लघुकथा
आज आईने में जब खुद का अक्स देखा तो ज्ञात हुआ वक़्त कितना बदल गया है। जवां दमकते चहरे, काले बाल, दमकती त्वचा के स्थान पर श्वेत केश, अनुभव की उभरी लकीरें, उम्र की मार से कुछ ढीली होती त्वचा ने ले ली है, झुर्रियां अपने श्रम की कहानी बयां कर रही हैं। उम्र को धोखा देने वाली वस्तुओं पास मेज पर बैठी कह रही थी मुझे आजमा लो किन्तु मन आश्वस्त था इसीलिए इन्हे आजमाने का मन नहीं हुआ. चाहे लोग बूढ़ा बोले किन्तु आइना तो सत्य कहता है। मुझे आज भी आईने के दोनों और आत्मविश्वास से भरा, सुकून से लबरेज मुस्कुराता चेहरा ही नजर आ रहा है। उम्र बीती कहाँ है, वह तो आगे चलने के संकेत दे रही है। होसला अनुभव , आत्मविश्वास आज भी कदम बढ़ाने के लिए तैयार है।
शशि पुरवार