक्ष्मी का
वंदन किया
घर ,मन दिवाली
पग पग उजेरा
अमावश को भी
रौशन किया .
गौधुली बेला में
दमकता दिया
स्नेहिल आबंध
हर्षित हिया
सोने का कंगन
चांदी की बिछिया
हीरे जैसे पिया
धडके जिया
विश्वास की बाती
प्रेम का दिवा
समर्पण भाव
अर्पण किया
खील - बताशे
मिठाई, पटाखे
गणेश लक्ष्मी का
वंदन किया
घर ,मन दिवाली
पग पग उजेरा
अमावश को भी
रौशन किया .
=================================================
3 ---
हाइकु
रंगों से भरा
सलोना बचपन
फूलपाखरू
रंगबिरंगे
प्रकृति के नज़ारे
झील किनारे
दीप भी सजे
मोरपंखी रंगों से
लौ इठलाये .
गोधुली बेला
गणेश लक्ष्मी विराजे
शुभ औ लाभ
दिया औ बाती
अटूट है बंधन
तम का साथी
रंगबिरंगे
बंदनबार सजे
युगसंधि में .
दीपो का पर्व
रौशनी का उत्सव
रैना दमके .
तम गहन
पटाखों की बहार
दीपो उल्लास .
दीपो की लड़ी
मनमोहिनी सखी
बाती भी जली
==============================सलोना बचपन
फूलपाखरू
रंगबिरंगे
प्रकृति के नज़ारे
झील किनारे
दीप भी सजे
मोरपंखी रंगों से
लौ इठलाये .
गोधुली बेला
गणेश लक्ष्मी विराजे
शुभ औ लाभ
दिया औ बाती
अटूट है बंधन
तम का साथी
रंगबिरंगे
बंदनबार सजे
युगसंधि में .
दीपो का पर्व
रौशनी का उत्सव
रैना दमके .
तम गहन
पटाखों की बहार
दीपो उल्लास .
दीपो की लड़ी
मनमोहिनी सखी
बाती भी जली
घर ,मन दिवाली
पग पग उजेरा
अमावश को भी
रौशन किया .
-------
1 पहना है अब गहना
हार बिंदी कंगना
दीप सजें है अंगना
2 खूब हुई मनुहार
सजन गए ससुराल
दिवाली घर द्वार
3 दिवाली का त्यौहार
पिया से तकरार
मिला हीरो का हार .
4 दीपो की है बहार
खास पिय का प्यार
सजाओ बंदनबार
5 सांझ दीप है जलें
दिल वाट पाहे
अब खुशियाँ आन मिले .
--शशि पुरवार
===============================================
चोका -----
रिश्तों में खास
विश्वास की मिठास
प्रेम की बाती
रौशनी की बहार
बाटें खुशियाँ
हर दिन त्यौहार
हीरे से ज्यादा
अनमोल है प्यार
है जमा पूँजी
रिश्तों की सौगात
सजन संग
बसाया है संसार
नए बंधन
स्नेहिल उपहार
दिलों की प्रीत
अमूल्य पतवार
मन ,उमंग
शीतलता व्याप्त
पल पल हो
घर मने दिवाली
हर दिन त्यौहार .
-----------शशि पुरवार
====================================
दीपक कहे बाती से , दूर हो अंधियारा
सज्ञान की जलती ज्योत , फैलाए उजियारा .............................
सभी मित्रो को सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये , दीपावली का यह पर्व आप सभी के जीवन में खुशियाँ लेकर आये -----आपका जीवन सदैव खुशियों से परिपूर्ण हो ,-------शशि पुरवार
Wednesday, October 31, 2012
व्यंजना को लफ्जों से सजाऊं
गहराई में समां जाऊं
तुम साहिल में तरंगिणी सी
बहती धारा बन जाऊं
तुम अम्बर मै धरती बन
युगसंधि में खो जाऊं
तुम शशिधर मै गंगा सी
बस शिरोधार्य हो जाऊं
तुम आतप मै छाँह सी
प्रतिछाया ही बन जाऊं
तुम दीपक मै बाती बन
नूर दे आपही जल जाऊं
तुम रूह हो मेरे जिस्म की
तुम्हारी अंगरक्षी बन जाऊं
न होगा तम जीवन में कभी
चांदनी बनके खिल जाऊं
तुम धड़कन हो मेरे दिल की
स्मृति बन साँसों में बस जाऊं
मौत भी न छू सकेगी मेरे माही
हर्षित मै रूखसत हो जाऊं
न कोई गीत ,न बहर, न गजल
व्यंजना को लफ्जों से सजाऊं
-----शशि पुरवार
Monday, October 22, 2012
माँ का आशीष शुभ दुलार
सब बच्चों को माँ से प्यार माँ का आशीष शुभ दुलार आदिशक्ति मातृभवानी जगतजननी कृपनिधानी शक्तिस्वरूपा सिंहवाहिनी महिषासुर का किया संहार देवों का बेड़ा पार माँ का आशीष शुभ दुलार कोमलांगी कमलवासिनी विश्वव्यापी विश्वमोहिनी शुभमंगल वरदायिनी तेरे गुण गाए संसार भक्तों का बेड़ा पार माँ का आशीष शुभ दुलार काली, दुर्गा औ सरस्वती अनेक रूपों में भगवती नवरात्रि का त्यौहार माँ का सोलह शृंगार मन मंदिर में बजी झंकार -शशि पुरवार |
Thursday, October 18, 2012
लघुकथा --पतन , माँ का एक यह रूप भी .........
लघुकथा -- पतन
भोपाल जाने के लिए बस जल्दी पकड़ी और आगे की सीट पर सामान रखा था कि किसी के जोर जोर से रोने की आवाज आई, मैंने देखा एक भद्र महिला छाती पीट -पीट कर जोर जोर से रो रही थी .
" मेरा बच्चा मर गया ...हाय क्या करू........ कफ़न के लिए भी पैसे नहीं है ..
मदद करो बाबूजी , कोई तो मेरी मदद करो , मेरा बच्चा ऐसे ही पड़ा है घर पर ......हाय मै क्या करूं ."
उसका करूण रूदन सभी के दिल को बैचेन कर रहा था , सभी यात्रियों ने पैसे जमा करके उसे दिए ,
" बाई जो हो गया उसे नहीं बदल सकते ,धीरज रखो "
"हाँ बाबू जी , भगवान आप सबका भला करे , आपने एक दुखियारी की मदद की ".....
ऐसा कहकर वह वहां से चली गयी , मुझसे रहा नहीं गया , मैंने सोचा पूरे पैसे देकर मदद कर देती हूँ , ऐसे समय तो किसी के काम आना ही चाहिए .
जल्दी से पर्स लिया और उस दिशा में भागी जहाँ वह महिला गयी थी . , पर जैसे ही बस के पीछे की दीवाल के पास पहुची तो कदम वही रूक गए .
द्रश्य ऐसा था कि एक मैली चादर पर एक 6-7 साल का बालक बैठा था और कुछ खा रहा था . उस भद्र महिला ने पहले अपने आंसू पोछे , बच्चे को प्यारी सी मुस्कान के साथ , बलैयां ली , फिर सारे पैसे गिने और अपनी पोटली को कमर में खोसा फिर बच्चे से बोली -
"अभी आती हूँ यहीं बैठना , कहीं नहीं जाना "
और पुनः उसी रूदन के साथ दूसरी बस में चढ़ गयी .
मै अवाक सी देखती रह गयी व थकित कदमो से पुनः अपनी सीट पर आकर बैठ गयी . यह नजारा नजरो के सामने से गया ही नहीं ,लोग कैसे - कैसे हथकंडे अपनाते है भीख मांगने के लिए , कि बच्चे की इतनी बड़ी झूठी कसम भी खा लेते है , आजकल लोगो की मानसिकता में कितना पतन आ गया है .
--------शशि पुरवार
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मित्रो आप सभी को नवरात्री की हार्दिक शुभकामनाये ...............स्वास्थ परेशानी के चलते ज्यादा समय नहीं दे पा रही हूँ ....पर जितना भी हो सकेगा आपके ब्लॉग पर पढने आती रहूंगी , तब तक के लिए क्षमाप्राथी हूँ , यह सत्य घटना आपके समक्ष .............लघुकथा के रूप में ..... अपना अमूल्य स्नेह बनाये रखें .-शशि
भोपाल जाने के लिए बस जल्दी पकड़ी और आगे की सीट पर सामान रखा था कि किसी के जोर जोर से रोने की आवाज आई, मैंने देखा एक भद्र महिला छाती पीट -पीट कर जोर जोर से रो रही थी .
" मेरा बच्चा मर गया ...हाय क्या करू........ कफ़न के लिए भी पैसे नहीं है ..
मदद करो बाबूजी , कोई तो मेरी मदद करो , मेरा बच्चा ऐसे ही पड़ा है घर पर ......हाय मै क्या करूं ."
उसका करूण रूदन सभी के दिल को बैचेन कर रहा था , सभी यात्रियों ने पैसे जमा करके उसे दिए ,
" बाई जो हो गया उसे नहीं बदल सकते ,धीरज रखो "
"हाँ बाबू जी , भगवान आप सबका भला करे , आपने एक दुखियारी की मदद की ".....
ऐसा कहकर वह वहां से चली गयी , मुझसे रहा नहीं गया , मैंने सोचा पूरे पैसे देकर मदद कर देती हूँ , ऐसे समय तो किसी के काम आना ही चाहिए .
जल्दी से पर्स लिया और उस दिशा में भागी जहाँ वह महिला गयी थी . , पर जैसे ही बस के पीछे की दीवाल के पास पहुची तो कदम वही रूक गए .
द्रश्य ऐसा था कि एक मैली चादर पर एक 6-7 साल का बालक बैठा था और कुछ खा रहा था . उस भद्र महिला ने पहले अपने आंसू पोछे , बच्चे को प्यारी सी मुस्कान के साथ , बलैयां ली , फिर सारे पैसे गिने और अपनी पोटली को कमर में खोसा फिर बच्चे से बोली -
"अभी आती हूँ यहीं बैठना , कहीं नहीं जाना "
और पुनः उसी रूदन के साथ दूसरी बस में चढ़ गयी .
मै अवाक सी देखती रह गयी व थकित कदमो से पुनः अपनी सीट पर आकर बैठ गयी . यह नजारा नजरो के सामने से गया ही नहीं ,लोग कैसे - कैसे हथकंडे अपनाते है भीख मांगने के लिए , कि बच्चे की इतनी बड़ी झूठी कसम भी खा लेते है , आजकल लोगो की मानसिकता में कितना पतन आ गया है .
--------शशि पुरवार
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मित्रो आप सभी को नवरात्री की हार्दिक शुभकामनाये ...............स्वास्थ परेशानी के चलते ज्यादा समय नहीं दे पा रही हूँ ....पर जितना भी हो सकेगा आपके ब्लॉग पर पढने आती रहूंगी , तब तक के लिए क्षमाप्राथी हूँ , यह सत्य घटना आपके समक्ष .............लघुकथा के रूप में ..... अपना अमूल्य स्नेह बनाये रखें .-शशि
Friday, October 12, 2012
सिंदूरी आभा
1सिंदूरी आभा
सुनहरा गहना
साँझ है सजी .
2 अम्बर संग
अवनि का मिलन
संध्या बेला में
3 सुनहरा है
प्रकृति का बंधन
स्वर्णिम पल
4 उषाकाल में
केसरिया चुनर
हिम पिघले .
5 शूल जो मिले
हम तो नहीं हारे
छु के गगन .
6 छु लिया जहाँ
मिला श्रम का मोल
सुहानी भोर
7 सुनहरा है
आने वाला सबेरा
नया जीवन
8 पाया है जहाँ
सुनहरा आसमां
कर्मो से सजा .
9 हरीतिमा की
भीनी चदरिया
सावन भादो
10 नयना प्यासे
प्रभु दरसन के
सुनो अरज
11 पाखी है मन
चंचल चितवन
नैना सलोने .
-शशि पुरवार
Saturday, October 6, 2012
मेरे सपनो का ताजमहल
मेरे ख्वाबों का
सुन्दर आशियाना
प्यार की रेशमी डोर
विश्वास का खजाना
सतरंगी सपनो से
आने वाले कल की
झालर बनाना
बचपन के पलों को
सहेज पिटारे में रख
पंछी बन उड़ जाना ,
आकांशाओ के वृक्ष पे
आशा का दीपक रखना
पूर्ण ,अपूर्ण अनुभूतियों की
एक ख्वाबगाह बनाना
दीवारों पे अपने नाम का
दुधियाँ रंग सार्थक कर
शशि की शीतलता
को जग में फैलाना।
अमावस की काली रात में
कलम से उकेरे शब्दों की
शीतल किरणों सा प्रकाश
दीप प्रज्वलित करना
जीवन की राहो में
पी का साथ निभाना।
कांटो को चुन ,उसकी
राहो में फूल बिछाना ,
नहीं कोई चाहत दिल में
बस मेरे जाने के बाद तुम
मेरे सपनो का ताजमहल
मत बनाना , खुश रहना
मुझे मेरी कलम में ही ढूंढ लेना
मै अविरल सी बहती हूँ मेरे
ख्वाबो के ताजमहल में
जब जी चाहे मेरे
सपनो की घाटियों में
एक फूल ले चले आना
सदा अमर रहूंगी
शब्दों के माध्यम से
जब जी चाहे चाहे
आकर मिल जाना .
--शशि पुरवार
सुन्दर आशियाना
प्यार की रेशमी डोर
विश्वास का खजाना
सतरंगी सपनो से
आने वाले कल की
झालर बनाना
बचपन के पलों को
सहेज पिटारे में रख
पंछी बन उड़ जाना ,
आकांशाओ के वृक्ष पे
आशा का दीपक रखना
पूर्ण ,अपूर्ण अनुभूतियों की
एक ख्वाबगाह बनाना
दीवारों पे अपने नाम का
दुधियाँ रंग सार्थक कर
शशि की शीतलता
को जग में फैलाना।
अमावस की काली रात में
कलम से उकेरे शब्दों की
शीतल किरणों सा प्रकाश
दीप प्रज्वलित करना
जीवन की राहो में
पी का साथ निभाना।
कांटो को चुन ,उसकी
राहो में फूल बिछाना ,
नहीं कोई चाहत दिल में
बस मेरे जाने के बाद तुम
मेरे सपनो का ताजमहल
मत बनाना , खुश रहना
मुझे मेरी कलम में ही ढूंढ लेना
मै अविरल सी बहती हूँ मेरे
ख्वाबो के ताजमहल में
जब जी चाहे मेरे
सपनो की घाटियों में
एक फूल ले चले आना
सदा अमर रहूंगी
शब्दों के माध्यम से
जब जी चाहे चाहे
आकर मिल जाना .
--शशि पुरवार
Thursday, October 4, 2012
माँ का अंगना प्यारा रे
माँ का अंगना प्यारा रे........
प्यारा सलोना
दुनियां में रखा जब पहला कदम
माँ के आँचल में
खिला बचपन
सपनो को लगे
सुनहरे पंख ........!,
गुरु बनके ज्ञान दे दिया रे
हुआ सफल जीवन,
माँ का आशीष प्यारा रे
प्यारा सलोना
जीवन की राहो में बढ़ते कदम
मुश्किल घडी में
डरता यह मन
कैसे लड़ेंगे
तुफानो से हम .........,
तपते मन को सहला दिया रे
बनके शीतल पवन ,
माँ का साथ लागे प्यारा रे
प्यारा सलोना
स्नेह वात्सल्य से भरा बंधन
शादी कर माँ ने
निभाया धरम
आँखों में मोती
छुपा के किया भ्रम ......... ,
कालजे पे पत्थर रख लिया रे
बेटी बने सुहागन
माँ का प्यार बड़ा न्यारा रे
प्यारा सलोना
पल पल माँ को ढूंढें नयन
माँ की छाया
कैसे बने हम
दिल में महकती
माँ की छुअन......... ,
पीहर की तड़प बढ़ा गयी रे
चली यादों की पवन
माँ का अंगना प्यारा रे
प्यारा सलोना .
3.10.12
--------- शशि पुरवार
माँ के आँचल में
खिला बचपन
सपनो को लगे
सुनहरे पंख ........!,
गुरु बनके ज्ञान दे दिया रे
हुआ सफल जीवन,
माँ का आशीष प्यारा रे
प्यारा सलोना
जीवन की राहो में बढ़ते कदम
मुश्किल घडी में
डरता यह मन
कैसे लड़ेंगे
तुफानो से हम .........,
तपते मन को सहला दिया रे
बनके शीतल पवन ,
माँ का साथ लागे प्यारा रे
प्यारा सलोना
स्नेह वात्सल्य से भरा बंधन
शादी कर माँ ने
निभाया धरम
आँखों में मोती
छुपा के किया भ्रम ......... ,
कालजे पे पत्थर रख लिया रे
बेटी बने सुहागन
माँ का प्यार बड़ा न्यारा रे
प्यारा सलोना
पल पल माँ को ढूंढें नयन
माँ की छाया
कैसे बने हम
दिल में महकती
माँ की छुअन......... ,
पीहर की तड़प बढ़ा गयी रे
चली यादों की पवन
माँ का अंगना प्यारा रे
प्यारा सलोना .
3.10.12
--------- शशि पुरवार
Wednesday, September 26, 2012
कैसा संहार .?
निति नियमो को
ताक पर रखकर
संरक्षक बना है भक्षक
ये कैसी हार
नोच लिए रूह के तार
भेड़िया बन खींची है खाल
थमा के मीठी गोली
खेली है खूनी होली
टूट गयी विश्वास की डोर
बिखरा है लहु चारो ओर
अपने जिय के टुकड़ों का
ये कैसा संहार
टूट रही लज्जा की गागर
फट रहा जिय का सागर
कैसे छुपाये नाजुक काया
पीछे पड़ा है एक साया
बीच बाजार बिकती साख
भेद रही गिद्ध की आंख
खतरा फैला है चहुँ और
सफेदपोश है निशाचर
ये कैसा आधार
निति नियमो को
ताक पे रखकर हुआ
ये कैसा व्यवहार.
---शशि पुरवार
Sunday, September 23, 2012
आँखों का धोखा
हाइकु
1 तरसे नैना
परदेश सजन
कैसे पुकारू
2 नैना प्यासे
प्रभु दरसन के
सुनो अरज .
3 आँखों की हया
लज्जा की चुनर
नारी गहना
4 मोह औ माया
अहंकार का पर्दा
आँखों का धोखा .
5 पाखी है मन
चंचल चितवन
नैना सलोने .
6
अधूरी प्यास
अजन्मी ख्वाहिशे
वक़्त है कम .
7
रीता ये मन
कोख का सूनापन
अतृप्त आत्मा .
8
अधूरापन
ज्ञान के खिले फूल
खिला पलाश .
9
अतृप्त मन
भटकता जीवन
ढूंढें किनारा .
10
नन्हे कदम
मोहिनी म्रदुहास्य
खिला अंगना .
11
अश्क आँखों के
सूख गए है जैसे
रीता झरना .
12
पीर तन की
अब सही न जाती
वृद्धा जीवन
13
आँखों में देखा
छलकता पैमाना
अहंकार का .
14
अंतरगित
सन्नाटे में बिखरी
तेज चीत्कार .
15
सुख के सब
होते है संगी- साथी
स्वार्थी जहान .
----शशि पुरवार
हाइकु
1 तरसे नैना
परदेश सजन
कैसे पुकारू
1 तरसे नैना
परदेश सजन
कैसे पुकारू
2 नैना प्यासे
5 पाखी है मन
चंचल चितवन
नैना सलोने .
6
अधूरी प्यास
अजन्मी ख्वाहिशे
वक़्त है कम .
7
रीता ये मन
कोख का सूनापन
अतृप्त आत्मा .
8
अधूरापन
ज्ञान के खिले फूल
खिला पलाश .
9
अतृप्त मन
भटकता जीवन
ढूंढें किनारा .
प्रभु दरसन के
सुनो अरज .
3 आँखों की हया
लज्जा की चुनर
नारी गहना
4 मोह औ माया
अहंकार का पर्दा
आँखों का धोखा .
सुनो अरज .
3 आँखों की हया
लज्जा की चुनर
नारी गहना
4 मोह औ माया
अहंकार का पर्दा
आँखों का धोखा .
5 पाखी है मन
चंचल चितवन
नैना सलोने .
अधूरी प्यास
अजन्मी ख्वाहिशे
वक़्त है कम .
7
रीता ये मन
कोख का सूनापन
अतृप्त आत्मा .
8
अधूरापन
ज्ञान के खिले फूल
खिला पलाश .
9
अतृप्त मन
भटकता जीवन
ढूंढें किनारा .
10
नन्हे कदम
मोहिनी म्रदुहास्य
खिला अंगना .
11
अश्क आँखों के
सूख गए है जैसे
रीता झरना .
12
पीर तन की
अब सही न जाती
वृद्धा जीवन
13
आँखों में देखा
छलकता पैमाना
अहंकार का .
14
अंतरगित
सन्नाटे में बिखरी
तेज चीत्कार .
15
सुख के सब
होते है संगी- साथी
स्वार्थी जहान .
----शशि पुरवार
नन्हे कदम
मोहिनी म्रदुहास्य
खिला अंगना .
11
अश्क आँखों के
सूख गए है जैसे
रीता झरना .
12
पीर तन की
अब सही न जाती
वृद्धा जीवन
13
आँखों में देखा
छलकता पैमाना
अहंकार का .
14
अंतरगित
सन्नाटे में बिखरी
तेज चीत्कार .
15
सुख के सब
होते है संगी- साथी
स्वार्थी जहान .
----शशि पुरवार
Tuesday, September 18, 2012
जाने कहाँ आ गए हम
जाने कहाँ आ गए हम
छोड़ी धरती
चूमा गगन .
आकांशाओ के वृक्ष पर
बारूदो का ढेर बनाया
तोड़े पहाड़ , कटाये वन
दूषित कर पवन ,रोग लगाया
सूखी हरीतिमा की छाँव
सिमटे खेत , गाँव
बना मशीनी इंसान
पत्थर की मूरत भगवान .
जग का बदला स्वरुप
नए उपकरण ,
मशीनी इंसान ,
रोबोट सीखे काम ,
नए नए आविष्कार
खूब फला कृत्रिम व्यापार
मशीनी होते काम
मानव चाहे पूर्ण आराम
माथे की मिट जाये शिकन .
भर बारूद , रोकेट
संग, उड़ चला अंतरिक
विधु पे पड़े कदम
मिला नया मुकाम ,
पर धुएं में मिले जहर से
कम होती ओजोन की छाँव
सौर मंडल पर भी
प्रदुषण के बढ़ते कदम
यह हार है या जीत
जब खतरा बन रही
जीवन पर , अविष्कारों
की बढती भीड़
न बच सकी धरणी
न छूटा गगन .
-------------शशि पुरवार
Saturday, September 15, 2012
मेहंदी लगे हाथ......!
मेहंदी लगे हाथ कर रहें हैं
पिया का इंतजार
सात फेरो संग माँगा है
उम्र भर का साथ.
यूँ मिलें फिर दो अजनबी
जैसे नदी के दो किनारो
का हुआ है संगम, फिर
बदल गयी हैं दिशाए
जीवन की मधुरम हवाए
और
बहने लगी एक जलधारा .
नाजुक होते हैं यह रिश्ते
कांच से कच्चे धागों से बंधी हुई
विश्वास की डोर, दिलो की प्रीत
,पर
कठिन हैं जीवन की
पथरीली राहों का सफर.
मजबूती के साथ चल रहे हैं हम
एक गाड़ी के दो पहिये; जिसे
तोड़ न सके कोई कंकर
प्रेम की इन गलियों में
उलफत कभी न होगी कम
बस इक खलिस है
ह्रदय में;
सनम
अंतिम ख्वाहिश मानकर
जिगर में मत रखना कोई रंज
पहले इस जहान से रुकसत होंगे
हम ,
इक सुहागन बन कर ही
निकले मेरा दम
खाली रह जाएँ ना हाथ
करतल पे लगा देना मेहंदी
चढ़ जाये पुनः प्रेम का रंग ; फिर
यह जन्म न मिलेगा बार बार .
----------- शशि पुरवार
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