चम्पा चटकी
-शशि पुरवार
इधर डाल पर
महक उठी अँगनाई ।
उषाकाल नित
धूप तिहारे
महक उठी अँगनाई ।
उषाकाल नित
धूप तिहारे
चम्पा को सहलाए ,
पवन फागुनी
पवन फागुनी
लोरी गाकर
फिर ले रही बलाएँ।
निंदिया आई
निंदिया आई
अखियों में और
सपने भरें लुनाई
श्वेत चाँद -सी
पुष्पित चम्पा
सपने भरें लुनाई
श्वेत चाँद -सी
पुष्पित चम्पा
कल्पवृक्ष-सी लागे
शैशव चलता
शैशव चलता
ठुमक -ठुमक कर
दिन तितली- से भागे
नेह- अरक में
दिन तितली- से भागे
नेह- अरक में
डूबी पैंजन
बजे खूब शहनाई.-शशि पुरवार