१ पावन धरणी राम की, जिसपे सबको नाज घूम रहे पापी कई, भेष बदलकर आज भेष बदलकर आज, नार को छेड़ें सारे श्वेत रंग पोशाक, कर्म करते हैं कारे नाम भजो श्री राम, नाम है अति मनभावन होगा सकल निदान, राम की धरणी पावन २ मानव सारे लीन हैं, राम लला की लूट भक्ति भाव के प्रेम में, शबरी को भी छूट शबरी को भी छूट, बेर भी झूठे खाये दुःख का किया विनाश, हृदय में राम समाये रघुपति हैं आदर्श, भक्त हैं प्रभु को प्यारे राम कथा, गुणगान, करें ये मानव सारे ३ रघुपति जन्मे भूमि पे, खास ये त्यौहार राम कथा को फिर मिला, वेदों में विस्तार वेदों में विस्तार, राम की लीला न्यारी कहते वेद पुरान, नदी की महिमा भारी निर्गुण सगुन समान, प्रजा के प्यारे दलपति श्री हरि के अवतार, भूमि पर जन्मे रघुपति ४ सारे वैभव त्याग के, राम गए वनवास सीता माता ने कहा, देव धर्म ही ख़ास देव धर्म ही ख़ास, नहीं सीता सी नारी मिला राम का साथ, सिया तो जनक दुलारी कलयुग के तो राम, जनक को ठोकर मारे होवे धन का मान, अधर्मी हो गए सारे ५ आओ राजा राम फिर, दिल की यही पुकार आज देश में बढ़ गयी, लिंग भेद की मार लिंग भेद की मार, दिलों में रावण जागा कलयुग में तो आज, नार को कहे अभागा अनाचार की मार, राज्य फिर अपना लाओ रावण जाए हार, राम फिर वापिस आओ -- शशि पुरवार २२ अप्रैल २०१३ |
Sunday, May 5, 2013
पावन धरणी राम की ..........!
Monday, April 29, 2013
कह दो मन की बातें
1
छूटी सारी गलियाँ
बाबुल का अँगना
वो बाग़ों की कलियाँ ।छूटी सारी गलियाँ
बाबुल का अँगना
2
सारे थे दर्द सहे
तन- मन टूट गए
आँखों से पीर बहे ।
3
थी तपन भरी आँखें
मन भी मौन रहा
थी टूट रही साँसें ।
4
पीड़ा फिर क्यों भड़की ?
भाव सभी सोए
खोली दिल की खिड़की ।
5
क्या पाप किया मैंने !
गरल भरा प्याला
हर रोज़ पिया मैंने ।
शशि पुरवार
Friday, April 26, 2013
गेहू के जवारे ...............!
गेंहू -------
Wheat (disambiguation)
गेहूँ लोगो का मुख्य आहार है .खाद्य पदार्थों में गेहूँ का महत्वपूर्ण स्थान है , सभी प्रकार के अनाजो की अपेक्षा गेहूँ में पोष्टिक तत्व अधिक होते है और दैनिक आहार के सब प्रकार के अनाजों में गेहूँ श्रेष्ठ है , इसीलिए गेहूँ को " अनाजों का राजा " माना जाता है .
भारत में सर्वत्र गेहूँ का उत्पादन होता है , विशेषतः पंजाब ,गुजरात और उत्तरी भारत में गेहूँ पर्याप्त मात्रा में होता है , एवं उत्तरी भारत का सर्वमान्य आहार गेहूँ है
वर्षाऋतु में खरीब फसल के रूप में और सर्दी में रबी फसल के रूप में गेहूं बोया जाता है . सिचाई वाले रबी फसल के गेहूँ को अच्छे निथार वाली काली , पीली या बेसर रेतीली जमीन अधिक अनुकूल पड़ती है जबकि बिना सिचाई की वर्षा की फसल के लिए काली और नमी का संग्रह करने वाली चकनी जमीन अनुकूल होती है . सामान्यतः नरम काली जमीन गेहूँ की फसल के लिए अनुकूल होती है .
गेहूँ का पौधा डेढ़ -दो हाथ ऊँचा होता है .उसका तना पोला होता है एवं उस पर ऊमियाँ ( बालियाँ ) लगती है , जिसमे गेहूँ के दाने होते है . गेहूँ की हरी ऊमियों को सेंककर खाया जाता है और सिके हुए बालियों के दाने स्वादिष्ट होते है .
गेहूँ की अनेक किस्में होती है . कठोर गेहूँ और नरम गेहूँ मुख्य है , रंगभेद की दृष्टी गेहूँ के सफ़ेद और लाल दो प्रकार होते है .इसके उपरान्त बाजिया , पूसा , बंसी , पूनमिया , टुकड़ी , दाऊदखानी , जुनागढ़ी , शरबती , सोनारा ,कल्याण , सोना , सोनालिका , १४७ , लोकमान्य , चंदौसी ...आदि गेहूँ की अनेक प्रसिद्ध किस्में है .इन सभी में गुजरात में भाल -प्रदेश के कठोर गेहूँ और मध्य भारत में इंदौर - मालवा के के गेहूँ प्रशंसनीय है .
गेहूँ के आटे से रोटी , सेव , पाव रोटी , ब्रेड ,पूड़ी , केक , बिस्किट , बाटी , बाफला आदि अनेक बानगियाँ बनती है . उपरान्त गेहू के आटे से हलुआ , लपसी , मालपुआ , घेवर ,खाजे , जलेबी वगेरह पकवान भी बनते है .
गेहूँ के पकवानों में घी,शक्कर , गुड़ या शर्करा डाली जाती है .गेहूँ को ५ -६ दिन भिगोकर रखने के बाद उसके सत्व से बादामी पोष्टिक हलुआ बनाया जाता है , गेहूँ का दालिया भी पोष्टिक होता है और इसका उपयोग अशक्त बीमार लोगो को शक्ति प्रदान करने के लिए होता है , गेहूँ के सत्व से पापड़ और कचरिया भी बनायी जाती है .
गेहूँ में चरबी का अंश कम होता है अतः उसके आटे में घी या तेल का मोयन दिया जाता है , और उसकी रोटी चपाती , बाटी के साथ घी या मक्खन का उपयोग होता है .घी के साथ गेहू का आहार करने से वायु प्रकोप दूर होता है और बदहजमी नहीं होती . सामान्यतः गेहू का सेवन बारह मास किया जाता है .
गेहूँ से आटा , मैदा , रवा और थूली तैयार की जाती है . गेहूँ में मधुर , शीतल ,वायु और पित्त को दूर करने वाले गरिष्ठ , कफकारक , वीर्यवर्धक , बलदायक ,स्निग्ध , जीवनीय , पोष्टिक , व्रण के लिए हितकारी , रुचि उत्पन्न करने वाले और स्थिरता लाने वाले विशेष तत्व है .
---------------------------------गेहूँ के जवारे ----------------
आजकल हर्बल ट्रीटमेंट का बोलबाला है . हर जगह हर्बल चिकित्सा व सौन्दर्य उपचार के विज्ञापन देखने को मिलते है . आयुर्वेद से उत्पन्न गेहूँ रस चिकित्सा विधि भी एक ऐसा ही उपचार है जिसके द्वारा कोई भी व्यक्ति घर बैठे जी लाभ उठा सकता है .
गेहूँ के जवारे को आहार शास्त्री धरती की संजीवनी मानते है . यह वह अमृत है जिसमे अनेक पोषक तत्वों के साथ साथ रोग निवारक तत्व भी है . अनेक फल व सब्जियों के तत्वों का मिश्रण हमें सिर्फ गेहू के रस में ही मिल जाता है .
गेहूँ के रस में प्रचुर मात्रा में पोषक तत्व होते है तथा इनके सेवन से शरीर में शक्तिवर्धन होता है इसीलिए इसे हरा खून भी कहा जाता है . डा. विग्मोर ने कई रोगों में गेहूँ के जवारे के रस का सफल उपयोग किया है . उन्होंने कहा था कि गेहूँ के जवारों का रस एक सम्पूर्ण आहार है , केवल इसके रस का सेवन कर मनुष्य अपना पूरा जीवन व्यतीत कर सकता है , जवारे का रस केवल औषधि नहीं है बल्कि कायाकल्प करने वाला अमृत है . डा. विग्मोर के अनुसार अगर कुछ दिनों तक नियमित गेहूँ के रस का प्रयोग किया जाये तो असाध्य बीमारीओं से निजात पाई जा सकती है . जैसे ----
- गेहूँ रस का सेवन करने से कब्ज व्याधि दूर होती है , गैसीय विकार भी दूर होता है .
- गेहूँ रस का सेवन करने से रक्त का शुद्धीकरण भी होता है परिणामतः रक्त सम्बन्धी विकार जैसे फोड़े , फुंसी , चर्मरोग आदि भी दूर होता है . , फूटे हुए घावों व फोड़ो पर जवारे के रस की पट्टी बांधने से शीघ्र लाभ होता है .
- श्वसन तंत्र पर भी गेहू रस का अच्छा प्रभाव होता है सामान्य सर्दी खांसी तो जवारे के प्रयोग से ४-५ दिनों में ही मिट जाती है व दम जैसा अत्यंत दुस्साहस रोग भी नियंत्रित हो जाता है .
- गेहू के रस के सेवन से गुर्दों की क्रियाशीलता बढती है और पथरी भी गल जाती है .
- दांत व हड्डियों की मजबूती के कारगर है .
- गेहू के रस से नेत्र विकार दूर होते है और नेत्र ज्योति बढती है .
- गेहू के जवारे के रस का सेवन करने वालों को रक्तचाप व ह्रदय रोग नहीं होते है .
-पेट के कृमि को शरीर से बाहर निकल दिए जाने में यह एक सफल उपचार है .
-मासिक धर्म की अनियमितताए में भी जवारे का रस उपयोगी है और भी अनेक बीमारियां है जिनमे इस रस का प्रयोग उपयोगी सिद्ध हुआ है .
सावधानियां --------------!
जहाँ गेहू का रस हमारे लिए एक कारगर एवं सफल इलाज है वही इसके प्रयोग में कुछ सावधानियां बरतना अत्यंत आवश्यक है .जैसे ...........
-जवारे का रस हमेशा ताजा ही प्रयोग में लायें , इसे फ्रिज में रखकर कभी भी इस्तमाल न करें क्यूंकि तब वह तत्वहीन हो जाता है .
-जवारे का सेवन करने से आधा घंटा पहले व आधा घंटा बाद में कुछ न लें वैसे सेवन के लिए प्रातः काल का समय ही उत्तम है .
-रस को धीरे धीरे जायका लेते हुए पीना चाहिए न कि पानी की तरह गटागट करके .
-जब तक आप गेहू के जवारे का सेवन कर रहे हो उस अवधि में सदा व संतुलित भोजन करें , ज्यादा मसालेयुक्त भोजन से परहेज रखे .
-कभी कभी जवारे के रस का सेवन करते ही सर्दी या जुखाम हो जाता है या उलटी दस्त या बुखार आ जाता है मगर इसमें घबराने कि कोई बात नहीं है १ या २ दिन में ही शरीर स्थित सब विकार विसर्जित हो जाते है और व्यक्ति पुनः सामान्य हो जाता है
. इस अवधि में रस का प्रयोग कम करें या पानी मिलकर करें परन्तु बंद न करें , शरीर शुद्ध हो जाने पर इस तरह की परेशानी की रोकथाम हो जाती है .
- यदि आप जवारे के रस बनाने की झंझट से बचना चाहते है तो गेहूं के पौधे का सीधे सेवन भी किया जा सकता है .
गेहूं के पौधे प्राप्त करना अत्यंत आसान है ,अपने घर में ८ -१० गमले अच्छी मिटटी से भर ले इन गमलों को ऐसे स्थान पर रखें जहाँ पर सूर्य का प्रकाश तो रहे पर धूप न पड़े ,साथ ही वह स्थान हवादार भी हो , यदि जगह है तो क्यारी भी बना सकते है .
सबसे पहले न. १ गमले में उत्तम प्रकार के चंद गेहूं के दमे बो दे इसी तरह दूसरे दिन न . २ गमले में , फिर न . ३ गमले में ...आदि . यदा कदा पानी के छीटें भी गमले में मारते रहें जिससे नमी बनी रहे , आठ दिन में दाने अंकुरित होकर ८-१० इंच लम्बे हो जाते है बस उन्हें नीचे से काटकर ( जड़ के पास से ) पानी से धोकर रस बना लें , मिक्सी में भी रस बना सकते है .उसे मिक्सी में पीसकर छानकर रोगी को पिला दे . खाली गमले में पुनः गेहूं के दाने बो दे इस तरह रस को सुबह शाम लिया जा सकता है परन्तु हर शरीर कि अपनी एक तासीर होती है इसीलिए एक बार अपने डाक्टर से सलाह जरूर ले . वैसे इससे कुछ नुकसान तो नहीं है फिर भी सलाह लेना हितकर होता है .
----------------------शशि पुरवार
उम्मीद है दोस्तों आपको पसंद आया होगा , यह अनुभूति अंतरजाल पत्रिका और पत्र पत्रिकाओ में प्रकाशित हो चुका है , आज सोचा ब्लॉग पर कुछ हट कर पोस्ट करू ...आपके अनमोल विचारो से जरूर अवगत कराये।
Wednesday, April 24, 2013
अनुबंध है यह प्रेम का .......शाश्वत
रूह में बसा है एक
शबनमी एःसास
शब्दों से परे,
झिझकती साँसे
कुछ सकुचाई सी
और अधर पर लगे है
लज्जा के ताले!
पलके झुकी झुकी
मुस्काती सी
एक लचीली डाल !
और
बह रहे है सपने
मन के प्रांजल में
पर
न कोई वादा ,न कसमे
बस हाथो को थाम
उँगलियों ने कह दिए
सात वचन!
अनुबंध है यह प्रेम का
अनुरक्त रहे
विश्वास के बीज से!
रिश्ते खेलते है सदैव
दिल और दिमाग
के पत्तो से ,पर
खिलखिलाता है
जीवन का बसंत !
मिलन है यह
आत्मा से आत्मा का
शाश्वत प्रेम का,
सत्य वचन ,बंधन
जन्मो जन्मो का ....!
24.04.13
--------- शशि पुरवार
Monday, April 22, 2013
हर मछली को लील रहा
शांत जल में आया है
कैसा यह भूचाल
हर मछली को लील रहा
जल का नाग आज.
विषधारी हो गये है
मगरमच्छ सारे
शैवालो पर बैठकर
शिकारी डेरा डारे
फँस गयी यहाँ जलपरी
धँस गई आवाज
शांत जल में आया ...!
फूल गया है सेमर
हुआ लाल पानी
दैत्यों की कहानी तो
कहती थी नानी
बढ़ गयी है पशुता
मेंढक धरे ताज
शांत जल में आया ...!
उथला हो गया है
तंत्र का आँगन
अब फना हो रहा है
कँवल का जीवन
तड़प रहे है जलचर
न्याय मांगे आज
शांत जल में आया ...
21-04-13
------शशि पुरवार
सेमर -- दलदल ,
तंत्र -- प्रणाली , स्वत्रन्त्र तत्वों का समूह ,
पशुता -- हैवानियत ,दरिंदगी ,
कँवल -कमल
Saturday, April 20, 2013
रिश्ते .........
रिश्ते
तांका --
1
दोस्ती के रिश्ते
पावन औ पवित्र
हीरे मोती से
महकते गुलाब
जीवन के पथ पर .
2
दो अजनबी
जीवन के मोड़ पे
कुछ यूँ मिले
सात फेरो में बंधा
जन्मों जन्मों का रिश्ता .
3
चाँद सितारे
उतरे हैं अंगना
स्नेहिल रिश्ता
ममता का बिछोना
आशीष रुपी झरे
नेह हरसिंगार .
4
ये कैसे रिश्ते
नापाक इरादों से
आतंक मारे
सिमटते जज्बात
बिखरते हैं ख्वाब .
5
नाजुक रिश्ते
कांच से ज्यादा कच्चे
पारदर्शिता
विश्वास की दीवारे
प्रेम का है आइना .
-------शशि पुरवार
Wednesday, April 17, 2013
तन्हाई में सिमटी रात ........!
1 सर्द हुआ मौसम
तन्हाई में
सिमटी रात
कोई तो जलाओ
अब अलाव .
2
रुत बदले
मौसम ने ली
अंगडाई
शीत लहर से
खामोशी भी
घबराई .
3
चाँदी के कण
जो उतरे धरा पे
बिछी चाँदनी
लहू को जमा दे
कैसे निभाए फर्ज .
4
पीर धरा की
सही न जाये
तपता रेगिस्तान
अब सर्द मौसम
मलहम लगाये .
5
बन जाऊं में
शीतल पवन
जो तपन मिटाऊं
बहती जलधारा
प्यास बुझाऊं .
6
सर्द मौसम में
सिकुड़ जाती है यादें
जम जाता है लहू
बिखरी बाते .
7
सर्द मौसम में
सिमटता धरा का
अंग ,
बर्फ का कण
पिघलता है
रिश्तों की
तपिश में
8
सर्द मौसम
गरीब मांगे बस
दो गज का कपडा
प्यार के दो बोल बस .
9
कितनी प्यारी राते
चाँद तारो के संग
बचपन की प्यारी बाते
बीते पलछिन .
10
रचाओ हाथ अब
अब मेंहंदी
हार बिंदी कंगना
सजन पधारे अंगना .
कितनी करायी मनुहार
फिर दिखा के ठसक
साजन चले ससुराल .
11
झरते श्वेत कण
ढक रहे थे
पेड़ रस्ते
और साथ में
जम रहे थे
रिश्तो में
जज्बात .
12
दूर तलक
खाली पड़े थे
रस्ते ,
ठिठुरती
सर्द रात में
सड़क किनारे
कोई सिमटा फटी
कामरी में .
13
जम गए थे रिश्ते
बर्फ की तरह
बहता है लहु
अब आँखों में .
14
बर्फीली वादियों में
सन्नाटे को चीरती
ख़ामोशी में
चहलकदमी करती
देश की खातिर
अकेली जान .
---------शशि पुरवार
Monday, April 15, 2013
राहे चलती
1
शीत काल में
केसर औ चन्दन
काया दमके .
2
अलसाये से
तृण औ लतिकाए
चाँदी चमकी .
3
सर्दी है आई
गुड की चिक्की भाई
अलाव जले .
4
हिम से जमे
ह्रदय के जज्बात
मै को से कहूं .
5
श्वेत रजाई
धरा को खूब भाई
कण दमके .
6
सर्द मौसम
सुलगती है पीर
नीर न बहे .
7
तन्हा सड़क
कंपकपाती राते
चाँदनी हँसे .
8
खोल खिड़की
आई शीत लहर
भानु भी डरा .
9
थकित मन
दूर बैठी मंजिल
राहे चलती .
----शशि पुरवार
--------------------------------------------------------------------
तांका --
1 .
झरते कण
अब ढँक रहे थे
वृक्ष औ रास्ते
हम तुम भी साथ
जम गए जज्बात .
2
सर्द मौसम
सुनसान थे रास्ते
और किनारे
कोई सिमट रहा
था, फटी कामरी में .
3
भाजी बहार
टमाटर लाल औ
गाजर संग
सूप की भरमार
लाल हुए है गाल .
4
मटर कहे
मेरी है बादशाही
गाजर बोली
सूप हलुआ लायी
सब्जियों की लड़ाई .
5
जमती साँसे
चुभती है पवन
फर्ज प्रथम
जवानों की गश्त के
बर्फीले है कदम .
शशि पुरवार
शीत काल में
केसर औ चन्दन
काया दमके .
2
अलसाये से
तृण औ लतिकाए
चाँदी चमकी .
3
सर्दी है आई
गुड की चिक्की भाई
अलाव जले .
4
हिम से जमे
ह्रदय के जज्बात
मै को से कहूं .
5
श्वेत रजाई
धरा को खूब भाई
कण दमके .
6
सर्द मौसम
सुलगती है पीर
नीर न बहे .
7
तन्हा सड़क
कंपकपाती राते
चाँदनी हँसे .
8
खोल खिड़की
आई शीत लहर
भानु भी डरा .
9
थकित मन
दूर बैठी मंजिल
राहे चलती .
----शशि पुरवार
तांका --
1 .
झरते कण
अब ढँक रहे थे
वृक्ष औ रास्ते
हम तुम भी साथ
जम गए जज्बात .
2
सर्द मौसम
सुनसान थे रास्ते
और किनारे
कोई सिमट रहा
था, फटी कामरी में .
3
भाजी बहार
टमाटर लाल औ
गाजर संग
सूप की भरमार
लाल हुए है गाल .
4
मटर कहे
मेरी है बादशाही
गाजर बोली
सूप हलुआ लायी
सब्जियों की लड़ाई .
5
जमती साँसे
चुभती है पवन
फर्ज प्रथम
जवानों की गश्त के
बर्फीले है कदम .
शशि पुरवार
Tuesday, April 9, 2013
वीणा के स्वर ..
1
वीणा के स्वर
तबले की संगत
मधुर तान .
2स्वर लहरी
जीवन की प्रेरणा
बजी है वीणा .
3स्वर संगीत
तन मन भी झूमे
पीर भी भूले .
4
वाद्य यंत्र से
बिखरा है संगीत
मनमोहक
5
सुर संगम
खिला मन प्रांगन
जीवन मीत.
6
नर्म स्पर्श
ममता का आँचल
शिशु मुस्काए
7
माँ से मायका
पिता जग दर्शन
मार्गदर्शन
8
कभी न भूले
वह स्नेहिल स्पर्श
ननिहाल का .
--------शशि पुरवार
वीणा के स्वर
तबले की संगत
मधुर तान .
2स्वर लहरी
जीवन की प्रेरणा
बजी है वीणा .
3स्वर संगीत
तन मन भी झूमे
पीर भी भूले .
4
वाद्य यंत्र से
बिखरा है संगीत
मनमोहक
5
सुर संगम
खिला मन प्रांगन
जीवन मीत.
6
नर्म स्पर्श
ममता का आँचल
शिशु मुस्काए
7
माँ से मायका
पिता जग दर्शन
मार्गदर्शन
8
कभी न भूले
वह स्नेहिल स्पर्श
ननिहाल का .
--------शशि पुरवार
Saturday, April 6, 2013
सिमटती जाये गंगा .........
दोहे ---
गंगा जमुना भारती ,सर्व गुणों की खान
मैला करते नीर को ,ये पापी इंसान .
सिमट रही गंगा नदी ,अस्तित्व का सवाल
कूड़े करकट से हुआ ,जल जीवन बेहाल .
गंगा को पावन करे , प्रथम यही अभियान
जीवन जल निर्मल बहे ,सदा करें सम्मान .
कुण्डलियाँ -----
गंगा जमुना भारती ,सर्व गुणों की खान
मैला करते नीर को ,ये पापी इंसान
ये पापी इंसान ,नदी में कचरा डारे
धर्म कर्म के नाम, नीर ही सबको तारे
मिले गलत परिणाम,प्रकृति से करके पंगा
सूख रहे खलियान ,सिमटती जाए गंगा .
-- शशि पुरवार
Thursday, April 4, 2013
कलम जरा टेक लगाओ .........
कवि ह्रदय में बजते है
जज्बातों के चंग
कलम जरा टेक लगाओ .
पल पल बदले नयनो का
सतरंगी बसंत
भावों का पंछी बहके
जन्में पद अनंत,
मन बावरा फिर कहे
खूब सुरीले छंद
कलम जरा टेक लगाओ।
कहीं बबूल कहीं फूल
की छन रही है भंग
अरहर सरसों पी रहे
कलियाँ भी है संग
भौरें नाचे बाग़ में
मच गयी हुरदंग
कलम जरा टेक लगाओ।
पूनो का चाँद खिला,करें
तारो से बतियाँ
अमा का नाग डसे, तो
छिटक जाए सखियाँ
तन्हाई की बेला में
शब्द बजाते मृदंग
कलम जरा टेक लगाओ।
टेसू से दहक रहा वन
उदासी भी लुढके
शाखों पर अमराई
मुस्काए छुप छुपके
बार बार नहीं दिखाता
मौसम अपने रंग
कलम जरा टेक लगाओ।
3/04/13
-----शशि पुरवार
Monday, April 1, 2013
Wednesday, March 27, 2013
रंगों की सौगात ले आई है होली .....!
गीत ---
रंगों की सौगात ले,
आई है होली
हर डाली पर खिल उठे
शोख टेसू लाल
प्रेम पुरवा से हुए
सुर्ख-सुर्ख गाल
मैना से तोता करे
प्रेम की बोली.
झूमते हर बाग में
इंद्र्धनुषी फूल
रँग बसंती की उडी
आसमाँ तक धूल
घूमती मस्तानों की
हर गली टोली
बिखरी निर्जन वन में भी
रंगो की घटा
हरिक दिल में बस गई
फागुनी छटा
दूर है रँग भेद से
रंगों की बोली .
आई है होली.........!
13.03.13
--------------------------------------------------------------
हाइकू ---
1
सपने पाखी
इन्द्रधनुषी रंग
होरी के संग
2
रंग अबीर
फिजा में लहराते
प्रेम के रंग
3
सपने हँसे
उड़ चले गगन
बासंती रंग
4
दहके टेसू
बौराई अमराई
फागुन डोले
5
अनुरक्त मन
गीत फागुनी गाये
रंगों की धुन .
23.03.13 -
---------------------------------------------------------------
1हवा उडाती
अमराई की जुल्फे
टेसू हुए आवारा
हिय का पंछी
उड़ने को बेताब
रंगों का समां प्यारा .
2
डोले मनवा
ये पागल जियरा
गीत गाये बसंती
हर डाली पे
खिल गए पलाश
भीगी ऋतू सुगंधी .
3
झूमे बगिया
दहके है पलाश
भौरों को ललचाये
कोयल कूके
कुंज गलियन में
पाहुन क्यूँ न आये .
4
झूम रहे है
हर गुलशन में
नए नवेले फूल
हँस रही है
डोलती पुरवाई
रंगों की उड़े धूल .
5
लचकी डाल
यह कैसा कमाल
मधुऋतू है आई
सुर्ख पलाश
मदमाए फागुन
कैरी खूब मुस्काई .
6
जोश औ जश्न
मन में है उमंग
गीत होरी के गाओ
भूलो मलाल
उमंगो का त्यौहार
झूमो जश्न मनाओ .
24.03.13
शशि पुरवार
-----------------------------------------------
आया होली का त्यौहार
सब मिलकर करे धमाल .
मिल जुल कर जश्न मनाये
स्नेह के भजिये ,
तल कर खाए
रंगों से आँगन नहलाये
हुए मुखड़े पीले लाल .
आया होली का त्यौहार .
स्नेही सभी संगी साथी
दूर देश की है पाती
सभी को जोड़ते
दिल के तार ,
सभी पर करो रंगों की बौझार
आया होली का त्यौहार .
बुरा न मानो होली है ,
भंग में पगी ठिठोली है
नहीं तो ,भैया
पड़ जाएगी मार ,
सब मिलकर करे धमाल .
अरे ..... आया होली का त्यौहार
-----शशि पुरवार
22.03.13
ब्लॊगर के पुरे परिवार को और सभी मित्रो ,सखीओं को होली ही हार्दिक शुभकामनाए , यह पल सभी के जीवन में खुशियों के पल लाये . शशि पुरवार
अनुभूति के होली विशेषांक में प्रकाशित होली दोहे इस लिंक पर पढ़िए ,
------------- शशि पुरवार
Sunday, March 24, 2013
अनछुए से रंग
रंगों का त्यौहार
लागे
सबको प्यारा
कहीं रंग कहीं बेरंग
यह कैसा इशारा .
अनछुए से चले गए
रंग जीवन से
जब
मांग में सोई गमी।
हरी मेंहदी
करतल पर दहने लगी ,
फिर
खनकती हंसी
काल कोठरी में पली
और
विरह की आग से खेलते
शृंगारो की खूब होली जली ।
हिय के दलदल में
दफ़न हो गए
हरे पीले लाल रंग ,
श्वेत रंग वन में जगे,
रंगों का कोई दोष नहीं
दिलकश होते है रंग
क्या लिखा है नियति ने ?
किसे दोष दे ....... ?
हर बार की तरह
मौसम
तो बदलेंगे
वृक्ष तो छाया ही देंगे
पर
सूखें वनों को चाहिए
सिर्फ
प्रेम की फुहार।.
फागुन तो
आता है हर साल
भर
स्नेह की पिचकारी
लगाओ गुलाल।
15.03.13
-- शशि पुरवार
Monday, March 18, 2013
क्षणिकाएँ
1कर्म का पथ
प्रथम है प्रयास
नींद के बाद .
जख्मी है वृक्ष
रीत गए झरने
अम्बर रोए .
बासंती गीत
प्रकृति ने पहनी
धानी चुनर .
छोटी कविता
--- शशि पुरवार
प्रथम है प्रयास
नींद के बाद .
जख्मी है वृक्ष
रीत गए झरने
अम्बर रोए .
बासंती गीत
प्रकृति ने पहनी
धानी चुनर .
श्वेत धवल
बसंती सा नाजुक
हरसिंगार .
शिउली सौन्दर्य
लतिका पे है खिला
गुच्छो मे लदा.
हरसिंगार
ईश्वरीय सृजन
श्वेत कमल .
श्वेत चांदनी
धरा की चुनरिया
झरे प्राजक्त .
-------------
छोटी कविता
१ सजा बंधनवार
ढोलक की थाप
झनक उठी पैजनिया
गूंज उठी शहनाई
स्नेहिल अंगना ,
सजी है डोली
कन्यादान का अवसर
झर झर झरे आशीष
और नैनो से झरे
हरसिंगार .
२ बहाओ पसीना
उठा लो मशाल
राहों मे बिछे कांटे
जाना है पार
भोर का न करो,
इन्तजार
खिलेंगे फूल तो
यह जीवन हरसिंगार .
३ न छोड़ो हिम्मत
जज्बा हो बुलंद
गहरे गर्त मे भी
झरने सा छन्द
कर्म विलक्षण ,तो
महके सुवास
जैसे हरसिंगार .
--- शशि पुरवार Thursday, February 14, 2013
स्नेह बंधन
1 स्नेहिल रिश्ता
ममता का बिछोना
माँ का शिशु से .
2
स्नेह बंधन
फूलो से महकते
हरसिंगार
3
झलकता है
नजरो से पैमाना
वात्सल्य भरा
4
दिल की बातें
दिल ही तो जाने है
शब्दों से परे .
5
प्रेम कलश
समर्पण से भरा
अमर भाव .
6
खामोश शब्द
नयन करे बातें
नाजुक डोर .
7
अनुभूति है
प्रेममई संसार
अभिव्यक्ति की .
8
बंद पन्नो में
ह्रदय के जज्बात
सूखते फूल .
9
दिल की पीर
बहती नयनो से
हुई विदाई .
10
जन्मो जन्मो का
सात फेरो के संग
अटूट नाता .
11
आग का स्त्रोत
विरह का सागर
प्रेम अगन .
12
खामोश साथ
अवनि - अम्बर का
प्रेम मिलन .
----------शशि पुरवार
Monday, February 11, 2013
सीली सी यादें .....!
सुलग रहे थे ख्वाब
वक़्त की
दहलीज पर
और
लम्हा लम्हा
बीत रहा था पल
काले धुएं के
बादल में।
सीली सी यादें
नदी बन बह गयी ,
छोड़ गयी
दरख्तों को
राह में
निपट अकेला।
फिर
कभी तो चलेगी
पुरवाई
बजेगा
निर्झर संगीत
इसी चाहत में
बीत जाती है सदियाँ
और
रह जाते है निशान
अतीत के पन्नो में।
क्यूँ
सिमटे हुए पल
मचलते है
जीवंत होने की
चाह में।
न कोई ठोर
न ठिकाना
न तारतम्य
आने वाले कल से।
फिर भी
दबी है चिंगारी
बुझी हुई राख में।
अंततः
बदल जाते है
आवरण,
पर
नहीं बदलते
कर्मठ ख्वाब,
कभी तो होगा
जीर्ण युग का अंत
और एक
नया आगाज।
------ शशि पुरवार
Tuesday, January 15, 2013
खूनी पंजे की लगी छाप
आतंकी तारीखे बनी
अमावस की काली रात
कैद हुए मंजर आँखों में
और गोलियों की बरसात
चीत्कार उठा था ब्रम्हांड
तारे अब भी सुलग रहे.
अमावस की काली रात
कैद हुए मंजर आँखों में
और गोलियों की बरसात
चीत्कार उठा था ब्रम्हांड
तारे अब भी सुलग रहे.
ताबूत बने थे वे दिन ,
जब सोई मानवता की लाश
उफन रही थी बर्बरता
उजड़ रही थी साँस
देखो घर के भेदी ,अपने
ही घर को निगल रहे.
जब सोई मानवता की लाश
उफन रही थी बर्बरता
उजड़ रही थी साँस
देखो घर के भेदी ,अपने
ही घर को निगल रहे.
उत्तरकाल के गुलशन की
नवपल्लव ने जगाई आशा
दिन ,महीने हो गुलजार
ह्रदय की यही अभिलाषा
युवा क्रांति के दृढ़ कदम, अब
दर्पण जग का बदल रहे .
नवपल्लव ने जगाई आशा
दिन ,महीने हो गुलजार
ह्रदय की यही अभिलाषा
युवा क्रांति के दृढ़ कदम, अब
दर्पण जग का बदल रहे .
नूतन वर्ष पर दीवारों के
पंचांग अब बदल रहे .
शशि पुरवार पंचांग अब बदल रहे .
Friday, December 21, 2012
ताल का जल
बढ़ रहा शैवाल बन
व्यापार काला
ताल का जल
आँखें मूंदे सो रहा
रक्त रंजित हो गए
सम्बन्ध सारे
फिर लहू जमने लगा है
आत्मा पर
सत्य का सूरज
कहीं गुम गया है
झोपडी में बैठ
जीवन रो रहा
हो गए ध्वंसित यहाँ के
तंतु सारे
जिस्म पर ढाँचा कोई
खिरने लगा है
चाँद लज्जा का
कहीं गुम हो गया
मान भी सम्मान
अपना खो रहा .
-- शशि पुरवार
Monday, December 10, 2012
एक सवाल - विकृत दर्पण समाज का .......... ? बाल शोषण
1 -- लघुकथा --- ख्वाब
रोज छोटू को सामने वाली दूकान पर काम करते हुए देखती थी , रोज ऑफिस में चाय देने आता था , हँसता , बोलता पर आँखों में कुछ ख्वाब से तैरते थे .एक दिन मैंने उससे कहा
" छोटू पढने नहीं जाते "
"नहीं दीदी समय नहीं मिलता "
"क्यूँ घर में कौन कौन है "
"माँ ,बापू बड़ी बहन ,छोटी बहन "
"तो सब क्या करते है "
"सभी काम करते है "
"तुम्हे पढना नहीं अच्छा लगता ?"
वह चुप हो गया ,और नीहिर भाव आँखों में था ,धीरे से बोला ---
" हाँ बहुत मन करता है पढूं , अच्छे अच्छे कपडे पहनू , स्कूल जाऊ और मै भी एक दिन ऐसे ही नौकरी कर बड़ा इंसान बनू , पर इतने पैसे नहीं है ,जो मिलता है सब मिलकर उससे खाना ले कर आते है ,".........काश में भी बड़े घर में जन्म लेता .......
शब्द खामोश हो गए और नयन सजल ,यह सजा भगवान् ने नहीं दी , इंसानों ने ही तो अमीर गरीब बनाये है ,स्वप्न तो सभी की आँखों में एक जैसे ही आते है .
------------------------------
2 लघुकथा --- दोहरा व्यक्तित्व
स्कूल की अध्यापिका ने बाल शोषण के खिलाफ बहुत कुछ भाषण में कहा , कि बाल श्रम अपराध है , बाल शोषण नहीं करना चाहिए , सबको इसके खिलाफ मिलकर आवाज उठानी चाहिए .वगैरह ,....!
उनकी बातो से सभी बहुत प्रभावित हुए , सभी बच्चो के माता पिता ने भी बहुत प्रसन्नता व्यक्त करी कि हमारे बच्चे कितने अच्छे स्कूल में पढ़ते है .मै उन अध्यापिका से परिचित थी ,बहुत सौम्य स्वाभाव की थी ,हर कोई प्रभावित हो जाता था उनसे , एक दिन किसी कार्यवश एक परिचित के साथ उनके घर जाने का मौका मिला , वह अविवाहित थी और अकेले रहती थी , जब हम पहुचे कोई 10 वर्ष की लड़की ने दरवाजा खोला , ठीक ठाक कपड़ो में थी वह लड़की , तो वह कोई सदस्य तो नहीं लग रही थी परिवार की ,हम बैठे तो तो उन महोदया ने आवाज दी ---
"रानी पानी लेकर आओ और काम हो गया हो तो घर चली जाओ "
" जी मैडम , हो गया "
हम आश्चर्य से देखते रह गए उन्हें , मुझसे रहा नहीं गया मैंने पूछ ही लिया
"क्या यह आपके यहाँ काम करती है ?"
"अरे नहीं , वह तो मै इसे पढ़ा देती हूँ , स्कूल की फ़ीस भी भरती हूँ इसकी , कपडे खाना सभी करती हूँ वक़्त आने पर , अब इतना कुछ करती हूँ , तो थोडा घर का काम करा लेने से क्या फर्क पड़ेगा ,आखिर पैसे देती हूँ . इसके माँ -बाप गरीब है , बर्तन का ही काम करते है , वह तो अच्छा है कि यह मेरे पास है तो इसका भला हो गया ,अब यही रहती है मेरे पास , ख़ुशी से ही करती है यह सब ,वैसे भी तो काम क्या होता है हम दोनों का ....!
मै चकित थी इस दोहरे व्यक्तिव से , एक तरफ बाल श्रम के लिए उनके विचार एवं दूसरी तरफ ऐसा कार्य , क्या समझे इसे ....दोहरा व्यक्तिव जो आम है आजकल ?
------------------------------
3 लघु कथा --- शोषण
आज आरती के घर में बहुत चहल पहल थी ,9 साल की आरती और 11 प्रकाश साल का कजिन दोनों अपने नाना के घर पर थे , आज मेहमान भी घर पर आये थे , माँ , नानी ,व परिवार के अन्य सदस्य रिश्तेदारों में व्यस्त थे , बच्चे उधम मचा रहे थे , एक दूर का रिश्तेदार उम्र 24 होगी वह भी था और बीच बीच में बच्चो के साथ भी खेल लेता था . इतनी चहलपहल थी कि ठहाको की आवाजे ही बाहर आती थी . एक दिन सभी आराम कर रहे थे ,बच्चे छत पर खेल रहे थे , आरती वैसे ही खेल रही थी और प्रकाश पतंग उड़ा रहा था ,अपने दोस्त के साथ . थोड़ी देर में वह लड़का जिसे मामा कह रहे थे बच्चे ,छत पर आया और बच्चो के साथ खेलने लगा , फिर खेलते खेलते आरती से बोला ---
"चलो हम थोड़ी देर बैठते है और चाकलेट खाते है इनको पतग उड़ाने दो , "
" नहीं मामा यही पर खेलना है , मुझे नहीं बैठना "
" अब यह तो नहीं खेल रहे है फिर ....." बात काट कर आरती बोली --
" नहीं मुझे कहीं नहीं जाना , मै यही खेलूंगी "
"ओह हो....... तो खेलना है तुम्हे ,चलो हम कुछ और खेलेंगे "
" सच्ची में ......"
"हाँ , चलो वहां छत के कोने में ,अब प्रकाश तुम्हे पतंग नहीं दे रहा है तो , हम भी उसे नहीं खिलाएंगे "
" ठीक है मामा ,हम क्या खेलेंगे ?
" आओ मै बताता हूँ , पर किसी से कुछ नहीं कहना , नहीं तो सब मारेंगे तुम्हे और मै फिर नहीं खेलूंगा ,
" जैसा मै कहता हूँ वैसा ही करो ....."
और छत पर उस तथाकथित मामा ने जो खेल खेला वह आरती समझ ही नहीं सकी ,और दर्द ,डर से पीड़ित हो गयी , और मामा ने कहा --
" अरे डरो मत सब ठीक हो जायेगा , पर किसी से कुछ कहना नहीं ." धीरे से धमकी .
आज रिश्तो का खून हो चूका था , कैसे अपनों पर भी विश्वास किया जाये ,आज रिश्ते नाते भी कठघरे में है ,जो अपनी गन्दी विकृत मानसिकता के चलते मासूम बचपन के मन व जीवन और रिश्तो पर काले घाव के निशाँ अंकित कर देते है .
----- शशि पुरवार
------------------------------
4 कथा ------ स्वाहा
रामू चाय की दुकान पर काम करता था पढने का बहुत शोक था दिन में काम करता और रात के समय पढता था , पिता ने उसे काम करने के लिए कहा था ,वह कहते थे की पढने से पैसे नहीं मिलते ,पर झुग्गी छोपडी में एक स्कूल था जो मुफ्त शिक्षा देता था ,तो रामू की लगन से वहां उसे दाखिला मिल गया था ,सिर्फ परीक्षा के समय पैसे भरने होते थे फॉर्म के ,तो रामू के पिता ने उसे कह दिया
" ठीक है देखेंगे.......... "
हर महीने की पगार वह आजकर रामू के सेठ से ले जाते थे .आज कप धोते धोते रामू को याद आया कि कल स्कूल में कहा गया है कि अगर आज रूपये नहीं भरे तो परीक्षा नहीं दे सकते . उसने सेठ से कहा
काका जल्दी से आता हूँ घर से .........वह घर की तरफ भागा ,और अपने पिता से बोला --
" बाबा फ़ीस भरनी है आज ,"
" पैसे नहीं है मेरे पास ............. पता नहीं सा पहाड़ मिल जायेगा पढ़ कर .."कड़कती आवाज में जबाब आया ,फिर वह सड़क पर निकल गए .
रामू को कुछ समझ नहीं आया ,आँखों में आंसू आ गए , सोचा रात को अम्मा से कहूँगा ,नहीं तो स्कूल वाले भगा देंगे स्कूल से ,
रात को जब अम्मा घर आई वह कुछ कह पाता उससे पहले पिता शराब की बोतल पीते हुए लडखडाते ,गन्दी गलियां देते हुए घर में घुसे , आज सन्नाटा सा छा गया झोपड़ी में .........आज खाने में लात घुसे ही मिले , निरीह आँखे तक रही थी अँधेरे को , एक खामोश चीत्कार थी रामू के मन में .आशाएं , इक्छाएं धू धू कर जल रही थी . शराब में सब कुछ स्वाहा हो गया .
------- शशि पुरवार
------------------------------
बाल शोषण ----- एक नजर
बाल शोषण यह एक ऐसी समस्या है जिसका निदान ही नहीं निकल रहा, अक्सर इसके बारे में हम समाचार पत्रों में पढ़ते रहते है, यह शोषण समाज में बुरी तरफ मकडजाल की तरह फैला हुआ है. बाल शोषण सिर्फ काम करवाने से ही नहीं होता अपितु शारीरिक , मानसिक शोषण भी जघन्य अपराध है एवं शोषण की श्रेणी में ही आता है। इसे आप दबे रूप में कहीं न कहीं देख ही सकते है। गरीब माँ बाप तो इस महंगाई की मार से परेशान होकर अपने बच्चो को काम पर लगा देते है. निम्न वर्ग को सरकार जो रूपये देती है वह भी उन बच्चो पर खर्च न होकर उनकी जेबों में ही जाता है. निम्न वर्ग अपने बच्चो को भीख मांगने के लिए गलियों ,चौराहे या मंदिर के बार खड़ा कर देते है.नहीं तो सर्कस या करतब दिखाकर पैसे का कमाने का कार्य सौंप देते है . एक बार जब मुझे कार्य वश होलसेल बाजार में जाने का काम पड़ा, चौराहे पर चाट का एक ठेला खड़ा था और थोड़ी दूर पर 5, 6 -8 -10 साल के 6-7 बच्चे बैठे थे. करीब 22 साल का एक लड़का कुछ दूरी पर बैठ कर सब पर नजर रखे हुए था . 2 -2 बच्चे आगे एक गन्दी सी छोटी चादर पर बारी बारी आकर बैठते। एक बाजा बजाता तो दूसरा करतब दिखाता। जब 5-6 साल के बच्चो ने आँखों से सुई उठाई, बांस पर चले , शरीर को तोड़ मोड़ कर प्रस्तुत किया तो वहां ठेले पर खड़े कुछ लोगो ने 1 -1 रूपए डाल दिए ,परन्तु किसी ने भी उन्हें यह कार्य करने से नहीं रोका , और धीरे धीरे वह पैसा बड़े लड़के की जेब में जाता रहा. इस अपराध के हिस्सेदार वह लोग भी है जो ऐसे खेल को देख आनंदित होते है और बढ़ावा देते है . जो इन बातों का विरोध करते है उन्हें स्वयं समाज का विरोध झेलना पड़ता है .
बच्चो का शोषण सिर्फ श्रम से ही नहीं होता अपितु स्कूल में शिक्षक द्वारा, एवं घर में परिचित या रिश्तेदार भी उनका शोषण कर लेते है। सामान्यतः यह बात खुलकर बाहर नहीं आ पाती . बच्चो को चाकलेट या मिठाई के बहाने बुलाकर , फुसलाकर उनका शारीरिक शोषण किया जाता है . उन्हें जान से मरने की धमकी देकर डराया जाता है और इसी बहाने बच्चे लगातार शोषित किये जातें है। चाहे लड़का हो या लड़की सभी इसके शिकार होते है। कई बार सुनने में आया कि फलां टीचर ने विद्यार्थी के साथ अनुचित व्यवहार किया है. कई शिक्षक ऐसे होते है जो बालउम्र को ध्यान में न रखकर सजा के रूप में उनकी इतनी पीटाई करते है कि कई बार बच्चो की हालत ख़राब हो जाती है और उन्हें अस्पताल तक ले जाना पडा . भय उनके मन में घर कर जाता है।
कई बार ऐसी परिस्थिति भी सामने आई है जैसा कि आरती के साथ हुआ था। उसके घर में उसके दूर के मामा ने उसका शारीरिक शोषण किया और डरा कर चुप करा दिया। वह डर के कारण कुछ नहीं कह सकी . बाल्यावस्था में बच्चों के साथ हुई घटनाएं उनके बालमन पर सदा के लिए अंकित हो जाती है। आरती के साथ जो कुछ भी हुआ उसके दुःख और परेशानी की काली छाया उसके जीवन पर सदा के लिए अंकित हो गयी .इसके ठीक विपरीत साहसी नीलम की दाद देनी पड़ेगी। वह कोचीन क्लास में पढने जाती थी। विद्यार्थीयों को अपनी डिफिकल्टी के लिए कक्षा के बाद ही रुक कर पूछना पड़ता था। एक दिन नीलम अपने प्रश्न के लिए वहां रुकी। उसके टीचर ने उसके साथ अकेले में अशोभनीय व्यवहार किया , पहले तो वह कुछ नहीं बोली, पर यह सिलसिला अक्सर होने लगा तो उसने विरोध किया। जबाब में उस शिक्षक ने उसे धमकी दी यदि ज्यादा आवाज करोगी तो तुम्हे बदनाम कर दूंगा। पर नीलम की समझदारी उसे कोई बड़ा कांड होने से बचा लिया। उसने माता -पिता को यह बात बताई और पुलिस की मदद से बालबाल बच गयी . हर बच्चे को बचपन से ही यह शिक्षा देनी चाहिए कि डरो मत अपितु अपनों का सहारा लो. अनजान पर विश्वास मत करो .
अपराध तो ख़त्म नहीं होते। आज समाज में जगह - जगह राक्षस फैले हुए हैं। अक्सर समाचार पत्र दुष्कृत की काली ख़बरों से रंगे हुए होते हैं। कुछ दुष्कर्मी युवको ने शराब के नशे में न जाने कितनी मासूम कन्याओ को अपना शिकार बनाया, सबसे ज्यादा खेद जनक स्थिति है कि अपने मानसिक विकृत कृत्य में उन्होंने 3-- 6 महीने की नवजात शिशु को भी नहीं बख्शा। आज लोगों का मानवता से भरोसा उठ गया है। शिशु आज अपने घर में भी सुरक्षित नहीं है। विकृत मनोदशा वाले लोग सामान्य स्थिति में हमारे आसपास ही मौजूद होते हैं। सोशल मीडिया पर मौजूद पोर्न विडिओ ने किशोरों को भी अपनी गिरफ्त में लेकर मानसिक रोगी बनाया है। कई लोग पुलिस की गिरफ्त में भी आये और सजा भी हुई। पर अपराध का मकड़जाल इस तरह फैला हुआ है कि इसकी सफाई करना मुश्किल है। सभ्य कपड़ों में काले कुकर्मी घूमते हैं।
लोग समाज के डर से यह बात ही छुपा लेते है . खासकर जब कन्या हो,कहीं उसकी शादी में अड़चन न हो जाये। ऐसा विचार अपराधी को बढ़ावा देते हैं इंसानियत मरने लगी है। न्यायालयों में पोक सो के केसों की बढ़ती संख्या चिंतनीय है। मानसिक विकृति का खामियाजा नवजात बच्चों और बच्चियों का भुगतना पड़ता है। शिक्षिकों द्वारा किये गए कृत्य कितने गलत हैं, जब गुरु ही गलत होगा तो बच्चों को क्या शिक्षा मिलेगी! शोषण सिर्फ शारीरिक ही नहीं मानसिक भी होता है, एक बार स्कूल में एक शिक्षिका ने 1-2 बच्चो को बहुत मारा , नंबर भी काट लेने की बात कही, क्रोध में बहुत ज्यादा होमेवोर्क दिया, सजा दी . एक बार एक लड़की इस पीड़ा को न सह सकी और डर के कारण घर पर भी किसी को कुछ नहीं बताया व अंत में आत्महत्या कर ली. एक नोट छोड़ दिया और जिंदगी हमेशा के लिए मिट गयी। . इस तरह के हालात समाज को अंदर से खोखला कर रहें हैं। नन्हे कदम जो हाथ थाम कर चलना सीख रहें हैं उन्हें दुनिया को अच्छी नज़रों से दिखाना चाहिए न कि काली करतूतों से भरी दुनियां को। बालपन में हुए हादसे उनके जीवन पर विपरीत प्रभाव भी डालते हैं। उनके साथ हुई घटनाओं का जिम्मेदार वह दुनिया को मानते है एवं बदला लेने के लिए भविष्य में वही कार्य दोहराते हैं। ऐसी कई घटनाए हमारे समाज में हो रही है. बाल मजदूरी भी हमारे समाज का हिस्सा बन गयी है। समाज में फैली अपराधों के चलते कई लोग घर में काम के लिए छोटे बच्चो को रख लेते हैं। क्यूंकि वह परेशान नहीं करते और सारा काम चन्द पैसे और खाने के लालच में कर देते है .
बचपन एक फूल के समान है जिसे प्यार भरे संरक्षण की आवश्यकता है , जब नींव अच्छी रखी जाएगी तो वह पौधा बन कर अच्छे फल- फूल देगा . आज बाल शोषण जैसी समस्या को जड़ से मिटाने के लिए सभी को साथ में मिलकर समाप्त करना होगा . चंद पंक्तियाँ कहना चाहूंगी--
बेटी हो या बेटा ,
बचपन एक समान
न मसलो नन्हें पौधों को
दो अधरों पर मुस्कान
--शशि पुरवार
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